प्रारंभिक परीक्षा
श्री अरबिंदो
हाल ही में प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2022 को आध्यात्मिक नेता श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती को चिह्नित करने के लिये 53 सदस्यीय समिति का गठन किया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से पृथ्वी पर दिव्य जीवन के दर्शन को प्रतिपादित किया।
- 5 दिसंबर, 1950 को पांडिचेरी में उनका निधन हो गया।
- अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से पृथ्वी पर दिव्य जीवन के दर्शन को प्रतिपादित किया।
- शिक्षा:
- उनकी शिक्षा दार्जिलिंग के एक क्रिश्चियन कॉन्वेंट स्कूल में शुरू हुई।
- उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ वे दो शास्त्रीय और कई आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में कुशल हो गए।
- वर्ष 1892 में उन्होंने बड़ौदा (वडोदरा) और कलकत्ता (कोलकाता) में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया।
- उन्होंने शास्त्रीय संस्कृत सहित योग और भारतीय भाषाओं का अध्ययन शुरू किया।
- भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन:
- वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने भारत को अंग्रेज़ों से मुक्त कराने हेतु संघर्ष में भाग लिया। उनकी राजनीतिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप उन्हें वर्ष 1908 (अलीपुर बम कांड) में कैद कर लिया गया था।
- दो साल बाद वह ब्रिटिश भारत से भाग गए और पांडिचेरी (पुद्दुचेरी) के फ्राँसीसी उपनिवेश में शरण ली, जहाँ उन्होंने अपने पूरे जीवन को एक पूर्ण और आध्यात्मिक रूप से परिवर्तित जीवन के उद्देश्य से अपने "अभिन्न" योग के विकास के हेतु समर्पित कर दिया।
- आध्यात्मिक यात्रा:
- पांडिचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के एक समुदाय की स्थापना की, जिसने वर्ष 1926 में श्री अरबिंदो आश्रम के रूप में आकार लिया।
- उनका मानना था कि पदार्थ, जीवन और मन के मूल सिद्धांतों को स्थलीय विकास के माध्यम से सुपरमाइंड के सिद्धांत द्वारा अनंत और परिमित दो क्षेत्रों के बीच एक मध्यवर्ती शक्ति के रूप में सफल किया जाएगा।
- साहित्यिक कार्य:
- बंदे मातरम नामक एक अंग्रेज़ी अखबार (वर्ष 1905 में)।
- योग के आधार।
- भगवतगीता और उसका संदेश।
- मनुष्य का भविष्य विकास।
- पुनर्जन्म और कर्म।
- सावित्री: एक किंवदंती और एक प्रतीक।
- आवर ऑफ गॉड।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
'चिल्लाई कलां'
40 दिनों की सबसे कठोर सर्दियों की अवधि में से एक, जिसे ‘चिल्ले/चिल्लाई कलां' (Chillai Kalan) कहा जाता है, कश्मीर में शुरू हो गई है।
प्रमुख बिंदु
- चिल्लाई कलां के बारे में:
- यह हर साल 21 दिसंबर से 29 जनवरी तक कश्मीर में सबसे कठोर सर्दियों की अवधि होती है।
- ‘चिल्लाई कलां' एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है 'बड़ी सर्दी'।
- चिल्लाई कलां के बाद 20 दिन की लंबी चिल्लाई खुर्द (छोटी सर्दी) होती है जो 30 जनवरी से 18 (Chillai Baccha) तक होती है और इसके बाद 10 दिनों तक चलने वाली चिल्लाई बच्चा (बेबी कोल्ड) अवधि जो 19 फरवरी से 28 फरवरी तक होती है।
- 40 दिनों की अवधि कश्मीरियों के लिये बहुत कठिनाइयाँ लेकर आती है क्योंकि इस दौरान तापमान में भारी गिरावट आती है, जिससे यहाँ की प्रसिद्ध डल झील सहित जलाशय जम जाते हैं।
- इन 40 दिनों के दौरान बर्फबारी की संभावना सबसे अधिक होती है और तापमान में काफी गिरावट आती है। घाटी में न्यूनतम तापमान हिमांक बिंदु से नीचे बना होता है।
- कश्मीरियों के दैनिक जीवन पर प्रभाव:
- फेरन (कश्मीरी पोशाक) और कांगेर (Kanger) नामक पारंपरिक फायरिंग पॉट का उपयोग बढ़ जाता है।
- तापमान शून्य से नीचे होने के कारण इस दौरान नल की पाइपलाइन में पानी आंशिक रूप से जम जाता है और विश्व प्रसिद्ध डल झील भी जम जाती है।
- कश्मीरी हरिसा (Harissa) के साथ जश्न मनाते हैं जो चावल में मिश्रित सौंफ, इलायची, लौंग एवं नमक जैसे मसालों के स्वाद के साथ पतले मटन से बना पकवान होता है।
- इसके अलावा वे अक्सर सूखी सब्जियों का सेवन करते हैं क्योंकि भारी बर्फबारी के बाद सड़कों के अवरुद्ध होने के कारण ताज़ा सब्जियों की आपूर्ति में कमी आती है।