हाइड्रोजन उत्पादन के लिये क्षारीय समुद्री जल इलेक्ट्रोलाइज़र
हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी केंद्र (IIT) मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने मौजूदा जल इलेक्ट्रोलाइज़र प्रौद्योगिकी से संबंधित चुनौतियों का समाधान करते हुए हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिये क्षारीय समुद्री जल इलेक्ट्रोलाइज़र विकसित किया है।
- क्षारीय जल इलेक्ट्रोलाइज़र (Alkaline Water Electrolyzer) एक ऊर्जा-गहन तकनीक है, इसके लिये एक महँगे ऑक्साइड-बहुलक विभाजक की आवश्यकता होती है और इसमें इलेक्ट्रोलिसिस हेतु ताज़े जल का उपयोग किया जाता है। सरल, स्केलेबल एवं लागत प्रभावी विकल्पों को विकसित करके इस आविष्कार ने संबद्ध प्रत्येक चुनौती का समाधान कर दिया है तथा यह हाइड्रोजन उत्पन्न करने में अत्यधिक कुशल है।
प्रमुख बिंदु
- कार्बन आधारित सहायक उत्प्रेरक:
- क्षारीय जल इलेक्ट्रोलाइज़र में एनोड और कैथोड पर दो अभिक्रियाएँ होती हैं। कैथोड पर जल H+ एवं हाइड्रॉक्साइड आयनों में विभाजित हो जाता है। H+ आयन हाइड्रोजन बन जाते हैं, जबकि हाइड्रॉक्साइड आयन विभाजक से गुज़रते हैं तथा एनोड पर ऑक्सीजन बनाते हैं।
- हालाँकि जब समुद्री जल का उपयोग किया जाता है, तो चुनौतियाँ होती हैं। एनोड हाइपोक्लोराइट बनाता है, जो इलेक्ट्रोड सहायक पदार्थ को खराब करता है और ऑक्सीजन उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्द्धा करता है। कैथोड में अशुद्धियाँ होती हैं जो हाइड्रोजन उत्पादन को धीमा कर देती हैं।
- इन चुनौतियों का समाधान करने हेतु इलेक्ट्रोड में उत्प्रेरक के साथ लेपित एक विशेष सहायक सामग्री होती है। समुद्री जल को संक्षारित करने वाली धातुओं का उपयोग करने के बजाय कार्बन आधारित सामग्री का उपयोग किया जाता है।
- एनोड और कैथोड दोनों में पाई जाने वाला यह सहायक पदार्थ उत्प्रेरक के साथ लेपित होता है। उत्प्रेरक एक साथ हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के बेहतर उत्पादन को सक्षम बनाता है।
- सेल्यूलोज़ आधारित विभाजक:
- आमतौर पर क्षारीय इलेक्ट्रोलिसिस में एनोड और कैथोड को अलग करने के लिये एक महँगी ज़िरकोनियम ऑक्साइड-आधारित सामग्री का उपयोग किया जाता है।
- हालाँकि शोधकर्त्ताओं ने सेल्यूलोज़-आधारित विभाजक का उपयोग किया है। यह विभाजक हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के क्रॉसओवर को कम करते हुए हाइड्रॉक्साइड आयनों को कैथोड से एनोड तक जाने की अनुमति देता है।
- समुद्री जल के संपर्क में आने पर यह विभाजक गिरावट हेतु अत्यधिक प्रतिरोधी है। दीर्घकालिक प्रदर्शन और स्थायित्व के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण गुण है।
इस आविष्कार का महत्त्व:
- यह आविष्कार वर्तमान तकनीकों की सीमाओं को संबोधित करता है और स्केलेबल तथा टिकाऊ हाइड्रोजन उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करता है, जो एक हरित एवं अधिक टिकाऊ भविष्य में योगदान देता है।
हरित हाइड्रोजन के विकास के पीछे प्रमुख कारण:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना:
- ग्रीन हाइड्रोजन विकसित करने का प्राथमिक कारण है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और जलवायु परिवर्तन का शमन करना। परिवहन एवं विद्युत उत्पादन के लिये जीवाश्म ईंधन का उपयोग वैश्विक उत्सर्जन का एक प्रमुख योगदानकर्त्ता है।
- नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित हरित हाइड्रोजन ग्रीनहाउस गैसों का शून्य उत्सर्जन करता है, जो इसे एक सतत्/संवहनीय और पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोत बनाता है।
- ऊर्जा सुरक्षा और स्वतंत्रता:
- जीवाश्म ईंधन सीमित संसाधन हैं और वैश्विक आपूर्ति एवं मांग के आधार पर उनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है। हरित हाइड्रोजन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को विकसित करके दुनिया के देश अधिक ऊर्जा-स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बन सकते हैं तथा मूल्य में उतार-चढ़ाव संबंधी झटकों एवं आपूर्ति बाधाओं के प्रति कम संवेदनशील बन सकते हैं।
- ऐसे क्षेत्र में डीकार्बोनाइज़ेशन जहाँ यह मुश्किल हो:
- जीवाश्म ईंधन को हरित हाइड्रोजन से प्रतिस्थापित करने की व्यापक संभावना मौजूद है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जिन्हें डीकार्बोनाइज़ करना कठिन है (जैसे कि भारी उद्योग और विमानन क्षेत्र)। ये क्षेत्र वैश्विक उत्सर्जन में उल्लेखनीय योगदान देते हैं और हरित हाइड्रोजन का उपयोग उनके ‘कार्बन फुटप्रिंट’ को कम करने में मदद कर सकता है।
- प्रौद्योगिकी प्रगति:
- हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी उन्नति विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देती है। हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण और वितरण के लिये बुनियादी ढाँचा विकसित करने के लिये नई तकनीकों, सामग्रियों एवं प्रणालियों की आवश्यकता है। यह संबंधित उद्योगों में प्रगति तथा सफलताओं को प्रोत्साहित करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित भारी उद्योगों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त उद्योगों में से कितने को डीकार्बोनाइज़ करने हेतु हरित हाइड्रोजन (ग्रीन हाइड्रोजन) की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है? (a) केवल एक उत्तर: (c) प्रश्न. हरित हाइड्रोजन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं? (a) केवल एक उत्तर: (c) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय रेलवे में इंटरलॉकिंग प्रणाली
ओडिशा के बालासोर ज़िले में विनाशकारी ट्रेन दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिये जाँच चल रही है। इस घटना ने रेलवे द्वारा उपयोग किये जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक ट्रैक प्रबंधन प्रणाली के विषय में चिंता जताई है।
- भारतीय रेल मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव को दुर्घटना के प्राथमिक कारक के रूप में माना है।
भारतीय रेलवे में इंटरलॉकिंग प्रणाली:
- परिचय:
- इंटरलॉकिंग प्रणाली एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा तंत्र को संदर्भित करती है जिसका उपयोग ट्रेन की आवाजाही को नियंत्रित करने और रेलवे स्टेशनों एवं जंक्शनों पर सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने हेतु किया जाता है।
- यह सिग्नल, पॉइंट (स्विच) और ट्रैक सर्किट का परस्पर एक जटिल नेटवर्क है जो गलत संचालन और टकरावों को रोकने हेतु एक साथ काम करते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI): यह सिग्नल, पॉइंट और लेवल-क्रॉसिंग गेट को नियंत्रित करने के लिये कंप्यूटर-आधारित प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग करता है।
- पारंपरिक रिले इंटरलॉकिंग प्रणाली के विपरीत EI इंटरलॉकिंग लॉजिक को प्रबंधित करने के लिये सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक घटकों का उपयोग करता है।
- EI ट्रेन की निर्बाध आवाजाही को सुगम बनाने के लिये सभी घटकों का तालमेल सुनिश्चित करता है।
- वर्ष 2022 तक भारत में 2,888 रेलवे स्टेशन इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से लैस थे, जिसमें भारतीय रेलवे नेटवर्क का 45.5% शामिल था।
- इंटरलॉकिंग प्रणाली एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा तंत्र को संदर्भित करती है जिसका उपयोग ट्रेन की आवाजाही को नियंत्रित करने और रेलवे स्टेशनों एवं जंक्शनों पर सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने हेतु किया जाता है।
भारतीय रेलवे नेटवर्क:
- भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है, इसके माध्यम से सालाना औसतन आठ अरब लोग यात्रा करते हैं।
- भारतीय रेलवे नेटवर्क 68,000 किमी. से अधिक फैला हुआ है और इसमें 1,02,831 किमी. के रनिंग ट्रैक के साथ 7,000 से अधिक स्टेशन शामिल हैं।
- 31 मार्च, 2022 तक साइडिंग, यार्ड और क्रॉसिंग सहित ट्रैक की कुल लंबाई 1,28,305 किलोमीटर है।
- इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के घटक:
- सिग्नल: सिग्नल आगे ट्रैक की स्थिति के आधार पर ट्रेनों को रोकने (लाल), आगे बढ़ने (हरा), या सावधानी बरतने (पीला) हेतु निर्देशित करने के लिये प्रकाश संकेतक का उपयोग करते हैं।
- पॉइंट: पॉइंट्स ट्रैक्स के मूवेबल सेक्शन होते हैं जो ट्रेनों के पहियों को सीधे या डायवर्ज़िंग पथ की ओर निर्देशित करके लाइन बदलने में सक्षम बनाते हैं।
- इलेक्ट्रिक पॉइंट मशीनें वांछित स्थिति में पॉइंट स्विच को लॉक और अनलॉक करती हैं।
- ट्रैक सर्किट: ट्रैक पर लगे इलेक्ट्रिकल सर्किट दो बिंदुओं के बीच ट्रेन की उपस्थिति का पता लगाते हैं, जिससे ट्रेन की आवाजाही की सुरक्षा का निर्धारण होता है।
- अतिरिक्त घटक: इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, संचार उपकरण और अन्य उपकरण सिग्नलिंग घटकों को नियंत्रित करते हैं तथा दोहरे लॉक एक्सेस कंट्रोल वाले रिले रूम में रखे जाते हैं।
- एक डेटा लॉगर सभी सिस्टम की गतिविधियों को रिकॉर्ड करता है, जो एक विमान के ब्लैक बॉक्स के समान रिकॉर्डर के रूप में कार्य करता है।
- प्रणाली की क्रियात्मकता:
- कमांड रिसेप्शन और रूट सेटिंग: ऑपरेटरों अथवा स्वचालित नियंत्रण प्रणालियों से इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम को कमांड किया जाता है, इसके बाद यार्ड से जानकारी एकत्र की जाती है और ट्रेनों के अनुसरण के लिये एक सुरक्षित मार्ग निर्धारित किया जाता है।
- संरेखण और इंटरलॉकिंग: एक बार मार्ग निर्धारित हो जाने के बाद यह प्रणाली आवश्यक ट्रैक स्विच (बिंदुओं) को संरेखित करती है और वांछित मार्ग के निर्धारण के लिये उपयुक्त स्थिति में सिग्नलिंग उपकरणों को इंटरलॉक करती है।
- ट्रेन के आगे बढ़ने के लिये सिग्नल: ट्रैक की दिशा और डायवर्ज़िंग ट्रैक पर अवरोधों की अनुपस्थिति के आधार पर ट्रेनों को आगे बढ़ने के लिये सिग्नल अथवा संकेत दिये जाते हैं।
- यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें नेटवर्क/संजाल के माध्यम से सुरक्षित और सुचारु रूप से संचालन कर सकें।
- टकराव की रोकथाम: यह प्रणाली ट्रेनों की उपस्थिति का पता लगाने के लिये ट्रैक सर्किट का उपयोग करती है।
- इन सर्किटों की निगरानी करके यह प्रणाली कई ट्रेनों को एक ही ब्लॉक अथवा परस्पर विरोधी रास्तों पर चलने से रोकती है, जिससे टकराव के जोखिम में कमी आती है।
- प्वाइंट लॉकिंग: प्वाइंट्स (स्विच) कुछ शर्तों के पूरा होने तक स्थिति में लॉक रहते हैं, जैसे कि ट्रेन ट्रैक के एक विशिष्ट खंड को पार करती है या सिग्नल वापस ले लिया जाता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि बिंदु सही ढंग से संरेखित हैं और ट्रेन की आवाजाही के लिये सुरक्षित हैं।
- विफलता के संकेत: विफलता या खराबी की स्थिति में सिस्टम ऑपरेटरों या रखरखाव कर्मियों को सचेत करता है।
- एक सामान्य तरीका लाल बत्ती सिग्नल का उपयोग है जो यह दर्शाता है कि सिस्टम ने एक समस्या का पता लगाया है और आगे का मार्ग स्पष्ट या सुरक्षित नहीं है।
- यह समस्या को हल करने और सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने के लिये उचित कार्रवाई करने का संकेत देता है।
स्रोत: द हिंदू
भारत का पहला डाइमिथाइल ईथर ईंधन चालित ट्रैक्टर
हाल ही में IIT कानपुर ने सभी प्रकार की सडकों पर संचालन के लिये भारत के पहले 100% डाइमिथाइल ईथर (DME) संचालित ट्रैक्टर/वाहन का निर्माण किया है, जो मानक डीज़ल इंजन की तुलना में उच्च तापीय दक्षता रखता है और साथ ही इससे काफी कम प्रदूषण उत्पन्न होता है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के एक भाग, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB) ने इस अनुसंधान का समर्थन किया है।
- यह परियोजना नीति आयोग के 'मेथनॉल अर्थव्यवस्था' कार्यक्रम के साथ संरेखित है जिसका उद्देश्य भारत के तेल आयात बिल और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है।
डाइमिथाइल ईथर ईंधन से संबंधित मुख्य बिंदु:
- परिचय:
- यह एक कृत्रिम रूप से उत्पादित वैकल्पिक ईंधन है जिसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये विशेष रूप से अभिकल्पित किये गए कंप्रेस्ड इग्निशन डीज़ल इंजनों में सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है।
- यह कच्चे तेल का एक अक्षय विकल्प है।
- जापान, अमेरिका, चीन, स्वीडन, डेनमार्क और कोरिया सहित कई देश पहले से ही अपने वाहनों हेतु इसका का उपयोग कर रहे हैं।
- विशेषता:
- सामान्य वायुमंडलीय परिस्थितियों में DME एक रंगहीन गैस है।
- DME तुलनीय कैलोरी मान और पारंपरिक ईंधन के लिये इसकी तापीय दक्षता की समानता प्रदर्शित करता है यह कम उत्सर्जन और कम पार्टिकुलेट मैटर वाला एक स्वच्छ प्रज्वलनशील ईंधन है।
- उपयोग:
- यह व्यापक रूप से रासायनिक उद्योग में और विलायक, ईंधन और प्रशीतक के रूप में उपयोग किया जाता है।
- ओज़ोन को नष्ट करने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) को बदलने के लिये इसे पहले से ही ओज़ोन-अनुकूल एयरोसोल प्रणोदक के रूप में इस्तेमाल किया जा चुका है।
- यह कम ओलेफिन, डाइमिथाइल सल्फेट और मिथाइल एसीटेट जैसे मूल्यवान रसायनों के उत्पादन के लिये एक आवश्यक मध्यवर्ती है।
- महत्त्व:
- पर्यावरणीय लाभ:
- DME-ईंधन वाले इंजन ने उल्लेखनीय रूप से कम कण और कालिख उत्सर्जन का प्रदर्शन किया, जिससे धुएँ का उत्पादन लगभग समाप्त हो गया।
- इसे उपचार उपकरणों या उन्नत इंजन प्रौद्योगिकियों के बाद महँगी निकास गैस की आवश्यकता के बिना हासिल किया गया है।
- DME तकनीक कृषि और परिवहन क्षेत्रों में पारंपरिक डीज़ल इंजनों के लिये एक व्यवहार्य एवं पर्यावरण के अनुकूल विकल्प प्रदान करती है।
- नवीकरणीय विकल्प के रूप में DME:
- भारत विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये कच्चे तेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है।
- डाइमिथाइल ईथर (DME) एक नवीकरणीय वैकल्पिक ईंधन विकल्प प्रस्तुत करता है जिसका उत्पादन घरेलू तौर पर किया जा सकता है।
- भारत विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये कच्चे तेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है।
- ‘मेथनॉल अर्थव्यवस्था’ कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाना:
- घरेलू कोयले के भंडार, सस्ते कृषि बायोमास अपशिष्ट और नगर निगम के ठोस अपशिष्ट को मेथनॉल और DME में परिवर्तित करने से इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है।
- घरेलू कोयले के भंडार, सस्ते कृषि बायोमास अपशिष्ट और नगर निगम के ठोस अपशिष्ट को मेथनॉल और DME में परिवर्तित करने से इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है।
- पर्यावरणीय लाभ:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित केंद्रीय मंत्रालयों में से कौन-सा बायोडीज़ल मिशन (नोडल मंत्रालय के रूप में) लागू कर रहा है? (2008) (a) कृषि मंत्रालय उत्तर: (d) व्याख्या:
|
स्रोत: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 जून, 2023
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना 'गोद भराई' समारोह
भारत के प्रधानमंत्री ने राजस्थान के दौसा में प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना को 'गोद भराई' समारोह के रूप में मनाने की नई पहल की सराहना की है। गर्भवती महिलाएँ इस उत्सव के लिये एकत्रित होती हैं, जहाँ उन्हें अपने बच्चों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने हेतु पोषण किट प्रदान की जाती है। अकेले राजस्थान में वर्ष 2022-23 में लगभग 3.5 लाख महिलाएँ इस योजना से लाभान्वित हुई हैं। ‘गोद भराई' एक बच्चे के आसन्न आगमन का जश्न मनाने के लिये एक पारंपरिक भारतीय समारोह है, जिसे अक्सर गोद भराई कहा जाता है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना भारत में एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है, इसके तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके स्वास्थ्य देखभाल एवं पोषण संबंधी ज़रूरतों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह महिला तथा बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
और पढ़ें… प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन: चुनौतियाँ और अनुकूलन
उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों के सामने अनूठी चुनौतियाँ और अनुकूलन परिस्थितियाँ होती हैं। समुद्र तल से 4,570 मीटर की ऊँचाई पर स्थित लद्दाख का करज़ोक गाँव भारत की सबसे ऊँची बस्ती है।
इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में कौमिक गाँव भी 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित होने का दावा करता है। वैश्विक स्तर पर लगभग 6.4 मिलियन व्यक्ति, जो विश्व की जनसंख्या के लगभग 0.1% हैं, 4,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर रहते हैं। इनमें से कई व्यक्तियों ने दक्षिण अमेरिका के एंडीज में स्थित उच्च ऊँचाई वाले मैदानों और एशिया में तिब्बत को दस सहस्राब्दी से अधिक समय तक अपना घर माना है। हालाँकि कम ऊँचाई पर रहने वाले लोग अकसर ठंड, कम वायुमंडलीय दबाव और ऊँचाई पर पाए जाने वाले ऑक्सीजन के स्तर में कमी से जूझते हैं। ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन वहाँ के निवासियों के लिये विचित्र चुनौतियाँ पेश करता है। आर्थिक विकास अक्सर सीमित अवसरों के कारण बाधित होता है, विशेषकर कृषि में सीढ़ीदार खेत और सिंचाई चुनौतियों की आवश्यकता के कारण। हालाँकि पशुधन चराई और खनन जैसी गतिविधियाँ आय के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करती हैं। बढ़ा हुआ बेसल मेटाबॉलिक रेट और फेफड़ों की उच्च क्षमता सहित शारीरिक अनुकूलन, उच्च पहाड़ी क्षेत्रों के निवासियों को कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में रहने की अनुमति देता है। उच्च पहाड़ी क्षेत्रों के मूल निवासी जैसे कि दक्षिण अमेरिका के क्वेशुआ लोग जो अपनी मज़बूत श्वास तंत्र के लिये जाने जाते है तथा अपने समकक्षों की तुलना में उच्च फोर्स्ड वाइटल कैपेसिटी (FVC) को प्रदर्शित करते हैं, समुद्र तल के करीब पले बड़े हैं। इन कठिनाइयों के बावजूद उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में रहने से समग्र स्वास्थ्य के लिये प्रतिपूरक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि 70-74 आयु वर्ग के व्यक्तियों ने 120/80 के औसत रक्तचाप का प्रदर्शन किया जो कठिन परिस्थितियों का समग्र स्वास्थ्य पर संभावित सकारात्मक प्रभाव को उजागर करता है।
और पढ़ें… लद्दाख का महत्त्व
एकुवेरिन अभ्यास
भारतीय सेना और मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल के बीच 11 से 24 जून, 2023 तक चौबटिया, उत्तराखंड में होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास "एक्स एकुवेरिन" के 12वें संस्करण की शुरुआत हो गई है। इस अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के अनुसार काउंटर इंसर्जेंसी/आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में इंटरऑपरेबिलिटी/अंतरसंचालानीयता को बढ़ाना तथा संयुक्त मानवीय सहायता तथा आपदा राहत कार्यों को पूरा करना है। मालदीव, श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप समूह है। यह लगभग 1200 छोटे प्रवाल द्वीपों की एक शृंखला से बना हुआ है जो एटोल (Atolls) समूहों के रूप में व्यवस्थित हैं। मालदीव की राजधानी और सबसे बड़ा शहर माले है। यहाँ की अधिकांश आबादी इस्लाम का अनुसरण करती है। मालदीव की आधिकारिक भाषा धिवेही है। यहाँ अंग्रेज़ी, खासकर पर्यटन क्षेत्रों में, भी व्यापक रूप से बोली जाती है।
कैप्टागन पिल्स संकट
हाल ही में रिपोर्टों में सुझाव दिया गया है कि इस्लामिक स्टेट (IS) और सीरियाई विद्रोहियों ने भीषण लड़ाई के दौरान सतर्कता बढ़ाने और भूख को मिटाने के लिये व्यापक रूप से कैप्टागन का सेवन किया। कैप्टागन पिल्स एक शक्तिशाली एम्फैटेमिन-प्रकार की दवा है, जो अत्यधिक नशे की प्रकृति हेतु जानी जाती है एवं मुख्य रूप से सीरिया में निर्मित होती है। ये गोलियाँ/पिल्स केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के लिये उत्तेजक के रूप में कार्य करती हैं, जो उपयोगकर्त्ताओं की ऊर्जा में वृद्धि, बेहतर ध्यानकेंद्रण, अत्यधिक जागरूकता के साथ ही उनमें उत्साह पैदा करती हैं। मूल रूप से वर्ष 1960 के दशक में विकसित वास्तविक कैप्टागोन दवा, जो एक ही ब्रांड नाम साझा करती है, में फेनेटाइलमाइन समूह से संबंधित सिंथेटिक दवा फेनिथाइलामाइन शामिल थी, जिसमें एम्फैटेमिन शामिल है। हालाँकि इस प्रामाणिक संस्करण को वर्ष 1980 के दशक में प्रतिबंधित कर दिया गया था।