प्रारंभिक परीक्षा
‘ओलिव रिडले’ कछुए
'भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण’ (ZSI) के शोधकर्त्ता तीन स्थानों- गहिरमाथा, देवी नदी के मुहाने और रुशिकुल्या में ‘ओलिव रिडले’ कछुओं की टैगिंग कर रहे हैं।
- लगभग 25 वर्षों की अवधि के बाद जनवरी 2021 में ओडिशा में यह अभ्यास किया गया था और 1,556 कछुओं को टैग किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- टैगिंग और उसका महत्त्व
- कछुओं पर लगे धातु के टैग गैर-संक्षारक होते हैं, जिन्हें बाद में हटाया जा सकता है और वे कछुओं के शरीर को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।
- ये टैग विशिष्ट रूप से क्रमांकित होते हैं, जिनमें संगठन का नाम, देश-कोड और ईमेल पता जैसे विवरण शामिल होते हैं।
- यदि अन्य देशों के शोधकर्त्ताओं को टैग किये गए कछुओं का पता चलता है, तो वे भारत में शोधकर्त्ताओं को देशांतर और अक्षांश में अपना स्थान ईमेल करेंगे। इस प्रकार यह कछुओं पर काम करने वाला एक स्थापित नेटवर्क है।
- यह उन्हें प्रवासन पथ और समुद्री सरीसृपों द्वारा मण्डली व घोंसले के शिकार के बाद जाने वाले स्थानों की पहचान करने में मदद करेगा।
- ओलिव रिडले कछुए
- परिचय
- ओलिव रिडले कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और सबसे अधिक हैं।
- ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनका पृष्ठवर्म ओलिव रंग (Olive Colored Carapace) का होता है जिसके आधार पर इनका यह नाम पड़ा है।
- ये कछुए अपने अद्वितीय सामूहिक घोंसले (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज़्यादा जाने जाते हैं, अंडे देने के लिये हज़ारों मादाएँ एक ही समुद्र तट पर एक साथ यहाँ आती हैं।
- पर्यावास:
- ये मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म पानी में पाए जाते हैं।
- ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य को विश्व में समुद्री कछुओं के सबसे बड़े प्रजनन स्थल के रूप में जाना जाता है।
- परिचय
- संरक्षण की स्थिति:
- आईयूसीएन रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- 1
- संकट:
- समुद्री प्रदूषण और अपशिष्ट।
- मानव उपभोग: इन कछुओं के मांस, खाल, चमड़े और अंडे के लिये इनका शिकार किया जाता है।
- प्लास्टिक कचरा: पर्यटकों और मछली पकड़ने वाले श्रमिकों द्वारा फेंके गए प्लास्टिक, मछली पकड़ने हेतु फेंके गए जाल, पॉलिथीन और अन्य कचरों का लगातार बढ़ता मलबा।
- फिशिंग ट्रॉलर: ट्रॉलर के उपयोग से समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन अक्सर समुद्री अभयारण्य के भीतर 20 किलोमीटर की दूरी तक मछली नहीं पकड़ने के नियम का उल्लंघन करता है।
- कई मृत कछुओं पर चोट के निशान पाए गए थे जो यह संकेत देते हैं कि वे ट्रॉलर या गिल जाल में फँस गए होंगे।
- ओलिव रिडले कछुओं के संरक्षण की पहल
- ऑपरेशन ओलिविया:
- प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले भारतीय तटरक्षक बल का "ऑपरेशन ओलिविया" 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, यह ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने में मदद करता है क्योंकि वे नवंबर से दिसंबर तक प्रजनन और घोंसले बनाने के लिये ओडिशा तट पर एकत्र होते हैं।
- यह अवैध ट्रैपिंग गतिविधियों को भी रोकता है।
- प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले भारतीय तटरक्षक बल का "ऑपरेशन ओलिविया" 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, यह ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने में मदद करता है क्योंकि वे नवंबर से दिसंबर तक प्रजनन और घोंसले बनाने के लिये ओडिशा तट पर एकत्र होते हैं।
- टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेस (TED) का अनिवार्य उपयोग:
- भारत में इनकी आकस्मिक मौत की घटनाओं को कम करने के लिये ओडिशा सरकार ने ट्रॉल के लिये टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेस (Turtle Excluder Devices- TED) का उपयोग अनिवार्य कर दिया है, जालों को विशेष रूप से एक निकास कवर के साथ बनाया गया है जो कछुओं के जाल में फँसने के दौरान उन्हें भागने में सहायता करता है।
- ऑपरेशन ओलिविया:
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI)
- भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI), पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1916 में की गई थी।
- समृद्ध जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने हेतु यह अग्रणी संसाधनों के सर्वेक्षण और अन्वेषण के लिये एक राष्ट्रीय केंद्र है।
- इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा वर्तमान में इसके 16 क्षेत्रीय स्टेशन देश के विभिन्न भौगोलिक स्थानों में स्थित हैं।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 दिसंबर, 2021
आर्मी सिक्योर इंडिजिनियस मैसेजिंग एप्लीकेशन
भारतीय सेना ने एक आधुनिक मैसेजिंग एप्लीकेशन- ‘आर्मी सिक्योर इंडिजिनियस मैसेजिंग एप्लीकेशन’ (ASIGMA) का शुभारंभ किया है। यह नई पीढ़ी का आधुनिक वेब आधारित एप्लीकेशन है। इसे सेना के सिग्नल्स कोर के अधिकारियों के समूह द्वारा विकसित किया गया है। इसे पिछले 15 वर्ष से कार्यरत ‘आर्मी वाइड एरिया नेटवर्क मेसेजिंग’ (AWAN) एप्लीकेशन के स्थान पर सेना के आंतरिक नेटवर्क पर लगाया जा रहा है। यह वेब एप्लीकेशन एक नई पीढ़ी, अत्याधुनिक, वेब-आधारित एप्लीकेशन है। इस एप्लीकेशन में कई प्रकार की अत्याधुनिक विशेषताएँ हैं, जिनमें बहु-स्तरीय सुरक्षा, संदेश प्राथमिकता और ट्रैकिंग, गतिशील वैश्विक पता पुस्तिका और सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विभिन्न विकल्प शामिल हैं। भविष्य हेतु तैयार यह मैसेजिंग एप्लीकेशन सेना के रीयल-टाइम डेटा ट्रांसफर और मैसेजिंग आवश्यकताओं को पूरा करेगी, यह विशेष रूप से वर्तमान भू-राजनीतिक सुरक्षा वातावरण की पृष्ठभूमि में और साथ ही भारत सरकार की मेक इन इंडिया पहल के अनुरूप है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस
देश में उपभोक्ताओं के महत्त्व, उनके अधिकारों और दायित्त्वों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। भारत की एक बड़ी आबादी अशिक्षित है, जो अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति अनभिज्ञ है, लेकिन उपभोक्ता अधिकारों के मामले में शिक्षित लोग भी अपने अधिकारों के प्रति उदासीन नज़र आते हैं। इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये प्रतिवर्ष इस दिवस का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1986 में इसी दिन राष्ट्रपति ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को मंज़ूरी दी थी। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के शोषण जैसे- दोषयुक्त सामान, असंतोषजनक सेवाओं और अनुचित व्यापार प्रथाओं के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना है। वर्ष 2020 के लिये इस दिवस की थीम ‘सतत् उपभोक्ता’ है। यह थीम वैश्विक स्वास्थ्य संकट, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान आदि से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है। ज्ञात हो कि वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस का आयोजन किया जाता है।
सिल्वरलाइन परियोजना
केरल की सिल्वरलाइन परियोजना के खिलाफ राज्य भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जा रहे हैं, यह एक सेमी हाई-स्पीड रेलवे परियोजना है जिसमें राज्य के उत्तरी और दक्षिणी छोर के बीच 200 किमी/घंटे की रफ्तार से चलने वाली ट्रेनों के संचालन की परिकल्पना की गई है। केरल सरकार द्वारा चलाई जा रही 63,940 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना को सबसे बड़ी बुनियादी अवसंरचना योजनाओं में से एक के रूप में चिह्नित किया गया है। इस परियोजना के तहत 11 स्टेशनों के माध्यम से 11 राज्यों के 11 ज़िलों को कवर किया जाना है। परियोजना के पूरा होने पर कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक के सफ़र को मात्र 4 घंटों में पूरा किया जा सकेगा, जबकि वर्तमान में भारतीय रेलवे के माध्यम से इस सफर को तय करने में कुल 12 घंटे से अधिक समय लगता है। इस परियोजना को ‘केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (KRDCL) द्वारा वर्ष 2025 तक पूरा किया जाएगा। हालाँकि कई राजनीतिक समूहों द्वारा यह तर्क देते हुए इस परियोजना का विरोध किया जा रहा है कि यह परियोजना आर्थिक रूप से पूर्णतः अलाभकारी है और इसके कारण लगभग 30000 परिवारों को विस्थापन का सामना करना पड़ेगा, साथ ही इस परियोजना के कारण वृक्षों के नुकसान का भी सामना करना पड़ेगा।