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भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्त मंत्रालय एवं आरबीआई के मध्य विवाद

  • 19 Nov 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने केंद्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की करीबी तौर से निगरानी के लिये नियमों में परिवर्तन हेतु एक प्रस्ताव पेश किया है। मोदी प्रशासन ने अनुशंसा की है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का बोर्ड, पैनल की स्थापना के लिये विनियमन मसौदे (draft regulation) का निर्माण करेगा। यह पैनल वित्तीय स्थिरता (Financial stability), मौद्रिक नीति हस्तांतरण (monetary policy transmission), विदेशी विनिमय प्रबंधन (Foreign Exchange Management) संबंधित पर्यवेक्षण कार्यों को करेगा।

उद्देश्य

सरकार द्वारा यह कदम उठाने के पीछे नीहित उद्देश्य है, आरबीआई के नियामक बोर्ड को सशक्त करना जिसमें सरकार के उम्मीदवार शामिल होते हैं; और साथ ही इसे पर्यवेक्षी की भूमिक प्रदान करना।

संभावित विवाद

  • नवीनतम प्रस्ताव, भारत के वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक के बीच तनाव को बढ़ा सकता है। इस संबंध में 19 नवंबर को होने वाली मीटिंग में चर्चा किये जाने वाले विभिन्न मुद्दों पर आपस में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इन मुद्दों में सरकार को अधिशेष कोष का स्थानांतरण (Transfer of Surplus Funds), खराब ऋण मानदंडों (Bad Loan Norms) को आसान बनाना, शैडो बैंकिंग सेक्टर (Shadow Banking Sector) की तरलता को सुनिश्चित करना आदि शामिल होंगे।
  • रिज़र्व ट्रांसफर (Reserve Transfer) के अलावा पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Cash Adequacy Ratio), जो कि वर्तमान में 9% है, को भी सरकार और आरबीआई के मध्य टकराव का मुद्दा माना जा रहा है। सरकार का मानना है कि वैश्विक मानदण्डों (बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेप्लमेंट 8% है) की तुलना में यहाँ के मानदंड काफी कठोर हैं।

सरकार एवं आरबीआई के तर्क

  • हाल में अधिशेष भंडार (Surplus Reserve) का हस्तांतरण, सरकार और केंद्रीय बैंक के मध्य विवाद का मुद्दा बना हुआ है। सरकार अतिरिक्त फंड (Additional Fund) पर अधिकार प्राप्त करना चाह रही है ताकि सड़क, पोर्ट एवं देश के गरीबों पर होने वाले व्यय में वृद्धि की जा सके।
  • वहीं आरबीआई का कहना है कि सरकार को फंड का ट्रांसफर, RBI की स्वतंत्रता को कमज़ोर कर देगा एवं बाज़ार को भी नुकसान पहुँचाएगा।
  • 19 नवंबर, 2018 को होने वाली बैठक में सरकार एवं आरबीआई के मध्य सरकार को फंड हस्तांतरण करने संबंधी नियमों को आसान बनाने की बात होगी। साथ ही, कमज़ोर बॉण्ड्स (Weak bonds) के मानदण्डों को उदार बनाना भी शामिल होगा ताकि अर्थव्यवस्था में ऋण को बढ़ावा दिया जा सके।

अन्य बिंदु

  • अनुशंसा में कुछ कमेटियों की स्थापना की बात कही गई है जिसमें प्रत्येक का निर्माण 2 से 3 बोर्ड सदस्यों को शामिल कर, किया जाएगा। निकाय को अधिकार है कि वह RBI एक्ट, 1934 की धारा 58 के तहत नियमों का निर्माण कर सकता है और इसके लिये किसी विधायी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होगी।
  • भारत का RBI भी भारतीय बैंकों के लिये जोखिम भार और पूंजी संबंधित नियमों की समीक्षा करेगा जो कि बेसल दिशा निर्देशों की तुलना में अधिक कड़े माने जाते हैं।
  • एजेंडा के अन्य प्रस्तावों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों द्वारा प्राप्त 250 मिलियन रुपए तक के ऋणों का पुनर्गठन भी शामिल है।
  • आरबीआई, बैंकिंग क्षेत्र में प्रचलित तंग वित्तीय स्थिति को आसान बनाने के मुद्दे पर भी समने आ सकता है जिसमें बॉण्ड की खुली बाज़ार खरीद के माध्यम से नकद की आपूर्ति शामिल होगी।

शैडो बैंकिंग (Shadow Banking)

  • शैडो बैंकिंग का तात्पर्य उन सभी गैर-बैंक वित्तीय मध्यवर्ती संस्थानों (Non-bank financial intermediaries) से है जो पारंपरिक वाणिज्यिक बैंकों की तरह सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • सामान्यत: ये पारंपरिक बैंकिंग क्रियाकलाप को करते हैं परंतु ऐसा वे विनियमित डिपॉजिटरी संस्थानों की पारंपरिक प्रणाली से अलग हटकर करते हैं।
    शैडो बैंकिंग, 2007-2008 के सब-प्राइम मार्टग़ेज (Sub-prime mortgage) संकट और वैश्विक मंदी का एक प्रमुख कारण रहा था।
  • शैडो बैंक शब्द का प्रयोग 2007 में पॉल मैकक्यूली द्वारा किया गया था जिसका तात्पर्य उन अमेरिकी गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से था जो लंबी अवधि के ऋणों के लिये शार्ट-टर्म डिपॉजिट्स (short term deposits) का प्रयोग करते थे।
  • शैडो बैंकिंग के कार्यों में शामिल हैं- ऋण मध्यस्थता (Credit intermediation), तरलता रूपांतरण (Liquidity transformation) एवं परिपक्वता रूपांतरण (Maturity transformation) आदि।
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