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जैव विविधता और पर्यावरण

फुकुशिमा परमाणु संयंत्र

  • 30 Dec 2019
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

फुकुशिमा परमाणु संयंत्र

मेन्स के लिये

परमाणु संयंत्रों से उत्सर्जित रेडियोएक्टिव तत्त्वों का उपचार एवं निहित समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान के आर्थिक एवं उद्योग मंत्रालय ने सुनामी से नष्ट हुए फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में भारी मात्रा में एकत्रित किए गए उपचारित किंतु अभी भी रेडियोएक्टिव जल के क्रमिक निस्तारण या वस्पोत्सर्जन का प्रस्ताव दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2011 में फुकुशिमा दाई-ईची परमाणु संयंत्र (Fukushima Dai-ichi Nuclear Plant) के तीन रिएक्टर कोरों (Reactor Cores) में हुई दुर्घटना के 9 वर्ष बाद तक रिएक्टर कोर को ठंडा रखने के लिये प्रयोग किया जाने वाला जल, रिसाव के कारण इकट्ठा होता गया और उसे टैंकों में एकत्रित किया गया ताकि वह महासागरों में या अन्य कहीं न बह जाए।
  • परमाणु संयंत्रों में रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जल का संग्रहण किया जाता है तथा यह जल रेडियोएक्टिव हो जाता है। फुकुशिमा में हुई घटना के बाद इस जल को टैंकों में संरक्षित कर लिया गया था ताकि वह समुद्र या अन्य स्थानों पर न प्रवाहित हो।
  • पिछले कई वर्षों से जापान सरकार इस समस्या को हल करने तथा वहाँ के मछुआरों व निवासियों को आश्वस्त करने की कोशिश कर रही है क्योंकि उन्हें इस बात का भय है कि रेडियोएक्टिव जल को छोड़ने से स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं साथ ही साथ उस क्षेत्र की छवि तथा मछली-पालन उद्योग दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

प्रस्तावित उपाय:

  • TEPCO (Tokyo Electric Power Company) के अनुसार, इस जल का उपचार किया जा चुका है तथा इसमें मौजूद ट्रिटियम के अलावा 62 प्रकार के रेडियोएक्टिव तत्त्वों को उस स्तर तक निकाला जा सकता है जो मानव स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक नहीं है।
  • ट्रिटियम को पूरी तरह जल से अलग करने की कोई स्थापित विधि मौजूद नहीं है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी थोड़ी मात्रा नुकसानदायक नहीं होती है। किंतु ट्रिटियम के अलावा इस जल में मौजूद अन्य रेडियोएक्टिव तत्त्व जैसे- सीज़ियम (Cesium), स्ट्रोंटियम (Strontium), आदि कैंसर के कारक हैं तथा इनको भी आगे उपचारित करना पड़ता है।
  • प्रस्तावित उपाय में कहा गया है कि संयंत्र से जल को नियंत्रित मात्रा में प्रशांत महासागर में छोड़ा जाए और उसे वाष्पोत्सर्जित (Evaporation) होने दिया जाए या इन दोनों विधियों को सम्मिलित तौर पर प्रयोग किया जाए।
  • इस प्रकार से जल का समुद्र में नियंत्रित निकास एक अच्छा विकल्प होगा क्योंकि यह समुद्र में रेडियोएक्टिव जल की सांद्रता को स्थायी तौर पर कम करेगा और इसको समुद्र के जल में समिश्रित करेगा तथा इसकी निगरानी की जा सकेगी।
  • प्रस्ताव में कहा गया है कि इस प्रकार जल के निकास में वर्षों लगेंगे तथा रेडिएशन स्तर को एक निर्धारित सीमा से कम रखा जाएगा।
  • पूरे विश्व के परमाणु संयंत्रों से ट्रिटियम को निर्धारित तरीके से लगातार छोड़ा जाता है तथा दुर्घटना से पहले फुकुशिमा से भी छोड़ा जाता था। वर्ष 1979 में अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड (Three Mile Island) परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना के बाद वाष्पोत्सर्जन विधि द्वारा 8,700 टन ट्रिटियम प्रदूषित जल से छुटकारा पाने में 2 वर्ष लगे।
  • इसके बाद वाष्पोत्सर्जन विधि को रेडियोएक्टिव जल के उपचार हेतु सर्वमान्य विधि के तहत स्वीकार किया गया।
  • सरकार की पहले की रिपोर्टों में इस रेडियोएक्टिव जल के उपचार हेतु पाँच अन्य विधियाँ बताई गई थीं जिनमें जल को समुद्र में छोड़ना तथा वाष्पोत्सर्जन शामिल था। इसके अतिरिक्त अन्य विधियों में इसको भूमि में दबा देना एवं गहराई में स्थित भूगर्भीय परतों में इसे इंजेक्ट करना आदि शामिल था।

प्रभाव:

  • TEPCO (Tokyo Electric Power Company) के अनुसार, वर्तमान में इस परमाणु संयंत्र के टैंकों में 1 मिलियन टन रेडियोएक्टिव जल को संग्रहीत किया गया है तथा इसकी कुल क्षमता 1.37 मिलियन टन है जो कि वर्ष 2022 के मध्य तक पूरी तरह समाप्त हो सकती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस जल को अगले वर्ष होने वाले टोक्यो ओलंपिक के बाद छोड़ा जाएगा।
  • TEPCO व अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि ये टैंक फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को नष्ट करने की राह में एक बड़ी बाधा हैं। इसके अलावा इनके स्थान को खाली कराने की आवश्यकता है ताकि परमाणु संयंत्र से निकले मलबे तथा अन्य रेडियोएक्टिव पदार्थों को एकत्रित किया जा सके। इसके अलावा सुनामी, भूकंप या किसी अन्य आपदा की स्थिति में इन टैंकों से रिसाव भी हो सकता है।
  • इसके अलावा इसके एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण में निहित तकनीकी समस्याएँ भी चुनौतीपूर्ण होती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के विशेषज्ञों व अन्य विशेषज्ञों, जिन्होंने फुकुशिमा संयंत्र का निरीक्षण किया है, का मानना है कि इस जल को नियंत्रित तरीके से समुद्र में छोड़ना ही एकमात्र उचित विकल्प है।

पैनल में मौजूद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये जिन्होंने पूर्व में भी इस जल के आकस्मिक रिसाव तथा जल के संभावित निकास के कारण अपनी छवि को नुकसान पहुँचते हुए देखा है। संभवतः इसीलिये तकनीकी तौर पर रेडियोएक्टिव जल को समुद्र में छोड़ना एक उचित विकल्प है।

स्रोत: द हिंदू

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