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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट और एनपीए समस्या

  • 26 Dec 2017
  • 7 min read
चर्चा में क्यों?

हाल ही में आरबीआई द्वारा मार्च से सितंबर की अवधि की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial stability report) जारी की गई है।

क्या है वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट?

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) एक अर्द्धवार्षिक प्रकाशन है जो भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • रिपोर्ट में केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को लेकर ही सवाल नहीं खड़े किये गए हैं, बल्कि निजी बैंक भी फँसे हुए कर्ज़ के मामले में बड़ी परेशानी झेल रहे हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की पिछले हफ्ते जारी एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि कुछ सार्वजनिक बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता आगे और कम हो सकती है जिसके चलते उन्हें अधिक पूंजी की ज़रूरत पड़ेगी।
  • एफएसआर में ऐसे कई आकलन भी किये गए हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को दोबारा रफ्तार देने लायक बनाने में असरदार भूमिका निभा सकते हैं।
  • हालाँकि इस साल मार्च और सितंबर के दौरान अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों की ऋण वृद्धि दर में सुधार हुआ है।
  • लेकिन बैंकिंग स्थिरता सूचकांक के अनुसार भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में परिसंपत्ति गुणवत्ता की हालत बिगड़ रही है।

क्या है बैंकिंग स्थिरता सूचकांक?

  • बैंकिंग स्थिरता सूचकांक, बैंकों के लिये परिसंपत्ति गुणवत्ता का एक सूचक है।
  • यह इंडेक्स उन परिस्थितियों में आगे संकटग्रस्त होने वाले  बैंकों की संख्या प्रदर्शित करता है जब कोई एक बैंक संकटग्रस्त हो चुका होता है। 
  • यह सूचकांक जितना ही बढ़ता जाता है, बैंकों के संकटग्रस्त होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है।

बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य में बेहतरी हेतु किये जा रहे प्रयास

  • बैंकों का रीकैपिटलाइजेशन:

⇒ हाल ही में अर्थव्यवस्था को गति देने, रोज़गार सृजन और बैंकिंग तंत्र को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को दो लाख 11 हज़ार करोड़ रुपए की पूंजी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।
⇒ केंद्र द्वारा संकटग्रस्त सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण यानी रीकैपिटलाइजेशन की घोषणा महत्त्वपूर्ण इसलिये है क्योंकि इससे बैंकों को फँसे हुए कर्ज़ के दुष्चक्र से उबारा जा सकता है।

  • बैंकरप्सी कोड:

⇒ विगत वर्ष केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया था।
⇒ यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाऊन इन्सॉल्वेंसी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेंसी एक्ट 1920’ को रद्द करता है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है।
⇒ दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकते हैं। यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है।
⇒ ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताड़नाओं से गुज़रना पड़ता है।
⇒ अब बैंकरप्सी कोड के तहत दिवालियापन प्रक्रियाओं को एक निश्चित अवधि के अंदर निपटाना होगा।
⇒ यदि दिवालियेपन को सुलझाया नहीं जा सकता तो ऋणदाता (Creditors) का ऋण चुकाने के लिये उधारकर्त्ता (borrowers) की परिसंपत्तियों को बेचा जा सकता है।

  • इंद्रधनुष योजना:

⇒ देश के सरकारी बैंकों की हालत सुधारने के लिये सरकार ने वर्ष 2015 में एक सात सूत्रीय इंद्रधनुष योजना बनाई थी।
⇒ इंद्रधनुष' योजना का उद्देश्य चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना, एनपीए में कमी करना और बैंकों का प्रदर्शन सुधारना है।
⇒ 'इंद्रधनुष' के अंतर्गत पुनर्पूंजीकरण के उपाय किये जा रहे हैं और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को कम करने में मदद की जा रही है।

  • इंद्रधनुष के 7 सूत्र इस प्रकार हैं:
  1. नियुक्तियाँ। 
  2. बैंक बोर्ड ब्यूरो।
  3. पूंजीकरण।
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर दबाव हटाना।
  5. सशक्तीकरण।
  6. जवाबदेही की योजना बनाना।
  7. प्रशासनिक सुधार।
  • पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री (पीसीआर)

⇒ हाल ही में पीसीआर बनाने को लेकर आरबीआई ने एक कार्यदल का गठन किया था। दरअसल, पीसीआर क्रेडिट से संबंधित जानकारियों का एक विस्तृत डाटाबेस होगा जो सभी हितधारकों के लिये उपलब्ध रहेगा।
⇒ पीसीआर में ऋण की मांग करने वाले व्यक्ति से संबंधित सभी जानकारियाँ, जैसे- उसने पहले कितना ऋण लिया है, उसने समयानुसार ऋण चुका दिया है या नहीं, आदि एकत्र कर रखी जाएंगी।
⇒ आमतौर पर पीसीआर का प्रबंधन केंद्रीय बैंक या बैंकिंग पर्यवेक्षक के हाथ में होता है और कानूनी तौर पर कर्ज़दाताओं या कर्ज़दारों के लिये ऋण विवरणों की सूचना पीसीआर को देना अनिवार्य बना दिया जाता है।

  • पीसीआर के संभावित लाभ हैं:
  1. लोन डिफॉल्ट घटाना।
  2. ऋण लेने एवं देने की प्रक्रिया को बेहतर बनाना।
  3. वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करना।
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