प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 13 जून, 2019
राष्ट्रीय समुद्री विरासत संग्रहालय
National Maritime Heritage Museum
गुजरात के लोथल (Lothal) के प्राचीन भारतीय स्थल पर एक ‘राष्ट्रीय समुद्री विरासत संग्रहालय’ (National Maritime Heritage Museum) की स्थापना में भारत और पुर्तगाल मिलकर काम करेंगे।
- यह संग्रहालय भारत की अंतर्देशीय जलमार्ग और जल मार्ग से व्यापार की विरासत को प्रदर्शित करेगा।
- लोथल को इसलिये चुना गया क्योंकि यहाँ ऐसे पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं, जो समुद्री गतिविधियों की ओर संकेत करते हैं। यह स्थल हड़प्पावासियों का एक प्रमुख समुद्री गतिविधि केंद्र था।
- 4500 वर्षीय पुराना यह शहर गणितीय तरीके से योजनाबद्ध रूप से बना था। इसमें उचित कोणों पर सड़कों को पार करने की व्यवस्था, जल निकासी प्रणालियाँ और बड़े स्नानागार की व्यवस्था थी।
- शौचालय और लोटे जैसे जार मिलने से यह पता चलता है कि स्वच्छता पर पर्याप्त ज़ोर दिया जाता था।
- मार्च, 2019 में प्रधानमंत्री ने इस परियोजना की आधारशिला रखी थी।
- जहाजरानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) सागरमाला कार्यक्रम के माध्यम से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI), राज्य सरकार और अन्य हितधारकों की भागीदारी के साथ इस परियोजना को कार्यान्वित कर रही है।
सागरमाला परियोजना
- सागरमाला कार्यक्रम की शुरुआत 25 मार्च, 2015 को की गई थी। इसे भारत में बंदरगाह आधारित आर्थिक विकास के व्यापक उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया है।
- भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे तटवर्ती क्षेत्रों, 14,500 किलोमीटर संभावित जलमार्ग और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्गों के रणनीतिक स्थानों के दोहन के उद्देश्य से सरकार ने महत्त्वाकांक्षी सागरमाला कार्यक्रम तैयार किया है।
लोथल
- भारतीय पुरातत्वविदों ने गुजरात के सौराष्ट्र में 1947 के बाद हड़प्पा सभ्यता शहरों की खोज शुरू की और इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता भी मिली।
- पुरातत्वविद एस.आर. राव की अगुवाई में कई टीमों ने मिलकर 1954 से 1963 के बीच कई हड़प्पा स्थलों की खोज की, जिनमें में बंदरगाह शहर लोथल भी शामिल है।
- मोहनजोदड़ो की तरह लोथल का भी अर्थ है, मुर्दों का टीला। खंभात की खाड़ी के पास भोगावो और साबरमती नदियों के बीच स्थित है लोथल।
- अहमदाबाद से एक लंबी और धूल-मिट्टी से भरी यात्रा के बाद सारगवाला गाँव आता है जहाँ लोथल का पुरातात्विक स्थल स्थित है।
पहला बंदरगाह शहर
- चूँकि अभी तक हम सिंधु लिपि को व्याख्याबद्ध (Decode) नहीं कर पाए हैं, इसलिये यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि क्या लोथल वास्तव में देश का पहला बंदरगाह शहर था।
- इसे लेकर इतिहासकारों में भी मतभेद है। लेकिन यह सच है कि अन्य प्राचीन शहरों में मिली लोथल की मुद्राओं से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि अन्य प्राचीन सभ्यताओं के साथ व्यापार में इसका बेहद महत्त्व था।
मिक्रीलेट्टा एशानी
Micryletta aishani
हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया और अमेरिका के शोधकर्त्ताओं के साथ मिलकर पूर्वोत्तर भारत (असम) में ‘धान मेंढक’ (Paddy Frog) की एक नई प्रजाति की खोज की है।
- खोजी गई इस नई प्रजाति को मिक्रीलेट्टा एशानी नाम दिया गया है। ‘एशानी’ संस्कृत भाषा से संबद्ध है जिसका अर्थ ‘पूर्वोत्तर’ है।
- मिक्रीलेट्टा एशानी (Micryletta Aishani) माइक्रोहॉयलॉइड वंश (Hyloid Genus) के अंतर्गत मिक्रीलेट्टा प्रजाति में रखा गया है।
- माइक्रोहॉयलाइड वंश में वे मेंढक आते हैं जो जिनका मुख संकरा होता है, जिन्हें सामान्यतः धान मेंढक के नाम से भी जाना जाता है।
- माइक्रोहॉयलॉइड वंश की पहली प्रजाति इंडोनेशिया स्थित सुमात्रा के द्वीप में खोजी गई थी।
- ये मूलतः पूर्वोत्तर भारत (विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में स्थित विशेष रूप से इंडो-बर्मा जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र) में ही पाए जाते हैं।
- असम के अलावा, ये त्रिपुरा और मणिपुर में भी पाए जाते हैं।
मिक्रीलेट्टा एशानी अन्य मेंढक प्रजातियों से अलग कैसे?
- अधिकांश प्रजातियों के मेंढक, मानसून के दौरान प्रजनन करते हैं, मिक्रीलेटा एशानी, मानसून की शुरुआत से पहले ही प्रजनन करते हैं।
- मिक्रीलेट्टा एशानी आमतौर पर मानव बस्तियों के आस-पास पाए जाते हैं।
- पीठ का लाल-भूरा रंग, गहरी धारियाँ, पार्श्वीय हिस्सों में धब्बे, थूथन (मुख का अग्र भाग) का आकार और पैरों में पादजाल की अनुपस्थिति इन्हें अन्य मेंढकों की प्रजाति से अलग बनाती हैं।
- मिक्रीलेट्टा एशानी धान मेंढकों के वंश की पाँचवीं प्रजाति है।
चंद्रयान-2 मिशन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) के इतिहास में पहली बार किसी मिशन की कमान दो महिलाओं को सौंपी गई है। रितु कृधल (Ritu Kridhal) और एम वनिता (M Vanitha) चंद्रयान -2 मिशन के लिये क्रमशः परियोजना तथा मिशन निदेशक के रूप में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
- चंद्रयान- 2 (चंद्रमा के लिये भारत का दूसरा मिशन) पूरी तरह से स्वदेशी मिशन है।
- गौरतलब है कि इस मिशन में तीन मॉड्यूल होंगे जो इस प्रकार हैं-
- ऑर्बिटर
- लैंडर (विक्रम)
- रोवर (प्रज्ञान)
- जीएसएलवी मार्क-3 चंद्रयान-2 आर्बिटर और लैंडर को धरती की कक्षा में स्थापित करेगा, जिसके बाद उसे चाँद की कक्षा में पहुँचाया जाएगा।
- चंद्रयान-2 के चंद्रमा की कक्षा में पहुँचने के बाद लैंडर चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और रोवर को तैनात करेगा।
- रोवर पर लगाए गए उपकरण चंद्रमा की सतह का अवलोकन करेंगे और डेटा भेजेंगे, जो चंद्रमा की मिट्टी के विश्लेषण के लिये उपयोगी होगा।
- ISRO ने अक्तूबर 2008 में अपना ऑर्बिटर मिशन चंद्रयान -1 लॉन्च किया था।
चंद्रयान-2 का उद्देश्य
- मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह में मौजूद तत्त्वों का अध्ययन कर यह पता लगाना कि उसके चट्टान और मिट्टी किन तत्त्वों से बनी है।
- वहाँ मौजूद खाइयों और चोटियों की संरचना का अध्ययन।
- चंद्रमा की सतह का घनत्व और उसमें होने वाले परिवर्तन का अध्ययन।
- ध्रुवों के पास की तापीय गुणों, चंद्रमा के आयनोंस्फीयर में इलेक्ट्रानों की मात्रा का अध्ययन।
- चंद्रमा की सतह पर जल, हाइड्रॉक्सिल के निशान ढूंढने के अलावा चंद्रमा के सतह की त्रिआयामी तस्वीरें लेना।