गाँठदार त्वचा रोग
हाल ही में गुजरात राज्य के पांँच ज़िलों में लगभग 1,229 मवेशी ‘गाँठदार त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease- LSD) से संक्रमित हुए हैं।
‘गाँठदार त्वचा रोग के बारे में:
- ‘गाँठदार त्वचा रोग का कारण:
- LSD मवेशियों या भैंस के पॉक्सवायरस लम्पी स्किन डिज़ीज़ वायरस (LSDV) के संक्रमण के कारण होता है।
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार, LSD की मृत्यु दर 10% से कम है।
- ‘गाँठदार त्वचा रोग’ को पहली बार वर्ष 1929 में जाम्बिया में एक महामारी के रूप में देखा गया था। प्रारंभ में यह या तो ज़हर या कीड़े के काटने का अतिसंवेदनशील परिणाम माना जाता था।
- संक्रमण:
- गाँठदार त्वचा रोग मुख्य रूप से मच्छरों और मक्खियों के काटने, कीड़ों (वैक्टर) के काटने से जानवरों में फैलता है।
- लक्षण:
- इसमें मुख्य रूप से बुखार, आंँखों और नाक से तरल पदार्थ का निकलना, मुंँह से लार का टपकना शरीर पर छाले होते हैं।
- इस रोग से पीड़ित पशु खाना बंद कर देता है और चबाने या खाने के दौरान समस्याओं का सामना करता है, जिसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन कम हो जाता है।
- रोकथाम और उपचार:
- इन बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण भारत के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत किया जाता है।
- ‘गाँठदार त्वचाा रोग के उपचार के लिये कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवाएंँ उपलब्ध नहीं हैं। उपलब्ध एकमात्र उपचार मवेशियों की सहायक देखभाल है। इसमें घाव देखभाल, स्प्रे का उपयोग करके त्वचा के घावों का उपचार और द्वितीयक त्वचा संक्रमण तथा निमोनिया को रोकने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग शामिल हो सकता है।
- प्रभावित जानवरों की भूख को बनाए रखने के लिये एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatories) दर्द निवारक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
संत तुकाराम
हाल ही में प्रधानमंत्री ने पुणे ज़िले के मंदिर शहर देहू में संत तुकाराम शिला मंदिर का उद्घाटन किया।
- शिला मंदिर एक पत्थर के स्लैब (शिला) को समर्पित मंदिर है जिस पर संत तुकाराम ने 13 दिनों तक ध्यान किया।
- शिला एक चट्टान को संदर्भित करती है जो वर्तमान में देहु संस्थान मंदिर परिसर में स्थित है और सदियों से पंढरपुर की वार्षिक तीर्थयात्रा वारी का प्रारंभिक बिंदु रही है।
- जिस चट्टान पर उन्होंने 13 दिनों तक बैेठकर ध्यान किया, वह पवित्र और वरकरी संप्रदाय के लिये तीर्थस्थल माना जाता है।
संत तुकाराम:
- परिचय:
- संत तुकाराम एक वरकरी संत और कवि थे।
- यह संप्रदाय पूरे महाराष्ट्र में फैला हुआ है और इसके केंद्र में संत तुकाराम एवं उनके कार्य हैं।
- वह अभ्यंग भक्ति कविता और कीर्तन के नाम से उल्लेखनीय आध्यात्मिक गीतों के माध्यम से समुदाय-उन्मुख पूजा के लिये प्रसिद्ध थे।
- इसके अलावा उन्होंने अभंग कविता नामक साहित्य की एक मराठी शैली की रचना की, जिसमें आध्यात्मिक विषयों के साथ-साथ लोक कहानियों को सम्मिलित किया गया है।
- संत तुकाराम एक वरकरी संत और कवि थे।
- उनका दर्शन:
- तुकाराम ने अपने ‘अभ्यंग’ साहित्य में चार और लोगों का उल्लेख किया है, जिनका उनके आध्यात्मिक विकास पर बड़ा प्रभाव था- भक्ति संत नामदेव, ज्ञानेश्वर, कबीर एवं एकनाथ।
- तुकाराम की शिक्षाओं को वेदांत आधारित माना जाता था।
- सामाजिक सुधार:
- जातिविहीन समाज के बारे में उनके संदेश के परिणामस्वरूप और अनुष्ठानों के इनकार ने सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया था।
- उनके अभ्यंग, समाज के ब्राह्मणवादी प्रभुत्व के खिलाफ मज़बूत हथियार बन गए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 जून, 2022
स्ट्रॉबेरीमून
स्पष्ट आसमान के कारण ब्रिटेन के अधिकांश हिस्सों में दिखाई देने वाले ‘स्ट्राबेरी मून’ की आश्चर्यजनक छवियाँ प्राप्त हुई हैं। स्ट्रॉबेरी मून का नाम इस विशेष पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा के लाल, गुलाबी रंग से आया है, यह घटना जून में देखी जाती है। इसे एक विशेष अमेरिकी समय से संबंध के कारण भी इस तरह का नाम दिया गया है, जहाँ साल का यह समय आमतौर पर स्ट्रॉबेरी चुनने के मौसम की शुरुआत का का होता है। यह स्ट्रॉबेरी मून सामान्य से बड़ा और चमकीला है क्योंकि यह वर्ष का पहला सुपरमून भी है। वर्ष के दौरान हर 30 दिनों में पूर्णिमा होती है और इसलिये स्ट्रॉबेरी मून कभी भी उसी दिन नहीं दिखाई देता है। उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप में प्राचीन जनजातियों ने चंद्रमा को एक कैलेंडर के रूप में इस्तेमाल किया क्योंकि इसके बदलते चरणों का पालन करना आसान था। उन्होंने प्रत्येक वर्ष के दौरान प्रत्येक पूर्णिमा को मौसम और सभी अपेक्षित प्राकृतिक एवं मानवीय गतिविधियों पर नज़र रखने में मदद करने के लिये विभिन्न नाम दिये।
विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस
हर साल 15 जून को विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस (World Elder Abuse Awareness Day) मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में बुजुर्ग आबादी के साथ दुर्व्यवहार (मौखिक, शारीरिक या भावनात्मक) के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है। 15 जून को बुजुर्गों के लिये एक विशेष दिन के रूप में घोषित करने के अनुरोध के बाद से जून 2006 में इस दिन को मनाया जाने लगा। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा आधिकारिक तौर पर वर्ष 2011 में इस दिन को मान्यता प्रदान की गई थी। वर्ष 2021 में कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र यह दिन और अधिक प्रासंगिक हो जाता है, जिसने दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। महामारी वृद्ध लोगों के लिये भय और पीड़ा का कारण बन रही है। उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करने के अलावा महामारी वृद्ध लोगों को गरीबी, भेदभाव एवं अलगाव के प्रति संवेदनशील बना रही है जो उन्हें कोविड-19 प्रेरित जटिलताओं के बढ़ते जोखिम में डाल रही है। वृद्ध व्यक्तियों को भी चिकित्सा देखभाल तथा जीवन रक्षक उपचारों के संबंध में उम्र संबंधी भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
कबीर जयंती
14 जून को देश भर में कबीर जयंती मनाई गई। इस दिन महान संत कबीरदास का जन्म हुआ हुआ था। कबीर दास जयंती हिंदू चंद्र कैलेंडर (Hindu Lunar Calendar) के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। संत कबीर दास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था। वह 15वीं शताब्दी के रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक तथा भक्ति आंदोलन के प्रस्तावक थे। कबीर की विरासत अभी भी ‘कबीर का पंथ’ (एक धार्मिक समुदाय जो उन्हें संस्थापक मानता है) नामक पंथ के माध्यम से चल रही है। उनके छंद सिख धर्म के ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में पाए जाते हैं। उनके प्रमुख कार्यों का संकलन पाँचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा किया गया था। उन्होंने अपने दो-पंक्ति के दोहों के लिये सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की, जिन्हें 'कबीर के दोहे' के नाम से जाना जाता है। कबीर की कृतियाँ हिंदी भाषा में लिखी गईं, जिन्हें समझना आसान था। लोगों को जागरूक करने के लिये वह अपने लेख दोहों के रूप में लिखते थे।