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भारतीय अर्थव्यवस्था

‘एडिशनल टियर-1’ बाॅण्ड

  • 03 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, बाॅण्ड, ‘AT1’ बाॅण्ड, बेसल-III मानदंड

मेन्स के लिये

बेसल-III मानदंड और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 7.72% की कूपन दर पर ‘बेसल अनुपालन एडिशनल टियर-1’ (AT1) बाॅण्ड से 4,000 करोड़ रुपए जुटाए हैं।

  • सेबी के नए नियमों के बाद घरेलू बाज़ार में यह पहला AT1 बाॅण्ड है।
  • यह वर्ष 2013 में ‘बेसल-III’ पूंजी नियमों के लागू होने के बाद से किसी भी भारतीय बैंक द्वारा जारी किये गए इस तरह के ऋण पर अब तक की सबसे कम कीमत है।

बाॅण्ड 

  • बाॅण्ड, कंपनियों द्वारा जारी कॉर्पोरेट ऋण की इकाइयाँ होती हैं, जो प्रतिभूति संपत्ति के रूप में व्यापार योग्य होती हैं।
  • बाॅण्ड को एक निश्चित आय वाले वित्तीय उपकरण के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि बाॅण्ड पारंपरिक रूप से देनदारों को एक निश्चित ब्याज दर (कूपन) का भुगतान करते हैं। हालाँकि अब परिवर्तनीय या अस्थायी ब्याज़ दरें भी काफी सामान्य हो गई हैं।
  • बाॅण्ड की कीमतें ब्याज दरों के साथ विपरीत रूप से सह-संबद्ध होती हैं: जब दरें बढ़ती हैं, बाॅण्ड की कीमत गिरती है और जब दरें घटती हैं, तो बाॅण्ड की कीमत बढ़ती है।
  • बाॅण्ड की एक निर्धारित परिपक्वता अवधि होती है, जिस पर मूल राशि का भुगतान पूर्ण या जोखिम डिफाॅल्ट रूप से किया जाना होता है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘AT1’ बाॅण्ड
    • ‘AT1 बाॅण्ड’ जिसे ‘परपेचुअल बाॅण्ड’ भी कहा जाता है, की कोई परिपक्वता तिथि नहीं होती है, किंतु इनमें कॉल विकल्प होता है। ऐसे बाॅण्ड के जारीकर्त्ता बाॅण्ड को कॉल या रिडीम कर सकते हैं यदि उन्हें सस्ती दर पर पैसा मिल रहा है, खासकर तब जब ब्याज दरें गिर रही हों।
      • ये बैंकों और कंपनियों द्वारा जारी किये गए किसी भी अन्य बाॅण्ड्स की तरह ही हैं, लेकिन अन्य बाॅण्डों की तुलना में इनमें थोड़ी अधिक ब्याज़ दर का भुगतान किया जाता है।
    • बैंक ये बाॅण्ड ‘बेसल-III’ मानदंडों को पूरा करने के उद्देश्य से अपने मूल पूंजी आधार को बढ़ाने के लिये जारी करते हैं।
    • ये बाॅण्ड भी सूचीबद्ध होते हैं और एक्सचेंजों पर इन्हें खरीदा या बेचा जाता है। इसलिये यदि किसी ‘AT1’ बाॅण्डधारक को पैसे की ज़रूरत है, तो वह इसे सेकेंडरी मार्केट में बेच सकता है।
    • निवेशक इन बाॅण्ड्स को जारीकर्त्ता बैंक को वापस नहीं कर सकते हैं यानी इसके धारकों के लिये कोई ‘पुट ऑप्शन’ उपलब्ध नहीं है।
    • ‘AT-1’ बाॅण्ड जारी करने वाले बैंक किसी विशेष वर्ष के लिये ब्याज भुगतान को रोक भी सकते हैं या बाॅण्ड के अंकित मूल्य को भी कम कर सकते हैं।
  • बाॅण्ड प्राप्त करने के लिये मार्ग:
    • ऐसे दो मार्ग हैं जिनके माध्यम से इन बाॅण्ड्स को प्राप्त किया जा सकता है:
      • धन जुटाने की मांग करने वाले बैंकों द्वारा AT-1 बाॅण्ड के आरंभिक निजी प्लेसमेंट ऑफर।
      • द्वितीयक बाज़ार में पहले से कारोबार कर रहे AT-1 बाॅण्ड्स की खरीदारी होती है।
  • विनियमन:
    • AT-1 बाॅण्ड भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित होते हैं। अगर RBI को लगता है कि किसी बैंक को बचाव की ज़रूरत है, तो वह बैंक को अपने निवेशकों से परामर्श किये बिना अपने बकाया AT-1 बाॅण्ड को बट्टे खाते में डालने के लिये कह सकता है।

बेसल- III मानदंड

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक समझौता है जिसने वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद बैंकिंग क्षेत्र के भीतर विनियमन, पर्यवेक्षण और जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिये डिज़ाइन किये गए सुधारों का एक सेट पेश किया।
  • बेसल- III मानदंडों के तहत बैंकों को पूंजी का एक निश्चित न्यूनतम स्तर बनाए रखने के लिये कहा गया था और उन्हें जमा से प्राप्त होने वाले सभी धन को उधार नहीं देने के लिये कहा गया था।
  • बेसल- III मानदंडों के अनुसार, बैंकों की नियामक पूंजी को टियर-1 और टियर-2 में बाँटा गया है, जबकि टियर-1 को कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) और अतिरिक्त टियर-1 (AT-1) पूंजी में विभाजित किया गया है।
    • सामान्य इक्विटी टियर-1 पूंजी में इक्विटी उपकरण शामिल होते हैं जहाँ रिटर्न, बैंकों के प्रदर्शन से जुड़ा होता है और इसलिये शेयर की कीमत का प्रदर्शन होता है। उनकी कोई परिपक्वता अवधि नहीं होती है।
    • CET और AT-1 को सामान्य इक्विटी कहा जाता है। बेसल- III मानदंडों के तहत सामान्य इक्विटी पूंजी की न्यूनतम आवश्यकता को परिभाषित किया गया है।
  • टियर-2 पूंजी में कम-से-कम पाँच वर्ष की मूल परिपक्वता अवधि के साथ असुरक्षित अधीनस्थ ऋण होता है।
    • बेसल मानदंडों के अनुसार, यदि न्यूनतम टियर-1 पूंजी 6% से कम हो जाती है, तो यह इन बाॅण्ड्स को बट्टे खाते में डालने की अनुमति देता है।

स्रोत: द हिंदू

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