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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 15 Jul, 2023
  • 13 min read
प्रारंभिक परीक्षा

यमुना नदी में बढ़ रहा जल स्तर

चर्चा में क्यों?  

यमुना नदी के बढ़ते जल स्तर के कारण दिल्ली इस समय गंभीर जलजमाव संकट का सामना कर रही है। जल स्तर बढ़कर 208.13 मीटर हो गया है, जो 1963 के बाद से उच्चतम दर्ज स्तर है।

यमुना के बढ़ते जल स्तर का कारण और प्रभाव:

  • कारण:  
    • हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब जैसे ऊपरी राज्यों में हाल ही में हुई भारी बारिश को यमुना नदी के स्तर में वृद्धि का मुख्य कारण माना जाता है।
    • दिल्ली में यमुना के अनियंत्रित प्रवाह के लिये ज़िम्मेदार हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ा जाना है।
  • प्रभाव:  
    • यमुना के जल स्तर में वृद्धि के कारण दिल्ली के निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ गई है, जिससे बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं तथा परिवहन एवं जल आपूर्ति भी बाधित हुई है।
    • दिल्ली में जल आपूर्ति भी प्रभावित हुई है क्योंकि दिल्ली सरकार ने यमुना के बढ़ते जल स्तर के कारण तीन जल उपचार संयंत्रों को बंद करने के पश्चात् आपूर्ति में 25% की कटौती करने का निर्णय लिया है।

यमुना नदी: 

  • परिचय: यमुना नदी उत्तर भारत में गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है।
    • यह विश्व के व्यापक जलोढ़ मैदानों में से एक यमुना-गंगा मैदान का एक अभिन्न भाग है।
  • स्रोत: इसका स्रोत निचली हिमालय पर्वतमाला में बंदरपूंँछ शिखर के दक्षिण-पश्चिमी किनारों पर 6,387 मीटर की ऊँचाई पर यमुनोत्री ग्लेशियर में स्थित है।
  • बेसिन: यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से प्रवाहित होते हुए उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम (जहाँ कुंभ मेला आयोजित होता है) स्थल पर गंगा में मिल जाती है।
  • महत्त्वपूर्ण बाँध: लखवार-व्यासी बाँध (उत्तराखंड), ताजेवाला बैराज बाँध (हरियाणा) आदि।
  • महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ: चंबल, सिंध, बेतवा और केन।
  • यमुना नदी से संबंधित सरकारी पहल:  
    • यमुना एक्शन प्लान 
    • फरवरी 2025 तक यमुना को साफ करने के लिये दिल्ली सरकार की छह सूत्री कार्य योजना

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

शुक्र के बादलों में फॉस्फीन के नए साक्ष्य

हवाई के मौना केआ वेधशाला में जेम्स क्लार्क मैक्सवेल टेलीस्कोप (JCMT) का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने शुक्र के वायुमंडल में अधिक गहरे स्तर पर फॉस्फीन का पता लगाया। 

  • वर्ष 2020 में वैज्ञानिकों ने शुक्र के बादलों में फॉस्फीन गैस की मौजूदगी का पता लगाया था।
  • उस खोज से शुक्र ग्रह पर जीवन की उपस्थिति के बारे में बहुत कुछ समझने को मिला था, इसका आधार यह था कि फॉस्फीन (जिसके बारे में हालिया अध्ययन से पता चला) पृथ्वी पर जैविक गतिविधि से जुड़ा एक अणु है।

शुक्र पर जीवन की संभावना: 

  • यह ज्ञात है कि पृथ्वी पर जो बैक्टीरिया बहुत कम ऑक्सीजन वाली स्थितियों में जीवित रह सकते हैं, फॉस्फोरस का उत्पादन कर सकते हैं।
  • शुक्र के बादलों की गहरी परतों में फॉस्फीन का पता चला है।
  • वैज्ञानिकों ने माना है कि एक ओर जहाँ फॉस्फीन का पता लगाना संभावित रूप से बायोसिग्नेचर के रूप में काम कर सकता है, वहीं इसे अन्य तंत्रों के लिये भी ज़िम्मेदार माना जा सकता है।
  • एक प्रचलित परिप्रेक्ष्य से पता चलता है कि फॉस्फीन का उत्पादन संभावित रूप से ऊपरी वायुमंडल में फॉस्फोरस युक्त चट्टानों से किया जा सकता है, इस क्रम में जल, एसिड और अन्य कारकों से जुड़ी प्रक्रियाओं के माध्यम से इनका क्षरण होने के परिणामस्वरूप फॉस्फीन गैस का उत्पादन होता है। 

फॉस्फीन  (PH3):

  • यह एक फॉस्फोरस परमाणु है जिसमें तीन हाइड्रोजन परमाणु जुड़े होते हैं और यह अत्यधिक विषैली होती है।
  • शुक्र और पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रहों पर फॉस्फीन का उत्पादन केवल जीवों द्वारा ही हो सकता है, चाहे वह मानव हो या सूक्ष्म जीव।
  • फॉस्फीन का उत्पादन प्राकृतिक रूप से अवायवीय बैक्टीरिया की कुछ प्रजातियों द्वारा होता है जो लैंडफिल, दलदली भूमि और यहाँ तक ​​कि जानवरों की आँतों में मिलते हैं।
  • फॉस्फीन का उत्पादन करने के लिये पृथ्वी के जीवाणु खनिजों या जैविक पदार्थों से फॉस्फेट प्राप्त करते हैं और इसमें हाइड्रोजन शामिल करते हैं।
  • फॉस्फीन औद्योगिक स्तर पर अजैविक रूप से भी उत्पन्न होती है।
  • प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रासायनिक हथियार के रूप में इसका उपयोग किया गया था।
  • फॉस्फीन का अभी भी एक कृषि धूम्रक के रूप में उत्पादन किया जाता है और अर्द्धचालक उद्योग में इसका उपयोग किया जाता है। 

शुक्र ग्रह के बारे में प्रमुख तथ्य: 

  • शुक्र पृथ्वी का निकटतम पड़ोसी ग्रह है। इसे पृथ्वी का जुड़वाँ बहन भी कहा जाता है।
  • संरचना में समान लेकिन पृथ्वी से थोड़ा छोटा, यह सूर्य से दूसरा ग्रह है।
  • शुक्र घने और विषैले वातावरण में लिपटा हुआ है जो गर्मी को फँसाता है।
  • सतह का तापमान 880 डिग्री फाॅरेनहाइट तक पहुँच जाता है, जो सीसा पिघलाने के लिये पर्याप्त गर्म होता है। यह सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है।
  • अत्यधिक घना, 65 मील तक फैला बादल और धुंध, वायुमंडलीय दबाव जो पृथ्वी की सतह पर महसूस होने वाले दबाव से 90 गुना अधिक दबाव डालता है।
  • इसके ग्रह का वायुमंडल मुख्य रूप से अत्यधिक दम घोंटने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों से बना है।

स्रोत: लाइवमिंट


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 जुलाई, 2023

रक्षा मंत्रालय और FSSAI द्वारा सशस्त्र बलों में कदन्न और स्वस्थ भोजन को प्रोत्साहन 

रक्षा मंत्रालय तथा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने सशस्त्र बलों के बीच कदन्न के उपयोग एवं स्वस्थ भोजन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। कदन्न पोषक तत्त्वों से भरपूर, सूखा-सहिष्णु, छोटे बीज वाले बारहमासी पौधे हैं जो अर्द्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से विकसित होते हैं। भारत विश्व में कदन्न का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा वैश्विक उत्पादन में 20% का योगदान देता है। भारत की कदन्न क्रांति एक आंदोलन है जिसका उद्देश्य कदन्न के स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, पारंपरिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना एवं छोटे पैमाने के किसानों का समर्थन करना है।

ग्रामीण और शहरी भारत PM 2.5 से लगभग समान रूप से प्रभावित 

क्लाइमेट ट्रेंड्स के एक विश्लेषण से पता चला है कि भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2022 में अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 के समान रूप से निम्न स्तर का अनुभव हुआ। यह वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये शहरी क्षेत्रों पर सरकार के दृष्टिकोण पर सवाल उठाता है। अध्ययन में कम जीवनकाल के संदर्भ में ग्रामीण आबादी पर PM2.5 के उच्च प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना (NCAP) में मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में निवेश किया गया, प्रदूषण निगरानी या शमन उपायों के बिना ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा की गई। विशेषज्ञ ग्रामीण भारत में प्रदूषण से निपटने के लिये व्यापक निगरानी नेटवर्क और नीतियों की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं। PM 2.5, 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का एक वायुमंडलीय कण है, जो मानव के बाल के व्यास का लगभग 3% है। इससे श्वसन संबंधी समस्याएँ होती हैं और दृश्यता कम हो जाती है।

और पढ़ें … भारत में वायु प्रदूषण और NCAP

कच्छ में पाई गईं नमक-सहिष्णु पौधों की नई प्रजातियाँ 

गांधीनगर स्थित गुजरात इकोलॉजिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (GEER) फाउंडेशन ने एक रोमांचक खोज की है। शोधकर्त्ताओं ने साल्सोला ओपोसिटिफोलिया डेसफोंटेनिया नामक साल्टवॉर्ट की एक पूर्व अज्ञात प्रजाति की पहचान की है। यह विशेष साल्टवॉर्ट एक बारहमासी झाड़ी है जो कच्छ ज़िले में लवण, शुष्क से अर्द्ध-शुष्क आवासों में उगती है। यह प्रजाति एमरेंथेसी फैमिली से संबंधित है। यह प्रजाति रस युक्त झाड़ी से संबंधित है जो एक से दो मीटर तक लंबी हो सकती है, इसका आधार चिकना, बेलनाकार, लकड़ी जैसा होता है।

हाल ही में प्रकाशित प्लांट डिस्कवरीज़, 2022 को जून 2023 में जारी किया गया था, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल्सोला ओपोसिटिफोलिया डेसफोंटेनिया प्रजाति, जो पहले इटली, उत्तरी अफ्रीका, फिलिस्तीन, स्पेन और पश्चिमी सहारा में पाई जाती थी, को पहली बार भारत में खोजा गया है। यह खोज गुजरात के कच्छ क्षेत्र में स्थित खादिर बेट से एकत्र किये गए नमूनों के आधार पर की गई थी।

IFSCA और IIML-EIC के बीच वित्तीय नवाचार के समर्थन हेतु साझेदारी 

IFSCA और IIML-EIC के बीच फिनटेक FinTech और टेकफिन TechFin संस्थाओं का एक सहयोगी ढाँचा स्थापित करने के लिये भारतीय प्रबंधन संस्थान लखनऊ ((IIML) में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centers Authority- IFSCA) और IIML-EIC (एंटरप्राइज़ इनक्यूबेशन सेंटर) के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गए हैं। IFSCA, नियामक प्राधिकरण के रूप में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) के भीतर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के विकास और विनियमन की ज़िम्मेदारी रखता है। यह विशिष्ट वित्तीय क्षेत्राधिकार शेष भारत से भिन्न माना जाता है। IFSCA की स्थापना वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण अधिनियम, 2019 के तहत की गई है। इसका मुख्यालय गुजरात के GIFT सिटी, गांधीनगर में है। IIML-EIC एक पंजीकृत गैर-लाभकारी संगठन है। इसकी स्थापना विशेष रूप से बिग डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, औद्योगिक IoT, डिजिटल हेल्थकेयर, क्लाउड सर्विसेज़, वर्चुअल रियलिटी और 3D प्रिंटिंग के क्षेत्र में उच्च प्रदर्शन वाले स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। 


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