प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स : 05 जून, 2021
ब्लू-फिन महासीर
Blue-finned Mahseer
हाल ही में ब्लू-फिनेड महासीर (Blue-finned Mahseer) को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने अपनी रेड लिस्ट में लुप्तप्राय (Endangered) से कम चिंतनीय (Least Concern) श्रेणी में स्थानांतरित किया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- महासीर टॉर (Tor) वर्ग या वंश से संबंधित है, भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों के अन्य क्षेत्रों में इसकी कई उप-प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- ब्लू-फिनेड महासीर या टॉर खुद्री (Tor Khudree ), महासीर की उप-प्रजातियों में से एक है।
निवास स्थान :
- यह मुख्य रूप से पुणे के पूर्व में मोटा मोला (Mota Mola) नदी में पाई जाती है। यह प्रजाति दक्कन के पठार में बहने वाली अन्य नदियों में भी पाई जाती है।
- यह प्रवासी प्रजाति है; वर्षा के दौरान नदियों की सतह की ओर बढ़ती है। यह स्वच्छ, तीव्र प्रवाह वाले और सुव्यवस्थित ऑक्सीजन युक्त जल क्षेत्रों में पाई जाती है।
खतरा:
- निवास स्थानों में परिवर्तन, अत्यधिक कटाई/हार्वेस्टिंग तथा अन्य मछलियों की प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा का खतरा।
महत्त्व :
- ताज़े पानी के पारिस्थितिकी तंत्र का संकेतक:
- यह घुलित ऑक्सीजन के स्तर, जल के तापमान और अस्थिर जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। इसका जीवन या आवास प्रदूषित क्षेत्रों के लिये अनुकूल नहीं है।
- संस्कृति:
- इनका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व भी है तथा साथ ही ये पूरे भारत में 'मंदिर अभयारण्यों' या मंदिरों में स्थापित कुंड/तालाबों में संरक्षित हैं।
संरक्षण संबंधी पहल :
- महाराष्ट्र के पुणे के पास स्थित लोनावाला में टाटा पावर (निजी कंपनी) 50 वर्षों से ब्लू-फिनेड महासीर के संरक्षण में योगदान दे रहा है।
संरक्षण की स्थिति :
- IUCN रेड लिस्ट : कम चिंतनीय (Least Concern)
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN)
परिचय :
- IUCN एक सदस्यीय संघ है जो विशिष्ट रूप से सरकार एवं नागरिक समाज संगठनों दोनों से मिलकर बना है।
- यह दुनिया की प्राकृतिक स्थिति को संरक्षित रखने के लिये एक वैश्विक प्राधिकरण है जिसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी। इसका मुख्यालय स्विटज़रलैंड में स्थित है।
लाल सूची (The Red List) :
- IUCN द्वारा जारी की जाने वाली लाल सूची दुनिया की सबसे व्यापक सूची है, जिसमें पौधों और जानवरों की प्रजातियों की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है।
- यह प्रजातियों को नौ श्रेणियों में विभाजित करता है: मूल्यांकन नहीं (Not Evaluated), डेटा की कमी (Data Deficient), कम चिंतनीय (Least Concern), संभावित खतरे(Near Threatened), कमज़ोर (Vulnerable), लुप्तप्राय (Endangered), गंभीर रूप संकटाग्रस्त (Critically Endangered), जंगल से विलुप्त तथा विलुप्त (Extinct in the Wild and Extinct)।
- इसे जैविक विविधता की स्थिति जानने के लिये सबसे उत्तम स्रोत माना जाता है।
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 जून, 2021
नासिक में तीन नई गुफाओं की खोज
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने नासिक में तीन और गुफाओं की खोज की है। इन गुफाओं, जो कि संभवतः बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान रहे होंगे, की प्राचीनता अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी है, हालाँकि इन गुफाओं का अध्ययन कर रहे पुरातत्त्वविदों का मानना है कि ये गुफाएँ ‘त्रिरश्मी गुफाओं’ से भी पुरानी हो सकती हैं। ज्ञात हो कि लगभग दो शताब्दी पूर्व एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ने नासिक की एक पहाड़ी में ‘त्रिरश्मी बौद्ध गुफाओं’- जिन्हें ‘पांडवलेनी’ के नाम से भी जाना जाता है, का दस्तावेज़ीकरण किया था। त्रिरश्मी या पांडवलेनी गुफाएँ लगभग 25 गुफाओं का एक समूह है, जो कि तकरीबन दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और छठी शताब्दी ईस्वी के बीच बनाई गई थीं। गुफाओं के परिसर का दस्तावेज़ीकरण वर्ष 1823 में ब्रिटिश कैप्टन जेम्स डेलामाइन द्वारा किया गया था और वर्तमान में यह भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के तहत संरक्षित स्थल और एक पर्यटन स्थल है। विदित हो कि नासिक में पाई गईं बौद्ध मूर्तियाँ और गुफाएँ बौद्ध धर्म की हीनयान परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय रॉक-कट वास्तुकला का एक महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक उदाहरण हैं। गुफाओं में बुद्ध और बोधिसत्व की छवियाँ हैं और इंडो-ग्रीक वास्तुकला के डिज़ाइन के साथ मूर्तियाँ भी मौजूद हैं। ‘कान्हेरी’ और ‘वाई’ गुफाओं के समान ही इन गुफाओं में भी भिक्षुओं के ध्यान के लिये विशेष व्यवस्था की गई है।
शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET)
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल की हलिया घोषणा के मुताबिक, सरकार ने वर्ष 2011 से पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ ‘शिक्षक पात्रता परीक्षा’ (TET) की वैधता योग्यता अवधि को 7 वर्ष से बढ़ाकर आजीवन करने का निर्णय लिया है। घोषणा के अनुसार, संबंधित राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को उन उम्मीदवारों को नए सिरे से TET प्रमाणपत्र जारी करना होगा, जिनकी 7 वर्ष की अवधि पहले ही समाप्त हो चुकी है। ज्ञात हो कि यह शिक्षा क्षेत्र में कॅॅरियर बनाने के इच्छुक उम्मीदवारों के लिये रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा। ‘शिक्षक पात्रता परीक्षा’ (TET) एक व्यक्ति के लिये स्कूलों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति हेतु पात्र होने के लिये आवश्यक योग्यताओं में से एक है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के 11 फरवरी, 2011 के दिशा-निर्देशों में कहा गया था कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) राज्य सरकारों द्वारा आयोजित की जाएगी और TET योग्यता प्रमाणपत्र की वैधता इसे पास करने की तारीख से 7 वर्ष की अवधि तक के लिये होगी।
सर अनिरुद्ध जगन्नाथ
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ (91 वर्ष) के निधन पर दुख व्यक्त किया है। इस अवसर पर केंद्र सरकार ने 5 जून को पूरे भारत में राज्यव्यापी शोक की घोषणा की है। 29 जून, 1930 को जन्मे सर अनिरुद्ध जगन्नाथ मॉरीशस के सबसे उल्लेखनीय और सम्मानित व्यक्तियों में से एक थे। वे पेशे से एक वकील थे और उन्होंने वर्ष 1963 में विधान परिषद के चुनाव के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। वह 18 वर्ष से अधिक के कार्यकाल के साथ देश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री थे। उन्हें वर्ष 1980 के दशक में मॉरीशस की आर्थिक प्रगति का जनक माना जाता है। सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने वर्ष 1982 और वर्ष 1995 के बीच मॉरीशस के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, फिर वर्ष 2000 और वर्ष 2003 तथा वर्ष 2014 और वर्ष 2017 के बीच भी वे मॉरीशस के प्रधानमंत्री रहे, इसके पश्चात् उनके बेटे प्रविंद जगन्नाथ मॉरीशस के प्रधानमंत्री बने। इसके अलावा सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने वर्ष 2003-2012 तक मॉरीशस के राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया। ज्ञात हो कि भारत-मॉरीशस के संबंध काफी पुराने हैं और हिंदी भाषा ने इन संबंधों को मज़बूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
लक्ष्मीनंदन बोरा
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध असमिया साहित्यकार लक्ष्मीनंदन बोरा का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। असमिया भाषा में एक प्रशंसित उपन्यासकार और लघु कथाकार, लक्ष्मीनंदन बोरा ने ‘पाताल भैरवी’ और ‘कायाकल्प’ सहित 60 से अधिक पुस्तकों की रचना की। जून 1932 में असम के कुदिजाह गाँव में जन्मे लक्ष्मी नंदन बोरा ने अपनी स्कूली शिक्षा ‘नागाँव हाई स्कूल’ से की और कॉटन कॉलेज स्टेट यूनिवर्सिटी, गुवाहाटी से भौतिकी में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। लक्ष्मी नंदन बोरा की पहली लघु कहानी ‘भाओना’ वर्ष 1954 में असमिया पत्रिका ‘रामधेनु’ में प्रकाशित हुई थी। ‘दृष्टिरूप’ उनकी पहली पुस्तक है, जो वर्ष 1958 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने वर्ष 1963 में अपना पहला उपन्यास ‘गोंगा सिलोनिर पाखी’ प्रकाशित किया था। पाताल भैरवी के लिये लक्ष्मीनंदन बोरा ने वर्ष 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता। वर्ष 2008 में उन्होंने ‘कायाकल्प’ प्रकाशित किया, जिसके लिये उन्हें केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित किया गया। लक्ष्मीनंदन बोरा को भारत सरकार द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2015 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था।