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डेली न्यूज़


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नाटो का विस्तारवाद

  • 07 Mar 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नाटो, ‘टू-प्लस-फोर’ संधि, वारसॉ पैक्ट, संयुक्त राष्ट्र महासभा।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह एवं समझौते, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, रूस-यूक्रेन संघर्ष, रूस-नाटो संघर्ष।

चर्चा में क्यों?

जब रूस ने यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण शुरू किया, तो ‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ (नाटो) के पूर्व की ओर विस्तार को क्षेत्रीय आक्रमण के इस कृत्य का कारण बताया गया।

  • नाटो के विस्तारवाद ने भविष्य में रूस के लिये यूक्रेन को एक संधि सहयोगी के रूप में समूह में शामिल किये जाने का खतरा उत्पन्न कर दिया था और इस तरह यह ट्रांस-अटलांटिक सुरक्षा गठबंधन रूस की पश्चिमी सीमाओं के और अधिक करीब पहुँच जाता।
  • इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा एक प्रस्ताव पर चर्चा के लिये आपातकालीन विशेष सत्र बुलाया गया था जिसमें रूस से बिना शर्त अपने सैनिकों को वापस बुलाने का आह्वान किया गया था।

‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ (नाटो): 

  • यह सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है।
  • वर्तमान में इसमें 30 सदस्य देश शामिल हैं, जिसमें उत्तरी मैसेडोनिया वर्ष 2020 में गठबंधन में शामिल होने वाला नवीनतम सदस्य बन गया है।

नाटो की उत्पत्ति:

  • वर्ष 1949 में जब नाटो का उदय हुआ तो उसके स्व-घोषित मिशन के तीन बिंदु थे:
    • सोवियत विस्तारवाद को रोकना।
    • महाद्वीप पर एक मज़बूत उत्तरी अमेरिकी उपस्थिति के माध्यम से यूरोप में राष्ट्रवादी सैन्यवाद के पुनरुद्धार के लिये मना करना।
    • यूरोपीय राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • स्पष्ट रूप से नाज़ी (हिटलर) पीड़ा और द्वितीय विश्व युद्ध की विरासत नाटो की स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण कारक थी।
  • हालाँकि नाटो का दावा है कि यह केवल ‘आंशिक सच’ है कि पूर्ववर्ती सोवियत संघ के खतरे का मुकाबला करने के लिये सैन्य सहयोग और सामूहिक रक्षा पर ज़ोर दिया गया था।
    • उदाहरण के लिये संधि के अनुच्छेद-5 में घोषणा की गई है कि उनमें से एक या अधिक (नाटो सदस्यों) के खिलाफ किसी भी प्रकार के सशस्त्र हमले को उन सभी के खिलाफ हमला माना जाएगा" और इस तरह के हमले के बाद प्रत्येक सहयोगी ऐसी कार्रवाई करेगा जैसा वह आवश्यक समझता है, जिसमें सशस्त्र बल का उपयोग भी शामिल है।
  • उस समय का व्यापक संदर्भ यह था कि वर्ष 1955 में एक समय जब शीत युद्ध गति प्राप्त कर रहा था, सोवियत संघ ने मध्य एवं पूर्वी यूरोप के समाजवादी गणराज्यों को वारसॉ संधि (1955) में शामिल किया, जिसमें अल्बानिया (जिसे वर्ष 1968 में वापस ले लिया गया) बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड और रोमानिया आदि शामिल थे।
    • संधि में अनिवार्य रूप से एक राजनीतिक-सैन्य गठबंधन को नाटो के प्रत्यक्ष रणनीतिक प्रतिकार (Strategic Counterweight ) के रूप में देखा गया।
    • उस समय नाटो का ध्यान इस तथ्य पर केंद्रित था कि पूर्वी जर्मनी, जर्मनी के सोवियत कब्ज़े वाले क्षेत्र (Soviet Occupied-Territory of Germany) का हिस्सा था, जर्मनी का संघीय गणराज्य मई 1955 तक नाटो में शामिल हो गया और रूस को अपनी सीमा पर एक मज़बूत व पुनर्जीवित पश्चिम जर्मनी को लेकर चिंता होने लगी।
  • एक एकीकृत, बहुपक्षीय, राजनीतिक और सैन्य गठबंधन के रूप में वारसॉ पैक्ट का उद्देश्य पूर्वी यूरोपीय राजधानियों को रूस के अधिक निकट लाना था जिन्हें शीत युद्ध के दौरान दशकों तक प्रभावी बनाया गया था।
  • वास्तव में संधि ने सोवियत संघ को भी यूरोपीय उपग्रह के राज्यों में नागरिक विद्रोह और असंतोष को रोकने का विकल्प प्रदान किया जिसमें 1956 में हंगरी, 1968 में चेकोस्लोवाकिया और 1980-1981 में पोलैंड शामिल थे।
  • 1980 के दशक के अंत तक जो कुछ भी उभरकर सामने आया उसने अधिकांश पूर्वी यूरोपीय संधि (वारसॉ पैक्ट) सहयोगियों में अपरिहार्य आर्थिक मंदी के भारी दबाव तथा सैन्य सहयोग की क्षमता के अंतर को संपूर्ण क्षेत्र में रणनीतिक रूप से कम कर दिया।
  • इस प्रकार सितंबर 1990 में यह शायद ही आश्चर्य की बात थी कि पूर्वी जर्मनी पश्चिम जर्मनी के साथ फिर से जुड़ने के लिये हुई संधि से बाहर हो गया और जल्द ही चेकोस्लोवाकिया, हंगरी और पोलैंड सभी वारसॉ संधि से हट गए।
  • वर्ष 1991 की शुरुआत में सोवियत संघ के विघटन के बाद संधि को आधिकारिक तौर पर भंग कर दिया गया था।

नाटो द्वारा किये गए विस्तार का दौर:

  • जब सोवियत संघ, रूस और पूर्व सोवियत गणराज्यों में विभाजित हो गया तो नाटो, परिस्थितियों और आशावाद से उत्साहित होकर वैश्विक शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में करने की दिशा में आगे बढ़ा।
    • अमेरिका के कार्यकाल के दौरान नाटो द्वारा पूर्व वारसॉ संधियों में शामिल देशों को अपने में शामिल करने के लिये बातचीत और विस्तार के क्रमिक दौर में शुरू किये गए।
  • इस पुनर्मिलन के बाद जबकि जर्मनी ने नाटो की सदस्यता बरकरार रखी, चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड वर्ष 1999 में गठबंधन में शामिल हो गए लेकिन यह क्रम वही समाप्त नहीं हुआ। वर्ष 2004 मे बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया संधि में शामिल हुए। 
  • वर्ष 2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया ने इस पर हस्ताक्षर किये, वर्ष 2017 में मोंटेनेग्रो ने तथा वर्ष 2020 में उत्तर मैसेडोनिया ने इस ब्लॉक में प्रवेश किया।

Atlantic-Treaty

नाटो के विस्तार के प्रति रूस के संवेदनशील होने का कारण: 

  • वर्ष 2008 में नाटो के बुखारेस्ट सम्मेलन में नाटो सहयोगियों ने सदस्यता हेतु यूक्रेन और जॉर्जिया की यूरो-अटलांटिक आकांक्षाओं का समर्थन  किया तथा इस बात पर सहमति व्यक्त की कि ये देश नाटो के सदस्य बन जाएंगे।
  • नाटो द्वारा अपनी सदस्यता की कार्य योजना के संबंधित शेष प्रश्नों के लिये उच्च राजनीतिक स्तर पर दोनों देशों के साथ मज़बूती से जुड़ने हेतु एक समय-सीमा की घोषणा की गई।
  • इसने रूस में खतरे की घंटी बजा दी क्योंकि यूक्रेन की अवधारणा, जिसे सोवियत संघ के साथ पहले मज़बूत ऐतिहासिक संबंध रखने वाला देश माना जाता था, रूस के विश्वास के खिलाफ था।
  • इस विकास ने अमेरिका को चेतावनी देने के लिये रूस को प्रेरित किया कि कोई भी रूसी नेता यूक्रेन के लिये नाटो सदस्यता की दिशा में उसके साथ खड़ा नहीं होगा।
  • यह रूस के प्रति शत्रुतापूर्ण कार्य होगा।
    • यह नाटो नेताओं द्वारा की गई कार्रवाइयों में से एक थी जिसे रूस एक राजनीतिक विश्वासघात मानता है।

 पूर्व की ओर विस्तार से बचने के नाटो के वादे का उल्लंघन

  • वर्ष 1990 में अमेरिका ने रूस को आश्वस्त किया कि नाटो की सेना द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार पूर्व में एक इंच तक भी नहीं किया जाएगा।
    • जबकि रूस द्वारा इस टिप्पणी का उपयोग बाल्टिक राज्यों में नाटो के विस्तार को लेकर अपने आक्रोश को हवा देने के लिये किया गया।
    • एक तथ्य यह भी है कि वर्ष 1990 की शुरुआत में पूर्व और पश्चिम जर्मनी के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, सोवियत संघ तथा यूनाइटेड किंगडम ने इस समझौते सहित टू प्लस फोर के लिये प्रमाणित किया कि क्या एक एकीकृत जर्मनी नाटो का हिस्सा होगा।
  • अमेरिका रूस को आश्वस्त करना चाहता था कि नाटो कमांड संरचनाओं और सैनिकों को पूर्व जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य के क्षेत्र में स्थानांतरित नहीं किया जाएगा।
  • रूस के लिये घरेलू स्तर पर यह एक कठिन समय था, क्योंकि सोवियत संघ के विघटन के बाद लोकतांत्रिक प्रथाओं, एक स्थिर बाज़ार अर्थव्यवस्था तथा एक मज़बूत कानून व व्यवस्था प्रणाली को संस्थागत बनाने में वह विफल था।
  • स्थानीय स्तर पर सभी तरह की अराजकता का सामना करते हुए तत्कालीन रूस ने जर्मनी के पूर्व में नाटो विस्तार पर प्रतिबंध के रूप में टू प्लस फोर संधि की व्याख्या करना शुरू कर दिया।
  • रूस ने अमेरिका को सूचित किया कि उसने "पूर्व की ओर नाटो क्षेत्र के विस्तार के विकल्प" को खारिज कर दिया।
  • वर्ष 2000 के दशक के दौरान पूर्वी यूरोप में नाटो के लगातार विस्तार पर रूस में बढ़ते गुस्से और 2007 में म्यूनिख, जर्मनी में यह कहते हुए स्पष्ट किया कि नाटो के विस्तार का स्वयं के गठबंधन के आधुनिकीकरण या यूरोप में सुरक्षा सुनिश्चित करने से कोई संबंध नहीं है।
    • इसके विपरीत वह एक गंभीर उकसावे का प्रतिनिधित्त्व करता रहा है जो आपसी विश्वास को कम करता है।
  • वर्ष 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को अपने गठबंधन में शामिल करने के नाटो के इरादे की घोषणा के बाद रूस ने जॉर्जिया पर आक्रमण किया तथा उसके कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया और वर्ष 2014 में यूक्रेन सहित यूरोपीय संघ के साथ एक आर्थिक गठबंधन की ओर बढ़ते हुए रूस ने यूक्रेन में मार्च किया और क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया।

स्रोत: द हिंदू

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