एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट | 11 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने 1 अक्तूबर, 2019 से सभी बैंकों के लिये नए फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) लोन (व्यक्तिगत/खुदरा ऋण और MSME हेतु ऋण) को एक एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट (External Benchmark Rates) से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान परिदृश्य:
- भारत सरकार अर्थव्यवस्था में विकास दर को बढ़ाने के लिये बाज़ार में मुद्रा प्रवाह को बढ़ाना चाहती है, बाज़ार में तरलता बढ़ने से उत्पादन बढ़ेगा, रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे और अंततः विकास दर बढ़ेगी।
- वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र रही है, ऑटोमोबाइल सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित है जिसके कारण इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग बेरोज़गार हो रहे हैं। भारत में रियल एस्टेट सेक्टर और विनिर्माण सेक्टर भी आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं।
- भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में लगातार गिरावट आ रही है। RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial stability report) के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर वर्ष 2019 की पहली तिमाही में पिछले 5 वर्षों की तुलना में सबसे कम (5.8%) दर्ज की गई है।
- एशियन डेवलपमेंट बैंक (Asian Development Bank) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के नए अनुमान के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर वर्ष 2019 में 6.8% रहेगी।
- दक्षिण एशिया और अफ्रीका के कुछ देश पश्चिमी देशों से व्यापार समझौता कर उनके बाज़ारों में अपनी पहुँच स्थापित कर रहे हैं, वर्तमान में वियतनाम-यूरोपीय संघ के बीच समझौता इसका उदाहरण है। इससे भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
- अमेरिका के फेडरल बैंक द्वारा अपनी ब्याज दर बढ़ाने से वहाँ पर निवेश बढ़ने की संभावना है जिससे भारत जैसे विकासशील देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट आने की संभावना है।
- यूरोप की राजनीतिक स्थिति और आर्थिक संकट से वहाँ के देश आर्थिक मंदी के बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। इसलिये वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारत की अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की संभावना है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में अवसंरचना की कमी एक सबसे बड़ी समस्या है जिसको दूर करने के लिये सरकार को बड़े स्तर पर वित्त की आवश्यकता है।
- कौशल और तकनीक के क्षेत्र में स्वयं को और अधिक विकसित करने के लिये भी बड़ी मात्रा में वित्त की आवश्यकता है।
- भारत आर्थिक विकास के साथ ही पर्यावरण को लेकर बेहद संवेदनशील रहा है, इसलिये सतत् और संधारणीय विकास के लिये बेहतर तकनीक तथा नीतियों के निर्माण एवं क्रियान्वयन के लिये वित्त की अधिक आवश्यकता होगी।
- वर्तमान समय की वैश्विक भू-राजनीति के फलस्वरूप भारत को विदेशों से पूंजी प्राप्त करने के बजाय भारत में ही पूंजी निर्माण के बारे में विचार करना चाहिये।
MCLR (Marginal Cost of Fund Based Lending Rate):
- इसे अप्रैल 2016 में लागू किया गया था। यह न्यूनतम ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक ग्राहकों को उधार दे सकते हैं।
- यह दर चार घटकों- धन की सीमांत लागत (Marginal Cost Of Funds), नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio), परिचालन लागत (Operating Costs) और परिपक्वता अवधि (Tenor Premium) पर आधारित है।
- MCLR वास्तविक जमा दरों से जुड़ा हुआ है। इसलिये जब जमा दरों में वृद्धि होती है, तो यह इंगित करता है कि बैंकों की ब्याज दर बढ़ने की संभावना है।
MCLR से संबंधित मुद्दे:
- मौजूदा MCLR ढांँचे के तहत बैंकों की ऋण देने की दर में नीतिगत बदलाव संतोषजनक नहीं रहे हैं।
- RBI के अनुसार वर्ष 2019 में रेपो दर में 75 आधार अंकों (Basis Points) की कमी की गई थी लेकिन बैंकों के MCLR में केवल 29 आधार अंकों की कमी आई थी।
- बैंकों का तर्क है कि MCLR के फॉर्मूले की गणना फंड की लागत के आधार पर की जाती है और इस प्रकार रेपो रेट में कटौती के बाद MCLR धीरे-धीरे नीचे आता है।
- इस बात की प्रबल संभावना है कि RBI बाज़ार में पूंजी के प्रवाह को बढ़ाने के लिये रेपो रेट में और कटौती कर सकता है।
- एक्सटर्नल बेंचमार्क को पहली बार 2018 में पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा प्रस्तावित किया गया था। ब्याज दरों को जोड़ने के एक्सटर्नल बेंचमार्क के लिये मानक 1 अप्रैल से लागू होने वाले थे, लेकिन बैंकों द्वारा विरोध करने के कारण इसे टाल दिया गया था।
एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट क्या है?
- बैंक चार एक्सटर्नल बेंचमार्क- रेपो रेट, तीन महीने का ट्रेजरी बिल यील्ड (Yield), छह महीने का ट्रेजरी बिल यील्ड (Yield) या फाइनेंशियल बेंचमार्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (Financial Benchmarks India Private Ltd) द्वारा जारी किसी एक बेंचमार्क को चुन सकते हैं।
- एक बैंक को एक से अधिक बेंचमार्क अपनाने की अनुमति नहीं है, साथ ही एक्सटर्नल बेंचमार्क के तहत ब्याज दर प्रत्येक तीन महीने में कम-से-कम एक बार पुनः निर्धारित किया जाएगा।
- MCLR के तहत मौजूदा ऋण के लिये बेस रेट या बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट ( Benchmark Prime Lending Rate) ऋण के पुनर्भुगतान या नवीनीकरण तक जारी रहेंगे।
- जो ग्राहक रेपो रेट से संबद्ध रेट को अपनाना चाहते हैं वे बैंक के साथ पारस्परिक रूप से स्वीकार्य शर्तों पर ऐसा कर सकते हैं।
फाइनेंशियल बेंचमार्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
(Financial Benchmarks India Private Ltd)
- इसे कंपनी अधिनियम 2013 के तहत 9 दिसंबर, 2014 को स्थापित किया गया था।
- इसे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 2 जुलाई, 2015 को एक स्वतंत्र बेंचमार्क व्यवस्थापक के रूप में मान्यता दी गई थी।
- इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य भारतीय ब्याज दर और विदेशी मुद्रा बेंचमार्क की समीक्षा के साथ नई बेंचमार्क दरों के लिये नीतियों और प्रक्रियाओं को लागू करना है।
- इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिये बाज़ार में मुद्रा की तरलता बढ़ाना आवश्यक है, इसलिये RBI द्वारा उठाए गए ये कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को संरचनात्मक मज़बूती देने के साथ ही 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में मददगार साबित होंगे