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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

राष्ट्रीय न्यास के अध्यक्ष और सदस्यों के निश्चित कार्यकाल को स्वीकृति

  • 11 Jan 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय न्यास (National Trust for the Welfare of Person with Autism, Cerebral Plasy, Mental Retardation and Multiple Disabilities Ac) के अध्यक्ष तथा बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष के लिये निर्धारित करने हेतु राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 की धारा 4 (1) तथा धारा 5 (1) में संशोधन करने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 की धारा 4 (1) में प्रावधान है कि राष्ट्रीय न्यास के अध्यक्ष या बोर्ड का कोई एक सदस्य एक ऐसी स्थिति में जब तक कि विधिवत रूप से उनके उत्तराधिकारी नियुक्त किये जाते हैं, तब तक की समयावधि के लिये (तीन वर्ष की निर्धारित अवधि के बाद भी) अपने पदों पर बने रहेंगे। 
  • न्यास के अध्यक्ष के त्याग-पत्र के मामले में अधिनियम की धारा 5(1) में निहित प्रावधान के अनुसार, सरकार द्वारा विधिवत रूप से उनके उत्तराधिकारी नियुक्त किये जाने तक वे कार्यालय में बने रहेंगे। 
  • वर्तमान स्वरूप में अधिनियम के उपरोक्त प्रावधानों की शब्दावली के कारण अध्यक्ष अनिश्चित अवधि के लिये अपने पदों पर बने रहते हैं, क्योंकि समय पर नियुक्ति के लिये उपयुक्त उत्तराधिकारी पात्र का चयन नहीं हो पाता है।
  • स्पष्ट रूप से अधिनियम के इन प्रावधानों में प्रस्तावित संशोधन ऐसी किसी भी स्थिति को नकार सकेगा जो किसी पदस्थ सदस्य द्वारा उसी पद पर लगातार बने रहने के किसी भी अवसर को समाप्त करेगा।

राष्ट्रीय न्यास क्या है?

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन ‘राष्ट्रीय न्यास’ एक सांविधिक निकाय है, जिसकी स्थापना ‘स्वलीनता (Autism), सेरेब्रल पाल्सी, मंदबुद्धि और बहुदिव्यांगजनों के कल्याण हेतु राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (वर्ष 1999 में 44वाँ अधिनियम) द्वारा की गई थी। 
  • राष्ट्रीय न्यास की परिकल्पना का आधार दिव्यांगजनों और उनके परिवारों की क्षमता विकास, उन्हें समान अवसर प्रदान कराना, उनको उनके अधिकारों की प्राप्ति करना, बेहतर माहौल उपलब्ध कराना और एक दिव्यांगजन समेकित समाज का निर्माण था। 

समावेशी भारत अभियान

  • हाल ही में इस राष्ट्रीय न्यास ने ‘समावेशी भारत अभियान’ की शुरुआत की है। यह अभियान विशेष रूप से बौद्धिक व विकास संबंधी दिव्यांगों (Persons with intellectual and developmental disabilities) के लिये है। 
  • इसका उद्देश्य ऐसे लोगों को मुख्य धारा में शामिल कराना और सामाजिक जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं जैसे- शिक्षा, रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करने के साथ-साथ इस समुदाय के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव लाना है। 
  • इस अभियान के तहत तीन प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है – 
     ⇒ समावेशी शिक्षा
     ⇒ समावेशी रोज़गार 
     ⇒ समावेशी सामुदायिक जीवन।  
  • समावेशी शिक्षा के क्षेत्र में देश भर में व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि विद्यालयों और कॉलेजों को दिव्यांगजनों के समेकित बनाया जा सके। 
  • विभिन्न सरकारी व निजी संस्थानों के सहयोग से शिक्षण संस्थानों में आधारभूत ढाँचे को उपयोगी और समेकित बनाने के लिये ज़रूरी साधन, उपयोगी उपकरण, ज़रूरी सूचना और सामाजिक सहयोग को बढ़ाने की कोशिश की जाएगी।
  • इस अभियान के तहत औद्योगिक, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की दो हज़ार संस्थाएँ वर्तमान वित्त वर्ष में दिव्यांगजनों के समेकित रोज़गार के लिये जागरूकता फैलाएंगी। 
  • स्पष्ट है कि जब दिव्यांगजन, उनके परिवार, सिविल सोसायटी संस्थाएँ और राज्य सरकार के मध्य आपसी सामंजस्य होगा, तभी समेकित सामुदायिक जीवन के प्रयास को सफल बनाया जा सकेगा। 
  • इस समावेशी भारत अभियान की शुरुआत दिव्यांगजनों के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने के लिये की गई है 
  • साथ ही यह आशा भी की गई है कि राष्ट्रीय न्यास अपने उद्देश्य में अपने प्रयासों की बदौलत ज़रूर सफल होगा।
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