प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स : 13 मार्च, 2021
फ्राँस का पहला अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास-’एस्टरएक्स’
(France’s First Space Military Exercise: AsterX)
अंतरिक्ष के क्षेत्र में वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के चलते फ्राँस ने अपने उपग्रहों की रक्षा क्षमता का परीक्षण करने के लिये पहला अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास शुरू किया है।
प्रमुख बिंदु:
एस्टरएक्स:
- इस सैन्य अभ्यास का कूटनाम (Codename) वर्ष 1965 के पहले फ्राँसीसी उपग्रह एस्टरिक्स की स्मृति में "एस्टरएक्स" रखा गया है।
- यह सैन्य अभ्यास अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी बड़ी अंतरिक्ष शक्ति बनने की फ्राँस की रणनीति का हिस्सा है।
- यह अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास न केवल फ्राँसीसी सेना बल्कि यूरोप के लिये भी इस प्रकार का पहला प्रयास है।
- इसके अतिरिक्त फ्रांँस ने अपने प्रतिद्वंद्वियों (जैसे- चीन और रूस) के साथ प्रतिस्पर्द्धा, बढ़त के लिये उपग्रह-रोधी लेज़र हथियारों के विकास तथा निगरानी क्षमता को मज़बूत करने की योजना बनाई है।
- सैन्य अभ्यास का लक्ष्य:
- अंतरिक्ष में संभावित खतरनाक वस्तुओं/लक्ष्यों के साथ-साथ पर्याप्त अंतरिक्ष सामर्थ्य वाली किसी अन्य विदेशी शक्ति (देश) से अपने उपग्रह को होने वाले खतरे की निगरानी करना।
- अन्य भागीदार:
- फ्राँस के साथ इस सैन्य अभ्यास में नवस्थापित अमेरिकी अंतरिक्ष बल और जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी भी हिस्सा ले रही है।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2018 में 'ओलिंप-के' नामक एक रूसी उपग्रह ने इटली और फ्राँस की सेनाओं द्वारा सुरक्षित संचार के लिये उपयोग किये जाने वाले 'एथेना-फिदस' नामक उपग्रह के विमोचन को रोकने का प्रयास किया गया। रूसी उपग्रह के इस कदम को 'जासूसी' की कार्रवाई की संज्ञा दी गई थी।
- वर्ष 2020 में अमेरिका ने रूस पर अंतरिक्ष से एक एंटी-सैटेलाइट हथियार का "गैर-विनाशकारी परीक्षण" करने का भी आरोप लगाया।
- वर्ष 2019 में फ्राँस ने अपनी अंतरिक्ष कमान [फ्रेंच स्पेस कमांड (Commandement de l’Espace- CdE)] की घोषणा की थी।
- इस कमान में वर्ष 2025 तक 500 कर्मियों की नियुक्ति की जाएगी।
इस क्षेत्र में भारत की समान पहल:
- IndSpaceEx: यह भारत का पहला सिमुलेटेड (कृत्रिम/बनावटी) अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास है।
- मिशन शक्ति: यह एक सैटेलाइट रोधी या एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल परीक्षण है।
प्रोजेक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम एंड मैनेजमेंट
Project Information System & Management: SERB
हाल ही में विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड (SERB) द्वारा प्रोजेक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम एंड मैनेजमेंट या प्रिज़्म (PRISM) नामक एक पोर्टल की स्थापना की गई है, जो इसके द्वारा समर्थित विभिन्न शोध परियोजनाओं पर वास्तविक समय में जानकारी प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु:
प्रोजेक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम एंड मैनेजमेंट या प्रिज़्म (PRISM):
- इसका पूरा नाम है “विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड-’प्रोजेक्ट इनफाॅर्मेशन सिस्टम एंड मैनेजमेंट” (सर्ब-प्रिज़्म)।
- यह ई-प्लेटफॉर्म वर्ष 2011 के बाद से SERB द्वारा स्वीकृत सभी परियोजनाओं के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करेगा, जिसमें धन का विवरण, स्थिति, शोध सारांश और प्रकाशन तथा पेटेंट जैसे परियोजना आउटपुट संबंधी विवरण शामिल हैं।
महत्त्व:
- इस पोर्टल के वैज्ञानिक समुदाय से जुड़े लोगों के अलावा मज़बूत विज्ञान-समाज संपर्क बनाने में सहायता के लिये एक व्यापक उपकरण के रूप में काम करने की उम्मीद है।
- इसे जल, ऊर्जा और जलवायु जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों और वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (SSR) की नई अवधारणा के साथ जोड़ा जा सकता है।
- यह अनुसंधान और विकास वित्तपोषण के माध्यम से लोकतंत्रीकरण में सहायता करेगा।
विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड (SERB):
- यह भारतीय संसद के एक अधिनियम द्वारा वर्ष 2009 में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्थापित एक सांविधिक निकाय है।
- इसकी अध्यक्षता विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में तैनात भारत सरकार के सचिव द्वारा की जाती है और कई अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी तथा प्रतिष्ठित वैज्ञानिक सदस्य के रूप में इसमें शामिल होते हैं।
- इसकी स्थापना विज्ञान और इंजीनियरिंग में बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा इस तरह के अनुसंधान के लिये वैज्ञानिकों, शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, संबंधित उद्योगों व अन्य एजेंसियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये की गई थी।
- इसे उभरते हुए क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी अनुसंधान के नियोजन, प्रचार और वित्तपोषण का कार्य सौंपा गया है।
- सर्ब की कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण योजनाएँ:
इंडोनेशिया का माउंट सिनाबुंग
Indonesia’s Mt. Sinabung
हाल ही में इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर स्थित एक सक्रिय ज्वालामुखी माउंट सिनाबुंग में विस्फोट हो गया है।
- इससे पहले इंडोनेशिया के अन्य ज्वालामुखियों में मेरापी और सेमेरू में भी विस्फोट हो चुका है।
प्रमुख बिंदु:
माउंट सिनाबुंग:
- माउंट सिनाबुंग (2,600 मीटर) उत्तरी सुमात्रा के कारो रीजेंसी (Karo Regency) में अवस्थित है।
- सिनाबुंग इंडोनेशिया में स्थित 120 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है, जो ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ पर अवस्थित होने के कारण भूकंपीय उथल-पुथल प्रवण है।
- वर्ष 2010 में हुए विस्फोट से पहले 400 वर्षों तक यह ज्वालामुखी निष्क्रिय था।
- इसमें वर्ष 2014, 2016 और 2020 में पुनः विस्फोट हुआ।
रिंग ऑफ फायर:
- रिंग ऑफ फायर जिसे ‘सर्कम-पैसिफिक बेल्ट’ के रूप में भी जाना जाता है, यह सक्रिय ज्वालामुखियों और निरंतर भूकंप प्रवणता संबंधी विशेषताओं के लिये जाना जाता है।
- यह पैसिफिक, कोकोस, इंडियन-ऑस्ट्रेलियन, नाज़का, नॉर्थ अमेरिकन और फिलीपीन प्लेट्स सहित कई टेक्टोनिक प्लेटों के बीच की सीमाओं से संबंधित है।
- इस क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेटों के संचलन के कारण रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में ज्वालामुखियों और भूकंपों की बहुतायत पाई जाती है।
- पृथ्वी के 75% ज्वालामुखी अर्थात् 450 से अधिक ज्वालामुखी ‘रिंग ऑफ फायर’ पर स्थित है। पृथ्वी के 90% भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं।
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 मार्च, 2021
चौथा वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौथे वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव को संबोधित करते हुए COVID-19 महामारी के दौरान आयुर्वेद और पारंपरिक दवाओं के महत्त्व को स्पष्ट किया। चौथे वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव का आयोजन 16 से 20 मई, 2020 तक किया जाना था, परंतु कोविड-19 महामारी के कारण इसे वर्ष 2021 में स्थानांतरित कर दिया गया और अब इसे 12 से 19 मार्च, 2021 तक वर्चुअल रूप से आयोजित किया जा रहा है। वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव में 25 से अधिक देशों के प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। इस आयोजन के दौरान 35 अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और 150 से अधिक भारतीय वैज्ञानिकों के व्याख्यान होंगे। यह महोत्सव भाग लेने वाले देशों के सभी प्रतिबद्ध सदस्यों के प्रयासों को समन्वित कर वैश्विक चिकित्सा प्रणाली में आयुर्वेद को स्थान दिलाने के लिये एक मंच है जहाँ कई देशों के हितधारक अपने अनुभव, आवश्यकताओं को साझा करेंगे।
कालानमक चावल महोत्सव:
उत्तर प्रदेश सरकार सिद्धार्थ नगर ज़िले में तीन दिवसीय “कालानमक चावल महोत्सव” का आयोजन करेगी। यह महोत्सव 13 मार्च, 2021 से शुरू होगा। यह उत्सव "लखनऊ में जगमग महोत्सव" की शानदार सफलता के बाद आयोजित किया जा रहा है। इस चावल महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ (ODOP) के तहत चयनित उत्पादों को ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ और ‘लोकल फॉर वोकल’ के रूप में बाज़ार में बढ़ावा देने और ब्रांड बनाने के लिये किया जा रहा है। ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ योजना का उद्देश्य स्थानीय शिल्प का संरक्षण एवं विकास, कला और क्षमता का विस्तार, आय में वृद्धि एवं स्थानीय रोज़गार का सृजन, उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार एवं दक्षता का विकास, उत्पादों की गुणवत्ता में बदलाव, उत्पादों को पर्यटन से जोड़ा जाना, क्षेत्रीय असंतुलन के कारण उत्पन्न होने वाली आर्थिक विसंगतियों को दूर करना और राज्य स्तर पर ODOP के सफल संचालन के बाद इसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है। कालानमक चावल पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र में उगाया जाता है। कालानमक चावल को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त हुआ है, इसे सिद्धार्थनगर, देवरिया, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, गोंडा, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती में ODOP के रूप में उगाया जाता है। कालानमक चावल महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाएंगे, जिसमें स्थानीय कलाकारों एवं छात्रों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का मौका मिलेगा। इस महोत्सव में कालानमक चावल के विभिन्न व्यंजन प्रदर्शित किये जाएंगे।
झारखंड द्वारा निजी नौकरियों में 75% स्थानीय आरक्षण:
झारखंड कैबिनेट ने स्थानीय लोगों के लिये निजी क्षेत्र की इकाइयों में प्रतिमाह 30,000 रुपए तक वेतन वाली 75 प्रतिशत नौकरियों को आरक्षित करने संबंधी रोज़गार नीति को मंज़ूरी दी है। झारखंड से पहले हरियाणा सरकार ने भी इसी तरह की नीति को मंज़ूरी दी थी। झारखंड कैबिनेट ने यह निर्णय झारखंड औद्योगिक और निवेश प्रोत्साहन नीति, 2021 के मसौदे पर चर्चा करने के बाद लिया है। झारखंड राज्य में 32 जनजातियाँ निवास करती हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में 7,087,068 जनसंख्या जनजाति है जो कुल जनसंख्या का 26.3 प्रतिशत है। वर्तमान में झारखंड में मुंडा, उरांव, संथाल, गोंड, कोल, असुर, बंजारा, चेरो, हो, कोरा, भूमिज आदि 32 आदिवासी समूह हैं।
इसरो द्वारा ध्वनि रॉकेट RH-560 लॉन्च:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से उदासीन वायु और प्लाज़्मा गतिकी में व्यावहारिक भिन्नताओं का अध्ययन करने के लिये एक ध्वनि रॉकेट RH-560 लॉन्च किया है। ISRO ने रोहिणी सीरीज़ में रॉकेटों की एक शृंखला विकसित की है, जिनका नाम RH-200, RH-300 और RH-560 है, ये नाम मिमी. में रॉकेट के व्यास को दर्शाते हैं। ध्वनि रॉकेट एक या दो चरण के ठोस प्रणोदक रॉकेट हैं जिनका उपयोग ऊपरी वायुमंडलीय क्षेत्रों की जाँच और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये किया जाता है। ISRO ने वर्ष 1965 से स्वदेश निर्मित ध्वनि रॉकेटों को लॉन्च करना शुरू कर दिया था। वर्ष 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) की स्थापना हुई। यह भारत सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी है और इसका मुख्यालय बंगलूरू में है। इसे अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके करीबी सहयोगी और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से स्थापित किया गया। इसका प्रबंधन भारत सरकार के ‘अंतरिक्ष विभाग’ द्वारा किया जाता है, जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है। ISRO अपने विभिन्न केंद्रों के देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से इसका संचालन करता है।