Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 अगस्त, 2021
विश्व जैव ईंधन दिवस
ईंधन के अपरंपरागत स्रोतों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 अगस्त को ‘विश्व जैव ईंधन दिवस’ का आयोजन किया जाता है। यह दिवस पांरपरिक जीवाश्म ईंधनों के विकल्प के रूप में गैर-जीवाश्म ईंधनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाता है तथा जैव ईंधन क्षेत्र में सरकार द्वारा किये गए विभिन्न प्रयासों पर प्रकाश डालता है। 10 अगस्त को विश्व जैव ईंधन दिवस के रूप में चिह्नित किया जाता है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1893 को डीज़ल इंजन के आविष्कारक ‘सर रूडोल्फ डीज़ल’ ने पहली बार मूँगफली के तेल से यांत्रिक इंजन को कुशलतापूर्वक चलाया था। उन्होंने अपने प्रयोग के माध्यम से भविष्यवाणी की थी कि वनस्पति तेल आने वाले समय में यांत्रिक इंजनों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो जाएगा। यह दिवस उनके प्रयोग के महत्त्व को मान्यता देता है। भारत में इस दिवस को पहली बार वर्ष 2015 में पेट्रोलियम एवं गैस मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था। भारत में ‘जैव ईंधन विकास कार्यक्रम’ सरकार के अन्य कार्यक्रमों जैसे- स्वच्छ भारत अभियान और आत्मनिर्भर भारत अभियान आदि के साथ समन्वय से आगे बढ़ रहा है। चूँकि दुनिया भर में संसाधन सीमित हैं, ऐसे में ऊर्जा की बढ़ी हुई मांग, आपूर्ति सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करेगी। ऐसी स्थिति में जैव ईंधन जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करके ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।
दिल्ली की पहली ‘पशु डीएनए प्रयोगशाला’
हाल ही में रोहिणी में राजधानी दिल्ली की पहली ‘पशु डीएनए प्रयोगशाला’ स्थापित की गई है। इससे पहले नमूनों को परीक्षण के लिये अन्य राज्यों में भेजा जाता था, जिसके कारण प्रायः कई बार जाँच प्रकिया में काफी देरी होती थी। इस प्रकार यह सुविधा दिल्ली पुलिस के लिये गोहत्या, जानवरों के अवैध व्यापार और अन्य पशु-संबंधी मामलों के समय पर निपटान में मददगार होगी। इस अत्याधुनिक फोरेंसिक लैब में जानवरों के सभी हिस्सों जैसे- रक्त और ऊतक के नमूने, बाल, दाँत, हड्डियों आदि की जाँच की सुविधा उपलब्ध होगी। जानवरों से संबंधित किसी भी मामले की जाँच में सबसे बड़ी चुनौती अपराध स्थल के साक्ष्य से जानवर की एक विशिष्ट प्रजाति की पहचान करना है। वैज्ञानिकों के लिये यह अंतर कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है कि अपराध स्थल पर एकत्रित मांस का कोई टुकड़ा, हाथी या बाघ आदि जैसे संरक्षित जानवर का है अथवा किसी गैर-संरक्षित जानवर का है। ऐसे में रोहिणी (दिल्ली) में स्थपित यह नई प्रयोगशाला इस चुनौती से निपटने में काफी मददगार साबित होगी।
दिल्ली के लिये ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’
‘दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (DDMA) ने हाल ही में कोविड-19 के प्रभावी प्रबंधन के लिये ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (GRAP) को लागू करने का आदेश जारी किया है। दिल्ली के इस ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ में मुख्यतः तीन मापदंड शामिल हैं- पॉज़िटिविटी दर, संचयी नए संक्रमण मामले और राजधानी में लॉकडाउन/अनलॉक के लिये औसत ऑक्सीजन युक्त बेडों की ऑक्यूपेंसी। इसके तहत रंग-कोडित अलर्ट के चार स्तर प्रस्तुत किये गए हैं। लेवल 1 या येलो अलर्ट तब लागू होगा जब पॉज़िटिविटी दर लगातार दो दिनों की 0.5% से अधिक हो या सात दिनों के नए संक्रमण मामले 1,500 से अधिक हों या सात दिनों के लिये ऑक्सीजन युक्त बेड की औसत ऑक्यूपेंसी 500 बेड हो। इस स्तर पर सिनेमा हॉल, बैंक्वेट, सैलून, जिम, मनोरंजन पार्क, स्कूल और धार्मिक स्थल बंद रहेंगे। रात्रि कर्फ्यू भी लागू किया जाएगा। स्तर 2 या अम्बर अलर्ट तब लागू होगा जब पॉज़िटिविटी दर दो दिनों की 1% से अधिक हो या सात दिनों के नए संक्रमण मामले 3,500 से अधिक हों या सात दिनों के लिये ऑक्सीजन युक्त बेड की औसत ऑक्यूपेंसी 700 बेड हो। इसमें रेस्तराँ और सार्वजनिक पार्क बंद रहेंगे तथा सप्ताहांत में कर्फ्यू लागू होगा। वहीं स्तर 3 या ऑरेंज अलर्ट में दुकानें और मॉल के साथ सभी निर्माण गतिविधियाँ बंद रहेंगी और दिल्ली मेट्रो को भी बंद कर दिया जाएगा। स्तर 3 या रेड अलर्ट में पूर्णतः लॉकडाउन लागू कर दिया जाएगा।
लद्दाख में सबसे ऊँची सड़क
केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्यरत ‘सीमा सड़क संगठन’ (BRO) ने बोलीविया के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए भारत में सबसे ऊँची मोटर सड़क का निर्माण किया है। 19,300 फीट की ऊँचाई वाली यह सड़क पूर्वी लद्दाख में उमलिंगला दर्रे से होकर गुज़रती है। तकरीबन 52 किलोमीटर लंबी यह सड़क पूर्वी लद्दाख के ‘चुमुर सेक्टर’ के कई महत्त्वपूर्ण शहरों को जोड़ती है। इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के मुताबिक, इस सड़क की ऊँचाई ‘माउंट एवरेस्ट’ के बेस कैंप से भी ज़्यादा है, ज्ञात है कि ‘माउंट एवरेस्ट’ का साउथ बेस कैंप (नेपाल) 17,598 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, जबकि इसका नॉर्थ बेस कैंप (तिब्बत) 16,900 फीट की ऊँचाई पर मौजूद है। यह सड़क सियाचिन ग्लेशियर (17,700 फीट) की ऊँचाई से भी काफी अधिक है। यह सड़क लेह से चिसुमले और डेमचोक को जोड़ते हुए एक वैकल्पिक सीधा मार्ग प्रदान करती है और लद्दाख में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है। विदित हो कि ऐसे कठोर और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना का विकास बेहद कठिन होता है। सर्दियों के दौरान यहाँ तापमान -40 डिग्री तक पहुँच जाता है और इस ऊँचाई पर ऑक्सीजन का सामान्य स्तर अन्य क्षेत्र की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत कम होता है।