SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम संबंधी दिशा-निर्देश | 06 Nov 2020
प्रिलिम्स के लियेSC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम मेन्स के लियेन्यायालय के हालिया दिशा-निर्देश, SC/ST समुदाय से संबंधित अपराध से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक हालिया निर्णय में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत केवल इस तथ्य के आधार पर कि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, कोई अपराध तब तक स्थापित नहीं होता, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि पीड़ित को केवल इसलिये अपमानित किया गया, क्योंकि वह किसी जाति विशिष्ट से संबंधित है।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रकार न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के नेतृत्त्व वाली खंडपीठ ने SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (1) (x) और 3 (1) (e) के तहत आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया, जबकि इससे पूर्व उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आरोपियों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने से इनकार कर दिया था।
न्यायालय का निर्णय
- अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत तब तक किसी व्यक्ति के अपमान को अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि पीड़ित व्यक्ति को अनूसूचित जाति अथवा जनजाति से संबंधित होने के कारण अपमानित किया गया।
- अदालत ने उल्लेख किया कि धारा 3 (1) (r) के तहत किसी भी कृत्य को अपराध घोषित करने हेतु आवश्यक है कि-
- ऐसा कृत्य अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के किसी सदस्य को अपमानित करने के इरादे से सार्वजनिक रूप से दृश्य किसी भी स्थान पर जान-बूझकर किया गया हो।
- यहाँ न्यायालय ने सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान को भी परिभाषित करने का प्रयास किया है। वर्ष 2008 के स्वर्ण सिंह वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार किया था कि ‘सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान’ किसे माना जाएगा। इस वाद में न्यायालय ने ‘सार्वजनिक स्थान’ और ‘सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान’ के बीच अंतर किया था।
- न्यायालय ने कहा था कि यदि किसी अपराध को घर की इमारत से बाहर जैसे- लॉन आदि में किया गया हो और उस क्षेत्र को घर की सीमा के बाहर से देखा जा सकता हो तो इस स्थिति में लॉन को सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान माना जाएगा।
SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग सदियों से शोषण और अत्याचार का सामना कर रहे हैं और मौजूदा समय में भी ऐसी कई घटनाएँ देखी जा सकती हैं, जहाँ किसी व्यक्ति का उत्पीड़नकेवल इसलिये किया जाता है, क्योंकि वह किसी एक जाति विशिष्ट से संबंधित है।
- इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम पारित किया था।
प्रावधान
- SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में अलग-अलग तरह के ऐसे 22 कृत्यों को अपराध के तौर पर सूचीबद्ध किया गया है, जिनके कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित किसी व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता हो अथवा उसके स्वाभिमान या सम्मान को ठेस पहुँचती हो।
- इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव करना, कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग और किसी व्यक्ति के आर्थिक, लोकतांत्रिक एवं सामाजिक अधिकारों का उल्लंघन करना शामिल है।
- इस तरह SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित लोगों को सामाजिक विकलांगता जैसे- किसी स्थान पर जाने से रोकना, द्वेषपूर्ण अभियोजन और आर्थिक शोषण आदि से सुरक्षा प्रदान करना है।
- साथ ही ऐसे मामलों के लिये इस कानून के तहत विशेष न्यायालय बनाए जाते हैं जो ऐसे प्रकरण में तुरंत निर्णय लेते हैं।
- इस कानून के तहत महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में पीड़ित को राहत राशि देने और अलग से मेडिकल जाँच की भी व्यवस्था है।
उद्देश्य
- इस अधिनियम को सदियों से अपमान और उत्पीड़न का सामना कर रहे समाज के कमज़ोर एवं संवेदनशील वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है और तमाम तरह के कानूनों के बावजूद इन समुदायों के लोगों को कई स्तरों पर शोषण और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
SC/ST समुदाय से संबंधित अपराध और अधिनियम का दुरुपयोग
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों की मानें तो देश में प्रत्येक 15 मिनट में किसी अनुसूचित जाति समुदाय के व्यक्ति के विरुद्ध अपराध की घटना होती है।
- वर्ष 2007 और वर्ष 2017 के बीच अनुसूचित जाति के लोगों के विरुद्ध होने वाले अपराधों में 66 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
- हालाँकि आँकड़े यह भी बताते हैं कि किस तरह से इस अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ही आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2016 की पुलिस जाँच में अनुसूचित जाति को प्रताड़ित किये जाने के 5347 झूठे मामले सामने आए, जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल 912 मामले झूठे पाए गए।
- किंतु यहाँ इस बात पर ध्यान देना भी आवश्यक है कि ये झूठे मामले कुल मामलों का क्रमशः 9 प्रतिशत और 10 प्रतिशत ही हैं, यानी अधिनियम के तहत दर्ज किये गए 10 मामलों में से केवल 1 मामला ही झूठा दर्ज होता है।