गोपाल कृष्ण गोखले | 12 May 2021
चर्चा में क्यों?
09 मई, 2021 को देशभर में महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) की 155वीं जयंती मनाई गई।।
- गोपाल कृष्ण गोखले एक महान समाज सुधारक और शिक्षाविद् थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को अनुकरणीय नेतृत्व प्रदान किया।
प्रमुख बिंदु
जन्म: 9 मई, 1866 को वर्तमान महाराष्ट्र (तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा) के कोटलुक गाँव में।
विचारधारा:
- गोखले ने सामाजिक सशक्तीकरण, शिक्षा के विस्तार और तीन दशकों तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कार्य किया तथा प्रतिक्रियावादी या क्रांतिकारी तरीकों के इस्तेमाल को खारिज किया।
औपनिवेशिक विधानमंडलों में भूमिका:
- वर्ष 1899 से 1902 के बीच वह बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे और वर्ष 1902 से 1915 तक उन्होंने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम किया।
- इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम करने के दौरान गोखले ने वर्ष 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में भूमिका:
- वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) के नरम दल से जुड़े थे (वर्ष1889 में शामिल)।
- बनारस अधिवेशन 1905 में वह INC के अध्यक्ष बने।
- यह वह समय था जब ‘नरम दल’ और लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा अन्य के नेतृत्त्व वाले ‘गरम दल’ के बीच व्यापक मतभेद पैदा हो गए थे। वर्ष 1907 के सूरत अधिवेशन में ये दोनों गुट अलग हो गए।
- वैचारिक मतभेद के बावजूद वर्ष 1907 में उन्होंने लाला लाजपत राय की रिहाई के लिये अभियान चलाया, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा म्याँमार की मांडले जेल में कैद किया गया था।
संबंधित सोसाइटी तथा अन्य कार्य:
- भारतीय शिक्षा के विस्तार के लिये वर्ष 1905 में उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (Servants of India Society) की स्थापना की।
- वह महादेव गोविंद रानाडे द्वारा शुरू की गई 'सार्वजनिक सभा पत्रिका' से भी जुड़े थे।
- वर्ष 1908 में गोखले ने रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स की स्थापना की।
- उन्होंने अंग्रेज़ी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘द हितवाद’ की शुरुआत की।
गांधी के लिये गुरु के रूप में:
- एक उदार राष्ट्रवादी के रूप में महात्मा गांधी ने उन्हें राजनीतिक गुरु माना था।
- महात्मा गांधी ने गुजराती भाषा में गोपाल कृष्ण गोखले को समर्पित एक पुस्तक 'धर्मात्मा गोखले' लिखी।
मॉर्ले-मिंटो सुधार 1909:
- इसके द्वारा भारत सचिव की परिषद, वायसराय की कार्यकारी परिषद तथा बंबई और मद्रास की कार्यकारी परिषदों में भारतीयों को शामिल गया। विधान परिषदों में मुस्लिमों हेतु अलग निर्वाचक मंडल की बात की गई।
- भारतीय राष्ट्रवादियों इन सुधारों को अत्यधिक एहतियाती माना गया तथा मुसलमानों हेतु प्रथक निर्वाचक मंडल के प्रावधान से हिंदू नाराज़ थे।
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में वृद्धि की गई।
- इस अधिनियम ने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी।
- केंद्र और प्रांतों में विधान परिषदों के सदस्यों की चार श्रेणियाँ थी जो इस प्रकार है:
- पदेन सदस्य: गवर्नर-जनरल और कार्यकारी परिषद के सदस्य।
- मनोनीत सरकारी सदस्य: सरकारी अधिकारी जिन्हें गवर्नर-जनरल द्वारा नामित किया गया था।
- मनोनीत गैर-सरकारी सदस्य: ये गवर्नर-जनरल द्वारा नामित थे लेकिन सरकारी अधिकारी नहीं थे।
- निर्वाचित सदस्य: विभिन्न वर्गों से चुने हुए भारतीय।
- निर्वाचित सदस्यों को अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाना था।
- भारतीयों को पहली बार इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल (Imperial Legislative Council) की सदस्यता प्रदान की गई।
- मुसलमानों हेतु पृथक निर्वाचक मंडल की बात की गई।
- कुछ निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिमों हेतु निश्चित किये गये जहाँ केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही अपने प्रतिनिधियों के लिये मतदान कर सकते थे।
- सत्येंद्र पी. सिन्हा वायसराय की कार्यकारी परिषद में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय सदस्य थे।