भारत के स्मार्ट सिटीज़ मिशन की स्थिति
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय का 3 नवंबर, 2023 तक का नवीनतम डेटा, भारत के स्मार्ट सिटीज़ मिशन की स्थिति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
- जैसे-जैसे मिशन की जून 2024 की समय-सीमा नज़दीक आ रही है, रिपोर्ट उच्चतम प्रदर्शन करने वाले शहरों, वित्तीय उपलब्धियाँ और परियोजना के पूरा होने के संबंध में भौगोलिक अंतर पर प्रकाश डालती है।
भारत के स्मार्ट सिटीज़ मिशन की स्थिति संबंधी मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- परियोजनाओं को पूरा करने में अग्रणी शहर:
- सूरत (गुजरात) परियोजनाओं को पूरा करने, फंड के उपयोग और समग्र मानदंडों में अग्रणी होकर शीर्ष प्रदर्शन करने वाला शहर बनकर उभरा है।
- आगरा (उत्तर प्रदेश), अहमदाबाद (गुजरात), वाराणसी (यूपी) और भोपाल (मध्य प्रदेश) ने सराहनीय प्रगति दर्शाते हुए शीर्ष पाँच शहरों में स्थान हासिल किया है।
- बाकी शीर्ष 10 में तुमकुरु (कर्नाटक), उदयपुर (राजस्थान), मदुरै (तमिलनाडु), कोटा (राजस्थान) और शिवमोग्गा (कर्नाटक) शामिल हैं।
- क्षेत्रीय असमानताएँ:
- केंद्रशासित प्रदेश (UT) और पूर्वोत्तर राज्यों के शहरों को निचले 10 शहरों में स्थान मिला है।
- निचले 10 शहरों में कवरत्ती (लक्षद्वीप), पुद्दुचेरी, पोर्ट ब्लेयर (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह), इंफाल (मणिपुर), शिलांग (मेघालय), दीव, गुवाहाटी (असम), आइज़ोल (मिज़ोरम), गंगटोक (सिक्किम) तथा पासीघाट (अरुणाचल प्रदेश) शामिल हैं।
- सूत्र छोटे शहरों में धीमी प्रगति का कारण उनकी क्षमता में कमी को मानते हैं और इन शहरी केंद्रों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों से निपटने के अनुरूप रणनीतियों की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- केंद्रशासित प्रदेश (UT) और पूर्वोत्तर राज्यों के शहरों को निचले 10 शहरों में स्थान मिला है।
- समग्र परियोजना परिदृश्य:
- कुल परियोजनाओं में से लगभग 22% (7,947 में से 1,745) जिनकी लागत 1.70 लाख करोड़ रुपए यानी कुल लागत का 33% है, अभी भी प्रगति पर हैं। अधिकांश परियोजनाएँ (6,202) पूरी हो चुकी हैं, जो मिशन के दायरे और लागत पर प्रकाश डालता है।
नोट: सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन की समय-सीमा को एक वर्ष बढ़ाकर जून 2023 से जून 2024 करने का निर्णय लिया है।
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पूर्वोत्तर में पारंपरिक बीज संरक्षण पद्धतियाँ
स्रोत: डाउन टू अर्थ
नगालैंड में आओ और सुमी नगा समुदाय पीढ़ियों से चली आ रही प्रथाओं का पालन करते हुए पारंपरिक बीज संरक्षण प्रथाओं, उगाई गई फसल से प्राप्त बीजों को क्रमिक चक्रों के लिये संरक्षित करते हैं।
- परंपरागत रूप से कृषि प्रधान, आओ और सुमी नगा समुदाय झूम या स्थानान्तरी कृषि (Jhum or Shifting Cultivation) करते हैं।
नोट: बीज संरक्षण से तात्पर्य भविष्य में उपयोग के लिये जान-बूझकर पौधों से बीज का भंडारण करना है। इसमें विशिष्ट परिस्थितियों में बीजों को इकट्ठा करना, भंडारण करना तथा उनका रखरखाव करना शामिल है ताकि रोपण के समय उनकी व्यवहार्यता एवं अंकुरित होने की क्षमता सुनिश्चित की जा सके।
- बीज संरक्षण का लक्ष्य आनुवंशिक विविधता की रक्षा करना, पौधों की प्रजातियों का संरक्षण करना और कृषि उत्पादकता को बनाए रखना है।
नगालैंड के आओ और सुमी नगा समुदाय कौन हैं?
- आओ नगा समुदाय:
- आओ नगा जनजाति मुख्य रूप से नगालैंड के मोकोकचुंग ज़िले में रहती है, जो त्सुला (दिखु) घाटी से लेकर त्सुरंग (दिसाई) घाटी तक फैली हुई है।
- माना जाता है कि आओ नगा इंडोनेशिया, मलेशिया और म्याँमार जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से आए हैं, जो मंगोलियाई वंश की नगा जनजातियों का हिस्सा हैं।
- आओ जनजाति के अंदर दो नस्लीय समूह, मोंगसेन और चोंगली, अलग-अलग उप समुदाय हैं।
- आओ समुदाय ईसाई धर्म एवं पश्चिमी शिक्षा अपनाने वाले पहला नगा समुदाय बना।
- सुमी नगा समुदाय:
- सुमी नगा लोग नगालैंड का एक और स्वदेशी समुदाय है जो अपनी अनूठी सांस्कृतिक प्रथाओं एवं समृद्ध कृषि विरासत के लिये जाना जाता है।
- वे तुलुनी, अहुना और सुखेनेये जैसे विभिन्न त्योहार मनाते हैं, जो अमूमन पारंपरिक नृत्यों, गीतों तथा भोज के साथ कृषि चक्रों पर केंद्रित होते हैं।
- कई अन्य नगा जनजातियों के समान, सुमी नगा पारंपरिक रूप से झूम अथवा स्थानांतरित खेती करते थे, जिसमें वे चावल, बाजरा, सेम, दाल, काली मिर्च तथा तंबाकू जैसी फसलें उगाते थे।
स्थानान्तरी कृषि क्या है?
- स्थानान्तरी कृषि, जिसे स्थानीय भाषा में 'झूम' कहा जाता है, पूर्वोत्तर भारत के स्वदेशी समुदायों के बीच कृषि की एक व्यापक रूप से प्रचलित प्रणाली है।
- इस प्रथा को स्लैश-एंड-बर्न कृषि के रूप में भी जाना जाता है, इसमें किसान कृषि उद्देश्यों के लिये भूमि निर्माण हेतु वनस्पति को काटकर और जंगलों एवं वुडलैंड्स को जलाकर भूमि को साफ करते हैं।
- यह कृषि के लिये भूमि तैयार करने का एक बहुत आसान और बहुत तीव्र तरीका प्रदान करता है।
- झाड़ी और खरपतवार को आसानी से हटाया जा सकता है। अपशिष्ट पदार्थों को जलाने से कृषि के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व मिलते हैं।
- यह एक परिवार को भोजन, चारा, ईंधन, आजीविका देता है तथा उनकी पहचान से निकटता से जुड़ा हुआ है।
- जंगलों और वृक्षों की कटाई के कारण इस प्रथा से मृदा का क्षरण होता है और नदियों के प्रवाह पर भी असर पड़ सकता है।
अमरनाथ गुफा तीर्थ तक मोटर योग्य सड़क
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) ने एक मोटर योग्य सड़क का निर्माण पूरा कर लिया है जो कश्मीर की लिद्दर घाटी में अमरनाथ गुफा तीर्थ को बालटाल आधार शिविर से जोड़ती है, जिससे भक्तों के लिये तीर्थयात्रा अधिक सुलभ और आरामदायक हो गई है।
- यह सुविधा बालटाल सड़क (Baltal Road) के सफल उन्नयन के परिणामस्वरूप प्राप्त हुई, जो प्रोजेक्ट बीकन (Project Beacon) के निरंतर प्रयासों के माध्यम से हासिल की गई एक उपलब्धि है।
नोट:
- प्रोजेक्ट बीकन BRO का सबसे पुराना उपक्रम है, इसकी स्थापना 18 मई, 1960 को हुई थी, इसका मुख्यालय श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में था।
- इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत वर्तमान में कश्मीर के प्रमुख क्षेत्रों में सड़क अवसंरचना के विकास एवं रखरखाव का ध्यान रखा जाता है।
अमरनाथ गुफा तीर्थ के संबंध में प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- अमरनाथ पर्वत के दक्षिण में एक गुफा है जो अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध है। यह गुफा अमरनाथ मंदिर स्थल है, जो भारत के जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग ज़िले की पहलगाम तहसील में स्थित एक प्रमुख हिंदू मंदिर है।
- यह तीर्थ स्थल 3,800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जो तीर्थयात्रा की चुनौतीपूर्ण प्रकृति में योगदान देता है।
- अमरनाथ शिखर, हिमालय का एक हिस्सा, जम्मू-कश्मीर के गांदरबल ज़िले में, सोनमर्ग के आसपास, 5,186 मीटर की ऊँचाई वाला एक पर्वत है
- अमरनाथ यात्रा अमरनाथ गुफा की एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जहाँ भक्त बर्फ द्वारा निर्मित एक आकृति पर श्रद्धा अर्पित करते हैं, जिसे भगवान शिव का लिंग (शिवलिंग) माना जाता है।
- बर्फ की वह आकृति प्रत्येक वर्ष गर्मियों के महीनों के दौरान बनती है तथा जुलाई और अगस्त में अपने अधिकतम आकार तक पहुँच जाती है, जब हज़ारों हिंदू श्रद्धालु गुफा की वार्षिक तीर्थयात्रा करते हैं।
- पारंपरिक पहुँच मार्ग:
- तीर्थयात्री ऐतिहासिक रूप से दो मार्गों पहलगाम और सोनमर्ग के माध्यम से मंदिर तक पहुँचते थे, दोनों लिद्दर घाटी में स्थित हैं, प्रत्येक मार्ग कठिन चुनौतियाँ पेश करता था।
- तीर्थयात्रियों के पास मंदिर से 6 किमी. दूर स्थित बालटाल से पंचतरणी तक हेलिकॉप्टर सेवाओं का उपयोग करने का विकल्प भी था। हालाँकि पारिस्थितिक चिंताओं के कारण सीधे मंदिर तक सेवाएँ बंद कर दी गईं।
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 नवंबर, 2023
शहरों के लिये AAINA डैशबोर्ड
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने 'AAINA डैशबोर्ड फॉर सिटीज़' पोर्टल लॉन्च किया, जो शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को स्वेच्छा से प्रमुख डेटा प्रस्तुत करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- AAINA का लक्ष्य शहरों को दूसरों के सापेक्ष उनके प्रदर्शन का आकलन करने में सहायता करना है। संभावनाओं और वृद्धि के क्षेत्रों को उजागर करके शहरों को प्रेरित करना है।
- डैशबोर्ड डेटा को पाँच स्तंभों में वर्गीकृत करता है: राजनीतिक एवं प्रशासनिक संरचना, वित्त, योजना, नागरिक-केंद्रित शासन और बुनियादी सेवाओं की डिलीवरी।
- ULB एक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल पोर्टल के माध्यम से नियमित रूप से ऑडिट किये गए खातों और स्व-रिपोर्ट किये गए प्रदर्शन मेट्रिक्स सहित डेटा जमा करेंगे।
- AAINA की कल्पना ULB-संबंधित डेटा के लिये एक स्थायी मंच के रूप में की गई है, जो प्रमुख प्रदर्शन मेट्रिक्स का एक व्यापक डेटाबेस है।
- सक्रिय ULB सहयोग के साथ डैशबोर्ड का लक्ष्य एक सार्वजनिक संसाधन सुनिश्चित करना है, जो हितधारकों को एकत्रित डेटा तक पहुँचने और उसका उपयोग करने की अनुमति देता है।
और पढ़ें…भारत में शहरी स्थानीय शासन
ज़ाग्लोसस एटनबरोई
हाल ही में वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया के पापुआ क्षेत्र में प्रकृतिवादी डेविड एटनबरो के नाम पर लंबी चोंच वाली इकिडना, रहस्यमयी ज़ाग्लोसस एटनबरोई (Zaglossus Attenboroughi) की फिर से खोज की है।
- इकिडना जो कि मोनोट्रीम समूह का हिस्सा हैं, ये जीवित जन्म देने के बजाय अंडे देने वाले अद्वितीय स्तनधारी हैं। इन्हें स्पाइनी एंटईटर्स के रूप में भी जाना जाता है, उनके शरीर पर नुकीले कांटे होते हैं और ये मुख्य रूप से चींटियों और दीमकों को खाते हैं।
- इकिडना, विशेष रूप से ज़ाग्लोसस एटनबोरोई, रात्रिचर और शर्मीले होते हैं, जिससे उनकी खोज चुनौतीपूर्ण हो जाती है। यह प्रजाति सुदूर साइक्लोप्स पर्वत तक ही सीमित थी।
- प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) की रेड लिस्ट: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट II
विश्व मधुमेह दिवस
विश्व मधुमेह दिवस (WDD) प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को मनाया जाता है, जो चार्ल्स बेस्ट के साथ वर्ष 1922 में इंसुलिन के सह-खोजकर्ता सर फ्रेडरिक बैंटिंग के जन्मदिन को चिह्नित करता है।
- उत्पत्ति: WDD की शुरुआत वर्ष 1991 में मधुमेह के बढ़ते स्वास्थ्य खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (IDF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गई।
- आधिकारिक मान्यता: वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र संकल्प 61/225 को अपनाने के माध्यम से WDD को संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में आधिकारिक मान्यता मिली।
- अभियान: WDD अभियान का लक्ष्य समग्र वर्ष IDF समर्थित प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिये मुख्य माध्यम के रूप में कार्य करना है।
- लोगो: वर्ष 2007 में अपनाया गया इसका लोगो नीला घेरा इंगित करता है जो मधुमेह के प्रति जागरूकता का प्रतीक है।
थीम (2021-23): 2021-23 के लिये इसकी थीम ‘एक्सेस टू डायबिटीज़ केयर’ है।
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पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती
प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने के लिये बाल दिवस मनाया जाता है।
- जवाहरलाल नेहरू को प्यार से 'चाचा नेहरू' भी कहा जाता था और वह बच्चों के प्रति अपने स्नेह, उनकी देखभाल तथा शिक्षा एवं अधिकारों का समर्थन करने के लिये प्रसिद्ध थे।
- उनके निधन के बाद भारत में उनके जन्मदिन को 'बाल दिवस' या चिल्ड्रेन्स डे (Children's Day) के रूप में मनाने के लिये सामूहिक रूप से सहमति व्यक्त की गई।
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