आंतरिक सुरक्षा
पूर्वोत्तर में सीमा विवाद
- 20 Oct 2020
- 9 min read
प्रिलिम्स के लियेबंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR) अधिनियम 1873, इनर लाइन परमिट मेन्स के लियेपूर्वोत्तर राज्यों के बीच सीमा विवाद का प्रमुख कारण और इसका प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
बीते एक सप्ताह में असम और मिज़ोरम के निवासियों के बीच दो बार क्षेत्रीय टकराव हो चुका है, जिसमें तकरीबन 8 लोग घायल हुए हैं, वहीं कई स्थानीय लोगों की संपत्ति को भी भारी नुकसान हुआ है।
प्रमुख बिंदु
- असम और मिज़ोरम के निवासियों के बीच उत्पन्न यह क्षेत्रीय विवाद पूर्वोत्तर में लंबे समय से चले आ रहे अंतर-राज्यीय सीमा के मुद्दों को रेखांकित करता है।
विवाद का कारण
- वर्तमान में असम और मिज़ोरम तकरीबन 165 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं और दोनों राज्यों के बीच क्षेत्रीय विवाद की जड़ों को औपनिवेशिक काल में खोजा जा सकता है, जब मिज़ोरम को असम के लुशाई हिल्स (Lushai Hills) ज़िले के रूप में जाना जाता था।
- असम और मिज़ोरम के बीच क्षेत्रीय विवाद मुख्य तौर पर ब्रिटिश काल में जारी दो अधिसूचनाओं के कारण उत्पन्न हुआ है। इसमें पहली अधिसूचना वर्ष 1875 में जारी की गई जिसके माध्यम से लुशाई हिल्स को कछार (वर्तमान असम का एक ज़िला) के मैदानी इलाकों से अलग किया गया, वहीं दूसरी अधिसूचना वर्ष 1933 में जारी की गई जिसमें लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच की सीमा का सीमांकन किया गया।
- जहाँ एक ओर मिज़ोरम का मानना है कि असम और मिज़ोरम के बीच सीमा का विभाजन वर्ष 1875 की अधिसूचना के आधार पर किया जाना चाहिये, जो कि बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR) अधिनियम, 1873 के माध्यम से जारी की गई थी।
- मिज़ोरम के लोगों का मानना है कि वर्ष 1933 की अधिसूचना को जारी करने के संबंध में स्थानीय लोगों से परामर्श नहीं किया गया था।
- वहीं दूसरी ओर असम के प्रतिनिधि ब्रिटिश काल के दौरान वर्ष 1933 में जारी अधिसूचना का पालन करते हैं और दोनों राज्यों के बीच विवाद का यही मुख्य कारण है।
- दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद की शुरुआत 1980 के दशक में मिज़ोरम के गठन के बाद हुई थी, हालाँकि कुछ वर्ष पूर्व असम और मिज़ोरम की सरकारों के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके मुताबिक दोनों राज्यों की सीमाओं पर यथास्थिति बनाई रखी जानी चाहिये, लेकिन इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्यों के लोगों के बीच समय-समय पर हिंसक झड़पें होती रहती हैं।
बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR) अधिनियम, 1873
- वर्ष 1824-26 के एंग्लो-बर्मी (Anglo-Burmese) युद्ध में असम को जीतकर ब्रिटिश अधिकारियों ने पहली बार पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश किया था।
- युद्ध के बाद इस क्षेत्र को ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाया गया और वर्ष 1873 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR) अधिनियम के रूप में अपनी पहली प्रशासनिक नीति लागू की।
- ब्रिटिश सरकार के मुताबिक, इस अधिनियम का उद्देश्य इस क्षेत्र में स्वदेशी जनजातियों की संस्कृति और पहचान को सुरक्षित करना था, किंतु कई जानकार मानते हैं कि ब्रिटिश सरकार इस अधिनियम के माध्यम से पूर्वोत्तर के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही थी।
- ध्यातव्य है कि ब्रिटिश सरकार ने इसी अधिनियम के माध्यम से ‘इनर लाइन परमिट’ (Inner Line Permit-ILP) की व्यवस्था की थी।
पूर्वोत्तर में अन्य सीमा विवाद
- ब्रिटिश शासन के दौरान तत्कालीन असम प्रांत में वर्तमान नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिज़ोरम आदि राज्य शामिल थे, जो एक-एक कर असम से अलग होते गए।
- यही कारण है कि वर्तमान में असम, पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों के साथ अपनी सीमा साझा करता है और इन्हीं सीमाओं के साथ जुड़ा है सीमा विवाद।
- नगालैंड-असम तकरीबन 512 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं और दोनों राज्यों के बीच वर्ष 1965 के बाद से सीमा विवाद को लेकर हिंसक संघर्ष चल रहा है।
- वर्ष 1979 और वर्ष 1985 में हुई दो बड़ी हिंसक घटनाओं में कम-से-कम 100 लोगों की मौत हुई थी। इस विवाद की सुनवाई अब सर्वोच्च न्यायालय में की जा रही है।
- असम और अरुणाचल प्रदेश जो कि तकरीबन 800 किलोमीटर से अधिक की सीमा साझा करते हैं, दोनों के बीच सीमा पर सर्वप्रथम वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी। तभी से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा शुरू करने के आरोप लगाते रहते हैं।
- इस सीमा विवाद पर भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई की जा रही है।
- लगभग 884 किलोमीटर लंबी असम और मेघालय सीमा पर भी अक्सर हिंसक झड़पों की खबरें आती रहती हैं, मेघालय सरकार के आँकड़े बताते हैं कि वर्तमान में दोनों राज्यों के बीच कुल 12 विवादित क्षेत्र हैं।
पृष्ठभूमि
- विशेषज्ञ मानते हैं कि आज़ादी के बाद पूर्वोत्तर के असम प्रांत का विभाजन कर बनाए गए अधिकांश राज्य जैसे- मिज़ोरम, नगालैंड और मेघालय आदि को प्रशासनिक सहूलियत के हिसाब से विभाजित किया गया था।
- ज़मीनी स्तर पर ये सीमाएँ अभी भी जनजातीय क्षेत्रों और पहचानों के साथ मेल नहीं खाती हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में बार-बार क्षेत्रीय विवाद पैदा होता है और यहाँ की शांति भंग होती है।
प्रभाव
- इस प्रकार के सीमा विवादों से काफी हद तक पूर्वोत्तर राज्यों के निवासियों के बीच मतभेद पैदा होता है, जिसके कारण इस क्षेत्र की शांति और अस्थिरता प्रभावित होती है।
- इन सीमा विवादों से राज्यों के बीच आपसी सहयोग प्रभावित होता है, और नृजातीय संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
- साथ ही इससे विवादित क्षेत्र की विकास प्रक्रिया पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वहाँ के लोग दूसरे क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
आगे की राह
- आवश्यक है कि दोनों राज्य आपसी वार्ता के माध्यम से इन सीमा विवादों को सुलझाने का प्रयास करें ताकि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित की जा सके।
- दोनों राज्यों में आपसी सहमति न बनने की स्थिति में केंद्र सरकार की मदद से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।
- नीति निर्मंताओं को इस बदलते परिदृश्य में क्षेत्रवाद के स्वरूप को समझना होगा। यदि यह विकास की मांग तक सीमित है तो उचित है, परंतु यदि क्षेत्रीय टकराव को बढ़ावा देने वाली है तो इसे रोकने के प्रयास किये जाने चाहिये।