कोविड -19 से रिकवरी में 'अश्वगंधा' का महत्त्व | 02 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये 

 कोविड-19, अश्वगंधा, यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण

मेन्स के लिये

'अश्वगंधा' से कोविड-19 की रिकवरी को बढ़ावा देना तथा  इसमें नैदानिक परीक्षण का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और यूके ने कोविड-19 से रिकवरी के मामले को बढ़ावा देने हेतु 'अश्वगंधा (AG)' पर एक अध्ययन का आयोजन करने में सहयोग किया है।

  • परीक्षण की सफलता के पश्चात् 'अश्वगंधा' कोरोना संक्रमण को रोकने हेतु एक सिद्ध औषधीय उपचार होगा तथा वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक समुदाय द्वारा पहचाना जाएगा।
  • यह पहली बार है जब आयुष मंत्रालय ने किसी विदेशी संस्थान के साथ मिलकर कोविड-19 रोगियों पर इसकी प्रभावशीलता का परीक्षण किया।

Ashwagandha

प्रमुख बिंदु 

अश्वगंधा के बारे में:

  • अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा/Withania Somnifera) एक औषधीय जड़ी बूटी है। इसे इम्युनिटी बढ़ाने के लिये जाना जाता है।
  •  इसे "एडाप्टोजेन" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह आपके शरीर को तनाव का प्रबंधन करने में मदद कर सकती है।
  • अश्वगंधा मस्तिष्क की स्मृति और संज्ञानात्मक कार्यों को बढ़ाने के साथ-साथ रक्त शर्करा को कम करती है तथा चिंता एवं अवसाद के लक्षणों से लड़ने में मदद करती है।
  • अश्वगंधा ने तीव्र और पुरानी संधिशोथ/गठिया दोनों के नैदानिक इलाज में ​​सफलता प्राप्त की है।
    • रुमेटाइड आर्थराइटिस यानी गठिया (Rheumatoid Arthritis ) एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति के जोड़ों में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। 
    • ऑटोइम्यून बीमारी एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली अचेतन अवस्था में आपके शरीर को प्रभावित करती है।

अश्वगंधा की क्षमता:

  • अध्ययन से पता चलता है कि अश्वगंधा कोविड-19 के दीर्घकालिक लक्षणों को कम करने के लिये एक संभावित चिकित्सीय औषधि के रूप में है।
  • हाल ही में भारत में मनुष्यों में AG के कई यादृच्छिक प्लेसबो (Randomized Placebo) नियंत्रित परीक्षणों ने चिंता और तनाव को कम करने, मांसपेशियों की ताकत में सुधार करने तथा पुरानी स्थितियों के इलाज वाले रोगियों में थकान के लक्षणों को कम करने में इसकी प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया है।
    • यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (RCT) एक संभावित, तुलनात्मक, मात्रात्मक अध्ययन / प्रयोग है जो नियंत्रित परिस्थितियों में तुलनात्मक समूहों को हस्तक्षेपों के यादृच्छिक आवंटन के साथ किया जाता है।

नैदानिक परीक्षण:

  • मनुष्यों में नैदानिक ​​परीक्षणों को तीन चरणों में वर्गीकृत किया जाता है: चरण I, चरण II एवं चरण III और कुछ देशों में इनमें से किसी भी अध्ययन को करने के लिये औपचारिक नियामक अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
    • चरण-I के नैदानिक ​​अध्ययन में स्वस्थ वयस्कों की कम संख्या (जैसे 20) में टीके का प्रारंभिक परीक्षण किया जाता है, ताकि टीके के गुणों, इसकी सहनशीलता और यदि उपयुक्त हो तो नैदानिक ​​प्रयोगशाला एवं औषधीय मापदंडों का परीक्षण किया जा सके। प्रथम चरण के अध्ययन मुख्य रूप से सुरक्षा से संबंधित हैं।
    • चरण-II के अध्ययन में बड़ी संख्या में विषय शामिल हैं और इसका उद्देश्य लक्षित आबादी तथा इसकी सामान्य सुरक्षा में वांछित प्रभाव (आमतौर पर इम्यूनोजेनेसिटी) उत्पन्न करने के लिये एक टीके की क्षमता के बारे में प्रारंभिक जानकारी प्रदान करना है।
    • टीके की सुरक्षात्मक प्रभावकारिता और सुरक्षा का पूरी तरह से आकलन करने के लिये व्यापक चरण-III के परीक्षणों की आवश्यकता होती है। चरण III नैदानिक ​​परीक्षण एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन है जिस पर यह निर्णय लिया जाता है कि क्या लाइसेंस प्रदान करना है और यह प्रदर्शित करने लिये पर्याप्त डेटा प्राप्त करना है कि एक नया उत्पाद सुरक्षित और इच्छित उद्देश्य हेतु प्रभावी है या नहीं।

स्रोत-द हिंदू