वर्मिन जानवरों की हत्या | 11 Jun 2022
प्रिलिम्स के लिये:वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, वर्मिन, वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021। मेन्स के लिये:विभिन्न वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का योगदान। वर्मिन जानवरों की हत्या पारिस्थितिकी तंत्र की खाद्य शृंखला के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है। |
चर्चा में क्यों?
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को दिसंबर 2021 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करने के लिये संसद में पेश किया गया था।
- संशोधन का मूल उद्देश्य परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार, अधिनियम को संरेखित करना और वर्मिन/पीड़क जानवरों की हत्या के उचित समाधान के अनुकरण का प्रयास करना है।
वर्मिन:
- वर्मिन मूल रूप से समस्याग्रस्त या हानिकारक जानवर हैं क्योंकि वे मनुष्यों, फसलों, पशुओं या संपत्ति के लिये खतरा होते हैं।
- प्रजातियांँ जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची V में रखा गया है, उन्हें वर्मिन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- उदाहरण: कौवे, फल चमगादड़, चूहे जिनका स्वतंत्र रूप से शिकार किया जा सकता है।
- अधिनियम वर्मिन शब्द को परिभाषित नहीं करता है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 केंद्र सरकार को किसी भी जंगली जानवर को वर्मिन घोषित करने की शक्ति प्रदान करती है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I और अनुसूची II में शामिल जंगली जानवरों की प्रजातियों को वर्मिन घोषित नहीं किया जा सकता है।
- एक जानवर को किसी भी निर्दिष्ट क्षेत्र और निर्दिष्ट अवधि के लिये वर्मिन के रूप में घोषित किया जा सकता है।
- मानव-वन्यजीव संघर्षों को रोकने के लिये अतीत में कई राज्यों ने हाथी, भारतीय साही, बोनट मकाक, लंगूर और भौंकने वाले हिरण सहित विभिन्न जानवरों को वर्मिन घोषित करने के लिये याचिका दायर की है।
- केंद्र ने हिमाचल प्रदेश में रीसस बंदर, उत्तराखंड में जंगली सूअर और बिहार में नीलगाय को वर्मिन घोषित किया है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, साथ ही जंगली जानवरों, पौधों एवं उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन व नियंत्रण के लिये कानूनी ढांँचा प्रदान करता है।
- अधिनियम में पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध किया गया है जिनकी सरकार द्वारा सुरक्षा व निगरानी की जाती है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में वर्तमान में छह अनुसूचियांँ हैं जो जानवरों और पौधों को अलग-अलग सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II में सूचीबद्ध नस्लों एवं वर्ग के जानवरों को सर्वोच्च सुरक्षा मिलती है। उदाहरण के लिये हिमालयन ब्राउन बीयर, भारतीय हाथी, गोल्डन गेकोस, अंडमान टील, हॉर्नबिल्स, ब्लैक कोरल, अमारा ब्रूसी तथा कई अन्य। इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित किया गया है।
- अनुसूची III और अनुसूची IV में सूचीबद्ध नस्लों और वर्ग के जानवर भी सुरक्षित हैं, उदाहरण के लिये बार्किंग हिरण, बाज़, किंगफिशर, कछुआ आदि, लेकिन दंड तुलनात्मक रूप से बहुत कम है।
- अनुसूची V में वे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कौआ, चूहे और मूषक, फल चमगादड़ आदि।
- अनुसूची VI में वर्णित पौधों, पेड़ों और फसलों की खेती एवं रोपण से प्रतिबंधित कर दिया गया है। उदाहरण के लिये कूठ, रेड वांडा, पिचर प्लांट आदि।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 के माध्यम से संभावित परिवर्तन:
- वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 एक महत्तवपूर्ण संशोधन के रूप में अनुसूचियों की संख्या को छह से घटाकर चार कर दिया गया है।
- अनुसूची I में उन प्रजातियों को शामिल किया जाएगा जिन्हें उच्चतम स्तर के संरक्षण की आवश्यकता है।
- अनुसूची II में उन प्रजातियों को शामिल किया जाएगा जिन्हें कम संरक्षण की आवश्यकता है।
- जबकि अनुसूची III में पौधों को शामिल किया जाएगा।
- यह अनुसूची V को पूरी तरह से समाप्त करने का प्रावधान करता है। यह वर्मिन प्रजातियों को किसी भी प्रकार की अनुसूची से बाहर करता है। वर्मिन शब्द उन छोटे जानवरों को संदर्भित करता है जो बीमारियों का प्रसार और खाद्य पदार्थों को दूषित/हानि पहुँचाते हैं।
- यह CITES (अनुसूचित प्रजातियों) के तहत परिशिष्टों में सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये एक नए कार्यक्रम को शामिल करता है।
- केंद्र सरकार को किसी भी प्रजाति को वर्मिन प्रजाति के रूप में घोषित करने का अधिकार होगा।
- इस प्रकार किसी भी प्रजाति को वर्मिन प्रजाति कि श्रेणी में रखना आसान हो जाता है।
- यह परिवर्तन संभावित रूप से स्तनधारियों की 41 प्रजातियों, 864 पक्षियों, 17 सरीसृपों और उभयचरों एवं 58 से अधिक कीड़ों की प्रजातियों को प्रभावित कर सकता है।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 की आवश्यकता:
- बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष ने जानवरों और मनुष्यों दोनों के लिये खतरा पैदा कर दिया है।
- फसल/पशुधन क्षति के रूप में ऐसी घटनाएँ देश के विभिन्न भागों से व्यापक रूप से रिपोर्ट की जाती हैं।
- हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2016 में जंगली जानवरों, विशेष रूप से बंदरों के कारण 184.28 करोड़ रुपए की फसल की हानि दर्ज की गई।
- फसल/पशुधन क्षति के रूप में ऐसी घटनाएँ देश के विभिन्न भागों से व्यापक रूप से रिपोर्ट की जाती हैं।
- वर्ष 2017 के बाद से तमिलनाडु में जंगली जानवरों द्वारा कृषि को नुकसान पहुँचाने की 7,562 घटनाएँ दर्ज की गईं हैं।
कीट और पारिस्थितिक असंतुलन का इतिहास:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में उल्लिखित जेनेसिस वर्मिन की श्रेणी औपनिवेशिक काल की है जो न्यूनतम वैज्ञानिक आधारों पर वर्गीकृत है।
- ट्यूडर वर्मिन अधिनियम अवांछनीय जानवरों और कृषि को हानि पहुँचाने वाले कीटों को समाप्त करने का प्रावधान करता है।
- अनाज संरक्षण अधिनियम, 1532, वर्मिन अधिनियमों में से एक था जिसमें वार्मिन की श्रेणी में शामिल प्रजातियों की एक आधिकारिक सूची जारी की गई।
- उल्लू, ऊदबिलाव, लोमड़ी, हेजहॉग और अन्य संबंधित जानवरों को मनुष्यों के साथ भोजन के प्रतिद्वंदी के रूप में माना जाता है।
- वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर भारत सरकार ने एक व्यापक वर्मिन आबादी को समाप्त करने की अनुमति दे दी है।
- उदाहरण के लिये हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रत्येक वर्मिन बंदर को मारने पर 500-700 रुपए देने की घोषणा की है।
- सरकार के इस रवैये से गंभीर पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- बड़े पैमाने पर वर्मिन जानवरों को मारे जाने से क्षेत्र की खाद्य शृंखला में शून्यता/निर्वात की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने के घातक तरीके लक्षित प्रजातियों को तो खतरे में डालते ही हैं साथ ही अक्सर गैर-लक्षित जानवरों के लिये भी घातक सिद्ध होते हैं।
- वर्ष 2016 में कृषि को हुए नुकसान के कारण कर्नाटक सरकार द्वारा जंगली सूअर की हत्या को वैध किये जाने के बाद कर्नाटक के नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान में घोंघे की संख्या में वृद्धि हुई।
- जंगली सूअरों को पकड़ने के लिये लगाए गए जालों में बाघ, तेंदुआ और भालू (सभी अनुसूची I जानवर) जैसी प्रजातियाँ भी फँंस गईं थीं।
- हिमाचल प्रदेश सरकार ने वर्ष 2020 के बाद से अब तक रीसस मकाक को चार बार वर्मिन घोषित किया है जिसके परिणामस्वरूप इसकी आबादी में अंततः 33.5% की कमी आई है।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन के गैर-घातक तरीकों को घातक तरीकों की तुलना में अधिक प्रभावी बताया गया है।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामूहिक हत्या वास्तविक समस्या को संबोधित नहीं करती है।
मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि का कारण:
- मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि का मुख्य कारण आवास क्षति और अतिक्रमण है।
- विकास परियोजनाओं, औद्योगीकरण और कृषि विस्तार ने वन क्षेत्र को काफी कम कर दिया है।
- इससे अंततः जंगली जानवर कृषि बस्तियों के निकट आने को विवश हुए जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
आगे की राह
- मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के लिये किसी जानवर को 'वर्मिन' घोषित करना न तो स्थायी और न ही प्रभावी समाधान है।
- नतीजतन, फसल क्षति की मात्रा पर एक डेटाबेस बनाए रखने और संघर्ष पैटर्न का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने तथा समस्या पैदा करने वाले जानवरों की गणना किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।
- डेटा के बिना लिये गए अवैज्ञानिक और अचानक निर्णयों से पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैवविविधता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।