प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 13 मई, 2020
सोहराई खोवर पेंटिंग और तेलिया रूमाल
Sohrai Khovar Painting and Telia Rumal
12 मई, 2020 को झारखंड की ‘सोहराई खोवर पेंटिंग’ (Sohrai Khovar Painting) और तेलंगाना के ‘तेलिया रुमाल’ (Telia Rumal) को 'भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री' (Geographical Indications Registry) द्वारा ‘भौगोलिक संकेतक’ (जीआई) टैग दिया गया।
प्रमुख बिंदु:
- ‘सोहराई खोवर पेंटिंग’ झारखंड के हज़ारीबाग ज़िले में स्थानीय एवं प्राकृतिक रूप से विभिन्न रंगों की मिट्टी का उपयोग करते हुए फसल के मौसम एवं शादी-समारोह के दौरान स्थानीय आदिवासी महिलाओं द्वारा प्रचलित एक पारंपरिक एवं अनुष्ठानिक भित्ति कला है।
- यह पेंटिंग मुख्य रूप से हज़ारीबाग ज़िले में ही प्रचलित है। हालाँकि हाल के वर्षों में इसके प्रचार-प्रसार के कारण इसे झारखंड के अन्य हिस्सों में भी निर्मित किया जा रहा है।
- इसे परंपरागत रूप से मिट्टी के घरों की दीवारों पर चित्रित किया जाता था किंतु अब इसे अन्य सतहों पर भी चित्रित किया जाता है।
- इस चित्रकला में लाइनों, बिंदुओं, जानवरों के चित्रों एवं पेड़-पौधों को प्रमुख स्थान दिया जाता है जो अक्सर ‘धार्मिक प्रतिमा-विधा’ (Religious Iconography) का प्रतिनिधित्व करती है।
- ‘तेलिया रुमाल’ को सूती कपड़े में जटिल हस्तनिर्मित प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है जिसमें तीन विशेष रंगों (लाल, काले व सफेद) में विभिन्न प्रकार के डिज़ाइन एवं रूपांकनों को प्रदर्शित किया जाता है।
- आज़ादी मिलने से पहले हैदराबाद के निज़ाम के दरबार में कार्य करने वाले अधिकारी चितुकी तेलिया रुमाल (Chituki Telia Rumal) को प्रमुख प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्त्व के रूप में पहनते थे।
- तेलिया रुमाल को राजस्थान के अजमेर शरीफ की दरगाह पर भी चढ़ाया जाता है।
COVID चटाई
COVID Mat
हाल ही में केरल सरकार ने बताया कि रोगज़नकों (जैसे- वायरस, बैक्टीरिया आदि) को घरों, कार्यालयों, दुकानों एवं संस्थानों में प्रवेश करने से रोकने के लिये ‘केरल स्टेट कोइर कॉरपोरेशन’ (Kerala State Coir Corporation) जल्द ही ‘COVID चटाई’ (COVID Mat) लॉन्च करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- ‘केरल स्टेट कोइर कॉरपोरेशन’ ने इस चटाई के तीन मॉडल पेश किये हैं जिन्हें ‘श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी’ द्वारा अंतिम रूप दिया जा रहा है।
- ‘COVID चटाई’ को तैयार करने के लिये रबर या प्लास्टिक से बने होल्डिंग ट्रे में फाइबर मैट/बीसी20 मैट को लगाया जाएगा और कीटाणुनाशक को संतृप्त होने तक चटाई पर डाला जाएगा।
- जब कोई व्यक्ति नंगे पैर या जूता पहने हुए चटाई पर कदम रखेगा तो कीटाणुनाशक उसे साफ कर देगा। ‘COVID चटाई’ पर पानी एवं कीटाणुनाशक को प्रत्येक तीन दिन में बदलना होगा।
- इस चटाई’ के विकास में ‘राष्ट्रीय कोइर अनुसंधान एवं प्रबंधन संस्थान’ (National Coir Research and Management Institute) ‘केरल स्टेट कोइर कॉरपोरेशन’ की मदद कर रहा है।
राष्ट्रीय कोइर अनुसंधान एवं प्रबंधन संस्थान’
(National Coir Research and Management Institute- NCRMI):
- NCRMI एक ऐसा संगठन है जो कोइर (नारियल रेशे) के पारंपरिक क्षेत्र में विभिन्न अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की खोज कर रहा है।
- इसे वर्ष 1994 में केरल के कोइर क्षेत्र की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये C-DOCT नाम से स्थापित किया गया था।
- यह त्रावणकोर-कोचीन साहित्यिक वैज्ञानिक एवं धर्मार्थ सोसायटी अधिनियम, 1956 (Travancore-Cochin Literary Scientific and Charitable Societies Act 1956) के तहत पंजीकृत है।
पराबैंगनी कीटाणुनाशक विकिरण
Ultraviolet Germicidal Irradiation
वैज्ञानिकों ने स्कूलों, रेस्त्रां एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों में कोरोनावायरस का पता लगाने के लिये ‘पराबैंगनी कीटाणुनाशक विकिरण’ (Ultraviolet Germicidal Irradiation-UVGI) के उपयोग का अध्ययन कर रहे हैं।
- इस प्रक्रिया के माध्यम से पराबैंगनी किरणें वायरस के संचरण को रोकने तथा दूषित सार्वजनिक स्थानों को कीटाणुरहित करने में सक्षम होगी।
प्रमुख बिंदु:
- पराबैंगनी किरणों में दृश्य प्रकाश की तुलना में कम तरंग दैर्ध्य होता है इसलिए ये नग्न आँखों से दिखाई नहीं देती हैं।
- पराबैंगनी विकिरण स्पेक्ट्रम को UV-A, UV-B एवं UV-C किरणों में विभाजित किया जा सकता है। इस स्पेक्ट्रम में UV-C किरणें सबसे अधिक हानिकारक हैं और पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा पूरी तरह से अवशोषित कर ली जाती हैं।
- मानव शरीर के लिये UV-A और UV-B दोनों किरणें हानिकारक हैं किंतु UV-B किरणों के संपर्क में रहने वाले जीवों में डीएनए एवं सेलुलर क्षति हो सकती है।
- इसके संपर्क में आने से कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है जिससे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
- UVGI दूषित स्थानों, हवा और पानी में रोगजनकों को नष्ट करने के लिये पराबैंगनी प्रकाश के ‘विनाशकारी गुणों’ का उपयोग करता है।
टोडा जनजाति
Toda Tribe
COVID-19 के मद्देनज़र नीलगिरी क्षेत्र के टोडा (Toda) कारीगर, लोगों को संक्रमण से बचाने के लिये मास्क बनाने में अपने पारंपरिक कौशल का उपयोग कर रहे हैं।
प्रमुख बिंदु:
- टोडा जनजाति (Toda Tribe) दक्षिणी भारत की नीलगिरि पहाड़ियों की एक चरवाहा जनजाति है।
- टोडा भाषा का संबंध द्रविड़ियन भाषा परिवार है किंतु यह द्रविड़ भाषा परिवार में सबसे असामान्य एवं अलग है।
- ये लोग तीन से सात सदस्यों के समूह में छोटे घरों वाली बस्तियों में रहते हैं।
- इनकी आजीविका डेयरी उत्पाद, बेंत एवं बाँस आदि के पारंपरिक व्यापार पर निर्भर है।
टोडा कढ़ाई (Toda Embroidery):
- टोडा भाषा में इस कढ़ाई को ‘पोहर’ (Pohor) कहा जाता है। जबकि पारंपरिक टोडा पोशाक एक विशिष्ट शॉल है जिसे ‘पुटकुली’ (Putukuli) कहा जाता है।
- यह एक भव्य परिधान माना जाता है इसे केवल विशेष अवसरों के लिये पहना जाता है जैसे- मंदिर, त्योहारों एवं अंत में कफन के रूप में।
- यह कढ़ाई टोडा महिलाओं द्वारा बनाई जाती है और इसमें रूखे सफेद सूती कपड़े पर ज्यामितीय डिज़ाइनों में विशिष्ट लाल एवं काले (कभी-कभी नीले) धागे का प्रयोग होता है।
इसे भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला है।