प्रिलिम्स फैक्ट्स (25 Aug, 2021)



प्रिलिम्स फैक्ट्स : 25 अगस्त, 2021

मदुर मैट को राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार

National Handicraft Award to Madur Mats

हाल ही में पश्चिम बंगाल की दो महिलाओं को शिल्प के विकास में उनके उत्कृष्ट योगदान, 'मदुर फ्लोर मैट' (Madur Floor Mats) के निर्माण के लिये राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार दिया गया।

Madhur-Mats

प्रमुख बिंदु:

संदर्भ: 

  • शिल्प गुरु पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार और राष्ट्रीय उत्कृष्टता प्रमाणपत्र देश में हस्तशिल्प कारीगरों के लिये सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं।
    • इन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है।
  • शिल्प गुरु पुरस्कार भारत में हस्तशिल्प पुनरुत्थान के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर वर्ष 2002 में स्थापित किया गया था।
  • जबकि राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 1965 में और राष्ट्रीय उत्कृष्टता प्रमाणपत्र वर्ष 1967 में स्थापित किया गया था।
  • शिल्प गुरु हस्तशिल्प के क्षेत्र में 20 वर्ष के अनुभव वाले 50 वर्ष से अधिक आयु के कारीगरों को दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च पुरस्कार है।
  • इसी प्रकार शिल्प के विकास में उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिये 30 वर्ष से अधिक आयु के शिल्पकार, जो हस्तशिल्प के क्षेत्र में 10 वर्ष का अनुभव रखता है, को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
  • राष्ट्रीय उत्कृष्टता प्रमाणपत्र उन मास्टर शिल्पकारों, जो 30 वर्ष से अधिक आयु के हैं और हस्तशिल्प के क्षेत्र में 10 वर्ष का अनुभव रखते हैं, को शिल्प को बढ़ावा देने के लिये किये गए उनके कार्य, उसके प्रसार और कौशल स्तर को मान्यता प्रदान करने के लिये दिया जाता है ।

मदुर फ्लोर मैट:

  • बंगाली जीवनशैली का एक आंतरिक हिस्सा, मदुर मैट या मधुरकथी प्राकृतिक रेशों से बने होते हैं।
  • इसे अप्रैल 2018 में जीआई रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेत (GI Tag) टैग से सम्मानित किया गया था।
  • यह एक प्रकंद आधारित पौधा (साइपरस टेगेटम या साइपरस पैंगोरेई) है जो पश्चिम बंगाल के पुरबा और पश्चिम मेदिनीपुर के जलोढ़ इलाकों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

बंगाल के जीआई टैग वाले अन्य उत्पाद:

  • कुष्मंडी का लकड़ी का मुखौटा, पुरुलिया चौ-मुखौटा, गोविंदभोग चावल, तुलापंजी चावल, बंगाल पटचित्र, दार्जिलिंग चाय आदि।

चकमा-हाजोंग समुदाय 

Chakma and Hajong Communities

चर्चा में क्यों?

चकमा संगठनों ने अरुणाचल प्रदेश से चकमा और हाजोंग समुदायों के 60,000 लोगों के प्रस्तावित निर्वासन का विरोध किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • ये जातीय लोग हैं जो चटगाँव पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे, इनमें से अधिकांश क्षेत्र बांग्लादेश में स्थित हैं।
    • दरअसल चकमा बौद्ध हैं, जबकि हाजोंग हिन्दू हैं।
    • ये लोग पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और म्याँमार में निवास करते हैं।
  • ये 1964-65 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत आ गए तथा अरुणाचल प्रदेश में बस गए। 
    कारण:
    • चकमास ने बांग्लादेश के कर्नाफुली (Karnaphuli) नदी पर बनाए गए कैपटाई बाँध (Kaptai dam) के कारण अपनी भूमि खो दी।
    • हाजोंग लोगों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा क्योंकि वे गैर-मुस्लिम थे और बांग्ला भाषा नहीं बोलते थे।
  • 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को उन चकमा और हाजोंग्स को नागरिकता देने का निर्देश दिया, जो 1964-69 के बीच बांग्लादेश से भारत आए थे।
  • ये प्रत्यक्ष रूप से नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) के दायरे में नहीं आए क्योंकि अरुणाचल प्रदेश CAA से छूट प्राप्त राज्यों में से एक है और इसमें बाहरी लोगों के प्रवेश को नियंत्रित करने के लिये इनर लाइन परमिट की व्यवस्था है।
    •  नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने नागरिकता अधिनियम,1955 में संशोधन किया, जिसमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिये भारतीय नागरिकता की अनुमति दी गई, ये दिसंबर 2014 से पहले "धार्मिक उत्पीड़न या" धार्मिक उत्पीड़न के डर" के कारण पड़ोसी मुस्लिम बहुल देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए थे। हालाँकि अधिनियम मुसलमानों को अपवर्जित करता है।
  • यहाँ तक ​​कि ये मूल अप्रवासी नागरिकता की प्रतीक्षा कर रहे हैं, भारत में जन्मे उनके कई वंशज जो जन्म से नागरिकता के लिये पात्र हैं, मतदाता के रूप में नामांकन के लिये संघर्ष कर रहे हैं। शरणार्थियों को वर्ष 2004 में मतदान का अधिकार दिया गया था।
  • स्थानीय लोग चकमा और हाजोंग की अलग-अलग जातीयता के कारण लंबे समय से इनका विरोध कर रहे हैं।
    • यदि चकमा और हाजोंग को अरुणाचल प्रदेश से बाहर कर दिया जाता है, तो इनर-लाइन परमिट के तहत असम (अरुणाचल प्रदेश के अलावा मणिपुर, मिज़ोरम और नगालैंड) तथा छठी अनुसूची क्षेत्रों (मेघालय) द्वारा कवर किये गए राज्यों में सभी अवांछित समुदायों के लिये डंपिंग ग्राउंड होगा।

हम्पी 

(Hampi)

हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने कर्नाटक के विजयनगर ज़िले में स्थित यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल ‘हम्पी’ में विभिन्न स्मारकों का दौरा किया।

Hampi

प्रमुख बिंदु

‘हम्पी’ के विषय में

  • कर्नाटक के विजयनगर ज़िले में स्थित ‘हम्पी’ में मुख्य रूप से प्रसिद्ध हिंदू साम्राज्य- विजयनगर साम्राज्य (14वीं-16वीं शताब्दी) की राजधानी के अवशेष मौजूद हैं।
  • यह मध्य कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले में तुंगभद्रा बेसिन में लगभग 4187.24 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • ‘हम्पी’ के विशिष्ट व मनमोहक परिदृश्य में मुख्य तौर पर तुंगभद्रा नदी, पहाड़ी शृंखलाएँ और व्यापक भौतिक अवशेषों के साथ खुले मैदान शामिल हैं।
  • हम्पी में मंदिरों की एक अनूठी विशेषता स्तंभों वाले मंडपों की कतार से घिरी चौड़ी सड़कें हैं।
  • यहाँ के प्रसिद्ध स्थानों में कृष्ण मंदिर परिसर, नरसिंह, गणेश, हेमकुटा मंदिर समूह, अच्युतराय मंदिर परिसर, विट्ठल मंदिर परिसर, पट्टाभिराम मंदिर परिसर, कमल महल परिसर आदि शामिल हैं।

पृष्ठभूमि

  • ‘हम्पी’ 14वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। हम्पी का पुराना शहर तुंगभद्रा नदी के पास एक समृद्ध और भव्य शहर था, जिसमें कई मंदिर, खेत और व्यापारिक बाज़ार मौजूद थे।
  • मध्यकाल में ‘हम्पी’-विजयनगर, बीजिंग के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मध्ययुगीन शहर था और शायद उस समय भारत का सबसे अमीर शहर था, यही कारण है कि फारस व पुर्तगाल के व्यापारी इससे काफी आकर्षित थे।
  • विजयनगर साम्राज्य सल्तनत के गठबंधन से हार गया; इसकी राजधानी पर 1565 (तालिकोटा की लड़ाई) में सल्तनत सेनाओं ने विजय प्राप्त कर ली और इसे लूट लिया गया तथा नष्ट कर दिया गया, जिसके बाद ‘हम्पी’ खंडहर बन गया।

विजयनगर साम्राज्य

  • विजयनगर या "विजय का शहर" एक शहर और एक साम्राज्य दोनों का नाम था।
  • साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी (1336 ईस्वी) में संगम वंश के हरिहर और बुक्का ने की थी।
    • ‘हम्पी’ को इसकी राजधानी बनाया गया।
  • यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के दूरतम दक्षिण तक फैला हुआ है।
  • विजयनगर साम्राज्य पर चार महत्त्वपूर्ण राजवंशों का शासन था जो इस प्रकार हैं:
    • संगम
    • सुलुव
    • तुलुव
    • अराविदु
  • तुलुव वंश के कृष्णदेवराय (शासनकाल 1509-29) विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। 
  • उन्हें कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण और कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रभावशाली गोपुरम जोड़ने का श्रेय दिया जाता है।
  • उन्होंने तेलुगू में ‘अमुक्तमलयद’ (Amuktamalyada) नामक शासन कला के ग्रंथ की रचना की।

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 अगस्त, 2021

अंतर्राष्ट्रीय दास व्यापार और उसका उन्मूलन स्मरण दिवस

प्रतिवर्ष 23 अगस्त को विश्व भर में ‘अंतर्राष्ट्रीय दास व्यापार और उसका उन्मूलन स्मरण दिवस’ का आयोजन किया जाता है। यूनेस्को के मुताबिक, यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दास व्यापार की त्रासदी से पीड़ित लोगों की याद में आयोजित किया जाता है। विदित हो कि पश्चिमी यूरोप के औपनिवेशिक साम्राज्यों को ट्रान्साटलांटिक दास व्यापार के कारण सबसे अधिक लाभ हुआ था। इस व्यवस्था के तहत दुनिया भर के तमाम हिस्सों, विशेष तौर पर अफ्रीकी देशों से प्राप्त दासों को हैती, कैरिबियाई देशों और विश्व के अन्य हिस्सों में मौजूद औपनिवेशों में अमानवीय परिस्थितियों में कार्य करने के लिये ले जाया गया। हालाँकि यह व्यवस्था लंबे समय तक न चल सकी और जल्द ही लोगों में असंतोष पैदा हो गया। 22-23 अगस्त, 1791 की रात आधुनिक हैती और डोमिनिकन गणराज्य के ‘सैंटो डोमिंगो’ में इसके विरुद्ध पहले विद्रोह की शुरुआत हुई। इस विद्रोह ने ट्रान्साटलांटिक दास व्यापार के उन्मूलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस दिवस को ‘अंतर्राष्ट्रीय दास व्यापार और उसका उन्मूलन स्मरण दिवस’ के रूप में आयोजित किया जाता है। यह दिवस हमें दास व्यापार जैसी त्रासदी के ऐतिहासिक कारणों, परिणामों और तरीकों पर सामूहिक रूप से पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करता है।

‘चंद्रयान-2’ के डेटा विश्लेषण हेतु प्रस्ताव आमंत्रित

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने ‘चंद्रयान-2’ ऑर्बिटर प्रयोगों से प्राप्त डेटा के वैज्ञानिक विश्लेषण हेतु प्रस्ताव आमंत्रित किये हैं। गौरतलब है कि इससे पूर्व भी शोधकर्त्ताओं द्वारा चंद्रमा की सतह पर जल की उपस्थिति का पता लगाने के लिये ‘चंद्रयान-1’ मिशन के माध्यम से चंद्रमा की आकृति, चंद्रमा की सतह संरचना, सतह की आयु का निर्धारण और मैग्मैटिक डेटा का व्यापक पैमाने पर उपयोग किया गया था। इसरो के मुताबिक, इस प्रकार के अध्ययन चंद्रमा की विकास प्रक्रियाओं को बेहतर तरीके से समझने में मदद करते हैं और चंद्रयान-1 के अध्ययन ने भारतीय वैज्ञानिक समुदाय का काफी विस्तार किया है। चंद्रयान-2 ऑर्बिटर वर्तमान में चंद्रमा के चारों ओर 10,000 वर्ग किलोमीटर में एक गोलाकार ध्रुवीय कक्षा में मौजूद है। यह ऑर्बिटर, चंद्रमा की सतह के भूविज्ञान और बहिर्मंडल की संरचना जैसे पहलुओं का अध्ययन करने के लिये अलग-अलग प्रकार के कुल आठ प्रयोग कर रहा है। इसरो का मानना है कि ये अध्ययन पिछले मिशनों की समझ को और अधिक विकसित करने में मददगार साबित हो सकते हैं। यह भारत का चंद्रमा पर दूसरा मिशन है। चंद्रयान-2 भारत द्वारा चंद्रमा की सतह पर उतरने का पहला प्रयास था। सितंबर 2019 में लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह पर ‘हार्ड लैंडिंग’ की। इसका ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में है और इस मिशन की अवधि सात वर्ष है।

अभय कुमार सिंह

हाल ही में आईएएस अधिकारी अभय कुमार सिंह को देश में सहकारिता आंदोलन को मज़बूत करने के उद्देश्य से गठित ‘सहकारिता मंत्रालय’ में संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्त किया गया है। बिहार कैडर के वर्ष 2004 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अभय कुमार सिंह को इस नवनिर्मित पद पर कुल सात वर्ष के कार्यकाल के लिये नियुक्त किया गया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा जुलाई 2021 में 'सहकार से समृद्धि' (सहकारिता के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण को साकार करने और सहकारिता आंदोलन को नई दिशा देने के लिये एक अलग 'सहकारिता मंत्रालय' का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य देश में सहकारिता आंदोलन को मज़बूत करने के लिये एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढाँचा प्रदान करना था। यह मंत्रालय ज़मीनी स्तर तक पहुँच वाले सहकारी समितियों को एक जन आधारित आंदोलन के रूप में मज़बूत करने में मदद करेगा।