भारतीय इस्पात उद्योग: दिशा और दशा | 15 Sep 2020
प्रिलिम्स के लियेभारतीय इस्पात से संबंधित मुख्य तथ्य, राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 मेन्स के लियेइस्पात उद्योग का महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
लोकसभा में प्रस्तुत किये गए लिखित जवाब में केंद्रीय इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में भारतीय इस्पात उद्योग ने अपनी क्षमता, उत्पादन, निर्यात और बिक्री में लगातार वृद्धि की है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि बीते कुछ वर्षों में भारत के इस्पात उद्योग के उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि देखने को मिली है, और अप्रैल-अगस्त, 2020 की अवधि के दौरान, वित्तीय वर्ष 2019-20 की इसी अवधि की तुलना में भारत से इस्पात के निर्यात में 153 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
समग्र विकास में इस्पात उद्योग का महत्त्व
- इस्पात को आधुनिक विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण उत्पादों में से एक माना जाता है और यह किसी भी औद्योगिक राष्ट्र के लिये रणनीतिक दृष्टि से काफी अनिवार्य भूमिका अदा करता है।
- निर्माण और औद्योगिक मशीनरी से लेकर उपभोक्ता उत्पादों तक इस्पात का उपयोग विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है।
- किसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिये एक जीवंत घरेलू इस्पात उद्योग का होना काफी आवश्यक है, क्योंकि यह निर्णय, बुनियादी ढाँचे, मोटर वाहन, पूंजीगत वस्तुओं, रक्षा, रेल आदि जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण इनपुट होता है।
- वर्तमान समय में इस्पात संभवतः सबसे अधिक पुनर्नवीनीकृत (Recycled) होने वाली सामग्री है, और इसकी इस पुनर्चक्रण प्रकृति के कारण इसे पर्यावरणीय रूप से स्थायी आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- भारत का इस्पात उद्योग काफी विशाल है, जिसके कारण यह काफी बड़ी मात्रा में रोज़गार सृजन भी करता है।
भारतीय इस्पात उद्योग
- भारतीय इस्पात उद्योग को देश के औद्योगिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है, और इसी महत्ता के कारण आज़ादी के बाद से भारतीय इस्पात उद्योग ने काफी विकास किया है।
- अनुमान के मुताबिक, आज़ादी के समय भारतीय इस्पात उद्योग का उत्पादन तकरीबन 1 मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) था, जो कि वर्तमान में 142 मीट्रिक टन प्रति वर्ष पर पहुँच गया है।
- भारत का इस्पात उद्योग एक पूर्णतः स्थापित उद्योग है और बीते कुछ वर्षों में इसमें निरंतर वृद्धि देखी गई है। बीते छह वर्षों में भारत में तैयार इस्पात की मांग में 6.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, और वर्ष 2018-19 में यह 99 मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) पर पहुँच गई है।
- भारत में वर्ष 2018-19 में कच्चे इस्पात की उत्पादन क्षमता तकरीबन 142.236 मिलियन टन थी जबकि कच्चे इस्पात का उत्पादन लगभग 110.921 मिलियन टन हुआ था।
- इस प्रकार उत्पादन में हो रही निरंतर वृद्धि ने भारत को वैश्विक इस्पात उद्योग में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत विश्व भर में कच्चे इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया के कुल इस्पात उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी तकरीबन 6.1 प्रतिशत है।
- वहीं तैयार इस्पात के उपभोग के मामले में भी भारत ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है और वर्ष 2018 के दौरान भारत तैयार इस्पात का पूरी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था।
- भारत में तैयार इस्पात की प्रतिव्यक्ति खपत वर्ष 2014-15 के दौरान 60.8 किलोग्राम थी, जो कि वर्ष 2018-19 में बढ़कर 74.1 किलोग्राम हो गई। ध्यातव्य है कि इस्पात की प्रतिव्यक्ति खपत किसी भी देश में सामाजिक-आर्थिक विकास और आम लोगों के जीवन स्तर का सूचक होती है।
भारतीय इस्पात उद्योग- चुनौतियाँ
- वित्त: इस्पात उद्योग एक पूंजी प्रधान उद्योग है। अनुमानतः 1 टन स्टील बनाने की क्षमता स्थापित करने के लिये तकरीबन 7,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होती है। आमतौर पर इस प्रकार का वित्तपोषण उधार ली गई राशि के माध्यम से किया जाता है। किंतु भारत में चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों की अपेक्षा वित्त की लागत काफी अधिक है जो कि इस उद्योग के विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आई है। इसके कारण इस्पात के कुल उत्पादन की अंतिम लागत में लगभग तकरीबन 30-35 अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होती है।
- लॉजिस्टिक्स: अधिकांश भारतीय इस्पात निर्माताओं के लिये लॉजिस्टिक्स आवश्यकताओं का प्रबंधन करना काफी कठिन, चुनौतीपूर्ण और महँगा होता है। इस्पात के निर्णय के लिये मुख्यतः लौह अयस्क और कोयले की आवश्यकता होती है, और ये दोनों ही थोक वस्तुएँ हैं और इनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है, इसके अलावा तैयार इस्पात को उपभोक्ताओं तक पहुँचाना भी काफी कठिन कार्य होता है।
- उत्पादन क्षमता का अल्प-उपयोग: भारत में इस्पात की उत्पादन क्षमता का कम उपयोग भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या है, उदाहरण के लिये वित्त वर्ष 2018-19 में भारत में इस्पात उत्पादन की क्षमता तकरीबन 142.236 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष थी, किंतु इस दौरान 110.921 मीट्रिक टन उत्पादन ही हो सका, इस प्रकार इस अवधि के दौरान आवश्यक क्षमता का केवल 78 प्रतिशत उपयोग ही हो सका।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: पर्यावरण संबंधी चिंताएँ लगातार केंद्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करती जा रही हैं, हालाँकि भारत के भविष्य के लिये यह एक अच्छी खबर है, किंतु ये चिंताएँ कई उद्योगों के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं, जिनमें इस्पात उद्योग भी शामिल है।
राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017
- इस्पात मंत्रालय से मंज़ूरी प्राप्त करने के पश्चात् राष्ट्रीय इस्पात नीति को 8 मई, 2017 को यह सुनिश्चित करने के लिये अधिसूचित किया गया था कि भारतीय इस्पात उद्योग आधुनिक भारत की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने और भारत के स्थायी विकास को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका अदा कर सके।
- इस नीति के तहत भारत में वर्ष 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन कच्चे इस्पात का उत्पादन कर विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी इस्पात उद्योग का निर्माण करना है।
- यह नीति उत्पादकों को नीति समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करके इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य निर्धारित करती है।
- नीति में उच्च श्रेणी के ऑटोमोटिव इस्पात, विद्युत-इस्पात और विशेष इस्पात की कुल मांग को 100 प्रतिशत स्वदेश में ही पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- नई इस्पात नीति में घरेलू इस्पात उत्पादकों के लिये गुणवत्ता मानकों का विकास भी शामिल किया गया है जिससे उच्च श्रेणी के इस्पात का उत्पादन हो सके।
आगे की राह
- भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिये इस्पात केंद्रित क्षेत्रों जैसे सभी के लिये आवास, शत-प्रतिशत विद्युतीकरण, पाइप द्वारा पेयजल आपूर्ति आदि में भारी निवेश किया जाएगा।
- इस्पात क्षेत्र में वृद्धि की अपार संभावनाएँ हैं और आने वाले समय इसकी घरेलू मांग में भी वृद्धि होगी। इसलिये यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि घरेलू इस्पात उद्योग इस मांग को पूरा करने में सक्षम हो।
- भारत के उद्योग के विकास में अभी भी कई बाधाएँ मौजूद हैं, जिन्हें जल्द-से-जल्द संबोधित कर उद्योग का विकास सुनिश्चित किया जाना अति आवश्यक है।