निर्यात तत्परता सूचकांक 2021: नीति आयोग | 26 Mar 2022
प्रिलिम्स के लिये:निर्यात तत्परता सूचकांक, नीति आयोग, सकल घरेलू उत्पाद के घटक। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, संसाधन जुटाना, आर्थिक विकास दर में तेज़ी से वृद्धि हासिल करने के लिये निर्यात, निर्यात प्रोत्साहन के मुद्दों हेतु चुनौतियाँ और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग द्वारा जारी निर्यात तत्परता सूचकांक (Export Preparedness Index- EPI), 2021 के अनुसार, गुजरात को लगातार दूसरे वर्ष निर्यात तैयारियों के मामले में भारत का शीर्ष राज्य नामित किया गया है।
- सूचकांक में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं, क्योंकि उच्च औद्योगिक गतिविधियों के साथ समुद्र तटीय बंदरगाहों वाले राज्य भारत के अधिकांश निर्यात के लिये ज़िम्मेदार हैं।
निर्यात तत्परता सूचकांक (EPI):
- चुनौतियों और अवसरों की पहचान करना, सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता को बढ़ाना तथा निर्यात के लिये एक सुविधाजनक नियामक ढाँचे को प्रोत्साहित करना।
- सूचकांक में 4 स्तंभ, 11 उप स्तंभ और 60 संकेतक शामिल हैं तथा इसमें 28 राज्य एवं 8 केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं।
- चार स्तंभ:
- नीति: निर्यात और आयात के लिये रणनीतिक दिशा प्रदान करने वाली एक व्यापक व्यापार नीति।
- बिज़नेस इकोसिस्टम: एक कुशल बिज़नेस इकोसिस्टम जो राज्यों को निवेश आकर्षित करने और स्टार्ट-अप शुरू करने हेतु व्यक्तियों के लिये एक सक्षम बुनियादी ढाँचा बनाने में मदद करता है।
- निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र: कारोबारी माहौल का आकलन करना, जो निर्यात के लिये विशिष्ट हो।
- निर्यात प्रदर्शन: यह एकमात्र आउटपुट-आधारित पैरामीटर है जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात गतिविधियों की जाँच करता है।
- ग्यारह उप-स्तंभ:
- सूचकांक में 11 उप-स्तंभों- निर्यात प्रोत्साहन नीति; संस्थागत ढाँचा, व्यापारिक वातावरण, आधारभूत संरचना, परिवहन कनेक्टिविटी, वित्त तक पहुँच, निर्यात बुनियादी ढाँचा, व्यापार समर्थन अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना निर्यात विविधीकरण और विकास अभिविन्यास के आधार पर श्रेणी तैयार की गई है।
- सूचकांक की विशेषताएँ: ईपीआई उप-राष्ट्रीय स्तर (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों) पर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण मुख्य क्षेत्रों की पहचान करने हेतु डेटा-संचालन का प्रयास है।
- यह प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किये गए विभिन्न योगदानों की जाँच कर भारत की निर्यात क्षमता पर प्रकाश डालता है।
- भारतीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का प्रदर्शन:
निर्यात तत्परता सूचकांक (EPI) का महत्त्व:
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात प्रदर्शन की जाँच: इस सूचकांक का उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात प्रदर्शन एवं निर्यात हेतु तैयारी की जांँच करना है।
- सूचकांक के पीछे निहित विचार इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को रैंकिंग प्रदान करने हेतु एक बेंचमार्क निर्मित करना है ताकि उन्हें इस क्षेत्र में एक अनुकूल निर्यात वातावरण को बढ़ावा देने में मदद मिल सके।
- निर्यात में आने वाली बाधाओं की पहचान करने में सहांयक: सूचकांक नीति निर्माताओं और निर्यातकों को गति प्रदान करने, बाधाओं की पहचान करने तथा राज्य हेतु एक व्यवहार्य निर्यात की रणनीति बनाने और इसकी जांँच करने हेतु एक आवश्यक उपकरण है।
- राज्य सरकार के लिये पथ-प्रदर्शक: सूचकांक राज्य सरकारों के लिये निर्यात प्रोत्साहन के संबंध में क्षेत्रीय प्रदर्शन को चिह्नित करने हेतु एक सहायक मार्गदर्शिका होगी और इस प्रकार निर्यात में सुधार एवं वृद्धि करने के बारे में महत्त्वपूर्ण नीतिगत अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।
- राज्यों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा: इसका प्राथमिक लक्ष्य सभी भारतीय राज्यों ('तटीय', 'लैंडलॉक्ड', 'हिमालयी' और 'यूटी/सिटी-स्टेट्स') के बीच अनुकूल निर्यात-संवर्द्धन नीतियों को लागू कर प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना, नियमों को आसान बनाना, उप-राष्ट्रीय निर्यात को बढ़ावा देने व निर्यात के लिये आवश्यक बुनियादी ढांँचे का निर्माण तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हेतु रणनीतिक सिफारिशें प्रदान करना है।
भारतीय निर्यात के लिये चुनौतियाँ:
- EPI भारत के निर्यात प्रोत्साहन प्रयासों के लिये तीन प्रमुख चुनौतियों की पहचान करता है।
- निर्यात बुनियादी ढांँचे में भिन्नता और अंतर-क्षेत्रीय विभिद्ता।
- राज्यों में कमज़ोर व्यापार समर्थन और विकास अभिविन्यास।
- महत्त्वपूर्ण निर्यात को बढ़ावा देने हेतु अनुसंधान एवं विकास बुनियादी ढांँचे की कमी।
भारतीय निर्यात के संदर्भ में EPI:
- निर्यात उन्मुख भारतीय अर्थव्यवस्था:
- जीडीपी = निजी खपत + सकल निवेश + सरकारी निवेश + सरकारी खर्च + निर्यात-आयात।
- इस प्रकार निर्यात जीडीपी मूल्यों को बढ़ाने के लिये एक आवश्यक घटक है।
- निर्यात भारत के आर्थिक विकास का एक अविभाज्य घटक है क्योंकि पिछले एक दशक से निर्यात भारत के सकल घरेलू उत्पाद में औसतन लगभग 20% का योगदान कर रहा है।
- कोविड-19 से रिकवरी: कोविड-19 महामारी ने मौजूदा आर्थिक ढाँचे को उलट दिया और वैश्विक व्यापार एवं अर्थव्यवस्था की सुभेद्यता को उजागर किया।
- कोविड-19 महामारी के दो वर्ष बाद भी अर्थव्यवस्थाओं पर इसके प्रतिकूल प्रभाव से उबरना बहुत चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
- हालाँकि भारत ने निर्यात में काफी लचीलापन दर्शाया है और रिकॉर्ड स्तर पर उच्च विकास दर हासिल की है। भारत वित्त वर्ष 2021-22 की शुरुआत से निर्यात में सकारात्मक आँकड़े दर्ज कर रहा है और दिसंबर 2021 में भारत ने 37 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अब तक का सबसे अधिक निर्यात किया है, जो दिसंबर 2020 की तुलना में 37% अधिक है।
- निर्यात बढ़ाने का सुझाव:
- निर्यात अवसंरचना और बाज़ार संकेंद्रण: बेहतर निर्यात प्रदर्शन हेतु विश्वसनीय एवं कुशल निर्यात बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना आवश्यक है, जो लागत में कमी और निर्यात दक्षता में सुधार करने में मदद करेगा।
- निर्यात विविधीकरण की आवश्यकता: यह निर्यात क्षेत्र में स्थिरता एवं विकास करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- निर्यात बुनियादी ढाँचे के विकास, उद्योग-अकादमिक संबंधों को मज़बूत करने और निर्यात में चुनौतियों का समाधान करने हेतु आर्थिक कूटनीति के लिये राज्य-स्तरीय जुड़ाव जैसी प्रमुख रणनीतियों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- निर्यात को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र भी अहम भूमिका निभा सकता है।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: फरवरी 2006 में लागू हुए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के उद्देश्यों के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से इस अधिनियम का/के उद्देश्य है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |