विवाह की न्यूनतम आयु: इतिहास और वर्तमान | 17 Aug 2020
प्रिलिम्स के लिये:विवाह की न्यूनतम आयु, विवाह की न्यूनतम आयु से संबंधित कानून, शिशु मृत्यु दर, मातृत्त्व मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर, बाल लिंग अनुपात मेन्स के लिये:महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु में बदलाव की आवश्यकता और बाल विवाह संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करेगी।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार ने महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु सीमा पर पुनर्विचार करने हेतु एक समिति का भी गठन किया है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, केंद्र सरकार समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के पश्चात् इस विषय पर निर्णय लेगी।
- भारत में विवाह की न्यूनतम आयु खासकर महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु सदैव एक विवादास्पद विषय रहा है, और जब भी इस प्रकार के नियमों में परिवर्तन की बात की गई है तो सामाजिक और धार्मिक रुढ़िवादियों का कड़ा प्रतिरोध देखने को मिला है।
- वर्तमान में नियमों के अनुसार, पुरुषों और महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 21 और 18 वर्ष है।
समिति का गठन
- 2 जून, 2020 को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्त्व की आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया था।
- यह टास्क फोर्स गर्भावस्था, प्रसव और उसके पश्चात् माँ और बच्चे के चिकित्सीय स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर के साथ विवाह की आयु और मातृत्त्व के सहसंबंध की जाँच करेगी।
- यह टास्क फोर्स शिशु मृत्यु दर (IMR), मातृत्त्व मृत्यु दर (MMR), कुल प्रजनन दर (TFR), जन्म के समय लिंगानुपात (SRB) और बाल लिंग अनुपात (CSR) जैसे प्रमुख मापदंडों की जाँच करेगी और महिलाओं के लिये विवाह की वर्तमान आयु (18 वर्ष) को 21 वर्ष तक बढ़ाने के विकल्प पर भी विचार करेगी।
- सामाजिक कार्यकर्त्ता और समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता में गठित इस टास्क फोर्स में नीति आयोग के सदस्य और कई सचिव स्तर के अधिकारी शामिल हैं।
विवाह की आयु ऐतिहासिक और कानूनी दृष्टिकोण
- वर्ष 1860 में अधिनियमित हुई भारतीय दंड संहिता (IPC) में 10 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध को अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया गया।
- वर्ष 1927 में ब्रिटिश सरकार ने कानून के माध्यम से 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ विवाह को अमान्य घोषित कर दिया, हालाँकि राष्ट्रवादी आंदोलन के रूढ़िवादी नेताओं द्वारा ब्रिटिश सरकार के इस कानून का काफी विरोध किया गया, क्योंकि वे इस प्रकार के कानूनों को हिंदू रीति-रिवाज़ों में ब्रिटिश हस्तक्षेप के रूप में देखा रहे थे।
- वर्ष 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम के माध्यम से महिलाओं और पुरुषों के विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 14 और 18 निर्धारित कर दी गई, वर्ष 1949 में संशोधन के माध्यम से महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई। वर्ष 1978 में इस कानून में एक बार फिर संशोधन किया गया और महिलाओं तथा पुरुषों के के लिये विवाह की न्यूनतम आयु को क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष कर दिया गया।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
पुरुषों और महिलाओं की विवाह आयु में अंतर?
- विवाह के लिये महिलाओं और पुरुषों की न्यूनतम आयु एकसमान न होने का कोई भी कानूनी तर्क दिखाई नहीं देता है, हालाँकि कई लोग इसके विरुद्ध तर्क देते हैं कि इस प्रकार के अलग-अलग नियम संविधान के अनुच्छेद 14 ( समानता का
- अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) का उल्लंघन करते है।
- वर्ष 2018 में विधि आयोग ने अपने एक परामर्श पत्र में कहा था कि विवाह के लिये महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग आयु समाज में रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है।
- आयोग ने कहा था कि महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की उम्र में अंतर का कानून में कोई आधार नहीं है क्योंकि विवाह में शामिल होने वाले महिला पुरुष हर तरह से एक समान होते हैं और इसलिये उनकी साझेदारी भी एक समान होनी चाहिये।
- महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन संबंधी समिति (Committee on the Elimination of Discrimination against Women- CEDAW) भी उन कानूनों की समाप्ति का आह्वान करती है जो ये मानते हैं कि महिलाओं की शारीरिक और बौद्धिक विकास दर पुरुषों की तुलना में अलग होती है।
न्यूनतम आयु में परिवर्तन की आवश्यकता
- यूनिसेफ (UNICEF) के आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि विश्व भर में पाँच वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों में प्रत्येक पाँचवें बच्चे की मृत्यु भारत में होती है। इन आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में शिशु मृत्यु दर (IMR) काफी खतरनाक स्तर पर पहुँच गई है।
- संयुक्त राष्ट्र के शिशु मृत्यु दर के अनुमान से संबंधित आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में संपूर्ण भारत में कुल 721,000 शिशुओं की मृत्यु हुई थी, जिसके अर्थ है कि इस अवधि में प्रति दिन औसतन 1,975 शिशुओं की मौत हुई थी।
- वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey-NFHS) के अनुसार, 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं में से 48 प्रतिशत का विवाह 20 वर्ष की उम्र में हो जाता है, इतनी छोटी सी उम्र में विवाह होने के पश्चात् गर्भावस्था में जटिलताओं और बाल देखभाल के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मातृ और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि देखने को मिलती है।
- ध्यातव्य है कि भारत में वर्ष 2017 में गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित जटिलताओं के कारण कुल 35000 महिलाओं की मृत्यु हुई थी।
- भारत में जिस समय महिलाओं को उनके भविष्य और शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिये, उस समय उन्हें विवाह के बोझ से दबा दिया जाता है, 21वीं सदी में इस रुढ़िवादी प्रथा में बदलाव की आवश्यकता है, जो कि महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने से महिलाओं के पास शिक्षित होने, कॉलेजों में प्रवेश करने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु अधिक समय होगा।
- इस निर्णय से संपूर्ण भारतीय समाज खासतौर पर निम्न आर्थिक वर्ग पर इस निर्णय का खासा प्रभाव देखने को मिलेगा।
भारत में बाल विवाह
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निष्कर्ष
उल्लेखनीय है कि महिलाओं के विवाह की उम्र को बढ़ाना महिला सशक्तीकरण और महिला शिक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है, हालाँकि यह भी आवश्यक है कि नियम बनाने के साथ-साथ उनके कार्यान्वयन पर भी ध्यान दिया जाए, क्योंकि भारत में पहले से ही महिलाओं के विवाह की न्यूनतम सीमा 18 वर्ष तय है, किंतु आँकड़े बताते हैं कि अधिकांश क्षेत्रों में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है। भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण के बदलाव की भी आवश्यकता है, अधिकांश भारतीय घरों में यह विचार काफी प्रचलित है कि लड़कियाँ पराया धन होती हैं, और उन्हें जल्द-से-जल्द विदा करना आवश्यक है, जब तक हम मानसिकता में बदलाव नहीं करेंगे तब तक बाल विवाह को रोकना संभव नहीं होगा।