प्रिलिम्स फैक्ट्स (25 Jan, 2022)



बेसल स्टेम रोट: कवक

हाल ही में केरल के शोधकर्त्ताओं ने जीनस गनोडर्मा (Genus Ganoderma) से संबंधित कवक की दो नई प्रजातियों की पहचान की है जिनका संबंध नारियल के तने की सड़न रोग से है।

प्रमुख बिंदु

  • बेसल स्टेम रोट के बारे में:
    • दो कवक प्रजातियांँ- गनोडर्मा केरलेंस (Ganoderma keralense) और गनोडर्मा स्यूडोएप्लानेटम (Ganoderma  pseudoapplanatum) हैं।
    • नारियल के मूल तने ( Butt Rot or Basal Stem Rot Of Coconut) को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है: गनोडर्मा विल्ट (आंध्र प्रदेश), अनाबरोगा (कर्नाटक) और तंजावुर विल्ट (तमिलनाडु)।
    • संक्रमण जड़ों से शुरू होता है परंतु इसके लक्षणों में तना और पत्तियों का रंग बदलना व सड़ना शामिल है। बाद के चरणों में फूल एवं नारियल फल समाप्त होना शुरू हो जाता है और अंत में संपूर्ण नारियल (कोकोस न्यूसीफेरा) नष्ट हो जाता है।
    • यह एक लाल भूरे रंग का बहता/रिसता पदार्थ के रूप में दिखाई देता है। इस रिसाव युक्त पदार्थ की उपस्थिति केवल भारत में ही बताई गई है।
    • एक बार संक्रमित होने के बाद पौधों के ठीक होने की संभावना नहीं होती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इससे भारी नुकसान होता है, भारत में वर्ष 2017 में किये गए कुछ अनुमानों के अनुसार कहा जाता है कि लगभग 12 मिलियन लोग नारियल की खेती पर निर्भर हैं।
    • संक्रमण का एक अन्य संकेत शेल्फ जैसी "बेसिडिओमाटा (basidiomata)" की उपस्थिति है, जो पेड़ के तने पर कवक  के फलने या प्रजनन करने वाली संरचनाएँ हैं।
  • कवक:
    • कवक एकल कोशिका या बहु जटिल बहुकोशिकीय जीव हो सकते हैं।
    • वे लगभग किसी भी आवास में पाए जाते हैं लेकिन ज़्यादातर जमीन पर रहते हैं, मुख्य रूप से समुद्र या मीठे पानी के बजाय मिट्टी या पौधों पर पाए जाते है।
    • अपघटक नामक समूह मृदा में या मृत पौधों के पदार्थ पर उगता है, जहाँ वे कार्बन और अन्य तत्वों के चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • कुछ पौधों के परजीवी फफूंदी, स्कैब, पपड़ी जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं।
    • बहुत कम संख्या में कवक जानवरों में बीमारियों का कारण बनते हैं। मनुष्यों में इनमें एथलीट फुट, दाद और थ्रश जैसे त्वचा रोग शामिल हैं।

स्रोत- द हिंदू


सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार

गुजरात आपदा प्रबंधन संस्थान (GIDM) और सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विनोद शर्मा को आपदा प्रबंधन में उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष 2022 के सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार हेतु चुना गया है। 

  • GIDM की स्थापना वर्ष 2012 में हुई थी और तब से यह गुजरात की आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) क्षमता को बढ़ाने के लिये काम कर रहा है।
  • प्रोफेसर विनोद शर्मा ने DRR को राष्ट्रीय एजेंडे में आगे लाने की दिशा में अथक प्रयास किया है।

प्रमुख बिंदु

  • पुरस्कार के बारे में:
    • केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा प्रदान किये गए अमूल्य योगदान और निस्वार्थ सेवा को पहचानने तथा सम्मानित करने के लिये वार्षिक पुरस्कार सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार की स्थापना की है।
    • इस पुरस्कार की घोषणा हर वर्ष 23 जनवरी को स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर की जाती है।
    • इस पुरस्कार में एक संस्थान के मामले में 51 लाख रुपए नकद और प्रमाण पत्र व एक व्यक्ति के मामले में 5 लाख रुपए तथा प्रमाण पत्र दिया जाता है।
  • आपदा ज़ोखिम प्रबंधन:
    • आपदा ज़ोखिम प्रबंधन का तात्पर्य प्राकृतिक खतरों और संबंधित पर्यावरणीय एवं तकनीकी आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिये समाज व समुदाय की नीतियों, रणनीतियों एवं इसके कार्यान्वयन की क्षमताओं को लागू करने हेतु प्रशासनिक निर्णयों, संगठन, परिचालन कौशल व क्षमताओं का उपयोग करने की व्यवस्थित प्रक्रिया से है।
    • इनमें खतरों के प्रतिकूल प्रभावों से बचने (रोकथाम) या सीमित (शमन और तैयारी) करने हेतु संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपायों सहित सभी प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • आपदा प्रबंधन में गतिविधियों के तीन प्रमुख चरण हैं:
      • आपदा पूर्व: इस चरण में खतरों के कारण मानव, सामग्री, या पर्यावरणीय नुकसान की संभावना को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि आपदा आने पर इन नुकसानों को कम-से-कम करने हेतु उपाय शामिल हैं।
      • आपदा के दौरान: इस चरण में कई प्राथमिक क्रियाकलाप अनिवार्य हो जाते हैं। इसमें निकासी, खोज, बचाव और उसके बाद की बुनियादी आवश्यकता (भोजन, वस्त्र, आश्रय स्थल व दवाईयाँ) प्रभावित समुदाय के सामान्य जीवन के लिये जरूरी हैं।
      • आपदा के बाद: इसमें शीघ्र समाधान प्राप्त करने और सुभेद्यता तथा भावी जोखिम कम करने के लिये प्रयास शामिल हैं।
    • आपदा प्रबंधन के विभिन्न चरणों को नीचे दिये गए आपदा चक्र आरेख में दर्शाया गया है।

Disaster-Risk

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 जनवरी, 2022

राष्ट्रीय मतदाता दिवस

देश के मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु हर वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष इस दिवस का 12वाँ संस्करण मनाया जा रहा है। इस वर्ष के राष्ट्रीय मतदाता दिवस की थीम, 'चुनावों को समावेशी, सुगम और सहभागी बनाना', चुनाव के दौरान मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी को सुविधाजनक बनाने तथा सभी श्रेणियों के मतदाताओं के लिये पूरी प्रक्रिया को सरल व एक यादगार अनुभव बनाने के लिये भारत निर्वाचन आयोग की प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करती है। भारत निर्वाचन आयोग का गठन 25 जनवरी, 1950 को हुआ था। भारत सरकार ने राजनीतिक प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये निर्वाचन आयोग के स्थापना दिवस पर '25 जनवरी' को वर्ष 2011 से 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। 'राष्‍ट्रीय मतदाता दि‍वस' मनाए जाने के पीछे निर्वाचन आयोग का उद्देश्‍य अधि‍क मतदाता, वि‍शेष रूप से नए मतदाता बनाना है। इस दि‍वस पर मतदान प्रक्रि‍या में मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु जागरूकता का प्रसार कि‍या जाता है। मतदान का उच्च प्रतिशत जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है। जबकि मतदान का निम्न प्रतिशत राजनीतिक उदासीन समाज की ओर इशारा करता है। वस्तुतः देश में मौजूद विघटनकारी तत्त्व अक्सर ऐसी स्थिति का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं जिससे न केवल लोकतंत्र के अस्तित्व के लिये खतरा पैदा होता है बल्कि इससे देश की समस्त राजनैतिक व्यवस्था भी उथल-पुथल होने की आशंका उत्पन्न हो जाती है।   

स्पष्ट है कि राष्ट्रीय मतदाता दिवस का आयोजन करना, नए मतदाताओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उठाए गए विभिन्न प्रयासों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।

आर. नागास्वामी

पुरातत्व विभाग के पहले निदेशक आर. नागास्वामी का 23 जनवरी, 2022 को उम्र संबंधी जटिलताओं के कारण निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। पुरातत्व, वास्तुकला, पुरालेख, मुद्राशास्त्र, प्रतिमा विज्ञान, दक्षिण भारतीय कांस्य और मंदिर अनुष्ठानों से संबंधित नागास्वामी ने COVID-19 महामारी के दौरान तमिलनाडु में मंदिरों को बंद करने के विचार का समर्थन किया था। नागास्वामी का जन्म इरोड ज़िले के कोडुमुडी में हुआ था। उन्हें तमिल और संस्कृत का गहरा ज्ञान था। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से भारतीय कला विषय पर पी.एच.डी. की। विभिन्न क्षमताओं के साथ पुरातत्व विभाग की सेवा करने के बाद वह वर्ष 1966 में इसके निदेशक बने और वर्ष 1988 में अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर रहे। उन्होंने वर्ष 1983 में एक किताब ‘मास्टरपीस ऑफ अर्ली साउथ इंडियन ब्रोंजेस’ लिखी और विश्व शास्त्रीय तमिल सम्मेलन को चिह्नित करने के लिये तमिलनाडु सरकार हेतु एक पुस्तक का संकलन किया। उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण पुस्तकें माम्मलपुरम से संबंधित हैं, जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, उत्तरमेरुर और गंगईकोंडचोलपुरम द्वारा प्रकाशित हैं। उन्होंने तमिल में भी किताबें प्रकाशित की थीं।

 20वाँ ढाका अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

ढाका में 20वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में पी.एस विनोदराज निर्देशित फिल्म ‘कूझंगल फ्रॉम इंडिया’ ने एशियाई फिल्म प्रतियोगिता खंड में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीता। इसके अलावा फिल्मों के लिये दिये गए 17 पुरस्कारों में चार और भारतीय प्रविष्टियाँ भी शामिल थीं। जयसूर्या को रंजीत शंकर निर्देशित फिल्म सनी के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक इंद्रनील रॉयचौधरी और सुगाता सिन्‍हा को भारत-बांग्लादेश फिल्म मायर जोंजाल हेतु तथा विशेष दर्शक पुरस्कार एमी बरुआ निर्देशित फिल्म सेमखोर को दिया गया। नेपाल से सुजीत बिदारी निर्देशित फिल्म ‘आईना झ्याल’ को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। बांग्लादेश के सूचना और प्रसारण मंत्री हसन महमूद ने ढाका में राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में आयोजित एक समारोह में पुरस्कार प्रदान किये। ढाका अंतर्राष्ट्रीय फिल्‍म समारोह में 70 देशों की 225 फिल्में प्रदर्शित की गईं।