प्रिलिम्स फैक्ट्स (07 Jul, 2020)



प्रीलिम्स फैक्ट्स: 07 जुलाई, 2020

देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य

Dehing Patkai Wildlife Sanctuary

6 जुलाई, 2020 को असम सरकार ने ‘देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य’ (Dehing Patkai Wildlife Sanctuary) को एक ‘राष्ट्रीय उद्यान’ (National Park) के रूप में अपग्रेड करने का निर्णय लिया।

Dehing-Patkai

प्रमुख बिंदु:

  • असम सरकार द्वारा यह घोषणा ‘देहिंग पटकाई एलीफैंट रिज़र्व’ (Dehing Patkai Elephant Reserve) में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board of Wildlife- NBWL) द्वारा कोयला खनन परियोजना के लिये कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL) को सशर्त मंज़ूरी देने के कुछ महीने बाद की गई है। 
    • उल्लेखनीय है कि असम सरकार के इस निर्णय के बाद CIL की सहायक कंपनी ‘नार्थ-ईस्टर्न  कोलफील्ड्स’ (North Eastern Coalfields) ने क्षेत्र में सभी खनन कार्यों को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
  • ‘देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य’ का क्षेत्रफल 111.942 वर्ग किमी. है और यह ‘देहिंग पटकाई एलीफैंट रिज़र्व’ की परिधि के अंदर अवस्थित है।
  • ‘देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य’ ऊपरी असम के कोयले एवं तेल-समृद्ध ज़िलों (डिब्रूगढ़, तिनसुकिया एवं शिवसागर) में फैला हुआ है और माना जाता है कि यह असम में तराई क्षेत्र के वर्षावनों का अंतिम शेष संक्रमण ज़ोन है।
  • यह वन्यजीव अभयारण्य एक ‘संरक्षित क्षेत्र’ हैं जहाँ कुछ गतिविधियों जैसे-चराई की अनुमति आदि की छूट दी जाती हैं। 
    • जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि ‘राष्ट्रीय उद्यान’ का दर्जा मिल जाने से इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (The Wildlife Protection Act, 1972) के तहत ‘पूर्ण संरक्षण की स्थिति’ प्राप्त हो जाएगी।
    • एक वन्यजीव अभयारण्य के अंदर कुछ मानव गतिविधियों को अनुमति दी जा सकती है किंतु एक राष्ट्रीय पार्क में किसी भी मानव गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाती है।
  • यद्यपि वर्ष 1995 में इस अभयारण्य के 267 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देने का प्रस्ताव लाया गया था।
  • वर्ष 2004 में देहिंग पटकाई को वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।  
  • वर्तमान में देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य में ऊपरी दीहिंग, जॉयपुर और दिरक आरक्षित वनों के कुछ भाग शामिल हैं। 
  • ‘उत्तर पूर्वी कोलफील्ड्स’ (North Eastern Coalfields) की खनन परियोजना वाला क्षेत्र इस अभयारण्य से 9.19 किमी दूरी पर स्थित है।
  • अपग्रेड होने के बाद देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य असम का छठा राष्ट्रीय उद्यान होगा। जबकि अन्य पाँच राष्ट्रीय उद्यान काजीरंगा, नामेरी, मानस, ओरंग और डिब्रू-साइखोवा हैं।

महाजॉब्स पोर्टल

Mahajobs Portal

6 जुलाई, 2020 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने राज्य में उद्योगपतियों और स्थानीय बेरोज़गार युवाओं के बीच एक सेतु के रूप में काम करने वाले नए महाजॉब्स पोर्टल (Mahajobs Portal) की शुरुआत की।

Mahajobs

प्रमुख बिंदु:

  • इस पोर्टल ने इंजीनियरिंग, लॉजिस्टिक्स और केमिकल्स सहित 17 आर्थिक क्षेत्रों की पहचान की है।
  • इस पोर्टल के माध्यम से स्थानीय युवाओं (जिनके पास निवास प्रमाण पत्र है) के लिये 17 आर्थिक क्षेत्रों की 950 तरह की विविध नौकरियों में चयन करने का प्रावधान किया गया है। 
    • इससे पहले महाराष्ट्र में ‘रोज़गार विनियमन केंद्र’ बेरोज़गारों के बारे में जानकारी प्रदान करता था किंतु ‘वास्तव में कितने युवाओं को रोज़गार मिला’ इसकी जानकारी प्रदान नहीं करता था।  
  • यह पोर्टल नियोक्ताओं और कुशल, अर्द्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के बीच की खाई को पाटने में मदद करेगा।
  • यह जॉब्स पोर्टल महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (Maharashtra Industrial Development Corporation- MIDC) द्वारा विकसित किया गया है।
  • यह पोर्टल विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य एवं यहाँ के स्थानीय लोगों के लिये है।
  • यह पोर्टल महाराष्ट्र सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है और इससे राज्य में बेरोज़गारी की दर को कम करने में मदद मिलेगी।

उल्लेखनीय है कि COVID-19 के मद्देनज़र महाराष्ट्र में एक ओर जहाँ रोज़गार सृजन करना है वहीं दूसरी ओर कुछ उद्योगों में नौकरियों में हो रही छंटनी को रोकना है।


ज़ारदोज़ी

Zardozi

COVID-19 के कारण भोपाल के ज़ारदोज़ी (Zardozi) कलाकारों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

Zardozi

प्रमुख बिंदु:

  • ज़ारदोज़ी एक प्रकार की कढ़ाई कला है जिसमें कपड़ों पर जटिल पैटर्न बनाने के लिये धातु (सोने एवं चाँदी से) के धागों से बुनाई की जाती है। 
  • इस कढ़ाई में धातु के धागों के अलावा कीमती मोती एवं पत्थरों का भी प्रयोग किया जाता है।      
  • ऋग्वैदिक काल में भी भारत में ज़ारदोज़ी कढ़ाई के साक्ष्य मिलते हैं किंतु इसे मूलरूप से भारत में मुगल काल के दौरान ही संरक्षण मिला।
  • प्रारंभ में ज़ारदोज़ी कढ़ाई में शुद्ध चाँदी के तारों और सोने की पत्तियों का प्रयोग किया जाता था। किंतु वर्तमान में शिल्पकार सोने या चाँदी की पॉलिश किये हुए तांबे के तार एवं रेशम के धागे का उपयोग करते हैं।
  • भारत के अलावा ज़ारदोज़ी कढ़ाई ईरान, अज़रबैजान, इराक, कुवैत, सीरिया, तुर्की, मध्य एशिया, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में भी प्रसिद्ध है। 

भारत में ज़ारदोज़ी कढ़ाई का मुख्य केंद्र: 

  • भारत में ज़ारदोज़ी कढ़ाई का काम मुख्य रूप से लखनऊ, भोपाल, हैदराबाद, दिल्ली, आगरा, कश्मीर, मुंबई, अजमेर एवं चेन्नई में होता है।

ऐतिहासिक परिदृश्य:

  • ‘ज़ारदोज़ी’ शब्द दो फारसी शब्दों ‘ज़ार’ जिसका अर्थ है ‘सोना’ और ‘दोज़ी’ जिसका अर्थ है ‘कढ़ाई’ से मिलकर बना है।
  • 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर के संरक्षण में फारसी ज़ारदोज़ी कढ़ाई को अधिक मान्यता मिली।
  • औरंगजेब के शासन के तहत इसको मिलने वाला शाही संरक्षण बंद हो गया जिसके कारण इस कला का पतन हो गया।

गुणवत्तायुक्त सेवा के लिये सड़कों की रैंकिंग 

Rank Roads for Quality Service

सड़कों को बेहतरीन बनाने के अपने प्रयासों के तहत केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (Union Ministry of Road Transport and Highways) के अधीनस्‍थ भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India- NHAI) ने देश भर में राजमार्गों की दक्षता का आकलन करने के साथ-साथ उनकी रैंकिंग करने का भी निर्णय लिया है।

उद्देश्य:

  • राष्ट्रीय राजमार्गों की दक्षता का आकलन एवं रैंकिंग करने का उद्देश्‍य जरूरत के अनुसार आवश्‍यक सुधार करना है ताकि सड़कों की गुणवत्ता बेहतर हो सके तथा राजमार्गों पर सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित हो सके। 

प्रमुख बिंदु:

  • दक्षता आकलन के मानदंड विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय तौर-तरीकों एवं अध्ययनों पर आधारित हैं जिनका मुख्य लक्ष्य भारतीय संदर्भ में राजमार्गों के दक्षता मानकों को तय करना है। 
  • दक्षता आकलन के लिये मापदंडों को मुख्यत: तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है:
    • राजमार्ग की दक्षता (45%)
    • राजमार्ग पर सुरक्षा (35%) 
    • उपयोगकर्त्ता को मिलने वाली सेवाएँ (20%) 
  • इसके अलावा आकलन करते समय कई अन्य महत्त्वपूर्ण मानदंडों पर भी विचार किया जाएगा जिनमें परिचालन की गति, कई दिशाओं से वाहनों की पहुँच पर नियंत्रण, टोल प्लाजा पर लगने वाला समय, सड़क संकेतक, सड़क चिन्‍ह, दुर्घटना की दर, किसी घटना से निपटने में लगने वाला समय, क्रैश बैरियर, रोशनी, उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणाली (Advanced Traffic Management System- ATMS) की उपलब्धता, संरचनाओं की कार्य क्षमता, श्रेणीबद्ध पृथक चौराहों की व्‍यवस्‍था, स्वच्छता, वृक्षारोपण, सड़क के किनारे मिलने वाली सुविधाएँ और ग्राहक संतुष्टि शामिल हैं।
  • प्रत्येक मानदंड पर प्रत्येक कॉरिडोर द्वारा हासिल किये जाने वाला स्कोर परिचालन के उच्च मानकों, बेहतर सुरक्षा एवं उपयोगकर्त्ताओं को अच्‍छे अनुभव कराने के लिये आवश्‍यक जानकारियाँ सुलभ कराएगा और इसके साथ ही उन सुधारात्मक कदमों को भी सुझाएगा जिन पर अमल करके मौजूदा राजमार्गों को बेहतर बनाना संभव हो पाएगा। 
  • इससे NHAI की अन्य परियोजनाओं के लिये भी डिज़ाइन, मानकों, प्रथाओं, दिशा-निर्देशों एवं अनुबंध समझौतों में कमियों को पहचानने एवं उन्‍हें दूर करने में मदद मिलेगी।

स्टेवियोसाइड

Stevioside

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान ‘नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Institute of Nano Science & Technology) के शोधकर्त्ताओं ने हालिया अध्ययन में पाया है कि जब नैनोकणों पर स्टेवियोसाइड (Stevioside) का लेप किया जाता है तो ‘मैग्नेटिक हाइपरथर्मिया-मेडिएटेड कैंसर थेरेपी’ (Magnetic Hyperthermia-Mediated Cancer Therapy- MHCT) की दक्षता में वृद्धि हो सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • स्टेवियोसाइड, हनी यार्बा (Honey Yerba) की पत्तियों में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला पादप आधारित ग्लाइकोसाइड है।
    • हनी यार्बा (Honey Yerba) का वैज्ञानिक नाम स्टेविया रेबाउदिआना बेर्टोनी (Stevia Rebaudiana Bertoni) है। 
  • इसे प्राकृतिक मिठास के रूप में उपयोग किया जाता है तथा इस तत्त्व में कैलोरी की मौजूदगी भी नहीं होती है।

मैग्नेटिक हाइपरथर्मिया-मेडिएटेड कैंसर थेरेपी’

(Magnetic Hyperthermia-Mediated Cancer Therapy- MHCT):

  • कैंसर चिकित्सा की MHCT विधि नियमित रूप से उपयोग किये जाने वाले सर्फैक्टेंट मोइटाईस (Surfactant Moieties) [ओलिक एसिड (Oleic Acid) और पॉलीसोर्बेट-80 (Polysorbate-80)] की तुलना में चुंबकीय नैनोकणों का उपयोग करके ट्यूमर के ऊतकों को गर्म करने पर आधारित है।