अंटार्कटिका में कृत्रिम बर्फ की चादर | 19 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
साइंस एडवांसेज़ (Science Advances) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यदि पश्चिमी अंटार्कटिक क्षेत्र में ‘कृत्रिम बर्फ’ की चादरें स्थापित की जाएँ तो वहाँ की बर्फ की चादरों को समुद्र में फिसलने से रोका जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिकों ने समुद्र की सतह पर पवन टर्बाइनों (Wind Turbines) का उपयोग करके ‘कृत्रिम बर्फ’ की चादरें स्थापित करने की परिकल्पना व्यक्त की है, ताकि वास्तविक बर्फ की चादर के भार का अनुमान लगाते हुए इसे और अधिक ढहने/फिसलने से रोका जा सके।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण दक्षिणी ध्रुव पर उपस्थित बर्फ की विशाल चादरें इतनी ज़्यादा पिघल चुकी हैं कि अब ये विघटित होने की स्थिति में है, यदि ऐसा होता है तो समुद्र का जलस्तर कम-से-कम तीन मीटर (10 फीट) तक बढ़ जाएगा।
- हालाँकि सबसे ज़रूरी प्राथमिकता वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करते हुए आवश्यक कार्बन उत्सर्जन में तेज़ी से कटौती करना है।
- वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि यदि सभी देश पेरिस जलवायु समझौते का सही से पालन करते हैं तो भी समुद्र का जलस्तर अंततः पाँच मीटर तक बढ़ सकता है।
- फिलहाल पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादरों में आने वाली गिरावट का असर सैकड़ों वर्षों बाद सामने आएगा लेकिन तब तक परिस्थियाँ काफी विषम हो चुकी होंगी।
- अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से समुद्र के जल स्तर में होने वाली वृद्धि हैम्बर्ग, शंघाई, न्यूयॉर्क और हांगकांग जैसे शहरों को जलमग्न कर देगी।
- कार्बन उत्सर्जन से ग्रीनलैंड क्षेत्र में बर्फ की चादरों के पिघलने, आर्कटिक और दुनिया भर में कम होते ग्लेशियर आने वाले समय में इस समस्या को और बढ़ा देंगे।
- वैज्ञानिकों के कंप्यूटर मॉडल आँकड़ों के अनुसार, पाइन द्वीप (Pine Island) और थवाइट्स ग्लेशियरों (Thwaites glaciers) के आस-पास 10 वर्षों में न्यूनतम 7,400 गीगाटन कृत्रिम बर्फ जमा करके वेस्ट अंटार्कटिक बर्फ की चादरों को स्थिर किया जा सकता है।
पेरिस जलवायु समझौता
(Paris Agreement on Climate Change)
- इस ऐतिहासिक समझौते को वर्ष 2015 में ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क’ (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) की 21वीं बैठक में अपनाया गया, जिसे COP21 (Conference of Parties21- COP21) के नाम से जाना जाता है। इस समझौते को वर्ष 2020 से लागू किया जाना है।
- इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि सभी देशों द्वारा वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण से पूर्व के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है (दूसरे शब्दों में कहें तो 2 डिग्री सेल्सियस से कम ही रखना है) और 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये सक्रिय प्रयास करना है।
- पहली बार विकसित और विकासशील देश, दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) को प्रस्तुत किया, जो प्रत्येक देश का अपने स्तर पर स्वेच्छा से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक विस्तृत कार्रवाइयों का समूह है।
- पेरिस समझौते का मुख्य सार इसके 27 में से 6 अनुच्छेदों में निहित है। ये इस प्रकार हैं-
- 'बाज़ार तंत्र' (Market Mechanism) (A-6): यह एक देश को किसी दूसरे देश में हरित परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और क्रेडिट खरीदने की अनुमति देता है।
- 'वित्त' (Finance) (A-9)
- 'प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण' (Technology Development and Transfer) (A-10);
- 'क्षमता निर्माण' Capacity Building (A-11);
- 'पारदर्शिता ढाँचा' (Transparency Framework) (A-13), यह प्रत्येक देश के कार्यों की रिपोर्टिंग से संबंधित है;
- 'ग्लोबल स्टॉक-टेक' (Global Stock-Take) (A-14), यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में प्रत्येक देश की प्रतिबद्धता और उसकी कार्रवाई की आवधिक समीक्षा करता है तथा उसमें सुधार की मांग करता है।