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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 16 Jun, 2021
  • 16 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स : 16 जून, 2021

दक्षिणी महासागर

Southern Ocean

हाल ही में विश्व महासागर दिवस (8 जून) के अवसर पर नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका ने 'दक्षिणी महासागर' को विश्व के पाँचवें महासागर के रूप में मान्यता दी है।

Southern-Ocean

  • इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गनाइज़ेशन (International Hydrographic Organization- IHO) ने भी वर्ष 1937 में 'दक्षिणी महासागर' को अंटार्कटिका के आसपास के जल के एक अलग भाग के रूप में मान्यता दी थी लेकिन वर्ष 1953 में इसे निरस्त कर दिया था।
  • अन्य चार महासागर हैं: अटलांटिक, प्रशांत, भारतीय और आर्कटिक महासागर।

इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गनाइज़ेशन (IHO)

  • अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक संगठन एक अंतर-सरकारी परामर्शदाता और तकनीकी संगठन है जिसे वर्ष 1921 में नेविगेशन की सुरक्षा एवं समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा का समर्थन करने के लिये स्थापित किया गया था।
  • भारत भी IHO का सदस्य है।

प्रमुख बिंदु:

संदर्भ:

  • यह सीधे अंटार्कटिका को घेरता है, जो ड्रेक पैसेज और स्कोटिया सागर को छोड़कर महाद्वीप के समुद्र तट से 60 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक फैला हुआ है।
  • दक्षिणी महासागर एकमात्र ऐसा महासागर है जो 'तीन अन्य महासागरों (प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर) को छूता है और एक महाद्वीप से पूरी तरह से घिरे होने के बजाय उसे घेरता है।
  • इसके अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट द्वारा भी इसे परिभाषित किया गया है जिसका विकास 34 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। अंटार्कटिका के चारों ओर पश्चिम से पूर्व की ओर मझासागरीय धाराएँ प्रवाहित होती है।

अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (Antarctic Circumpolar Current-ACC):

  • ACC वैश्विक महासागर में एकमात्र ऐसी धारा है जो एक सर्कम्पोलर लूप में अपने आप बंद हो जाती है।
    • ACC की यह विशेषता इसे पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में सबसे महत्वपूर्ण धारा बनाती है क्योंकि यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागरों को जोड़ती है और ऊष्मा, कार्बन डाइऑक्साइड, रसायन, जीव विज्ञान तथा अन्य ट्रेसर के अंतर-बेसिन विनिमय का प्राथमिक साधन है।
  • ACC का विकास दक्षिणी महासागर में तेज़ पछुआ हवाओं के संयुक्त प्रभावों और भूमध्य रेखा तथा ध्रुवों के बीच सतह के तापमान में बड़े बदलाव के कारण हुआ है।
  • जैसे-जैसे जल ठंडा होता है यह और अधिक खारा होता जाता है, वैसे-वैसे समुद्र का घनत्व बढ़ता जाता है। उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र का गर्म, सतह का खारा जल अंटार्कटिका के नज़दीक ठंडे, ताज़े जल की तुलना में बहुत हल्का होता है।
    • नियत घनत्व स्तरों की गहराई अंटार्कटिका की ओर ढलान बनाती है। पछुआ पवनें इस ढलान को और भी तीव्र कर देती हैं और ACC इसके साथ-साथ पूर्व की ओर चलती है, जहाँ ढलान तीव्र होता है वहाँ ACC की गति बढ़ जाती है और जहाँ कम होता है वहाँ गति कम हों जाती है।

मान्यता का महत्त्व:

  • विश्व के महासागरों के संरक्षण की दिशा में कदम उठाना, विशेष रूप से एक संरक्षण स्पॉटलाइट की आवश्यकता वाले क्षेत्र पर जन जागरूकता पर ध्यान केंद्रित करना।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण दक्षिणी महासागर के तेज़ी से गर्म होने के अलावा, क्रिल और पेटागोनियन टूथफिश जैसी मछलियों की कमी दशकों से चिंता का विषय रहा है। इन मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने की उम्मीद है।

डगमारा जलविद्युत परियोजना: बिहार 

Dagmara Hydro-Electric Project: Bihar

चर्चा में क्यों?

हाल ही में डगमारा जलविद्युत परियोजना, जिला सुपौल के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (National Hydro Power Corporation- NHPC) लिमिटेड और बिहार राज्य जलविद्युत निगम लिमिटेड (Bihar State Hydroelectric Power Corporation Limited- BSHPC) के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

Kosi-River

  • जलविद्युत के क्षेत्र में NHPC भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के तहत श्रेणी-ए की एक मिनीरत्न कंपनी है।
    • यह भारत में जलविद्युत विकास के लिये सबसे बड़ा संगठन है, वर्तमान में NHPC के पास 24 परिचालन विद्युत स्टेशन हैं जिनकी कुल स्थापित क्षमता 7071 मेगावाट है।

प्रमुख बिंदु

इस परियोजना बारे में:

  • यह परियोजना कोसी नदी पर भीमनगर बैराज से लगभग 22.5 किमी नीचे, दाहिने किनारे पर गाँव दगमारा और बाएँ किनारे पर सिमरी के पास स्थित है।
  • यह एक रन-ऑफ-द-रिवर योजना है। रन-ऑफ-रिवर पनबिजली परियोजनाएँ पानी द्वारा ले जाने वाली गतिज ऊर्जा का पता लगाने के लिये नदियों और सूक्ष्म टरबाइन जनरेटर के प्राकृतिक नीचे की ओर प्रवाह का उपयोग करती हैं।
    • आमतौर पर नदी से पानी को एक उच्च बिंदु पर प्राप्त किया जाता है और एक चैनल, पाइपलाइन या दबाव वाली पाइपलाइन (या पेनस्टॉक) में भेज दिया जाता है।
  • परियोजना की कुल क्षमता 130 मेगावाट ऊर्जा पैदा करना है जिसमें विद्युत उत्पादन के लिये 7.65 मेगावाट की 17 इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी।
  • इस परियोजना के निर्माण की अनुमानित लागत 2478.24 करोड़ रुपए है।

महत्त्व:

  • जहाँ तक हरित ऊर्जा का संबंध है यह बिहार के बिजली क्षेत्र के परिदृश्य में एक ऐतिहासिक परियोजना होगी।
  • स्वच्छ और हरित विद्युत उत्पन्न करने के अलावा यह निष्पादन क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देगी और रोज़गार के अवसर भी पैदा करेगी।  

कोसी नदी

  • यह एक सीमापारीय नदी (Trans-Boundary River) है जो तिब्बत, नेपाल एवं भारत से होकर बहती है।
  • यह तिब्बत में हिमालय के उत्तरी ढलानों और नेपाल में दक्षिणी ढलानों से होकर बहती है।
  • इसकी तीन प्रमुख सहायक नदियाँ, सूर्य कोसी, अरुण और तैमूर हिमालय की तलहटी से 10 किमी. की घाटी के ठीक ऊपर एक बिंदु पर मिलती हैं।
  • कटिहार ज़िले में कुर्सेला के पास गंगा में शामिल होने से पहले यह नदी उत्तरी बिहार, भारत में प्रवाहित होती है, जहाँ यह वितरिकाओं में बँट जाती है।
  • इसकी अस्थिर प्रकृति में बदलाव और मानसून के मौसम के दौरान भारी गाद तथा भारत में बाढ़ के अत्यधिक प्रभाव के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
    • भारत में ब्रह्मपुत्र के बाद कोसी में अधिकतम मात्रा में गाद और रेत है।
  • इसे "बिहार का शोक" के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वार्षिक बाढ़ लगभग 21,000 किमी. उपजाऊ कृषि भूमि को प्रभावित करती है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है।

विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 जून, 2021

राजा परबा

14 जून, 2021 से ओडिशा में 3 दिवसीय ‘राजा परबा’ की शुरुआत हो गई है। इस दिवस का लक्ष्य नारीत्व के महत्त्व और उनके योगदान को रेखांकित करना है। इस अवधि के दौरान यह माना जाता है कि मानसून के आगमन के साथ धरती माता को मासिक धर्म होता है और वह भविष्य की कृषि गतिविधियों के लिये स्वयं को तैयार करती हैं। ज्ञात हो कि मासिक धर्म को प्रजनन क्षमता का संकेत माना जाता है। उत्सव की शुरुआत ‘मिथुन संक्रांति’ से एक दिन पूर्व होती है और उसके दो दिन बाद यह समाप्त होता है। त्योहार के पहले दिन को ‘पहिली राजा’ कहा जाता है, जबकि दूसरे दिन को ‘मिथुन संक्रांति’ और तीसरे दिन को ‘भु दहा’ या ‘बसी राजा’ कहा जाता है। परबा के दौरान ओडिशा के लोग कोई भी निर्माण कार्य, जुताई अथवा कोई ऐसा कार्य नहीं करते हैं, जिसके लिये मिट्टी को खोदने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की गतिविधियों को न करने का प्राथमिक उद्देश्य धरती माँ (भूमि देवी) को उनके नियमित कार्य से अवकाश प्रदान करना होता है। यह त्योहार गर्मी के मौसम की समाप्ति और मानसून के आगमन के साथ भी जुड़ा हुआ है और इसीलिये यह कृषि से संबंधित समुदायों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

‘जीवन वायु’ उपकरण

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- रोपड़ (IIT-R) के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है, जिसे ‘कंटीन्यूअस पॉज़िटिव एयरवे प्रेशर’ (CPAP) मशीन के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। ‘जीवन वायु’ नामक यह उपकरण 60 लीटर प्रति मिनट (LPM) तक उच्च प्रवाह ऑक्सीजन प्रदान करने में सक्षम है। पारंपरिक तौर पर CPAP मशीन का प्रयोग वायुमार्ग को खुला रखने के लिये हल्के वायुदाब के रूप में किया जाता है और यह साँस लेने में समस्या और ‘स्लीप एपनिया’ से पीड़ित रोगियों के लिये काफी उपयोगी होता है। ‘कंटीन्यूअस पॉज़िटिव एयरवे प्रेशर’ (CPAP) थेरेपी यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि नींद के दौरान साँस लेने से वायुमार्ग में कोई समस्या उत्पन्न न हो। इस थेरेपी का उपयोग उन शिशुओं के इलाज के लिये भी किया जाता है, जिनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं। नया उपकरण भारत में डिज़ाइन किया गया अपनी तरह का पहला उपकरण है, जो बिजली के बिना भी काम करता है और दोनों प्रकार की ऑक्सीजन उत्पादन इकाइयों जैसे- ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन पाइपलाइनों के लिये अनुकूलित है। इस उपकरण को गैस मिश्रण में ऑक्सीजन की सांद्रता को 40 प्रतिशत से ऊपर बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है, साथ ही इसमें एक वायरल फिल्टर भी मौजूद है, जिसमें 99.99 प्रतिशत की प्रभावकारिता का दावा किया गया है। 

लकड़ी से निर्मित पहला अंतरिक्ष उपग्रह

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने इस वर्ष के अंत तक दुनिया के पहले लकड़ी से निर्मित उपग्रह, ‘WISA वुडसैट’ को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की योजना बनाई है। इस उपग्रह का मिशन अंतरिक्षयान संरचनाओं में प्लाईवुड जैसी लकड़ी की सामग्री की प्रयोज्यता का परीक्षण करना है और इस पर चरम अंतरिक्ष स्थितियों जैसे- गर्मी, ठंड, वैक्यूम और विकिरण आदि के प्रभाव का परीक्षण करना है। इसे न्यूज़ीलैंड के माहिया प्रायद्वीप प्रक्षेपण परिसर से ‘रॉकेट लैब इलेक्ट्रॉन’ नामक रॉकेट के साथ वर्ष 2021 के अंत तक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा। फिनलैंड में डिज़ाइन और निर्मित यह उपग्रह लगभग 500-600 किलोमीटर की ऊँचाई पर परिक्रमा करेगा। ‘WISA वुडसैट’ एक 10x10x10 सेंटीमीटर नैनो उपग्रह है, जिसे प्लाईवुड से बने मानकीकृत बॉक्स और सतह पैनलों से बनाया गया है। इसके तहत निर्माताओं ने लकड़ी से आने वाली वाष्प को कम करने और परमाणु ऑक्सीजन के क्षरणकारी प्रभावों से बचाने के लिये एक बहुत पतली एल्युमीनियम ऑक्साइड परत का भी उपयोग किया है। इस उपग्रह में एक कैमरा भी लगाया गया है, जो इस बात की निगरानी करने में मदद करेगा कि लकड़ी से निर्मित यह उपग्रह अंतरिक्ष की परिस्थतियों के साथ किस प्रकार व्यवहार कर रहा है। 

‘सिल्वरलाइन’ परियोजना

हाल ही में केरल मंत्रिमंडल ने ‘सिल्वरलाइन’ परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण को मंज़ूरी दे दी है। इस परियोजना में राज्य के दक्षिणी हिस्से और राज्य की राजधानी ‘तिरुवनंतपुरम’ को कासरगोड के उत्तरी हिस्से से जोड़ने के लिये राज्य में एक सेमी हाई-स्पीड रेलवे कॉरिडोर का निर्माण किया जाना शामिल है। यह लाइन तकरीबन 529.45 किलोमीटर लंबी होगी, जिसमें 11 स्टेशनों के माध्यम से राज्य के 11 ज़िलों को जोड़ा जाएगा। इस परियोजना के पूरा होने से कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक की यात्रा चार घंटे से भी कम समय में पूरी की जा सकेगी। केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (KRDCL) द्वारा इस परियोजना को वर्ष 2025 तक पूरा किया जाएगा। ‘केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड’ केरल सरकार और केंद्रीय रेल मंत्रालय के बीच एक संयुक्त उद्यम है। ‘सिल्वरलाइन’ परियोजना के माध्यम से राज्य की मौजूदा रेलवे अवसंरचना के भार को कम किया जा सकेगा, साथ ही इसके माध्यम से राज्य के निवासियों को तीव्र सार्वजानिक परिवहन सुविधा उपलब्ध की जा सकेगी। इससे सड़कों पर भीड़भाड़ कम होगी और हादसों एवं मौतों की संख्या को भी कम किया जा सकेगा।


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