एसडीजी 4 की प्राप्ति हेतु सरकार की प्रतिबद्धता | 05 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्तुत किया गया। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, समावेशी रोज़गार केंद्रित उद्योग को प्रोत्साहन एवं गतिशील अवसंरचना का निर्माण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के अहम कारक है। सरकार इस दिशा में कई विशिष्ट कदम उठाए जा रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में शिक्षा के क्षेत्र में एसडीजी 4 हासिल करने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया गया है।
- इसमें प्राथमिक शिक्षा के वैश्विकरण, दाखिलों में पर्याप्त वृद्धि तथा बच्चों की प्राथमिक एवं प्रारंभिक दोनों शिक्षा पूरी करने के दर में पर्याप्त वृद्धि के साथ उल्लेखनीय प्रगति का उल्लेख किया गया है।
- सर्वेक्षण में स्कूलों की प्रतिशत वृद्धि का जिक्र है जो अखिल भारतीय स्तर पर छात्र कक्षा कमरा अनुपात: (एससीआर) तथा शिष्य शिक्षक अनुपात: (पीटीआर) का अनुपालन है।
- इसमें छात्र कक्षा कमरा अनुपात: (एससीआर) तथा शिष्य शिक्षक अनुपात: (पीटीआर)मानदण्डों के अनुपालन में अंतर्राज्यीय अन्तर का भी उल्लेख है।
- सरकार के सतत् प्रयासों से प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर स्कूल दाखिलों में लिंग समता सूचकांक (जीपीआई) में पर्याप्त वृद्धि को ध्यान में रखते हुए सर्वेक्षण में बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ जैसे कार्यक्रमों की सफलता का उल्लेख किया गया है जिनमें शिक्षा कीप्राप्ति में लिंग भेद जैसे मामलों की और ध्यान आकर्षित किया गया है।
समावेशी और टिकाऊ विकास अर्जित करने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा जैसी सामाजिक अवसंरचना को सर्वोच्च प्राथमिकता दिये जाने की ज़रूरत
- समावेशी और टिकाऊ विकास अर्जित करने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा जैसी सामाजिक अवसंरचना को सर्वोच्च प्राथमिकता दिये जाने की ज़रूरत है।
- ‘सामाजिक अवसंरचना, रोज़गार एवं मानव विकास’ विषय पर शिक्षा, कौशल विकास, रोज़गार, आय सृजन में बालक बालिका अनुपात की खाइयों को पाटना एवं समाज में पर्याप्त सामाजिक विषमताओं को कम करना, मानव क्षमताओं में संवर्धन के लिये विकास कार्यनीति के अंतर्निहित लक्ष्यों में से रहे हैं।
- भारत का विश्व की अग्रणी ज्ञान अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरना तय है जहाँ शिक्षा, कौशल विकास एवं स्वास्थ्य सरकार के लिये प्राथमिकताएँ बनी रहेंगी।
- सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि सरकार योजनाओं के समन्वय के द्वारा व्यय की दक्षता में सुधार के लिये निर्धारित कदमों के अंगीकरण के साथ-साथ मानव पूंजी पर व्यय में बढ़ोतरी करती रही है।
- जीडीपी के एक अनुपात के रूप में केंद्र एवं राज्यों द्वारा सामाजिक सेवाओं पर व्यय 2012-13 से 2014-15 के दौरान 6 प्रतिशत के दायरे में बना रहा था।
- 2017-18 (बजट अनुमान) में सामाजिक सेवाओं पर व्यय 6.6 प्रतिशत है।आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में अनुशंसा की गई है कि हालाँकि सूक्ष्म/आर्थिक विकास और प्रभावी बाज़ार अनिवार्य हैं, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि विकास के लाभ सभी नागरिकों तक समान रूप से पहुँचे।
- सर्वेक्षण में निष्कर्ष के रूप में कहा गया है कि नीति एवं संस्थागत आर्थिक प्रणाली की सहायता करने वाले समावेशी विकास का सुदृढ़ीकरण हमारी सर्वोच्च नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिये।
एसडीजी-3 के तहत लक्ष्यों को हासिल करने तथा स्वास्थ्य प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण करने की प्रतिबद्धता
- आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में स्थायी विकास लक्ष्य-3 (एसडीजी-3) के तहत लक्ष्यों को हासिल करने की प्रतिबद्धता को दोहराया गया है जिनमे से कुछ लक्ष्य राष्ट्रीय नीति 2017 से सम्बन्धित हैं।
- सर्वेक्षण में 1990 और 2016 के दौरान देश में संक्रामक रोगों और गैर-संक्रामक रोगों में आए बदलाव पर गौर किया गया है। 2016 में भारत में स्वास्थ्य हानि के लिये बाल एवं मातृत्व कुपोषण सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण व जोखिम भरा कारक रहा है।
- अन्य प्रमुख कारक हैं- वायु प्रदूषण, आहार आधारित जोखिम, उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह आदि।
- सर्वेक्षण में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (National Health Policy) 2017 पर गौर किया गया है जिसमें राज्यों के स्वास्थ्य क्षेत्र में होने वाले खर्च को बढ़ाकर 2020 तक राज्य सरकार बजट के 08 प्रतिशत से अधिक करने की सिफारिश की गई है।
- सर्वेक्षण में ‘इंडियाः हैल्थ ऑफ नेशन्ज स्टेट्स’ (India: Health of Nation’s States) 2017’ रिपोर्ट पर भी गौर किया गया है जो 1990 से लेकर 2016 के दौरान समस्त राज्यों में रोगों और जोखिम कारकों के निष्कषों का पहला पूर्ण सेट उपलब्ध करता है।
- रोग के बोझ और जोखिम कारकों को विश्लेषण करने हेतु एक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराने के लिये डिजेबिलिटी एडजेस्टेड लाइव ईयर्स (Disability Adjusted Life Years -DALYs) विकसित किया गया है।
- सर्वेक्षण में इस बात पर बल दिया गया है कि सभी प्रमुख राज्यों के डीएएलवाई संव्यवहार के संदर्भ में सार्वजनिक खर्च को कुशलतापूर्वक उपयोग करने तथा यह निर्धारण करने की आवश्यकता है कि क्या राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर खर्च किये गए उच्च व्यय से बेहतर स्वास्थ्य परिणाम हासिल हुए हैं?
- सर्वेक्षण में इस बात पर बल दिया गया है कि भारत में व्यक्ति विशेष की स्वास्थ्य स्थिति में काफी सुधार आया है।1990 से 2015 की अवधि के दौरान जीवन प्रत्याशा 10 वर्षों तक बढ़ी है।
- फिर भी, सर्वेक्षण में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि विभिन्न शहरों में नैदानिक जाँचों के औसत मूल्यों में भारी अंतर है, जिसका समाधान स्वास्थ्य सेवाओं पर आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंसिस (Out of Pocket Expenses - OPE) को कम करने हेतु दरों का मानकीकरण किये जाने की आवश्यकता है।
- सर्वेक्षण के अनुसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 201 स्वास्थ्य, प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण करने और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज हासिल करने में सहायता देगी।