फसलों के लिये बायोकैप्सूल | 16 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल के कोझीकोड में स्थित भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Spices Research- IISR) के शोधकर्त्ताओं ने किसानों के लिये एक बायोकैप्सूल (Biocapsules) विकसित किया है।
प्रमुख बिंदु
- इस बायोकैप्सूल में ऐसे बग (Bugs) उपस्थित हैं जो भविष्य में किसानों द्वारा खेत में बायोफर्टिलाइज़र (जैव उर्वरक) के रूप में इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
- वर्तमान में इस तरह की कोई भी तकनीक (दुनिया भर में) व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं है।
- इस तकनीक का प्रयोग कर किसान भारी मात्रा में उपस्थित बायोफर्टिलाइज़र को सूक्ष्मजीवों के इस कैप्सूल से प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
- कैप्सूल के माध्यम से जीवों को वितरित करने में आसानी होगी। साथ ही यह जीवों की जीवन सक्रियता को भी बढ़ाएगा। क्योंकि कैप्सूल में इन सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय अवस्था में बनाए रखा जाता है, इसलिये कमरे के तापमान में उनकी व्यवहार्यता खोने की कोई चिंता नहीं होती है।
- उल्लेखनीय है कि तरल-आधारित कई जैव-निरूपण (Bioformulations) सामान्य ताप पर अपनी निष्क्रियता खो देते है।
- सूक्ष्मजीवों के जैव-निरूपण पर सफलतम जाँच काफी हद तक सिर्फ प्रयोगशाला तक ही सीमित है, अभी तक ऐसा कोई भी वाणिज्यिक उत्पाद बाज़ार में उपलब्ध नहीं हैं। हालाँकि कई देशों में मालिकाना जैव-निरूपण तकनीक के पेटेंट के लिये आवेदन लंबित है।
जैव- उर्वरक
Bio-fertilizer
- ये जीवित सूक्ष्मजीवों से समृद्ध होते है; बीज, मिट्टी या जीवित पौधों पर इनका छिडकाव किये जाने से मिट्टी के पोषक तत्त्वों में वृद्ध होती है।
- इसमें विभिन्न प्रकार के कवक, मूल बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीव होते हैं जो मेजबान पौधों के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद या सहजीवी संबंध बनाते हैं क्योंकि इनकी उत्पप्ति मिट्टी में होती हैं।
बायोकैप्सूल (Biocapsules) की विशेषता
- इस तकनीक से बने बायोकैप्सूल का वज़न सिर्फ एक ग्राम है, जबकि अन्य सूक्ष्मजीवों वाले पाउडर-आधारित बायोफर्टलाइज़र एक किलोग्राम तथा तरल आधारित बायोफर्टलाइज़र एक लीटर की बोतल के पैक में मौजूद होते हैं।
- इसका उपयोग किसी भी प्रकार के खेत के अनुकूल रोगाणुओं को पैक करने के लिये किया जा सकता है, जिसमें नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया, सोलूबोलिस फॉस्फेट, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और कवक शामिल हैं जो रोगजनकों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- उल्लेखनीय है कि जैविक खेती के लिये पिछले कुछ वर्षों में बायोफर्टिलाइज़र और बायोस्टिमुलेंट लोकप्रिय हो गए हैं।
- लाभकारी रोगाणुओं के उपयोग से उर्वरक के उपयोग में 25 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
- कर्नाटक स्थित एक फर्म ने सूक्ष्मजीवों से युक्त बायोकैप्सूल विकसित किये हैं जिनका उपयोग विभिन्न बागवानी, सजावटी और मसालों की फसलों के लिये किया जा सकता है।
भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान
Indian Institute of Spices Research- IISR
- कोझीकोड (कालीकट) स्थित भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Spices Research- IISR) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) का एक निकाय है।
- यह मसालों पर शोध के लिये समर्पित एक प्रमुख संस्थान है।
- वर्ष 1976 में केंद्रीय बागान फसल अनुसंधान संस्थान (CPCRI) के एक क्षेत्रीय स्टेशन के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी।
- भारत में मसाला अनुसंधान के महत्त्व को देखते हुए इस अनुसंधान केंद्र को 1 जुलाई, 1995 को भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान में अपग्रेड किया गया।
- इस संस्थान की प्रयोगशाला और प्रशासनिक कार्यालय कोझीकोड ज़िला (केरल) में स्थित हैं।
पृष्ठभूमि
- मसालों पर निरंतर अनुसंधान की पहल के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा वर्ष 1971 के दौरान केरल के कासरगोड स्थित केंद्रीय वृक्षारोपण फसल अनुसंधान संस्थान (Central Plantation Crops Research Institute- CPCRI) में अखिल भारतीय समन्वित मसालों एवं काजू सुधार परियोजना (All India Coordinated Spices and Cashew Improvement Project- AICSCIP) की शुरुआत की गई थी।
- वर्ष 1975 के दौरान केरल के कोझीकोड में ICAR द्वारा मसालों पर शोध करने के लिये CPCRI का एक क्षेत्रीय स्टेशन स्थापित किया गया।
- क्षेत्रीय स्टेशन को वर्ष 1986 में CPCRI के इलायची अनुसंधान केंद्र के साथ विलय करके राष्ट्रीय मसाला अनुसंधान केंद्र (NRCS) के रूप में उन्नत किया गया।
- NRCS को वर्ष 1995 के दौरान वर्तमान भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (IISR) में और उन्नत किया गया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
Indian Council of Agricultural Research-ICAR
- भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एक स्वायत्तशासी संस्था है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- बागवानी, मात्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि के क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन एवं शिक्षा के लिये यह परिषद भारत का एक सर्वोच्च निकाय है।
- पृष्ठभूमि- कृषि पर रॉयल कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अनुसरण करते हुए सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत इसका पंजीकरण किया गया था, जबकि 16 जुलाई, 1929 को इसकी स्थापना की गई।
- पहले इसका नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Imperial Council of Agricultural Research) था।