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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 17 Jan, 2022
  • 20 min read
प्रारंभिक परीक्षा

मकर संक्रांति

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा फसल त्योहारों मकर संक्रांति, उत्तरायण, भोगी, माघ बिहू और पोंगल के अवसर पर देश भर में लोगों को बधाई दी गई।

  • इन त्योहारों के माध्यम से देश भर के लाखों किसान अपनी कड़ी मेहनत और उद्यम का जश्न मनाते हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • मकर संक्रांति:
    • मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि (मकर) में प्रवेश को दर्शाता है क्योंकि यह अपने खगोलीय पथ (Celestial Path) की परिक्रमा करता है।
    • यह दिन गर्मियों की शुरुआत और हिंदुओं के लिये छह महीने की शुभ अवधि का प्रतीक है, जिसे उत्तरायण (सूर्य की उत्तर की ओर गति) के रूप में जाना जाता है। 
      • 'उत्तरायण' के एक आधिकारिक उत्सव के रूप में गुजरात सरकार द्वारा वर्ष 1989 से अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
    • इस दिन से जुड़े उत्सवों को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है:
      • उत्तर भारतीय हिंदुओं और सिखों द्वारा लोहड़ी के रूप में।
      • मध्य भारत में संकरात।
      • असमिया हिंदुओं द्वारा भोगली बिहू।
      • तमिल और अन्य दक्षिण भारतीय हिंदुओं द्वारा पोंगल के रूप में।
  • बीहू:
    • यह तब मनाया जाता है जब असम में वार्षिक फसल होती है। असमिया नए वर्ष की शुरुआत को चिह्नित करने हेतु लोग रोंगाली/माघ बिहू मनाते हैं।
    • ऐसा माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत उस समय से हुई थी जब घाटी के लोगों ने ज़मीन जोतना शुरू कर दिया था। बिहू त्योहार को ब्रह्मपुत्र नदी जितना पुराना माना जाता है।
  • पोंगल:
    • पोंगल शब्द का अर्थ है ‘उफान’ (Overflow) या विप्लव (Boiling Over)।
    • इसे थाई पोंगल के रूप में भी जाना जाता है, यह चार दिवसीय उत्सव तमिल कैलेंडर के अनुसार ‘थाई’ माह में मनाया जाता है, जब धान आदि फसलों की कटाई की जाती है और लोग ईश्वर तथा भूमि की दानशीलता के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
    • इस उत्सव के दौरान तमिल लोग चावल के आटे से अपने घरों के आगे कोलम नामक पारंपरिक रंगोली बनाते हैं।

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स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

तिरुवल्लुवर

प्रधानमंत्री ने तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर को उनकी जयंती ‘तिरुवल्लुवर दिवस’ (Thiruvalluvar Day ) के अवसर पर याद किया।

  • वर्तमान समय में इसे आमतौर पर तमिलनाडु में 15 या 16 जनवरी को मनाया जाता है और यह पोंगल समारोह का एक हिस्सा है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • तिरुवल्लुवर जिन्हें वल्लुवर भी कहा जाता है, एक तमिल कवि-संत थे।
    • धार्मिक पहचान के कारण उनकी कालावधि के संबंध में विरोधाभास है सामान्यतः उन्हें तीसरी-चौथी या आठवीं-नौवीं शताब्दी का माना जाता है।
    • सामान्यतः उन्हें जैन धर्म से संबंधित माना जाता है। हालाँकि हिंदुओं का दावा है कि तिरुवल्लुवर हिंदू धर्म से संबंधित थे।
    • द्रविड़ समूहों (Dravidian Groups) ने उन्हें एक संत माना क्योंकि वे जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे।
    • उनके द्वारा संगम साहित्य में तिरुक्कुरल या 'कुराल' (Tirukkural or ‘Kural') की रचना की गई थी।
    • तिरुक्कुरल में 10 कविताएँ व 133 खंड शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक को तीन पुस्तकों में विभाजित किया गया है:
      • अराम- Aram (सदगुण- Virtue)।
      • पोरुल- Porul (सरकार और समाज)।
      • कामम- Kamam (प्रेम)।
    • तिरुक्कुरल की तुलना विश्व के प्रमुख धर्मों की महान पुस्तकों से की गई है।

संगम साहित्य

  • 'संगम' शब्द संस्कृत शब्द संघ का तमिल रूप पांड्य राजाओं के संरक्षण में तीन अलग-अलग कालों में अलग-अलग जगहों पर फली-फूली।
  • इसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ई. के दौरान संकलित किया गया था और प्रेम एवं युद्ध के विषयों के आसपास काव्य प्रारूप में रचा गया था।
  • तमिल किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन दक्षिण भारत में तीन संगमों (तमिल कवियों का समागम) का आयोजन किया गया था, जिसे मुच्चंगम (Muchchangam) कहा जाता था।
    • माना जाता है कि प्रथम संगम मदुरै में आयोजित किया गया था। इस संगम में देवता और महान संत शामिल थे। इस संगम का कोई साहित्यिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
    • दूसरा संगम ‘कपाटपुरम्’ में आयोजित किया गया था, इस संगम का एकमात्र तमिल व्याकरण ग्रंथ ‘तोलकाप्पियम्’ ही उपलब्ध है।
    • तीसरा संगम भी मदुरै में हुआ था। इस संगम के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गए थे। इनमें से कुछ सामग्री समूह ग्रंथों या महाकाव्यों के रूप में उपलब्ध है।
  • संगम साहित्य जो तीसरे संगम से काफी हद तक समेकित था, ईसाई युग की शुरुआत के आसपास लोगों के जीवन की स्थितियों पर जानकारी देता है।
    • यह सार्वजनिक और सामाजिक गतिविधियों जैसे- सरकार, युद्ध दान, व्यापार, पूजा, कृषि आदि धर्मनिरपेक्ष मामलों से संबंधित है।
  • संगम साहित्य में प्राचीनतम तमिल रचनाएँ (जैसे तोलकाप्पियम), दस कविताएँ (पट्टुपट्टू), आठ संकलन (एट्टुटोगई) और अठारह लघु रचनाएँ (पदीनेकिलकनक्कु) तथा तीन महाकाव्य शामिल हैं।

स्रोत:पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

टोंगा में ज्वालामुखी विस्फोट

हाल ही में टोंगा के दक्षिणी प्रशांत द्वीप में एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ है, जिससे प्रशांत महासागर के चारों ओर सुनामी लहरें उठी रही हैं।

  • टोंगा द्वीप समूह ‘रिंग ऑफ फायर’ में मौजूद है, जो कि प्रशांत महासागर के बेसिन को घेरने वाली ऊँची ज्वालामुखी और भूकंपीय गतिविधि की परिधि है।

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प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • यह एक अंडर-सी ज्वालामुखी विस्फोट है, जिसमें दो छोटे निर्जन द्वीप, हुंगा-हापाई और हुंगा-टोंगा शामिल हैं।
    • पिछले कुछ दशकों में हुंगा-टोंगा-हुंगा-हापाई में नियमित रूप से ज्वालामुखी विस्फोट हो रहा है।
      • वर्ष 2009 और वर्ष 2014-15 की घटनाओं के दौरान भी मैग्मा और भाप के गर्म जेट के साथ विस्फोट हुए थे। लेकिन हालिया घटनाओं (जनवरी 2022) की तुलना में ये विस्फोट काफी छोटे थे।
    • इस बार का विस्फोट उन बड़े विस्फोटों में से एक है, जो प्रत्येक हज़ार वर्ष में रिकॉर्ड किये जाते हैं।
    • इसके अत्यधिक विस्फोटक होने का एक कारण ‘फ्यूल-कूलेंट इंटरेक्शन’ है।
  • प्रभाव:
    • विशाल ज्वालामुखी विस्फोट कभी-कभी अस्थायी वैश्विक शीतलन का कारण बन सकते हैं क्योंकि सल्फर डाइऑक्साइड को समताप मंडल में पंप किया जाता है। लेकिन टोंगा विस्फोट के मामले में प्रारंभिक उपग्रह माप से संकेत मिलता है कि सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा का केवल 0.01 सेल्सियस वैश्विक औसत शीतलन पर एक छोटा प्रभाव डालेगा।
    • विस्फोट ने वायुमंडलीय दबाव को बदल दिया जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका में सिएटल में कोहरे को दूर करने में कुछ समय के लिये मदद की होगी।
    • इन लहरों ने प्रशांत को पार किया और इनकी वजह से पेरू में दो लोग डूब गए तथा न्यूज़ीलैंड एवं सांताक्रूज़, कैलिफोर्निया में मामूली क्षति हुई।
    • यूएस जियोलॉजिकल सर्वे ने अनुमान लगाया है कि विस्फोट 5.8 तीव्रता के भूकंप के बराबर था।

ज्वालामुखी

  • ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह में एक उद्घाटन या टूटन है जो मैग्मा के रूप में गर्म तरल और अर्द्ध-तरल चट्टानों, ज्वालामुखीय राख और गैसों के रूप में बहार निकलता है।
  • ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट वे स्थान होते हैं जहांँ पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट आपस में मिलती हैं।
  • ज्वालामुखी विस्फोट तब होता है जब ज्वालामुखी से लावा और गैस कभी-कभी विस्फोटक रूप में बहार निकलती है।

समुद्र के नीचे ज्वालामुखी:

  • समुद्र के नीचे ज्वालामुखी विस्फोट एक ऐसे ज्वालामुखी में होता है जो समुद्र की सतह के नीचे स्थित होता है। समुद्र के भीतर अनुमानित एक मिलियन ज्वालामुखी हैं और उनमें से अधिकांश टेक्टोनिक प्लेटों के पास स्थित हैं।
  • इन छिद्रों से लावा के अलावा राख भी निकलती है। ये समुद्र के तल पर जमा हो जाते हैं और समुद्री टीले का निर्माण करते हैं - पानी के नीचे स्थित पर्वत जो समुद्र के तल पर निर्मित होते हैं लेकिन पानी की सतह तक नहीं पहुंँचते हैं।

ईंधन-शीतलक इंटरैक्शन

  • यदि मैग्मा समुद्र के पानी में धीरे-धीरे ऊपर उठता है, तो लगभग 1200 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर भी मैग्मा तथा पानी के बीच भाप की एक पतली परत बन जाती है। यह मैग्मा की बाहरी सतह को ठंडा करने के लिये इन्सुलेशन की एक परत प्रदान करता है। लेकिन यह प्रक्रिया तब काम नहीं करती जब तक कि ज्वालामुखी गैस से भरी जमीन से मैग्मा का विस्फोट न हो।
  • जब मैग्मा तेज़ी से पानी में प्रवेश करता है तो भाप की परत जल्द ही बाधित हो जाती है, जिससे गर्म मैग्मा ठंडे पानी के सीधे संपर्क में आ जाता है।
  • यह एक रासायनिक विस्फोटों के समान है।
  • अत्यधिक हिंसक विस्फोट मैग्मा को अलग कर देता हैं।
  • एक शृंखला प्रतिक्रिया शुरू होती है, नए मैग्मा के टुकड़े पानी के लिये ताज़ा गर्म आंतरिक सतहों को उज़ागर करते हैं और विस्फोट अंततः ज्वालामुखी कणों को बाहर निकालते हैं तथा सुपरसोनिक गति के साथ विस्फोट करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 जनवरी, 2022

तिरुवल्लुवर दिवस

प्रधानमंत्री ने 15 जनवरी, 2022 को तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर को उनकी जयंती ‘तिरुवल्लुवर दिवस’ (Thiruvalluvar Day ) के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की। यह पहली बार 17-18 मई को वर्ष 1935 में मनाया गया था। वर्तमान समय में इसे आमतौर पर तमिलनाडु में 15 या 16 जनवरी को मनाया जाता है और यह पोंगल समारोह का एक हिस्सा है। तिरुवल्लुवर जिन्हें वल्लुवर भी कहा जाता है, एक तमिल कवि-संत थे। धार्मिक पहचान के कारण उनकी कालावधि के संबंध में विरोधाभास है सामान्यतः उन्हें तीसरी-चौथी या आठवीं-नौवीं शताब्दी का माना जाता है। सामान्यतः उन्हें जैन धर्म से संबंधित माना जाता है। हालाँकि हिंदुओं का दावा है कि तिरुवल्लुवर हिंदू धर्म से संबंधित थे। द्रविड़ समूहों (Dravidian Groups) ने उन्हें एक संत माना क्योंकि वे जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे। उनके द्वारा संगम साहित्य में तिरुक्कुरल या 'कुराल' (Tirukkural or ‘Kural') की रचना की गई थी। वर्ष 2009 में बंगलूरू के पास उलसूर में प्रसिद्ध तमिल कवि की एक प्रतिमा का अनावरण किया गया। लंदन के रसेल स्क्वायर में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ के बाहर भी वल्लुवर की एक प्रतिमा  लगाई गई है। तिरुवल्लुवर की 133 फुट ऊँची प्रतिमा कन्याकुमारी में भी है। अक्तूबर 2002 में तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले में तमिलनाडु सरकार द्वारा तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। वर्ष 1976 में वल्लुवर कोटम नामक एक मंदिर-स्मारक चेन्नई में बनाया गया जो एशिया में सबसे बड़े सभागारों में से एक है। 16वीं शताब्दी की शुरुआत में चेन्नई के मायलापुर में एकमबेश्वरेश्वर मंदिर परिसर में तिरुवल्लुवर को समर्पित एक मंदिर बनाया गया था।

इब्राहिम बाउबकर केस्टा

माली के अपदस्थ राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर केस्टा का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। केस्टा ने माली का वर्ष 2020 (सात साल) तक नेतृत्व किया, जिहादी अशांति से निपटने के लिये सरकार विरोधी भारी आंदोलन के बाद उन्हें तख्तापलट में हटा दिया गया था। आर्थिक संकट और विवादित चुनावों ने भी उनके शासन के खिलाफ प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया। केस्टा तीन दशकों से अधिक समय तक राजनीति में शामिल रहे, उन्होंने  वर्ष 1994 से 2000 तक समाजवादी प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। उनका जन्म कौटियाला में हुआ, उनके पिता एक सिविल सेवक थे, उन्होंने पेरिस में साहित्य, इतिहास और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन किया। वह वर्ष 1980 में माली लौटने से पूर्व वे यूरोपीय विकास कोष के सलाहकार के रूप में पहली बार काम करने से पहले पेरिस विश्वविद्यालय में अध्यापन सहित दशकों तक फ्राँस में रहे और काम किया। वर्ष 2012 में आज़ादी और जिहादी विद्रोहों के फैलने के बाद से माली सुरक्षा एवं राजनीतिक संकट की चपेट में है। राष्ट्रपति केस्टा वर्ष 2013 में "शांति और सुरक्षा लाने" के वादे पर चुने गए, लेकिन फिर भी उनकी सरकार माली की गंभीर सुरक्षा चुनौतियों को समाप्त करने में विफल रही, और उन्हें अगस्त 2020 में सेना द्वारा हटा दिया गया।

नई दिल्ली में योनेक्स-सनराइज़ इंडिया ओपन बैडमिंटन

भारत की दो बार की ओलंपिक पदक विजेता पीवी सिंधू को शनिवार को यहां योनेक्स-सनराइज़ इंडिया ओपन के सेमीफाइनल में हार का सामना करना पड़ा जबकि विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता लक्ष्य सेन ने अपने पहले विश्व टूर सुपर 500 टूर्नामेंट के फाइनल में जगह बनाई। उत्तराखंड के 20 साल के खिलाड़ी लक्ष्य ने विश्व रैंकिंग में 60वें स्थान पर काबिज मलेशिया के नग त्जे योंग को पुरूष एकल के अंतिम चार मुकाबले में पिछड़ने के बाद वापसी करते हुए 19-2, 21-16, 21-12 से हराया। शीर्ष वरीय और घरेलू प्रबल दावेदार सिंधू को महिला एकल के सेमीफाइनल में थाइलैंड की छठी वरीय सुपानिडा काटेथोंग से 14-21, 21-13, 10-21 से पराजय झेलनी पड़ी। पुरूष युगल में चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी की दुनिया की 10वें नंबर की जोड़ी ने फ्राँस के विलियम विलेगर और फैबियन डेलरू की जोड़ी को 21-10 21-18 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया। 

इब्राहिम अश्क

मशहूर गीतकार इब्राहिम अश्क (Ibrahim Ashq) का रविवार को निधन हो गया। वह कोरोना वायरस से संक्रमित थे और साथ ही निमोनिया के भी मरीज़ थे।  इब्राहिम अश्क मूल रूप से मध्य प्रदेश के रहने वाले थे और उनकी पहचान एक गीतकार के साथ शायर की भी थी। उन्होंने करियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में की थी और कई अखबार एवं मैग्ज़ीन के लिये काम किया था। इब्राहिम अश्क की शुरुआती पढ़ाई उज्जैन के बंदनगर से हुई। इंदौर विश्वविद्यालय से उन्होंने ग्रेजुएशन और मास्टर्स की डिग्री ली। बॉलीवुड में उन्होंने ‘कहो ना प्यार है’, ‘कोई मिल गया’, ‘जानशीन’, ‘ऐतबार’, ‘आप मुझे अच्छे लगने लगे’, ‘कोई मेरे दिल से पूछे’ और ‘धुंध’ जैसी फिल्मों के लिये गाने लिखे। ‘कहो ना प्यार है’ का टाइटल ट्रैक, गाना ‘ना तुम जानो ना हम’ उन्होंने ही लिखा था।

बिरजू महाराज 

हाल ही में प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का निधन हो गया। वे 83 साल के थे। पंडित बिरजू महाराज लखनऊ घराने से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्‍म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ में हुआ था। उनका असली नाम पंडित बृजमोहन मिश्र था। वे कथक नर्तक होने के साथ साथ शास्त्रीय गायक भी थे। बिरजू महाराज के पिता और गुरु अच्छन महाराज, चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज भी प्रसिद्ध कथक नर्तक थे। पंडित बिरजू महाराज ने डेढ़ इश्किया, देवदास, उमराव जान और बाजी राव मस्तानी जैसी कामयाब और हिंदी सिनेमा में मील का पत्‍थर मानी जाने वाली फिल्मों के लिये डांस कोरियोग्राफ की। उन्हें वर्ष 1986 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।


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