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भारतीय इतिहास

लोथल...भारत का सबसे पुराना बंदरगाह शहर

  • 23 Jan 2019
  • 7 min read

हमारे देश में स्कूल में पढ़ चुके बच्चों में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में जानकारी न हो। सिंधु घाटी की सभ्यता को ही हड़प्पा की सभ्यता कहा जाता है। इसे यह नाम इसलिये दिया गया क्योंकि 1920 के दशक में ब्रिटिश पुरातत्वविद् सर मॉर्टिमर व्हीलर ने सबसे पहले हड़प्पा में ही खोदाई का काम शुरू किया था।

हड़प्पा सभ्यता बेहद विशाल थी तथा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक इसका विस्तार था। हालाँकि, भारत विभाजन के बाद हड़प्पा और मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के कब्ज़े में चले गए, फिर भी हड़प्पा सभ्यता के कई स्थान भारत में भी मौज़ूद रहे।

कैसा है लोथल?

lothal

  • भारतीय पुरातत्वविदों ने गुजरात के सौराष्ट्र में 1947 के बाद हड़प्पा सभ्यता शहरों की खोज शुरू की और इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता भी मिली।
  • पुरातत्वविद एस.आर. राव की अगुवाई में कई टीमों ने मिलकर 1954 से 1963 के बीच कई हड़प्पा स्थलों की खोज की, जिनमें में बंदरगाह शहर लोथल भी शामिल है।
  • हड़प्पा संस्कृति को दो उप-कालखंडों में रखा जा सकता है: 1. 2400-1900 ईसा पूर्व और 2. 1900-1600 ईसा पूर्व।
  • मोहनजोदड़ो की तरह लोथल का भी अर्थ है, मुर्दों का टीला। खंभात की खाड़ी के पास भोगावो और साबरमती नदियों के बीच स्थित है लोथल।
  • अहमदाबाद से एक लंबी और धूल-मिट्टी से भरी यात्रा के बाद सारगवाला गाँव आता है जहाँ लोथल का पुरातात्विक स्थल स्थित है।
  • यहाँ पहुँचते ही ऐसा लगता है कि ये ईंटें हाल-फिलहाल में ही बनाई गई है, किसी भी हालत में 2400 ईसा पूर्व की तो नहीं ही लगतीं।
  • सबसे पहले दिखाई देता है एक आयताकार बेसिन, जिसे डॉकयार्ड कहा जाता था। 218 मीटर लंबा और 37 मीटर चौड़ा यह बेसिन चारों तरफ से पक्की ईंटों से घिरा हुआ है। इसमें स्लूस गेट और इनलेट (Sluice Gate & Inlet) के लिये जगह छोड़ी गई है।

पहला बंदरगाह शहर


चूँकि अभी तक हम सिंधु लिपि को व्याख्याबद्ध (Decode) नहीं कर पाए हैं, इसलिये यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि क्या लोथल वास्तव में देश का पहला बंदरगाह शहर था। इसे लेकर इतिहासकारों में भी मतभेद है। लेकिन यह सच है कि अन्य प्राचीन शहरों में मिली लोथल की मुद्राओं से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि अन्य प्राचीन सभ्यताओं के साथ व्यापार में इसका बेहद महत्त्व था। ऐसे में कहा जा सकता है कि यह डॉकयार्ड हड़प्पा वासियों की समुद्री गतिविधियों की ओर संकेत करता है।

  • 4500 वर्षीय पुराना यह शहर गणितीय तरीके से योजनाबद्ध रूप से बना था। इसमें उचित कोणों पर सड़कों को पार करने की व्यवस्था, जल निकासी प्रणालियाँ और बड़े स्नानागार की व्यवस्था थी।
  • शौचालय और लोटे जैसे जार मिलने से यह पता चलता है कि स्वच्छता पर पर्याप्त ज़ोर दिया जाता था।

The Early Indians


टोनी जोसेफ ने अपनी पुस्तक, The Early Indians: The Story of Our Ancestors and Where We Came From में लिखा भी है कि इस मामले में दक्षिण एशियाई लोगों के तौर-तरीकों में कोई खास बदलाव नहीं आया है। इस पुस्तक से यह भी पता चलता है कि लोथल में हुई खोदाई में एक कलश भी मिला था। इसमें एक घड़े के आगे एक कौए का चित्र बना है, जिसके पीछे एक हिरण दिख रहा है। अपनी इस पुस्तक में टोनी जोसफ ने लिखा भी है...”कुछ किस्से-कहानियाँ जो आज हम अपने बच्चों को बताते हैं, वे शायद वही हैं जो हड़प्पा वासी अपने बच्चों को बताया करते थे।”

  • इसके बाद एक प्राचीन कुआँ और एक भंडारगृह के अवशेष देखने को मिलते हैं। ऐसा लगता है जैसे यह शहर का ऊपरी हिस्सा या नगरकोट (Citadel) है।
  • लोथल शहर दो हिस्सों में बंटा हुआ था: 1. ऊपरी हिस्सा (Upper Town) और 2. निचला हिस्सा (Lower Town)।
  • यहाँ मिलने वाले ईंट की दीवारों के अवशेष, चौड़ी सड़कों, नालियों और स्न्नागारों की ओर इंगित करते हैं।
  • इसके बाद ऐसा स्थान दिखाई देता है, जो मनके बनाने वाली फैक्ट्री की तरह लगता है। लेकिन इसके स्पष्ट चिह्न देखने को नहीं मिलते।
  • हड़प्पा समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था लोथल। यहाँ पर अर्द्ध-कीमती रत्नों, टेराकोटा, सोने आदि से बने मनके-मोती सुमेर (आधुनिक इराक), बहरीन और ईरान जैसे क्षेत्रों में भी लोकप्रिय थे।

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का संग्रहालय


लोथल में मनके-मोती बनाने वाले बेहद कुशल थे। यहाँ आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के संग्रहालय में लोथल में मिले मोती-मनके रखे गए हैं। यहाँ लगे एक साइनबोर्ड पर लिखा है...निचले शहर में हुई खोदाई में एक मनके-मोती बनाने वाले का घर भी मिला था। इसमें कई कमरे और एक भट्ठी थी। उत्पादन के विभिन्न चरणों में पड़े 800 कॉर्नेलियन मोती वहाँ मिले थे। इनके साथ कई प्रकार के उपकरण और कच्चा माल भी वहाँ से बरामद किया गया था। इसी संग्रहालय में एक यूनीकॉर्न सील (मुद्रा) भी रखी हुई है, जिसके बारे में माना जाता है कि अपनी तरह की यह एकमात्र सील है।


स्रोत: द हिंदू

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