प्रारंभिक परीक्षा
पैन-ट्रांसक्रिप्टोम
हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता क्रूज़ के शोधकर्त्ताओं ने एक "पैन-ट्रांसक्रिप्टोम" का प्रस्ताव दिया है जो एक ट्रांसक्रिप्टोम और एक पैन-जीनोम को जोड़ता है।
- मानचित्रण ट्रांसक्रिप्टोम (RNA अणुओं का पूरा सेट) शोधकर्त्ताओं को किसी व्यक्ति की जीन अभिव्यक्ति को बेहतर ढंग से समझने की अनुमति देता है।
पैन-ट्रांसक्रिप्टोम:
- पैन-ट्रांसक्रिप्टोम एक संदर्भ है जिसमें केवल एक रैखिक स्ट्रैंड के बजाय विविध व्यक्तियों के एक समूह से आनुवंशिक सामग्री शामिल होती है।
- पैन-ट्रांसक्रिप्टोम जीनोमिक्स क्षेत्र में "पैन-जीनोमिक्स" की उभरती अवधारणा पर आधारित है।
- आमतौर पर भिन्नता के लिये किसी व्यक्ति के जीनोमिक डेटा का मूल्यांकन करते समय वैज्ञानिक उस व्यक्ति के जीनोम की तुलना DNA बेस के एकल रैखिक स्ट्रैंड से करते हैं।
- एक "पैन-ट्रांसक्रिप्टोम" एक ट्रांसक्रिप्टोम और एक पैन-जीनोम का एक संयोजन है।
- ट्रांसक्रिप्टोम:
- पैन-जीनोम:
- पैन-जीनोम एक ऐसा संदर्भ है जिसमें केवल एक रैखिक स्ट्रैंड के बजाय व्यक्तियों के एक विविध समूहों की आनुवंशिक सामग्री होती है।
- एक पैन-जीनोम का उपयोग करने से शोधकर्ताओं को एक व्यक्ति के जीनोम की तुलना संदर्भ अनुक्रमों के आनुवंशिक रूप से विविध समूह से करने की अनुमति मिलती है, जो जैव-भौगोलिक वंश की विविधता का प्रतिनिधित्त्व करने वाले व्यक्तियों से प्राप्त होता है।
पैन-ट्रांसक्रिप्टोम का उपयोग
- नए जीनों की खोज: एक पैन-ट्रांसस्क्रिप्टम का उपयोग नए जीनों की पहचान करने के लिए किया जा सकता है जो पारंपरिक जीनोम अनुक्रमण विधियों के माध्यम से पता नहीं लगाया जा सकता है।
- जीन अभिव्यक्ति को विनियमित करना: पैन-ट्रांसक्रिप्टोम पर्यावरणीय या शारीरिक स्थितियों में बदल सकता है और यह जीन अभिव्यक्ति को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- आनुवंशिक विविधता की विशेषता: जीवों की विभिन्न आबादी के भीतर और बीच आनुवंशिक विविधताओं की पहचान करने के लिये पैन-ट्रांसक्रिप्टोम का उपयोग किया जा सकता है।
- यह विभिन्न प्रजातियों के विकास और अनुकूलन में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
RNA मानचित्रण:
- परिचय:
- RNA मानचित्रण ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग कोशिका या ऊतक के अंदर RNA अणुओं के स्थान को पहचानने और मानचित्रण करने के लिये किया जाता है।
- यह सामान्यतः विभिन्न प्रकार के RNA की अभिव्यक्ति और स्थानीयकरण का अध्ययन करने के लिये प्रयोग किया जाता है, जिसमें मैसेंजर RNA (mRNA), राइबोसोमल RNA (mRNA), और RNA (tRNA) स्थानांतरित करना शामिल है।
- RNA मानचित्रण की विधि:
- स्व-स्थाने संकरण (In- situ hybridization- ISH):
- स्व-स्थाने संकरण (ISH) शोधकर्त्ताओं को कोशिका या ऊतक के अंदर विशिष्ट RNA कहाँ स्थित है कि जानकारी प्रदान करता है, साथ ही उस RNA के कार्य के संदर्भ में पता लगाया जा सकता है।
- RNA अनुक्रमण:
- यह एक नमूने में हज़ारों या लाखों RNA अणुओं के एक साथ विश्लेषण की अनुमति देता है।
- विभिन्न RNA अणुओं की बहुतायत और स्थान सहित ट्रांसक्रिप्टोम की एक विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिये RNA-अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।
- स्व-स्थाने संकरण (In- situ hybridization- ISH):
- उपयोग: इस जानकारी का निम्नलिखित क्षेत्रों में अध्ययन करने के लिये उपयोग किया जा सकता है:
- जीन अभिव्यक्ति प्रतिरूप
- नॉवेल ट्रांसक्रिप्ट को पहचानने में
- आनुवंशिक विविधताओं का पता लगाने हेतु
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. प्रश्न. ‘जैव सूचना विज्ञान’ के विकास के संदर्भ में कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला शब्द 'ट्रांसक्रिप्टोम' संदर्भित करता है- (2016) (a) जीनोम एडिटिंग में प्रयुक्त एंजाइमों की एक शृंखला Ans: (b)
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स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
इंडियन स्टार कछुआ
इंडियन स्टार कछुआ (जियोचेलोन एलिगेंस) पर हुए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि अवैध व्यापार और अवैज्ञानिक स्थानांतरण से इन प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता एवं आवास को भारी नुकसान हो रहा है।
- इस अध्ययन में प्रजातियों के अस्पष्ट वितरण की समस्या को देखते हुए वैज्ञानिक प्रजनन (Scientific Breeding) को उपयोग में लाने के उद्देश्य से इन प्रजातियों की व्यापक आनुवंशिक जाँच का सुझाव दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
- आवास:
- इंडियन स्टार कछुए भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं, विशेष रूप से भारत के मध्य और दक्षिणी भागों, पश्चिम पाकिस्तान और श्रीलंका में।
- ये आमतौर पर सूखे, खुले आवासों जैसे कि झाड़ीयुक्त जंगलों, घास के मैदानों एवं चट्टानी आउटक्रॉपिंग में पाए जाते हैं।
- खतरा:
- यह प्रजाति अपने निवास स्थान के खतरे के साथ-साथ आनुवंशिक विविधता के नुकसान की दोहरी चुनौतियों का सामना कर रही है।
- प्रजातियाँ अत्यधिक खंडित आवास, शहरीकरण एवं कृषि पद्धतियों के बढ़ते स्तर के कारण अत्यधिक प्रभावित हैं।
- वर्षों से इन प्रजातियों के संकरण के कारण भारतीय स्टार कछुओं ने आनुवंशिक विविधता खो दी है।
- इसके अलावा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के अनुसार, स्टार कछुए का 90% व्यापार अंतर्राष्ट्रीय घरेलू बाज़ार के हिस्से के रूप में होता है।
- यह प्रजाति अपने निवास स्थान के खतरे के साथ-साथ आनुवंशिक विविधता के नुकसान की दोहरी चुनौतियों का सामना कर रही है।
- सुरक्षा की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: असुरक्षित
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972: अनुसूची IV
- अनुसूची IV: यह सूची उन प्रजातियों के लिये है जो लुप्तप्राय नहीं हैं। इसमें संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं लेकिन किसी भी उल्लंघन के लिये दंड अनुसूची I और II की तुलना में कम है।
- प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (CITES): परिशिष्ट I
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन-से भारत में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
पाणिनि की अष्टाध्यायी और व्याकरण की सबसे बड़ी पहेली
हाल ही में कैंब्रिज के विद्वान डॉ. ऋषि राजपोपत ने संस्कृत की सबसे बड़ी पहेली- 'अष्टाध्यायी' में पाई जाने वाली व्याकरण की समस्या को हल करने का दावा किया है।
अष्टाध्यायी:
- 2,000 से अधिक वर्ष पहले लिखा गया, अष्टाध्यायी या 'आठ अध्याय', विद्वान पाणिनि द्वारा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के अंत में लिखा गया एक प्राचीन ग्रंथ है।
- यह एक भाषायी लेख है जिसने मानक निर्धारित किया कि संस्कृत कैसे लिखी और बोली जानी है।
- यह भाषा के ध्वन्यात्मकता, वाक्य विन्यास और व्याकरण को गहराई से समझता है, इसमें एक "भाषा मशीन" भी शामिल है, जो उपयोगकर्त्ताओं को किसी भी संस्कृत शब्द के मूल और प्रत्यय में प्रवेश करने एवं बदले में व्याकरणिक रूप से सही शब्द तथा वाक्य प्राप्त करने में मदद करता है।
- अष्टाध्यायी ने 4,000 से अधिक व्याकरणिक नियम निर्धारित किये है।
- बाद के भारतीय व्याकरण जैसे पतंजलि का महाभाष्य (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) और जयादित्य की कासिका वृत्ति तथा वामन (7वीं शताब्दी ईस्वी), अधिकतर पाणिनि पर टीकाएँ थीं।
पहेली (Puzzle):
- भ्रामक नियम:
- अष्टाध्यायी में दो या दो से अधिक व्याकरण के नियम एक साथ लागू हो सकते थे, जिससे भ्रम पैदा होता था।
- पाणिनि ने इसका समाधान करने के लिये एक 'मेटा-नियम' (नियमों को नियंत्रित करने वाला नियम) प्रस्तुत किया था, जिसकी ऐतिहासिक रूप से व्याख्या की गई थी कि यदि समान प्रकार के दो नियमों में विवाद होता है, तो 'अष्टाध्यायी' के क्रम में बाद में आने वाले नियम मान्य होगा।
- हालाँकि यह अपवाद पैदा करता रहा, जिसके लिये विद्वानों को अतिरिक्त नियम लिखते रहना पड़ा। यहीं से डॉ ऋषि राजपोपत की खोज हुई।
- हालाँकि इसने अपवादों को बढ़ावा दिया जिससे नए नियमों का निर्माण आवश्यक हो गया। यहीं कारण है कि डॉ. ऋषि राजपोपत ने नवीन नियम प्रस्तुत किया।
- समाधान:
- विद्वानों ने यह तर्क देते हुए एक सरल दृष्टिकोण अपनाया कि इतिहास में मेटा-नियम की गलत व्याख्या की गई है, वास्तव में पाणिनि का मतलब यह था कि किसी शब्द के बाएँ और दाएँ पक्षों पर लागू होने वाले नियमों के संबंध में पाठकों को दाएँ हाथ के नियम का उपयोग करना चाहिये।
- इस तर्क का उपयोग करते हुए डॉ. राजपोपत ने पाया कि 'अष्टाध्यायी' अंततः एक सटीक 'भाषा मशीन' बन सकती है, जो लगभग प्रत्येक बार व्याकरणिक रूप से ध्वनि शब्दों और वाक्यों का निर्माण करती है।
उदाहरण के लिये, एक वाक्य ‘ज्ञानम् दियाते गुरुना’ अर्थात् ज्ञान गुरु द्वारा दिया जाता है, में गुरुना शब्द बनाने में नियम संबंधी विरोधाभास दिखता है, जिसका अर्थ है ‘गुरु द्वारा’ और यह एक ज्ञात शब्द है।
इस शब्द में मूल में शामिल है गुरु+आ और पाणिनि के सूत्रों के अनुसार, एक नया शब्द जिसका अर्थ ‘गुरु द्वारा’ होगा, बनाने के दो नियम लागू होते हैं, एक ‘गुरु’ शब्द के लिये, और एक ‘आ’ के लिये। इसका समाधान उस नियम को चुनकर किया जाता है जो दाईं ओर के शब्द पर लागू होता है, जिसके परिणामस्वरूप सही नया रूप ‘गुरुना’ बनता है।
उदाहरण के के लिये राजपोपट ने वृक्ष धातु रूप से बने शब्दों का उल्लेख किया है। ‘वृक्ष’ और ‘भ्याम’ शब्दों को जोड़कर ‘वृक्षाभ्याम’ बनता है, जहाँ पहले शब्द की अंतिम ‘अ’ ध्वनि को लंबी ‘आ’ ध्वनि से बदल दिया जाता है। दूसरी ओर ‘वृक्ष’ और ‘सु’ के संयोजन से वृक्षेषु बनता है जहाँ वही ध्वनि ‘ई’ से बदल जाती है। अब, जब ‘वृक्ष’ शब्द को बहुवचन ‘भ्या’ में जोड़ा जाना है, तो क्या ‘ए’ को ‘ऐ’ या ‘ई’ से बदल दिया जाना चाहिये?
- महत्त्व:
- इस खोज से अब पाणिनि प्रणाली का उपयोग करके लाखों संस्कृत शब्दों का निर्माण करना संभव हो सकता है और चूँकि उनके व्याकरण के नियम सटीक और सूत्रबद्ध थे, वे कंप्यूटर सिखाए जा सकने वाले संस्कृत भाषा के एल्गोरिद्म के रूप में कार्य कर सकते हैं।
भाषा विज्ञान के जनक पाणिनि:
- संभवतः चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में पाणिनि के विषय में जानकारी मिलती है, यह सिकंदर की विजय और मौर्य साम्राज्य की स्थापना का युग था, इसके अतिरिक्त उन्हें 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व, जो कि बुद्ध और महावीर काल रहा, का भी माना जाता है।
- वह संभवतः सलातुरा (गांधार) में रहते थे, जो आज के समय में उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान में स्थित है, और संभवतः तक्षशिला के महान विश्वविद्यालय से भी जुड़े थे। यहीं से कौटिल्य और चरक को शासन कला और चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण पहचान बनाने में मदद मिली।
- पाणिनि के महान व्याकरण, 'अष्टाध्यायी' की रचना के समय तक संस्कृत वस्तुतः अपने शास्त्रीय रूप में पहुँच चुकी थी और उसके बाद बहुत कम विकसित हुई।
- पाणिनि का व्याकरण, जिसका आधार पहले के कई व्याकरणविदों द्वारा किया गया कार्य था, ने संस्कृत भाषा को प्रभावी रूप से स्थिरता प्रदान की।
- पहले के कार्यों ने आधार को एक शब्द के मूल तत्त्व के रूप में मान्यता दी थी तथा कुछ 2,000 एकाक्षरिक आधारों को वर्गीकृत किया था, जिसे उपसर्ग, प्रत्यय एवं विभक्ति के साथ भाषा के सभी शब्दों को प्रदान करने का विचार था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 21 जनवरी, 2023
देश की पहली हाइड्रोजन पावर ट्रेन
119 वर्ष पुराने कालका-शिमला रेल मार्ग पर देश को पहली हाइड्रोजन पावर ट्रेन का संचालन किया जाएगा। वर्ष 2008 में यूनेस्को ने कालका-शिमला रेल मार्ग को वर्ल्ड हेरिटेज साईट का दर्जा प्रदान किया। इस ट्रेन को चलाने की घोषणा केंद्रीय बजट में होगी। कालका, बोग और शिमला में इसके फँर्हाइड्रोजन सेंटर भी बनाए जाएंगे। इस ट्रेन का डिज़ाइन फाइनल हो चुका है। ट्रेन का संचालन ‘ग्रीन फ्यूल क्लीन फ्यूल’ थीम पर आधारित होगा। खास बात यह है कि इस ट्रेन में वंदे भारत जैसी तमाम अत्याधुनिक सुविधाएँ होंगी एवं ट्रेन में सात कोच होंगे। स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक है। ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का प्रमुख स्रोत है। ग्रीन हाइड्रोजन जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। इसके तहत विद्युत द्वारा जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है। ज्ञातव्य है कि फ्राँस की रेल ट्रांसपोर्ट कंपनी अल्स्टोम ने विश्व की पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन को वर्ष 2018 में प्रारंभ किया था।
मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा स्थापना दिवस
21 जनवरी को मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा का स्थापना दिवस मनाया जाता है, इस उपलक्ष्य पर प्रधानमंत्री ने इन राज्यों के लोगों को शुभकामनाएँ दी हैं। प्राकृतिक सौंदर्य और अनुपम छटा से युक्त तीनों राज्य भारत की सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध बनाते हैं और साथ ही अपनी इन विशेषताओं के कारण पर्यटन का केंद्र भी हैं। 21 जनवरी, 1972 को पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 के तहत तीनों को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया था। 15 अगस्त, 1947 से पहले शांतिपूर्ण वार्ता के ज़रिये ऐसे लगभग सभी राज्यों, जिनकी सीमाएँ भारतीय संघ के साथ लगती थीं, को विलय हेतु एकजुट कर लिया गया था, 15 नवंबर, 1949 को भारतीय संघ में विलय होने तक त्रिपुरा एक रियासत थी। 17 मई, 1947 को त्रिपुरा के अंतिम महाराजा बीर बिक्रम सिंह के निधन के पश्चात् महारानी कंचनप्रभा ने त्रिपुरा राज्य का प्रतिनिधित्त्व संभाला। भारतीय संघ में त्रिपुरा राज्य के विलय में उन्होंने सहायक की भूमिका निभाई थी। मेघालय, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक छोटा पहाड़ी राज्य है जो 2 अप्रैल, 1970 को असम राज्य के भीतर एक स्वायत्त राज्य के रूप में अस्तित्त्व में आया।
प्रवीण शर्मा होंगे राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के नए निदेशक
प्रवीण शर्मा को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन) का निदेशक नियुक्त किया गया है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) द्वारा जारी आदेश के अनुसार, शर्मा को पदभार ग्रहण करने की तिथि से या अगले आदेश तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये केंद्रीय कर्मचारी योजना के तहत पद पर नियुक्त किया गया है। प्रवीण शर्मा 2005 बैच के इंडियन डिफेंस सर्विस ऑफ इंजीनियर्स (IDSE) के अधिकारी हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY)” नामक भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार शीर्ष निकाय है, राष्ट्रीय स्तर पर PM-JAY को लागू करने के लिये NHA की स्थापना की गई थी। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की शुरुआत 27 सितंबर, 2021 को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, इसका उद्देश्य सभी भारतीय नागरिकों को अस्पतालों, बीमा फर्मों और आवश्यकता पड़ने पर इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्वास्थ्य रिकॉर्ड तक पहुँचने में मदद करने हेतु डिजिटल स्वास्थ्य आईडी प्रदान करना है। यह न केवल अस्पतालों की प्रक्रियाओं को सरल बनाता है बल्कि जीवन की सुगमता को भी बढ़ाता है।