भारतीय जैविक डेटा केंद्र
हाल ही में सरकार ने क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (RCB), फरीदाबाद में 'भारतीय जैविक डेटा बैंक' की स्थापना की है।
- भारतीय जैविक डेटा बैंक को 'भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC)' के रूप में जाना जाता है।
भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC):
- परिचय:
- IBDC भारत में लाइफ साइंस डेटा के लिये पहला राष्ट्रीय भंडार है, जहाँ डेटा न केवल पूरे भारत से एकत्रित किया जाएगा बल्कि पूरे भारत के शोधकर्त्ताओं को इस तक पहुँच की सुविधा होगी।
- भारत में सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित अनुसंधान से उत्पन्न IBDC में सभी लाइफ साइंस डेटा को संग्रहीत करना अनिवार्य है।
- यह डेटा सेंटर जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा समर्थित है।
- इसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), भुवनेश्वर के सहयोग से क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (RCB) में स्थापित किया जा रहा है।
- इसकी लागत करीब 85 करोड़ रुपए है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- डिजीटल डेटा को 'ब्रह्म' नामक चार-पेटाबाइट क्षमता वाले सुपरकंप्यूटर पर संग्रहीत किया जाएगा।
- एक पेटाबाइट 10,00,000 गीगाबाइट (GB) के बराबर होता है।
- IBDC के भिन्न-भिन्न सेक्शन अलग-अलग तरह के डेटा सेट को प्रबंधित करते हैं।
- प्रत्येक आईबीडीसी अनुभाग में समर्पित डेटा सबमिशन और एक्सेस स्कीमा होगा।
- IBDC के पास NIC में एक बैकअप डेटा 'आपदा रिकवरी' साइट है।
- इसके अलावा, IBDC लाइफ साइंस के विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान की खोज को सुविधाजनक बनाने के लिये अत्यधिक क्यूरेटेड डेटा सेट भी विकसित करेगा।
- यह जैविक डेटा विश्लेषण के लिये बुनियादी ढांँचा और विशेषज्ञता भी प्रदान करेगा।
- बायो-बैंक में अब 200 बिलियन बेस पेयर डेटा हैं, जिसमें '1,000 जीनोम प्रोजेक्ट' के तहत अनुक्रमित 200 मानव जीनोम शामिल हैं, जो लोगों में आनुवंशिक विविधताओं को मैप करने का एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है।
- परियोजना उन वर्गों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी जो कुछ बीमारियों के लिये पूर्वनिर्धारित हैं।
- यह शोधकर्त्ताओं को ज़ूनोटिक रोगों का अध्ययन करने में भी मदद करेगा।
- बायो-बैंक में अब 200 बिलियन बेस पेयर डेटा हैं, जिसमें '1,000 जीनोम प्रोजेक्ट' के तहत अनुक्रमित 200 मानव जीनोम शामिल हैं, जो लोगों में आनुवंशिक विविधताओं को मैप करने का एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है।
- यद्यपि डेटाबेस वर्तमान में केवल ऐसे जीनोमिक अनुक्रमों को स्वीकार करता है, जिनके बाद में प्रोटीन अनुक्रमों और इमेजिंग डेटा जैसे अल्ट्रासाउंड तथा चुंबकीय अनुनाद/रेसोनेन्स इमेज़िंग (MRI) की प्रतियों के भंडारण के लिये विस्तारित होने की संभावना है।
- डिजीटल डेटा को 'ब्रह्म' नामक चार-पेटाबाइट क्षमता वाले सुपरकंप्यूटर पर संग्रहीत किया जाएगा।
- उद्देश्य:
- देश में जैविक डेटा को लगातार संग्रहीत करने के लिये IT मंच प्रदान करंना।
- फेयर/FAIR (खोज योग्य/Findable, सुलभ/Accessible, इंटरऑपरेबल/ Interoperable और पुन: प्रयोज्य/ Reusable) सिद्धांत के अनुसार डेटा को संग्रहीत तथा साझा करने के लिये मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOPs) का विकास।
- गुणवत्ता नियंत्रण, डेटा का क्यूरेशन / एनोटेशन, डेटा बैकअप और डेटा लाइफ साइकिल का प्रबंधन।
- डेटा साझाकरण/पुनर्प्राप्ति के लिये वेब-आधारित उपकरण/अनुप्रयोग प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) का विकास।
- 'बिग' डेटा विश्लेषण और डेटा साझाकरण के लाभों पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संगठन।
- डेटा तक पहुँच/एक्सेस:
- IBDC में प्रमुख रूप से दो प्रकार से डेटा पहुँच/एक्सेस होंगे:
- ओपन एक्सेस/टाइम-रिलीज़ एक्सेस: IBDC में जमा किये गए डेटा अंतर्राष्ट्रीय ओपन-एक्सेस मानकों के अनुसार दुनिया भर में आसानी से उपलब्ध होंगे। हालाँकि, प्रस्तुतकर्त्ता निर्धारित समय के लिये डेटा एक्सेस को प्रतिबंधित करने का विकल्प चुन सकता है।
- प्रतिबंधित एक्सेस: डेटा को स्वतंत्र रूप से सुलभ नहीं बनाया जाएगा। इसे केवल मूल डेटा सबमिटर से IBDC के माध्यम से पूर्व अनुमति के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है।
- IBDC में प्रमुख रूप से दो प्रकार से डेटा पहुँच/एक्सेस होंगे:
- महत्त्व:
- यह अमेरिकी और यूरोपीय डेटा बैंकों पर भारतीय शोधकर्त्ताओं की निर्भरता को कम करेगा।
- यह न केवल शोधकर्त्ताओं को अपने डेटा को देश के भीतर सुरक्षित रूप से संग्रहीत करने के लिये एक मंच प्रदान करेगा, बल्कि विश्लेषण के लिये स्वदेशी अनुक्रमों के एक बड़े डेटाबेस तक पहुँच भी प्रदान करेगा।
- इस तरह के डेटाबेस ने पारंपरिक रूप से विभिन्न बीमारियों के आनुवंशिक आधार को निर्धारित करने और टीकों एवं उपचारों के लिये लक्ष्य खोजने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मानगढ़ नरसंहार
17 नवंबर, 1913 को मानगढ़ (बाँसवाड़ा, राजस्थान) में एक भयानक त्रासदी हुई जिसमें 1,500 से अधिक भील आदिवासी मारे गए।
- गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित मानगढ़ पहाड़ी को आदिवासी जलियाँवाला के नाम से भी जाना जाता है।
मानगढ़ नरसंहार का कारण:
- भीलों, जो एक आदिवासी समुदाय है, को रियासतों के शासकों और अंग्रेज़ो के हाथों बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
- 20वीं शताब्दी के अंत तक राजस्थान और गुजरात में रहने वाले भील बंधुआ मज़दूर बन गए।
- दक्कन और बॉम्बे प्रेसीडेंसी में वर्ष 1899-1900 के भीषण अकाल, जिसमें छह लाख से अधिक लोग मारे गए थे, ने भीलों की स्थिति और खराब बना दी।
- सामाजिक कार्यकर्त्ता गुरु गोविंदगिरी, जिन्हें गोविंद गुरु के नाम से भी जाना जाता है, द्वारा लामबंद और प्रशिक्षित भीलों ने वर्ष 1910 तक अंग्रेज़ो के सामने 33 मांगों का एक चार्टर रखा, जो मुख्य रूप से जबरन श्रम, भीलों पर लगाए गए उच्च कर और अंग्रेज़ो और रियासतों के शासकों द्वारा गुरु के अनुयायियों के उत्पीड़न से संबंधित थे।
- भीलों ने उन्हें शांत करने के अंग्रेज़ो के प्रयास को खारिज कर दिया और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की घोषणा करने का संकल्प लेते हुए मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने से इनकार कर दिया।
- अंग्रेज़ो ने तब भीलों को 15 नवंबर, 1913 से पहले मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने के लिये कहा।
- लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 17 नवंबर, 1913 को ब्रिटिश भारतीय सेना ने भील प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाईं और कहा जाता है कि इस त्रासदी में महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,500 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
गोविंद गुरु:
- गुरु भील और गरासिया आदिवासी समुदायों के बीच एक महान नेतृत्त्वकर्त्ता थे, एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने हज़ारों आदिवासियों को अपने दम पर एकजुट किया। तात्कालिक मानगढ़, वर्तमान राजस्थान के उदयपुर, डूँगरपुर और बाँसवाड़़ा, गुजरात के इडर तथा मध्य प्रदेश का मालवा के सीमांत क्षेत्र को कवर करता है।
- गोविंद गुरु भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेता बनने से पहले, उन्होंने भारत के पुनर्जागरण आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 25 वर्ष की उम्र में, उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती को काफी प्रभावित किया, जो कि उत्तर भारत में उस आंदोलन के एक केंद्रीय व्यक्ति थे।
- उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक सुधार के क्षेत्र में काफी योगदान दिया।
- वर्ष 1903 में, गोविंद गुरु ने शराब न पीने का संकल्प लिया और अपना ध्यान सामाजिक बुराइयों को खत्म करने, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने, बलात् श्रम को समाप्त करने, बालिकाओं को शिक्षित करने और जनजातियों के बीच आपसी विवादों को न्यायालय तक ले जाने के बजाय उसे हल करने पर केंद्रित किया।
- इससे एक सम्प (एकता) सभा का निर्माण हुआ, जिसकी पहली बैठक मानगढ़ में पहाड़ी पर हुई थी।।
- इस ऐतिहासिक घटना ने भारतीय इतिहास में मानगढ़ के महत्त्व को सुदृढ़ किया और फिर यह क्षेत्र आदिवासी आंदोलन का केंद्र बन गया।
- वर्ष 1908 में गोविंद गुरु द्वारा शुरू किया गया भगत आंदोलन जिसमे आदिवासी अपनी शपथ की पुष्टि करने के लिये आग के चारों ओर इकट्ठा हुए थे, इसे अंग्रेज़ो ने एक खतरे के रूप में चिह्नित किया।
- मानगढ़ हत्याकांड का परिणाम भयावह था। गोविंद गुरु को मृत्यु दंड दिया गया और उनकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
- लेकिन आदिवासी भीलों का आंदोलन हिंसक हो जाने के डर से अंग्रेज़ो ने उसकी फाँसी टाल दी और एक निर्जन द्वीप पर उसे 20 वर्ष की कैद की सजा सुनाई।
- जब वह जेल से रिहा हुआ, तो तात्कालिक रियासतें उसके निर्वासन के लिये एकजुट हो गई।
- वह अपने अंतिम वर्ष कंबोई, गुजरात में रहे, जहाँ 30 अक्तूबर, 1931 को उनकी मृत्यु हो गई।
भील जनजाति
- परिचय:
- भीलों को आमतौर पर राजस्थान के धनुषधारी (Bowmen) के रूप में जाना जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है।
- आमतौर पर इन्हें दो रूपों में वर्गीकृत किया जाता है:
- मध्य या शुद्ध भील
- पूर्वी या राजपूत भील
- मध्य भारत में भील मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान तथा त्रिपुरा के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं।
- उन्हें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और त्रिपुरा में अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- भील आर्य-पूर्व जाति के सदस्य हैं।
- 'भील' शब्द विल्लू या बिल्लू शब्द से बना है, जिसे द्रविड़ भाषा में धनुष (Bow) के नाम से जाना जाता है।
- भील नाम का उल्लेख महाभारत और रामायण के प्राचीन महाकाव्यों में भी मिलता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
महापाषाणकालीन समाधि स्थल
हाल के निष्कर्षों के अनुसार, आंध्र प्रदेश में तिरुपति ज़िले में सबसे बड़ा एंथ्रोपोमोर्फिक समाधि स्थल संग्रह है।
- एंथ्रोपोमोर्फिक/मानवाकृतीय स्थल से तात्पर्य महापाषाणकालीन समाधि स्थल के ऊपर मानव कंकाल के साक्ष्य मिलने वाले स्थल से हैं।
महापाषाण
- मेगालिथ या ‘महापाषाण’ का तात्पर्य बड़े प्रागैतिहासिक पत्थर से है जिसका उपयोग या तो एकल या अन्य पत्थरों के साथ मिलाकर संरचना या स्मारक बनाने के लिये किया गया है।
- महापाषाण का उपयोग शवों को समाधि किये जाने वाले स्थलों या स्मारक स्थलों के रूप में किया जाता था।
- यह वास्तविक समाधि अवशेषों वाले स्थल जैसे- डोलमेनोइड सिस्ट (बॉक्स के आकार के पत्थर के समाधि कक्ष), केयर्न सर्कल (परिभाषित परिधि वाले पत्थर के घेरे) और कैपस्टोन (मुख्य रूप से केरल में पाए जाने वाले विशिष्ट मशरूम के आकार के समाधि कक्ष) स्थल है।
- नश्वर अवशेषों से युक्त कलश या ताबूत आमतौर पर टेराकोटा से बना होता था तथा मेगालिथ में मेन्हीर जैसे स्मारक स्थल शामिल हैं।
- भारत में पुरातत्त्वविदों ने लौह युग (1500-500 ईसा पूर्व) में अधिकांश महापाषाण का पता लगाया है, हालाँकि कुछ स्थल लौह युग से पहले 2000 ईसा पूर्व तक के हैं।
- महापाषाण भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। अधिकांश महापाषाण स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ में), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।
मेगालिथिक/महापाषाण संरचना के विभिन्न प्रकार:
- स्टोन सर्कल्स: स्टोन सर्कल्स या पत्थर के घेरे को आमतौर पर "क्रॉमलेक" (वेल्श भाषा का शब्द) कहा जाता है, अंग्रेज़ी शब्द "क्रॉमलेक" का प्रयोग कभी-कभी इस अर्थ में किया जाता है।
- डोलमेन: डोलमेन एक महापाषाण संरचना है जो दो या दो से अधिक सहायक पत्थरों पर एक बड़े कैपस्टोन को रखकर बनाई जाती है, जो नीचे एक कक्ष बनाती है, कभी-कभी तीन तरफ से बंद होती है। इसे अक्सर मकबरे या समाधि कक्ष के रूप में उपयोग किया जाता है।
- सिस्ट: सिस्ट एक छोटा पत्थर से निर्मित ताबूत जैसा बॉक्स या अस्थि-पेटी है जिसका उपयोग मृतकों के शवों को रखने के लिये किया जाता है। समाधि संरचना में डोलमेंस के समान महापाषाण संरचना हैं। इस प्रकार के अंत्येष्टि पूरी तरह से भूमिगत थे। ये एकल और बहु-कक्षीय सिस्ट थे।
- मोनोलिथ: प्रागैतिहासिक काल में स्तंभित एकल पत्थर। जिसको कभी-कभी "मेगालिथ" और "मेनहिर" के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त, परवर्ती काल में एकल पत्थरों का वर्णन करने के लिये इस शब्द का इस्तेमाल किया गया।
- कैपस्टोन शैली: एकल मेगालिथ क्षैतिज रूप से, अक्सर समाधि स्थलों के ऊपर, पत्थरों के उपयोग के आधार के बिना रखा जाता है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 नवंबर, 2022
झारखंड राज्य गठन दिवस
15 नंवबर, 2000 को भारत संघ के 28वें राज्य के रूप में झारखंड का निर्माण हुआ। झारखंड राज्य आदिवासियों की गृहभूमि है। झारखंड में मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार और संथाल परगना के वन क्षेत्र शामिल हैं। यहाँ की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएँ हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 'झारखंड मुक्ति मोर्चा' ने नियमित रूप से आंदोलन किया, जिस कारण सरकार ने वर्ष 1995 में 'झारखंड क्षेत्र परिषद' की स्थापना की और इसके पश्चात् यह राज्य पूर्णत: अस्तित्त्व में आया। बाबूलाल मरांडी झारखंड राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। इन्होंने वर्ष 2006 में भारतीय जनता पार्टी छोड़कर 'झारखंड विकास मोर्चा' की स्थापना की थी। झारखंड भारत का एक प्रमुख राज्य है जो गंगा के मैदानी भाग के दक्षिण में है। झारखंड राज्य में बहुत बड़ी संख्या में घने वन हैं जहाँ अनेकों वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, यही कारण है कि राज्य का नाम झारखंड पड़ा है। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है तथा वन्यजीवों के संरक्षण के लिये मशहूर है। 'झारखंड' का शाब्दिक अर्थ है- "वन का क्षेत्र"। झारखंड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में ओडिशा है। औद्योगिक नगरी राँची इसकी राजधानी है। इस प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में धनबाद, बोकारो एवं जमशेदपुर शामिल हैं तथा वर्तमान समय में झारखंड राज्य के कुल ज़िलों की संख्या 24 है।
नवजात शिशु दिवस (सप्ताह)
नवजात शिशु देखभाल सप्ताह देश में प्रतिवर्ष 15 से 21 नवंबर मनाया जाता है। इस सप्ताह को मानने का उद्देश्य बच्चे की उत्तरजीविता और विकास के लिये नवजात शिशु की देखभाल के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। बच्चे की उत्तरजीविता के लिये नवजात काल की अवधि (जीवन के पहले अठाईस दिन) महत्त्वपूर्ण होते है, क्योंकि इस अवधि में बाल्यवस्था के दौरान किसी अन्य अवधि की तुलना में मृत्यु का जोखिम अधिक होता है। आजीवन स्वास्थ्य और विकास के लिये जीवन का पहला महीना आधारभूत अवधि है। स्वस्थ शिशु स्वस्थ वयस्कों में विकसित होते है, जो कि अपने समुदायों और समाजों की उन्नति एवं विकास में योगदान करते हैं। प्रतिवर्ष 26 लाख बच्चे जीवन के पहले सप्ताह में मृत्यु को प्राप्त हो जाते है तथा इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष 2.6 मिलियन बच्चे मृत जन्म लेते हैं। भारत में वर्ष 2013 में 0.75 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई, हालाँकि नवजात शिशु मृत्यु दर (NMR) वर्ष 2000 में प्रति 1000 जीवित जन्मों में 44 से घटकर वर्ष 2013 में प्रति 1000 जीवित जन्मों में 28 की गिरावट आई है। यदि हम वर्ष 2035 तक पाँच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु दर 1000 जन्में बच्चों में 20 या उससे कम करना चाहते है, तो विशिष्ट प्रयास करने होगें। नवजात मृत्यु के मुख्य कारण हैं: अपरिपक्वता, जन्म के दौरान जटिलताएँ, गंभीर संक्रमण। सभी नवजात शिशुओं में बीमारी के ज़ोखिम को कम और उनकी वृद्धि बढ़ाने एवं विकास के लिये आवश्यक नवजात शिशु देखभाल की आवश्यकता होती है।
राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा
केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कार 2022 की घोषणा की है। राष्ट्रपति 30 नवंबर, 2022 को विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करेंगी। टेबल टेनिस खिलाड़ी अचंता शरत कमल को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के लिये चुना गया है। 25 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार दिये जाएंगे। खेलों में लाईफ टाइम अचीवमेंट के लिये मेज़र ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार चार खिलाड़ियों को दिया जाएगा। इनमें अश्विनी अक्कुंजी सी, धर्मवीर सिंह, बी.सी. सुरेश नीर बहादुर गुरुंग शामिल हैं। इस पुरस्कार को पहले राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के रूप में जाना जाता था, यह भारत में किसी खिलाड़ी को दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल सम्मान है और इसे वर्ष 1991-92 में स्थापित किया गया था। यह विगत चार वर्ष की अवधि में किसी खिलाड़ी द्वारा खेल के क्षेत्र में शानदार एवं सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल पुरस्कार है। इस पुरस्कार में एक पदक, एक प्रमाण पत्र और 25 लाख रुपए का नकद पुरस्कार शामिल है।