कैनाइन डिस्टेंपर वायरस | 05 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा कि देश में बाघों की संख्या बढ़ी है, देश के लिये एक अच्छी खबर हो सकती है। लेकिन आवासीय स्थान की हानि, शिकार और अवैध शिकार में वृद्धि अभी भी बाघों के अस्तित्व के लिये खतरा बनी हुई है। इसके साथ ही एक ताकतवर वायरस-कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (Canine Distemper Virus-CDV), जो कि वन्यजीव अभयारण्यों और उनके आसपास रहने वाले CDV से संक्रमित कुत्तों से प्रसारित हो सकता है, वन्यजीव जीव वैज्ञानिकों के बीच चिंता का विषय बन गया है।
प्रमुख बिंदु
- पिछले वर्ष गिर के जंगल में 20 से अधिक शेर वायरल संक्रमण का शिकार हुए थे। यही कारण है कि जंगली जानवरों में इस वायरस के चलते होने वाली बीमारी को फैलने से रोकने के लिये राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) द्वारा कुछ दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।
कैनाइन डिस्टेंपर वायरस
Canine Distemper Virus-CDV
- कैनाइन डिस्टेंपर वायरस मुख्य रूप से कुत्तों में श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, श्वसन तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ-साथ आँखों में गंभीर संक्रमण का कारण बनता है।
- CDV भेड़िये, लोमड़ी, रेकून, लाल पांडा, फेरेट, हाइना, बाघ और शेरों जैसे जंगली माँसाहारियों को भी प्रभावित कर सकता है।
- भारत के वन्यजीवन में इस वायरस का प्रसार तथा इसकी विविधता का पर्याप्त रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
- शेर एक बार में पूरे शिकार को नहीं खाते हैं। कुत्ते उस शिकार का उपभोग करते हुए उसे CDV से संक्रमित कर देते हैं। शेर अपने शिकार को खत्म करने के लिये वापस लौटता है और इस घातक बीमारी की चपेट में आ जाता है।
रोग हस्तांतरण का खतरा
- हाल ही में थ्रेटेड टैक्स (Threatened Taxa) में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि राजस्थान के रणथंभौर नेशनल उद्यान (Ranthambhore National Park) के समीप 86% कुत्तों का परीक्षण किये जाने के बाद इनके रक्तप्रवाह में CDV एंटीबॉडीज़ के होने की पुष्टि की गई है।
- इसका अर्थ है कि ये कुत्ते या तो वर्तमान में CDV से संक्रमित हैं या अपने जीवन में कभी-न-कभी संक्रमित हुए हैं और उन्होंने इस बीमारी पर काबू पा लिया है।
- इस अध्ययन में यह इंगित किया गया है कि उद्यान में रहने वाले बाघों और तेंदुओं में कुत्तों से इस बीमारी के हस्तांतरण का खतरा बढ़ रहा है।
निवारक उपाय
- सर्वप्रथम राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास के क्षेत्र में मुक्त घुमने वाले और घरेलू कुत्तों का टीकाकरण किया जाना चाहिये।
- इस बीमारी को पहचानने तथा इसके संबंध में आवश्यक अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है। जहाँ कहीं भी मांसाहारी वन्यजीवों में CDV के लक्षणों का पता चलता है वहाँ संबंधित जानकारियों का एक आधारभूत डेटा तैयार किया जाना चाहिये ताकि भविष्य में ज़रूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जा सकें।
- नियंत्रण उपायों पर विचार करने के क्रम में स्थानीय CDV अभ्यारण्यों में घरेलू पशुओं की भूमिका को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिये तथा इस संबंध में उपयोगी अध्ययन किये जाने चाहिये।
इस समस्या का सबसे आसान तरीका है- इस रोग की रोकथाम। वन्यजीवों की आबादी में किसी भी बीमारी का प्रबंधन करना बेहद मुश्किल होता है। सरकार को देश में वन्यजीव अभयारण्यों के समीप कुत्तों के टीकाकरण के लिये पहल शुरू करनी चाहिये।