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भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल ऋण: चुनौतियाँ और संभावनाएँ

  • 26 Dec 2020
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आम लोगों और छोटे व्यवसायों को अनधिकृत डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म/मोबाइल एप्स और उनसे त्वरित ऋण प्राप्त करने की सुविधा के बारे में आगाह किया है।

प्रमुख बिंदु

डिजिटल ऋण

  • इसका अभिप्राय प्रमाणीकरण और क्रेडिट मूल्यांकन हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए वेब प्लेटफॉर्म या मोबाइल एप के माध्यम से ऋण वितरित करने की प्रक्रिया से है।
  • बीते कुछ वर्ष में भारत के डिजिटल ऋण बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जहाँ एक ओर वित्तीय वर्ष 2015 में भारत में डिजिटल ऋण बाज़ार का कुल मूल्य 33 बिलियन डॉलर था, वहीं वित्तीय वर्ष 2020 में यह बढ़कर 150 मिलियन डॉलर पर पहुँच गया है। वहीं अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2023 तक यह 350 बिलियन तक पहुँच जाएगा।
  • बैंकों ने डिजिटल ऋण बाज़ार में नए अवसरों का लाभ प्राप्त करने के लिये अपने स्वतंत्र डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म लॉन्च किये हैं।

डिजिटल ऋण का महत्त्व 

  • वित्तीय समावेशन: यह भारत में लघु उद्योग और कम आय वाले उपभोक्ताओं की व्यापक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र के ऋण में कमी: उधार लेने की प्रकिया को सरल और सुगम बनाकर यह अनौपचारिक क्षेत्र से लिये जाने वाले ऋण को कम करने में मदद करता है।
    • चूँकि परिवार, दोस्तों और साहूकारों से ऋण प्राप्त करना अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक होता है, इसलिये भारत में ऋण का यह माध्यम काफी प्रचलित है, हालाँकि इसमें कई बार अधिक अनुचित ब्याज़ दर चुकानी पड़ती है।
  • कम समय: यह बैंकों में जाकर पारंपरिक माध्यम से ऋण लेने में लगने वाले समय को कम करता है। इसके कारण 30-35 प्रतिशत अतिरिक्त लागत को बचाया जा सकता है।

संबंधित समस्याएँ 

  • ये प्लेटफॉर्म कई बार अत्यधिक ब्याज़ दर और अतिरिक्त छिपे शुल्क लेते हैं, जिसके कारण लोगों को ऋण लेने के बाद अधिक राशि का भुगतान करना पड़ता है।
  • ये कई बार ऋण की वापसी के लिये अस्वीकार्य और क्रूर विधियाँ अपनाते हैं।
  • यह भी देखा गया है कि ये प्लेटफॉर्म उधारकर्त्ताओं के मोबाइल फोन से डेटा प्राप्त करने के लिये समझौतों का दुरुपयोग करते हैं।

रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए कदम

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और बैंकों को रिज़र्व बैंक के समक्ष उस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का नाम बताना होगा, जिनके साथ वे कार्य कर रहे हैं।
  • नियमों के मुताबिक, किसी भी बैंक अथवा NBFC के साथ काम करने वाले डिजिटल ऋण प्लेटफॉर्म को ग्राहकों हेतु उस बैंक या NBFC के नाम का खुलासा करना चाहिये।
  • ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म को ऋण समझौते के निष्पादन से पूर्व संबंधित बैंक/NBFC के लैटरहेड पर उधारकर्त्ता को एक स्वीकृति पत्र जारी करने का निर्देश दिया गया है।
  • नियम के अनुसार, रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और अन्य संस्थान, जो सांविधिक प्रावधानों के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा विनियमित किये जाते हों, द्वारा ही वैध सार्वजनिक ऋण देने की गतिविधि शुरू की जा सकती है।

भारत का डिजिटल इकोसिस्टम

  • बैंकों ने अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के लिये फिनटेक (Fintechs) कंपनियों के साथ भागीदारी की है।
  • भारत सरकार ने विमुद्रीकरण के बाद से देश में डिजिटल इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिये कई प्रयास किये हैं, जिसमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), जनधन योजना, आधार सक्षम भुगतान प्रणाली आदि शामिल हैं।

आगे की राह

  • यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत एक डिजिटल ऋण क्रांति के कगार पर खड़ा है और इस क्रांति को सफल बनाने के लिये यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि ऋण व्यवस्थित और वैध तरीके से प्रदान किया जाए।
  • चूँकि इस प्रक्रिया में कई लोगों की पहुँच उपभोक्ताओं के संवेदनशील डेटा तक होती है, इसीलिये इस संबंध कानून बनाया जाना काफी आवश्यक है। उदाहरण के लिये कानून के माध्यम से यह तय किया जा सकता है कि सेवा प्रदाताओं द्वारा किस प्रकार का डेटा एकत्रित किया जाएगा और उस डेटा का उपयोग किस कार्य के लिये किया जाएगा।
  • डिजिटल ऋणदाताओं को सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और उपभोक्ता संरक्षण के सिद्धांतों को रेखांकित करने वाली आचार संहिता का विकास करना चाहिये और उसके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करनी चाहिये।
  • इस संबंध में एक एजेंसी बनाई जा सकती है, जो कि सभी डिजिटल ऋण समझौतों और उपभोक्ता/ऋणदाता क्रेडिट हिस्ट्री को ट्रैक करने में सक्षम होगी।
  • तकनीकी स्तर पर सुरक्षा उपायों के अलावा डिजिटल ऋण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित और प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू

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