भारतीय अर्थव्यवस्था
सरफेसी अधिनियम के तहत सहकारी बैंक
- 06 May 2020
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प्रीलिम्स के लियेसरफेसी अधिनियम, सहकारी बैंक मेन्स के लियेसहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि सरफेसी अधिनियम (Sarfaesi Act) अर्थात् ‘सिक्योरिटाइज़ेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट’ (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act), 2002 सहकारी बैंकों पर भी लागू होगा।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व वर्ष 2013 में गुजरात उच्च न्यायालय ने सहकारी संस्थाओं को वित्तीय संस्थानों के रूप में शामिल करने के लिये बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए निर्णय दिया था कि सहकारी बैंक सरफेसी अधिनियम के तहत ऋण की वसूली नहीं कर सकते हैं।
- गुजरात उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं के प्रस्तुतिकरण के साथ सहमति व्यक्त की थी जिन्होंने तर्क दिया था कि सरफेसी अधिनियम राज्य कानून के तहत गठित सहकारी बैंकों पर लागू नहीं होना चाहिये, क्योंकि वे गुजरात सहकारी सोसायटी अधिनियम, 1961 (Gujarat Cooperative Societies Act, 1961) के तहत आते हैं, अतः वे इसी अधिनियम के तहत ऋण वसूली कर सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की न्यायपीठ ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 2(1)(C) में दी गई ‘बैंक’ की परिभाषा के तहत सहकारी बैंक भी आते हैं। अतः अधिनियम की धारा (13) के तहत निर्धारित की गई वसूली प्रक्रिया सहकारी बैंकों पर भी लागू होती है।
- इस निर्णय के माध्यम से राज्य और बहु-राज्य सहकारी बैंकिंग समितियाँ अब अपना बकाया वसूलने के लिये परिसंपत्तियों को ज़ब्त और बेच सकती हैं।
- उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व सहकारी बैंकों को अपनी बकाया राशि की वसूली के लिये दीवानी न्यायालय (Civil Court) के पास जाना पड़ता था। अब सरफेसी अधिनियम में दिये गए प्रावधानों का प्रयोग कर सहकारी बैंकों द्वारा न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण के हस्तक्षेप बिना वसूली की जा सकती है।
उद्देश्य
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, सहकारी बैंकों को सरफेसी अधिनियम के तहत लाने का उद्देश्य दीवानी अदालत अथवा न्यायाधिकरण में मामले के निपटान में होने वाली देरी को कम करना है।
पृष्ठभूमि
- न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली न्यायपीठ का यह फैसला ऐसे मामले के संदर्भ में आया है जिसमें सरफेसी अधिनियम की धारा 2(C) में संशोधन और सहकारी बैंकों को ऐसे संस्थानों में शामिल किया गया था जो ऋण वसूली के लिये इस अधिनियम के तहत दी गई शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं।
सहकारी बैंक
- सहकारी बैंक का आशय उन छोटे वित्तीय संस्थानों से है जो शहरी और गैर-शहरी दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों को ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
- सहकारी बैंक आमतौर पर अपने सदस्यों को कई प्रकार की बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ जैसे- ऋण देना, पैसे जमा करना और बैंक खाता आदि प्रदान करते हैं।
- उल्लेखनीय है कि सहकारी बैंक का प्राथमिक लक्ष्य अधिक-से-अधिक लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि अपने सदस्यों को सर्वोत्तम उत्पाद और सेवाएँ उपलब्ध कराना होता है।
- सहकारी बैंकों का स्वामित्त्व और नियंत्रण सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जो लोकतांत्रिक रूप से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं।
- ये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित किये जाते हैं एवं बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के साथ-साथ बैंकिंग कानून अधिनियम, 1965 के तहत आते हैं।
सरफेसी अधिनियम, 2002
(Sarfaesi Act, 2002)
- सरफेसी अधिनियम (Sarfaesi Act) अर्थात् ‘सिक्योरिटाइज़ेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट’ (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act), 2002 वित्तीय संस्थानों को भिन्न-भिन्न तरीकों से संपत्ति की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करता है।
- अर्थात हम यह कह सकते हैं कि इस अधिनियम को अलग-अलग प्रक्रियाओं और तंत्रों के माध्यम से गैर-निष्पादनकारी संपत्ति (NPA) या खराब संपत्ति की समस्या को हल करने के लिये तैयार किया गया है।
- इस अधिनियम के प्रावधान विभिन्न संस्थानों को अपनी खराब संपत्ति की समस्या के प्रबंधन हेतु निर्देश और शक्तियाँ प्रदान करते हैं।
- सरकार ने ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunals-DRTs) को पुनः जीवंत करने और नए दिवालियापन कानून (Bankruptcy Law) के तहत परिसंपत्ति पुनर्निर्माण की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये ‘एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों’ (Asset Reconstruction Companies-ARCs) को सशक्त बनाने हेतु अगस्त 2016 में सरफेसी अधिनियम में संशोधन भी किया है।