प्रीलिम्स फैक्ट्स: 24 फरवरी, 2020
स्वर्ण भंडार
Gold Deposits
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) ने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में लगभग 160 किलोग्राम स्वर्ण भंडार की खोज की है।
मुख्य बिंदु:
- विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council) के अनुसार, भारत में 600 टन से अधिक का स्वर्ण भंडार है, जो दुनिया में 10वाँ सबसे बड़ा भंडार है।
- सोने का वज़न ट्रॉय औंस (Troy Ounces) में मापा जाता है (1 ट्रॉय औंस = 31.1034768 ग्राम), हालाँकि इसकी शुद्धता को कैरेट (Carats) में मापा जाता है। 24 कैरेट सोने को शुद्ध सोना कहा जाता है जिसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं होती है।
सोनभद्र:
- लखीमपुर खीरी के बाद सोनभद्र उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा ज़िला (क्षेत्रफल में) है। यह देश का एकमात्र ज़िला है जो चार राज्यों के साथ सीमा साझा करता है।
- इसके पश्चिम में मध्य प्रदेश, दक्षिण में छत्तीसगढ़, दक्षिण-पूर्व में झारखंड और पूर्व में बिहार राज्य है।
- सोनभद्र ज़िला एक औद्योगिक क्षेत्र है और यहाँ कई खनिजों के भंडार जैसे- बॉक्साइट, चूना पत्थर, कोयला, सोना आदि हैं।
- यह बेलन और कर्मनाशा नदियों सहित गंगा की सहायक नदियों का अपवाह क्षेत्र है। इस जिले से होकर सोन नदी पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।
- रिहंद नदी का उद्गम छत्तीसगढ़ राज्य के सर्गुजा ज़िले की उच्च भूमि से होता है और यह उत्तर की ओर बहकर सोनभद्र में सोन नदी से मिलती है।
- रिहंद नदी पर स्थित गोविंद बल्लभ पंत सागर (जिसे रिहंद बांध के नाम से भी जाना जाता है) एक जलाशय है जो आंशिक रूप से सोनभद्र ज़िले में और आंशिक रूप से मध्य प्रदेश में स्थित है।
- कैमूर वन्यजीव अभयारण्य: कैमूर वन्यजीव अभयारण्य (Kaimoor Wildlife Sanctuary) का अधिकांश हिस्सा सोनभद्र ज़िले में आता है जो सोन नदी के पूर्वी छोर पर सामान्यतः कैमूर रेंज के साथ पूर्व से पश्चिम तक फैला है।
- गुफा चित्रकला: सोनभद्र विंध्य क्षेत्र में पाए जाने वाले कई गुफा चित्रकला स्थलों के लिये जाना जाता है।
- लखानिया गुफाएँ कैमूर पर्वतमाला में स्थित हैं और अपने सुंदर चिरनूतन शैल चित्रों के लिये जानी जाती हैं। ये ऐतिहासिक पेंटिंग लगभग 4000 वर्ष पुरानी हैं।
- खोडवा पहार (Khodwa Pahar) या घोरमंगर (Ghoramangar) यहाँ एक और प्रसिद्ध प्राचीन गुफा चित्रकला स्थल है।
हैबिटेबल ज़ोन प्लैनेट फाइंडर
Habitable-Zone Planet Finder
हैबिटेबल ज़ोन प्लैनेट फाइंडर (Habitable-zone Planet Finder- HPF) ने G9-40b नामक अपने पहले ग्रह (एक्सोप्लैनेट- Exoplanet) होने की पुष्टि की है जो 6 दिनों (1 दिन = 24 घंटा) की कक्षीय अवधि में कम द्रव्यमान वाले चमकीले तारे एम-ड्वार्फ (M-dwarf) की परिक्रमा करता है जो कि पृथ्वी से 100 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है।
- इससे पहले नासा के केपलर मिशन (Kepler Mission) ने मेजबान तारे के प्रकाश का पता लगाया था और यह बताया था कि ग्रह अपनी कक्षा में परिक्रमण के दौरान तारे के सामने से होकर गुज़रता है। HPF द्वारा एक्सोप्लैनेट की पुष्टि करने के लिये इस जानकारी का इस्तेमाल किया गया।
G 9-40b:
- G 9-40b शीर्ष 20 निकटतम पारगमन ग्रहों में से एक है।
हैबिटेबल ज़ोन प्लैनेट फाइंडर:
- HPF एक खगोलीय स्पेक्ट्रोग्राफ है जिसे पेन स्टेट यूनिवर्सिटी (Penn State University) के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया है और यह हाल ही में अमेरिका में स्थित मैकडॉनल्ड ऑब्ज़र्वेटरी में हॉबी-एबरली टेलीस्कोप (Hobby-Eberly Telescope) पर स्थापित किया गया है।
- HPF डाॅप्लर प्रभाव (Doppler Effect) का उपयोग करके एक्सोप्लैनेट की खोज करता है।
डाॅप्लर प्रभाव (Doppler Effect):
- जब किसी ध्वनि स्रोत और श्रोता के बीच आपेक्षिक गति होती है तो श्रोता को जो ध्वनि सुनाई पड़ती है उसकी आवृत्ति मूल आवृत्ति से कम या अधिक होती है। इसी को डॉप्लर प्रभाव (Doppler effect) कहते हैं।
- यही प्रभाव प्रकाश स्रोत और प्रेक्षक के बीच आपेक्षिक गति के कारण भी होता है, जिसमे प्रेक्षक को प्रकाश की आवृत्ति में परिवर्तन का अनुभव नही होता है क्योंकि प्रकाश की गति की तुलना में उन दोनों की आपेक्षिक गति बहुत ही कम होती है।
स्पेक्ट्रोग्राफ:
- स्पेक्ट्रोग्राफ एक ऐसा उपकरण है जो प्रकाश को उसके घटक तरंग दैर्ध्य में विभाजित करता है। वैज्ञानिक स्पेक्ट्रम के एक विशिष्ट हिस्से पर प्रकाश के गुणों को मापते हैं और प्राप्त परिणामों का विश्लेषण करते हैं।
- HPF आस-पास के कम-द्रव्यमान वाले तारों से आ रही अवरक्त किरणों के संकेतों की स्पष्ट माप प्रदान करता है।
- HPF को वासयोग्य क्षेत्र (Habitable-Zone) में ग्रहों का पता लगाने और उन्हें चिह्नित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जिसे गोल्डीलॉक्स ज़ोन के रूप में भी जाना जाता है। यह तारे के आसपास का क्षेत्र है जहाँ किसी ग्रह पर जल की उपस्थिति का पता लगा है।
- HPF वर्तमान में निकटतम कम-द्रव्यमान वाले तारों का सर्वेक्षण कर रहा है जिन्हें एम-ड्वार्फ भी कहा जाता है।
एक्सोप्लैनेट (Exoplanet):
- एक एक्सोप्लैनेट या एक्स्ट्रासोलर ग्रह सौरमंडल के बाहर का ग्रह है। एक्सोप्लैनेट की पुष्टि पहली बार वर्ष 1992 में हुई।
- एक्सोप्लैनेट को दूरबीन से देखना बहुत कठिन है। ये उन तारों की तेज़ चमक के कारण दिखाई नहीं देते हैं जिनकी वे परिक्रमा करते हैं। इसलिये खगोलविदों ने एक्सोप्लैनेट का पता लगाने और अध्ययन करने के लिये अन्य तरीकों का उपयोग किया है जैसे कि इन ग्रहों का उन तारों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करके।
नई एंटीबायोटिक
New Antibiotic
कनाडा के मैकमास्टर विश्वविद्यालय (McMaster University) में वैज्ञानिकों द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं का एक नया समूह खोजा गया जो प्रतिसूक्ष्मजीवी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) से निपटने में सहायक हो सकता है।
मुख्य बिंदु:
- कॉर्बोमाइसिन और कॉम्पलेस्टिन बैक्टीरियल वाल (Bacterial Wall) को क्षतिग्रस्त होने से बचाने का काम करते हैं इस प्रकार बैक्टीरियल कोशिकाओं का विभाजन रोका जाता है।
- बैक्टीरियल वाल- बैक्टीरिया की कोशिकाओं के बाहर चारों ओर एक दीवार होती है जो उन्हें आकार देती है और शक्ति का स्रोत होती है।
- वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह पेनिसिलिन जैसे पुराने एंटीबायोटिक्स के विपरीत काम करती है जो बैक्टीरियल वाल को पहले ही स्थान पर बनने से रोककर बैक्टीरिया को मारती है।
शोध से संबंधित जानकारी:
- अपने शोध के लिये वैज्ञानिकों ने ग्लाइकोपेप्टाइड्स (Glycopeptides) नामक एंटीबायोटिक दवाओं के एक वर्ग का अध्ययन किया जो मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया द्वारा निर्मित होते हैं।
- सेल इमेजिंग तकनीक (Cell Imaging Technique) का उपयोग करके वैज्ञानिकों ने पाया कि एंटीबायोटिक्स बैक्टीरियल सेल वाल (Bacterial Cell Wall) पर हमला करने के बाद कार्य करते हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने बताया कि ये एंटीबायोटिक्स (स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus Aureus)) चूहों में संक्रमण को रोकने में सक्षम हैं।
- स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus Aureus) दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया का एक वर्ग है। बैक्टीरिया के इस वर्ग को गंभीर संक्रमण का कारक माना जाता है।
प्रतिसूक्ष्मजीवी प्रतिरोध
(Antimicrobial Resistance- AMR):
- AMR एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मनुष्यों, जानवरों और जलीय कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग AMR में योगदान देता है। इसके अलावा इस समस्या का कारण खेतों, कारखानों, मेडिकल एवं घरेलू अपशिष्टों का खराब प्रबंधन है।
- 26 जुलाई, 2019 को AMR का प्रबंधन करने हेतु एक कार्ययोजना विकसित करने में केरल के बाद मध्य प्रदेश भारत का दूसरा राज्य बन गया।
- AMR से निपटने के तरीकों का पता लगाने के लिये 10 अफ्रीकी देशों के विशेषज्ञों ने 22-24 जनवरी, 2020 को ज़ाम्बिया के लुसाका में मुलाकात की।
गौरतलब है कि एंटीबायोटिक दवाओं के नए वर्ग की खोज से संबंधित अध्ययन का निष्कर्ष 12 फरवरी, 2020 को ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
कवाल टाइगर रिज़र्व
Kawal Tiger Reserve
कवाल टाइगर रिज़र्व (Kawal Tiger Reserve) भारत के तेलंगाना राज्य में मनचेरियल ज़िला (पुराना नाम आदिलाबाद ज़िला) के जन्नाराम मंडल में स्थित है।
मुख्य बिंदु:
- यह सह्याद्रि पहाड़ियों से लेकर महाराष्ट्र के ताडोबा वन तक 893 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
- यह अभयारण्य गोदावरी और कदम नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में है जो अभयारण्य के दक्षिण में बहती हैं।
- कवाल टाइगर रिज़र्व की स्थापना वर्ष 1965 में हुई थी और इसे वर्ष 1999 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत ‘संरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया गया था। भारत सरकार ने वर्ष 2012 में कवाल वन्यजीव अभयारण्य को टाइगर रिज़र्व घोषित किया था।
वनस्पति:
- यह अभयारण्य सागौन वनों के लिये प्रसिद्ध है। शुष्क पर्णपाती सागौन वनों के अलावा यहाँ बाँस, टर्मिनलिया (Terminalia), पेरोकार्पस (Pterocarpus), एनोगाइसिस (Anogeisus) और कैसियास (Cassias) के भी वृक्ष पाए जाते हैं।
जीव-जंतु:
- यहाँ पाए जाने वाली स्तनधारी प्रजातियों में बाघ, तेंदुआ, गौर, चीतल, सांभर, नीलगाय, बार्किंग डियर और स्लॉथ बियर आदि शामिल हैं।
मलई महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य
Malai Mahadeshwara Wildlife Sanctuary
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) मलई महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य (Malai Mahadeshwara Wildlife Sanctuary) को टाइगर रिज़र्व घोषित कर सकता है।
मुख्य बिंदु:
- मलई महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य या माले महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य भारत के कर्नाटक राज्य में पूर्वी घाट का एक संरक्षित वन्यजीव अभयारण्य है।
- इस वन्यजीव अभयारण्य का नाम इस अभयारण्य में स्थित प्रसिद्ध मलई महादेश्वरा हिल्स मंदिर के प्रमुख देवता ‘भगवान माले महादेश्वर’ के नाम पर रखा गया है।
- इस अभयारण्य को वर्ष 2013 में स्थापित किया गया था। इसका क्षेत्रफल 906.187 वर्ग किलोमीटर है।
- इस अभयारण्य के उत्तर-पूर्व में कावेरी वन्यजीव अभयारण्य (कर्नाटक), दक्षिण में सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व (तमिलनाडु) और पश्चिम में बिलिगिरिरंगास्वामी मंदिर टाइगर रिज़र्व (कर्नाटक) स्थित है।
- यह अभयारण्य बाघों का निवास स्थान है जो कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु राज्यों के त्रि-जंक्शन के बहुत करीब स्थित है।