प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 12 फरवरी, 2020
चिंदू यक्षगानम्
Chindu Yakshaganam
तेलंगाना (Telangana) में प्रचलित चिंदू यक्षगानम् (Chindu Yakshaganam) एक प्राचीन लोकनाट्य है।
मुख्य बिंदु:
- यह प्राचीन कला दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में विकसित हुई। यह कर्नाटक के यक्षगान से मिलती- जुलती है।
- यह लोकनाट्य कला नृत्य, संगीत, संवाद, पोशाक, मेकअप और मंच तकनीकों को आपस में एक साथ संकलित करती है।
- तेलुगू भाषा में 'चिंदू' शब्द का अर्थ 'कूदना' है। यक्षगान को प्रस्तुत करने वाला प्रस्तुति के दौरान बीच-बीच में छलांग लगाता एवं कूदता है, इसी वजह से इसे चिंदू यक्षगानम् कहा जाता है।
- माना जाता है कि ‘चिंदू’ शब्द यक्षगान कलाकारों की जाति चिंदू मडिगा (Chindu Madiga) से आया है, जो मडिगा (Madiga) अनुसूचित जाति की एक उप-जाति है।
- चिंदू यक्षगानम् को ‘चिंदू भागवतम्’ भी कहा जाता है क्योंकि इसमें वर्णित अधिकांश कहानियाँ ’भागवतम्’ (Bhagavatam) से संबंधित हैं।
- भागवतम् का संबंध भागवत पुराण से है जो भगवान विष्णु के उपासकों के इतिहास पर आधारित है।
थ्वाइट्स ग्लेशियर
Thwaites Glacier
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने अंटार्कटिका क्षेत्र में थ्वाइट्स ग्लेशियर (Thwaites Glacier) के नीचे गर्म जल का पता लगाया है जिसके कारण यह ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहा है।
मुख्य बिंदु:
- इस ग्लेशियर का आकार लगभग ब्रिटेन के आकार के बराबर है, इस ग्लेशियर के सबसे विस्तृत स्थान की अधिकतम चौड़ाई 120 किलोमीटर है।
- इसका क्षेत्रफल 1.9 लाख वर्ग किमी. है, अपने विस्तृत आकार के कारण इसमें समुद्री जल स्तर को आधा मीटर से अधिक बढ़ाने की क्षमता है।
- अध्ययन में पाया गया है कि पिछले 30 वर्षों में इसकी बर्फ पिघलने की दर लगभग दोगुनी हो गई है। प्रतिवर्ष बर्फ के पिघलने से समुद्र स्तर के बढ़ने में इसका 4% का योगदान है।
- शोधकर्त्ताओं ने अनुमान लगाया गया है कि यदि इसके पिघलने की दर इसी तरह रही तो यह 200-900 वर्षों में समुद्र में समा जाएगा।
ग्राउंडिंग लाइन और ग्लेशियर के पिघलने का अध्ययन:
- शोधकर्त्ताओं ने थ्वाइट्स ग्लेशियर के ‘ग्राउंडिंग ज़ोन’ (Grounding Zone) या ‘ग्राउंडिंग लाइन’ (Grounding Line) पर हिमांक बिंदु से सिर्फ दो डिग्री ऊपर जल होने की सूचना दी।
- अंटार्कटिक, आइस शीट की ग्राउंडिंग लाइन वह हिस्सा है जहाँ ग्लेशियर महाद्वीप सतह के साथ स्थायी न रह कर तैरते बर्फ शेल्फ बन जाते हैं। ग्राउंडिंग लाइन का स्थान ग्लेशियर के पीछे हटने की दर का एक संकेतक है।
- जब ग्लेशियर पिघलते हैं और उनके भार में कमी आती है तो वे उसी स्थान पर तैरते हैं जहाँ वे स्थित थे। ऐसी स्थिति में ग्राउंडिंग लाइन अपनी यथास्थिति से पीछे हट जाती है। यह समुद्री जल में ग्लेशियर के अधिक नीचे होने की स्थिति को दर्शाता है जिससे संभावना बढ़ जाती है कि यह तेज़ी से पिघल जाएगा।
- परिणामस्वरूप पता चलता है कि ग्लेशियर तेज़ी से बढ़ रहा है, बाहर की ओर खिंचाव हो के साथ पतला हो रहा है, अतः ग्राउंडिंग लाइन कभी भी पीछे हट सकती है।
आइसफिन (Icefin):
- वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर की सतह के नीचे गर्म जल का पता लगाने के लिये आइसफिन नामक एक महासागर-संवेदी उपकरण का प्रयोग किया जिसे 600 मीटर गहरे और 35 सेंटीमीटर चौड़े छेद के माध्यम से बर्फ की सतह के नीचे प्रवेश कराया गया।
थ्वाइट्स ग्लेशियर का महत्त्व:
- थ्वाइट्स ग्लेशियर अंटार्कटिका क्षेत्र के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समुद्र में स्वतंत्र रूप से बहने वाली बर्फ की गति को धीमा कर देता है।
थानाटोथेरिस्तेस
THANATOTHERISTES
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कनाडा के अल्बर्टा (Alberta) में वर्ष 2010 में पाया गया डायनासोर का एक जीवाश्म इसकी नई प्रजाति टायरानोसोर (Tyrannosaur) की है।
मुख्य बिंदु:
- वैज्ञानिकों ने इसे थानाटोथेरिस्तेस (THANATOTHERISTES) अर्थात् ‘रीपर ऑफ डेथ’ नाम दिया है।
- टायरानोसोर बड़े मांसाहारी डायनासोरों में से एक थे जिनकी खोपड़ी बड़ी एवं ऊँची थी। इनमें प्रमुख रूप से टायरानोसोरस रेक्स (Tyrannosaurus Rex) प्रसिद्ध थे।
- शोधकर्त्ताओं ने उत्तरी अमेरिका के सुदूर उत्तर में टायरानोसोर का जीवाश्म पाया है जो 79 मिलियन वर्ष पुराना है। इसी जीवाश्म के आधार पर कनाडा के अल्बर्टा (Alberta) में वर्ष 2010 में पाए गए डायनासोर के जीवाश्म के बारे में पता लगाया गया।
- टायरानोसोर के जीवाश्म से क्रिटेशियस युग (Cretaceous Period) को समझने में आसानी होगी क्योंकि इसी काल में टायरानोसोरस पृथ्वी पर घूमते थे।
- क्रेटेशियस एक भूवैज्ञानिक अवधि है जो लगभग 145-66 मिलियन वर्ष पहले तक थी। यह मेसोज़ोइक युग की तीसरी और अंतिम अवधि है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्मार्ट गवर्नमेंट
National Institute of Smart Government
पंजाब के महात्मा गांधी स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (MGSIPA) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्मार्ट गवर्नमेंट (NISG) ने पंजाब में ई-गवर्नमेंट सेवाओं हेतु क्षमता निर्माण के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
मुख्य बिंदु:
- NISG राज्य में डिजिटल परिवर्तन के बुनियादी ढाँचे में कंप्यूटर हार्डवेयर, विशेष कर्मियों एवं सिविल सेवकों तथा अन्य संगठनों के सिविल अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिये सॉफ्टवेयर जैसी कंप्यूटर और इंटरनेट-आधारित प्रौद्योगिकियों के उपयोग में प्रशिक्षण देगा।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्मार्ट गवर्नमेंट (NISG) के बारे में
- NISG को वर्ष 2002 में कंपनी अधिनियम 1956 (Companies Act 1956) की धारा 25 के तहत एक सार्वजनिक-निजी साझेदारी के रूप में बनाया गया था। इसमें 51% हिस्सा निजी क्षेत्र का और 49% हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र का है।
- NISG केंद्र एवं राज्य सरकारों को ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में नागरिकों को बेहतर सेवा देने में मदद के लिये परामर्श प्रदान करता है।
विज़न:
- ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में स्वयं को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में स्थापित करना।
- ई-गवर्नेंस को जन केंद्रित बनाना जिससे उनको सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सके।
मिशन:
- सार्वजनिक और निजी संसाधनों के अनुप्रयोग को ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में सुविधाजनक बनाने के लिये-
- रणनीतिक योजना बनाना।
- परियोजना परामर्श देना।
- क्षमता निर्माण।
- अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देना।
- गौरतलब है कि NISG ने ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम सरकार के साथ भी काम किया है।
सिद्दी जनजाति
Siddi Tribe
भारतीय संसद में लोकसभा ने ध्वनि-मत से संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2019 (The Constitution (Scheduled Tribes) Order (Amendment) Bill, 2019) पारित कर दिया।
मुख्य बिंदु:
- इस विधेयक में परिवारा (Parivara) और तलवारा (Talawara) समुदायों को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया गया है ताकि उन्हें सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले आरक्षण एवं अन्य लाभ प्राप्त हों।
- बेलागवी (Belagavi) और धारवाड़ (Dharwad) की सिद्दी जनजातियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा।
सिद्दी जनजाति के बारे में
- सिद्दी लोग इंडो-अफ्रीकी आदिवासी समुदाय से हैं। इन्हें हब्शी (Habshi) और बादशा (Badsha) जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है।
- सिद्दी लोग भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में निवास करते हैं। ये मूल रूप से गुजरात के जूनागढ़ ज़िले में निवास करते हैं
- सिद्दी लोग ज़्यादातर रोमन कैथोलिक हैं किंतु कुछ लोग हिंदू और इस्लाम धर्म का पालन करते हैं। इनका पहनावा पारंपरिक हिंदू और मुस्लिम पहनावे का संयोजन है।
- भारत सरकार ने 8 जनवरी, 2003 को सिद्दी जनजाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में वर्गीकृत किया था। सिद्दी विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) में से एक है।
डार्क फाइबर
Dark Fibre
तीन प्रमुख दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (रिलायंस जियो इन्फोकॉम, भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया) ने डार्क फाइबर (Dark Fibre) का उपयोग करने के लिये राज्य द्वारा संचालित भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL) से संपर्क किया है। यह दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को उनके पूंजीगत व्यय में कटौती करने में मदद करेगा।
मुख्य बिंदु:
- BBNL की अप्रयुक्त अवसंरचना का उपयोग ग्रामीण भारत में इंटरनेट का विस्तार करने और 4G सेवाओं के साथ-साथ मोबाइल टेलीफोनी सेवाओं जैसी अन्य दीर्घकालिक विकास (Long-Term Evolution- LTE) योजनाओं के लिये किया जाएगा।
डार्क फाइबर (Dark Fibre) के बारे में
- यह एक अप्रयुक्त ऑप्टिकल फाइबर है जिसे बिछाया जा चुका है किंतु वर्तमान में फाइबर-ऑप्टिक संचार में इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। चूँकि फाइबर-ऑप्टिक केबल प्रकाश पुंज के रूप में सूचना प्रसारित करता है, जबकि डार्क केबल उसको संदर्भित करता है जिसके माध्यम से प्रकाश पुंजों को प्रेषित नहीं किया जा रहा है।
- अधिक बैंडविड्थ की आवश्यकता होने पर लागत पुनरावृत्ति से बचने के लिये कंपनियाँ अतिरिक्त ऑप्टिकल फाइबर बिछाती हैं।
- इसे अनलिट फाइबर (Unlit Fibre) के रूप में भी जाना जाता है।
भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL)
- यह भारत सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 1000 करोड़ रुपए की अधिकृत पूंजी के साथ स्थापित एक स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (SPV) है।
- यह संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Communications and Information Technology) के अंतर्गत आता है।
- इसे भारत में राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (National Optical Fiber Network- NOFN) बनाने के लिये गठित किया गया है और यह भारतनेट परियोजना (BharatNet Project) के लिये कार्यान्वयन एजेंसी है।