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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 20 Feb, 2020
  • 12 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 20 फरवरी, 2020

हिस्टोरिकल गैस्ट्रोनोमिका - द इंडस डाइनिंग एक्सपीरियंस

Historical Gastronomica - The Indus Dining Experience

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के अंतर्गत राष्ट्रीय संग्रहालय भारत के प्राचीन खाद्य इतिहास पर 19-25 फरवरी तक एक अनूठी प्रदर्शनी ‘ऐतिहासिक गैस्ट्रोनोमिका - द इंडस डाइनिंग एक्सपीरियंस’ का आयोजन कर रहा है।

Historical-Gastronomica

मुख्य बिंदु:

  • यह प्रदर्शनी भारत के 5000 वर्ष पुराने इतिहास के बारे में बताती है। राष्ट्रीय संग्रहालय में सिंधु घाटी सभ्यता की कलाकृतियों का एक अद्भुत संग्रह है।
  • इस प्रदर्शनी में प्रसिद्ध कांस्य नृत्यांगना की मूर्ति (Bronze Dancing Girl) को भी प्रदर्शित किया गया है जिसे मोहनजोदड़ो नामक हड़प्पा स्थल से प्राप्त किया गया था।
    • मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित सिंधु सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का एक पुरातात्त्विक स्थल है। मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में अर्थ है- ‘मुर्दों का टीला’। इसे विश्व का सबसे पुराना नियोजित एवं उत्कृष्ट शहर माना जाता है।
  • ‘इंडस डाइनिंग एक्सपीरियंस’ पुरातात्त्विक अनुसंधान, राष्ट्रीय संग्रहालय की कलाकृतियों एवं उनकी विशेषताओं पर आधारित है। इसे संयुक्त रूप से राष्ट्रीय संग्रहालय और वन स्टेशन मिलियन स्टोरीज़ (One Station Million Stories- OSMS) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
    • वन स्टेशन मिलियन स्टोरीज़ (OSMS) दिल्ली की एक टीम है जो व्यापक तकनीकी अनुसंधान के माध्यम से कहानी कहने की कला में पारंगत है।
  • इस प्रदर्शनी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
    • मानव के उद्भव से लेकर सिंधु-सरस्वती सभ्यता तक उसका विकास और मानव के खाद्य इतिहास की उदाहरणात्मक कहानी का प्रस्तुतिकरण
    • हड़प्पाकालीन मृद्भांड और कलाकृतियाँ
    • भोजन: फिंगर-फूड सैंपलर और डिनर
    • हड़प्पा सभ्यता की रसोई का एक माॅडल और वन स्टेशन मिलियन स्टोरीज़ (OSMS) द्वारा डिज़ाइन की गई कलाकृतियाँ।
  • यह प्रदर्शनी खाद्य आदतों के कारण मनुष्य का विकास कैसे हुआ और कैसे उसने गैर-खाद्य पदार्थों एवं खाद्य पदार्थों में भेद करना सीखा तथा उनकी खाद्य प्रसंस्करण तकनीक क्या थी एवं उनकी वास्तुकला को दर्शाती है।
  • इस प्रदर्शनी में दिखाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य सुरक्षा कैसे प्रभावित होती है।
  • विविध दक्षिण एशियाई लोगों के जीनोमिक डेटा (Genomic Data) से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों में एक निरंतरता है जो हमें ईरानी कृषिविदों और दक्षिण एशिया में खाद्य संग्रहण करने वाले शिकारियों से जोड़ती है।
    • राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, सिंध और बलूच के वर्तमान गाँवों में खाना पकाने के तरीकों के पारंपरिक ज्ञान पता चलता है कि हमारे मूल आहार और वर्तमान आहार में अधिक समानताएँ हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

National Commission for Scheduled Tribes

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) का 16वाँ स्थापना दिवस 19 फरवरी, 2020 को मनाया गया।

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मुख्य बिंदु:

  • पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 1999 में जनजातीय मामलों के लिये एक अलग मंत्रालय बनाया था।
  • स्थापना: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित करके की गई थी।
  • इस संशोधन द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग को दो अलग-अलग आयोगों में प्रतिस्थापित किया गया।
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes- NCSC)
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST)
  • इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य (एक महिला सदस्य सहित) शामिल हैं।
  • कार्यकारी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और NCST के सदस्यों का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तिथि से लेकर तीन वर्ष तक का होता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव पद का दर्जा दिया गया है।

NCST के कार्य एवं शक्तियाँ:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338A के खंड (5) के तहत आयोग को निम्नलिखित कर्त्तव्य एवं कार्य सौंपे गए हैं-
    • NCST को संविधान के तहत या अन्य कानूनों के तहत या अनुसूचित जनजाति के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जाँच एवं निगरानी का अधिकार है।
    • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना एवं सलाह देना तथा संघ और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • रिपोर्ट: आयोग अनुसूचित जनजाति के कल्याण और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित प्रोग्रामों/योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये किये गए आवश्यक उपायों से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है।

22वाँ भारतीय विधि आयोग

22nd Law Commission of India

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 वर्ष की अवधि के लिये भारत के 22वें विधि आयोग (22nd Law Commission of India) को मंज़ूरी दे दी।

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निकाय की स्थिति:

  • भारतीय विधि आयोग न तो एक संवैधानिक निकाय है और न ही वैधानिक निकाय। यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है। यह प्रमुख रूप से कानूनी सुधारों हेतु कार्य करता है।
  • आयोग का गठन एक निर्धारित अवधि के लिये होता है और यह विधि और न्याय मंत्रालय के लिये परामर्शदाता निकाय के रूप में कार्य करता है।

सांगठनिक ढाँचा:

  • 22वें विधि आयोग का गठन, आधिकारिक गजट में सरकारी आदेश के प्रकाशन की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिये किया जाएगा। इसमें निम्मलिखित शामिल होंगे‑
    • एक पूर्णकालिक अध्यक्ष
    • चार पूर्णकालिक सदस्य (सदस्य-सचिव सहित)
    • सचिव, कानूनी मामलों के विभाग पदेन सदस्य के रूप में
    • सचिव, विधायी विभाग पदेन सदस्य के रूप में
    • अधिक-से-अधिक पाँच अंशकालिक सदस्य
  • इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होगा।

विधि आयोग: संक्षिप्त में

  • प्रथम आयोग का गठन वर्ष 1834 में चार्टर एक्ट- 1833 के तहत लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में किया गया था जिसने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफारिश की।
  • भारत सरकार ने स्वतंत्र भारत का प्रथम विधि आयोग वर्ष 1955 में भारत के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एम.सी. शीतलवाड़ की अध्यक्षता में गठित किया। तब से 21 विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल 3 वर्ष था।
  • 21वें विधि आयोग जिसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. एस. चौहान द्वारा की गई, ने 31 अगस्त, 2018 को अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था।

भारतीय विधि आयोग निम्न कार्य करेगा:

  • यह ऐसे कानूनों की पहचान करेगा जिनकी अब कोई जरूरत नहीं है या वे अप्रासंगिक हो चुके हैं और जिन्हें तुरंत निरस्त किया जा सकता है।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के संदर्भ में मौजूदा कानूनों की जाँच करना तथा सुधार के सुझाव देना और नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिये आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना एवं संविधान की प्रस्तावना में निहित उद्देश्यों को प्राप्त करना।
  • कानून और न्यायिक प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना जिसे सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय (कानूनी मामलों के विभाग) द्वारा विशेष रूप से संदर्भित किया जा सकता है।
  • विश्व के देशों को अनुसंधान प्रदान करने के अनुरोधों पर विचार करना क्योंकि इसे सरकार द्वारा कानून और न्याय मंत्रालय के माध्यम से संदर्भित किया जा सकता है।
  • वे सभी उपाय करना जो गरीबों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
  • सामान्य महत्त्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और उनकी विसंगतियों, अस्पष्टताओं एवं असमानताओं को दूर किया जा सके।

अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालयों/विभागों तथा ऐसे अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेगा जिन्हें वह इस उद्देश्य के लिये आवश्यक समझे।


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