प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 06 जनवरी, 2020
यक्षगान
Yakshagana
हाल ही में यक्षगान समिति द्वारा 60वें वार्षिक यक्षगान (60th Annual Yakshagana) का आयोजन कर्नाटक के पद्मानुर गाँव (Padmanur Village) में किया गया।
- यक्षगान समिति को आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक यक्षगान बायलता समिति (Sarvajanika Yakshagana Bayalata Samithi) के रूप में जाना जाता है और इसे वर्ष 1959 में स्थापित किया गया था।
- यह एक बहु-धार्मिक समिति है जिसमें हिंदू, ईसाई और मुस्लिम शामिल हैं।
यक्षगान (Yakshagana) के बारे में:
- कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में किया जाने वाला यह प्रसिद्ध लोकनाट्य है।
- यक्ष का शाब्दिक अर्थ है- यक्ष के गीत। कर्नाटक में यक्षगान की परंपरा लगभग 800 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
- इसमें संगीत की अपनी शैली होती है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत ‘कर्नाटक’ और ‘हिन्दुस्तानी’ शैली दोनों से अलग है।
- यह संगीत, नृत्य, भाषण और वेशभूषा का एक समृद्ध कलात्मक मिश्रण है, इस कला में संगीत नाटक के साथ-साथ नैतिक शिक्षा और जन मनोरंजन जैसी विशेषताओं को भी महत्त्व दिया जाता है।
- यक्षगान की कई सामानांतर शैलियाँ हैं जिनकी प्रस्तुति आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में की जाती है।
नेत्रेतर दृष्टि
Extraocular Vision
पहली बार शोधकर्त्ताओं ने पता लगाया है कि आँखें न होने के बावजूद भंगुर सितारों (Brittle Stars) की एक प्रजाति देख सकती है।
मुख्य बिंदु:
- आँखों के बिना देखने की क्षमता को नेत्रेतर दृष्टि (Extraocular Vision) के रूप में जाना जाता है।
- समुद्री अर्चिन प्रजातियों (Sea Urchin Species) के बाद लाल भंगुर सितारा (Ophiocoma Wendtii- ओफियोकोमा वेंडटी) ऐसा दूसरा समुद्री जीव है जिसकी नेत्रेतर दृष्टि होती है।
- शोधकर्त्ताओं का मानना है कि समुद्री अर्चिन (Sea Urchin) और भंगुर सितारे के शरीर पर पाई जाने वाली फोटोरिसेप्टर कोशिकाएँ (Photoreceptor Cells) नेत्रेतर दृष्टि जैसी सुविधा प्रदान करती हैं।
- शोधकर्त्ता बताते हैं कि एक भंगुर सितारा प्रकाश-संवेदी कोशिकाओं (Light-Sensing Cells) की मदद से देखता है जो उसके पूरे शरीर को ढँके होती हैं। ये प्रकाश-संवेदी कोशिकाएँ भंगुर तारे में दृश्य उत्तेजना (Visual Stimuli) उत्पन्न करती हैं जिससे यह चट्टानों जैसी मोटे संरचनाओं को पहचान लेता है।
- लाल भंगुर सितारे (Red Brittle Star) की एक अन्य विशेषता सांकेतिक रुप से रंग बदलना है।
- यह जीव दिन में गहरे लाल रंग का होता है किंतु रात में गहरे पीले रंग में बदल जाता है।
लौह बर्फ
Iron Snow
जेजीआर सॉलिड अर्थ (JGR Solid Earth) पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी का आंतरिक कोर छोटे लौह कणों से निर्मित बर्फ से बना है जिसका घनत्व पृथ्वी की सतह पर मौजूद बर्फ की तुलना में अधिक है।
मुख्य बिंदु:
- पृथ्वी के बाह्य कोर (Outer Core) से लौह बर्फ पिघलकर आतंरिक कोर (Inner Core) में जमा हो जाती है, जिसकी मोटाई 320 मीटर है।
- यह खोज भूकंपीय तरंगों के विश्लेषण के आधार पर की गई है। भूकंपीय तरंगें भूकंप, विस्फोट या इसी तरह के ऊर्जायुक्त स्रोत (Similar Energetic Source) से उत्पन्न कंपन होती हैं जिनका प्रसार पृथ्वी के भीतर या इसकी सतह पर होता है। जब भूकंपीय तरंगें बाह्य कोर से गुज़रती हैं तो इनकी गति धीमी हो जाती है।
- पहले के अध्ययनों में बताया गया है कि आंतरिक और बाह्य कोर के बीच लौह बर्फ की परत मौजूद है। अतः नवीनतम जानकारी पृथ्वी के कोर से जुटाए गए पहले की सूचना को प्रमाणित करती है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार यहाँ पर क्रिस्टलीकरण संभव है और निचली बाह्य कोर का लगभग 15% हिस्सा लौह आधारित क्रिस्टल (बर्फ) से बना हो सकता है।
बीबी का मकबरा
Bibi Ka Maqbara
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण 17वीं सदी के मुगलकालीन स्मारक ‘बीबी का मकबरा’ के गुंबद और संगमरमर से निर्मित अन्य हिस्सों का वैज्ञानिक संरक्षण करेगा।
मुख्य बिंदु:
- यह मकबरा वर्ष 1660 में औरंगजेब की बेगम दिलरास बानो बेगम या रबिया-उद्-दौरानी की याद में बनवाया गया था।
- इसे ‘दक्कनी ताज’ या ‘बीबी का मकबरा’ भी कहते हैं।
- यह महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद में स्थित है।
- इसके वास्तुकार अताउल्लाह (उस्ताद अहमद लाहौरी के पुत्र) और हंसपत राय थे।
- इसके निर्माण में भी संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है तथा मकबरे के कक्ष की दीवारों और छतों में सुंदर नक्काशी की गई है, किंतु इसके ह्रास के लक्षण स्पष्ट दिखते हैं।
- औरंगजेब काल और उसके बाद के मुगल शासकों के दौर में बनी इमारतें स्थापत्य की दृष्टि से महत्त्वहीन रहीं (सफदरजंग के मकबरे को छोड़कर)। अतः औरंगजेब का काल मुगल स्थापत्य कला का अंतिम पड़ाव साबित हुआ।