चीन-नेपाल द्विपक्षीय सहयोग | 01 Dec 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीनी रक्षा मंत्री की नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को मज़बूत करने, प्रशिक्षण एवं छात्र विनिमय कार्यक्रमों को पुनः शुरू करने आदि जैसे कई महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई।
प्रमुख बिंदु:
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- वर्ष 1955 में नेपाल ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- नेपाल ने वर्ष 1956 में तिब्बत को चीन के एक हिस्से के रूप में स्वीकार किया तथा वर्ष 1960 में शांति और मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये।
- वर्ष 1970 में नेपाल के शासक राजा बीरेंद्र द्वारा नेपाल को भारत और चीन के बीच ‘शांति क्षेत्र’ के रूप में चिह्नित किये जाने के प्रस्ताव पर भारत ने अधिक रुचि नहीं दिखाई गई, जबकि चीन द्वारा इसका समर्थन किया गया। एस मुद्दे और ऐसे ही कई मामलों ने भारत तथा चीन के संबंधों में दरार पैदा की, जबकि इसी दौरान चीन नेपाल को समर्थन तथा सहयोग देने के लिये तत्पर रहा।
- भारत-नेपाल संबंधों में वर्ष 2015 में एक नया मोड़ तब आया जब भारत ने नेपाल पर एक अनौपचारिक परंतु प्रभावी नाकाबंदी लागू की, जिसके कारण नेपाल में ईंधन और दवा की भारी कमी हो गई।
- गौरतलब है कि अप्रैल-मई 2015 के दौरान आए भूकंप के बाद नेपाल और चीन के बीच हिमालय से होकर जाने वाला सड़क संपर्क मार्ग पूरी तरह बाधित हो गया है, जिसके कारण नेपाल द्वारा अपना लगभग पूरा तेल भारत के रास्ते आयात किया जाता है।
- भारत के साथ विवादों के बढ़ने के कारण ही चीन ने तिब्बत में नेपाल से लगी अपनी सीमा खोल दी।
- चीनी राष्ट्रपति की हालिया नेपाल यात्रा के बाद नेपाल ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए किसी भी सेना को चीन के विरुद्ध अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति न देने वादा किया है।
चीन का हित
- हालाँकि भारत और नेपाल के बीच बॉर्डर खुला होने के साथ ही लोगों को स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति दी गई है, परंतु चीन पिछले कुछ समय से नेपाल के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार होने के भारत के दर्जे को हथियाने के लिये बढ़-चढ़ कर प्रयास कर रहा है।
- भारत दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और पिछले कुछ समय से यह दक्षिण एशियाई देशों के नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में उभर रहा है।
- चीन भारत की बढ़ती शक्ति और प्रतिष्ठा को रोकना चाहता है, जो कि भविष्य में चीन के एक महाशक्ति बनने के मार्ग में बाधा बन सकता है।
- तिब्बत में भारत का बढ़ता प्रभाव चीन के लिये सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय बना हुआ है।
- इसलिये दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखने और चीन विरोधी गतिविधियों के लिये नेपाल की भूमि के उपयोग को रोकने हेतु नेपाल के साथ सक्रिय सहयोग बनाए रखना चीन की नेपाल नीति का प्रमुख हिस्सा बन गया है।
- चीन के साथ नेपाल की उत्तरी सीमा पूरी तरह से तिब्बत से मिलती है, जिसके कारण चीन तिब्बती मामलों को नियंत्रित करने के लिये नेपाल के साथ सुरक्षा सहयोग को काफी महत्त्वपूर्ण मानता है।
नेपाल के लिये चीन का महत्त्व
- नेपाल, चीन को आवश्यक वस्तुओं का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता तथा देश की अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिये एक सहायक के रूप में देखता है।
- नेपाल की लगभग आधी आबादी बेरोज़गार है और आधी से अधिक आबादी निरक्षर है। वहीं नेपाल में 30 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
- गरीबी और बेरोज़गारी जैसी आंतरिक समस्याओं से निपटने के लिये नेपाल को चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था की सहायता की आवश्यकता है।
- चूँकि चीन को भी तिब्बत जैसे मामलों में नेपाल की सहायता की आवश्यकता है, इसलिये चीन के साथ वार्ता में नेपाल को काफी महत्त्व दिया जाता है, साथ ही इसके माध्यम से नेपाल, भारत के ‘बिग ब्रदर’ वाले दृष्टिकोण से मुकाबला कर सकता है।
- चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे के माध्यम से नेपाल, चीन के साथ संपर्क बढ़ाकर अपने व्यापार मार्गों पर भारतीय प्रभुत्व को समाप्त अथवा कम करना चाहता है।
भारत की चिंताएँ
- चीन और नेपाल के बीच इन समीकरणों को देखते हुए भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन अपनी ‘सुरक्षा कूटनीति’ का उपयोग नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिये एक उपकरण के रूप में कर सकता है।
- चूँकि नेपाल भारत के लिये एक ‘बफर स्टेट’ के रूप में कार्य करता है, इसलिये इसे चीन के प्रभाव क्षेत्र में जाते देखना किसी भी प्रकार से भारत के रणनीतिक हित में नहीं होगा।
- चीन की मज़बूत वित्तीय स्थिति भारत के लिये पड़ोसी देशों में चीन के प्रभाव को नियंत्रित करना और भी चुनौतीपूर्ण बना रही है।
- चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे के माध्यम से चीन को अपनी उपभोक्ता वस्तुओं को भारत में डंप करने का एक अन्य विकल्प मिल जाएगा, जिससे भविष्य में चीन के साथ भारत का व्यापार संतुलन और अधिक बिगड़ सकता है।
आगे की राह
- नेपाल ने भारत के साथ अपनी सीमा पर अनौपचारिक नाकाबंदी के बाद ही चीन के साथ अपने संबंधों में बढ़ोतरी की थी, ज्ञात हो कि इस नाकाबंदी के कारण नेपाल में ईंधन और दवा की भारी कमी हो गई थी।
- यद्यपि भारत के पास इस तरह की नाकाबंदी को लागू करने का पूरा अधिकार है, किंतु भारत को ऐसे कदमों से बचना चाहिये, क्योंकि यह नेपाल और उसके नागरिकों की नज़र में भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है।
- आवश्यक है कि भारत, नेपाल के विकास में एक सेतु के रूप में कार्य करे और नेपाल को यह विश्वास दिलाया जाए कि भारत की विदेश नीति में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- नेपाल के साथ अपने संबंधों के महत्त्व को देखते हुए भारत को चीन-नेपाल के मज़बूत संबंधों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिये, खासतौर पर ऐसे समय में जब भारत-चीन की सीमा पर दोनों देशों के बीच पहले से ही तनाव बना हुआ है।
- चूँकि भारत-नेपाल की सीमा पर लोगों को स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति है, इसलिये नेपाल को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है, अतः भारत को नेपाल के साथ स्थिर और मैत्रीपूर्ण संबंध सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिये।