प्रिलिम्स फैक्ट्स (03 Mar, 2022)



Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 3 मार्च, 2022

अंतर्राष्ट्रीय मानसून परियोजना कार्यालय

हाल ही में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2022 के अवसर पर सरकार द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय मानसून परियोजना कार्यालय (International Monsoons Project Office- IMPO) को शुरू किया गया है। प्रारंभ में पांँच वर्षों की अवधि के लिये यह अंतर्राष्ट्रीय मानसून परियोजना कार्यालय पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) पर आधारित होगा। IMPO की स्थापना देश की अर्थव्यवस्था हेतु मानसून के महत्त्व को उजागर करने के लिये की गई है। विश्व जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम और विश्व मौसम अनुसंधान कार्यक्रम के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय मानसून अनुसंधान से संबंधित कनेक्शन और गतिविधियों की पहचान करने तथा उन्हें बढ़ावा देने का कार्य भी इसके द्वारा किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) विश्व मौसम अनुसंधान कार्यक्रम और विश्व जलवायु अनुसंधान कार्यक्रमों का समन्वय करता है। IMPO की स्थापना का मतलब होगा कि एकीकृत वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विस्तार ताकि मानसून की परिवर्तनशीलता को हल करने, चक्रवातों और मानसून की भविष्यवाणी कौशल में सुधार, बेहतर सेवाओं एवं समर्थन हेतु मानसून से संबंधित अनुसंधान गतिविधियों को मज़बूत करने तथा ज्ञान को बढ़ावा देने के लिये समाधान तैयार किया जा सके। IMPO की स्थापना से विश्व भर में मानसून अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारतीय और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक समुदाय दोनों लाभवान्वित होंगे।

जन औषधि दिवस सप्ताह

रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा 1 से 7 मार्च, 2022 तक जनऔषधि दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष चौथा जन औषधि दिवस 7 मार्च को मनाया जाएगा। भारत सरकार द्वारा मार्च 2025 के अंत तक प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों (PMBJK) की संख्या को बढ़ाकर 10,500 करने का लक्ष्य रखा गया है। चौथे जन औषधि दिवस की थीम “जन औषधि-जन उपयोगी” है। इस सप्ताह को मनाने का उद्देश्य जन औषधि परियोजना के लाभों और जेनेरिक दवाओं के उपयोग के बारे में जागरूकता को बढ़ाना है। प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJK) को वर्ष 2008 में रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सभी को सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएंँ उपलब्ध कराना था। यह योजना देश में जेनेरिक दवाओं के उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने से संबंधित है। सरकार द्वारा निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, समितियों, गैर-सरकारी संगठनों, सहकारी निकायों आदि को शामिल करते हुए यह कार्यक्रम शुरू किया गया था।

विश्व वन्यजीव दिवस

3 मार्च, 2022 को दुनिया भर में विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जा रहा है। यह दिवस वन्‍यजीवों के संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता के प्रसार हेतु प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को मनाया जाता है। 20 दिसंबर, 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में मानने का निर्णय लिया था। संयुक्त राष्ट्र ने अपने रेज़ोल्यूशन में घोषणा की थी कि विश्व वन्यजीव दिवस आम लोगों को विश्व के बदलते स्वरूप तथा मानव गतिविधियों के कारण वनस्पतियों एवं जीवों पर उत्पन्न हो रहे खतरों के बारे में जागरूक करने के प्रति समर्पित होगा। ज्ञात हो कि 3 मार्च, 1973 को ही वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) को अंगीकृत किया गया था। वर्ष 2022 के लिये विश्व वन्यजीव दिवस की थीम- ‘पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिये प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना’ (Recovering Key Species For Ecosystem Restoration) है। यह दिवस इस तथ्य को रेखांकित करने का अवसर प्रदान करता है कि मानव जीवन के लिये वन एवं पारिस्थितिकी तंत्र कितने महत्त्वपूर्ण हैं। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो वैश्विक स्तर पर लगभग 200 से 350 मिलियन लोग या तो जंगलों के भीतर/आसपास रहते हैं या फिर जीवन एवं आजीविका के लिये वन संसाधनों पर प्रत्यक्ष तौर पर निर्भर हैं।

श्रीमंत शंकरदेव

हाल ही में असम सरकार ने उन स्थानों पर ‘नामघर’ (वैष्णव मठ) स्थापित करने का निर्णय लिया, जहांँ 15वीं शताब्दी के संत और समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव ने बत्रादव (असम) से कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) की यात्रा के दौरान कम-से-कम एक रात बिताई थी। असम सरकार तीर्थयात्रियों के लिये उन स्थानों को कवर करने हेतु ASTC के तहत विशेष बस सेवा शुरू करने की भी योजना बना रही है। यह घोषणा डिब्रूगढ़ ज़िले के नाहरकटिया में श्रीमंत शंकरदेव संघ के 91वें वार्षिक सत्र के दौरान की गई। सरकार कर्मचारियों के वेतन खर्च को पूरा करने के लिये महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव विश्वविद्यालय को प्रतिवर्ष 6 करोड़ रुपए प्रदान करेगी। श्रीमंत शंकरदेव 15वीं-16वीं सदी के असमिया संत-विद्वान, नाटककार, संगीतकार, कवि, नर्तक, अभिनेता और सामाजिक-धार्मिक सुधारक थे। वह असम के सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्हें व्यापक रूप से पूर्व सांस्कृतिक गतिविधियों के निर्माण, नाट्य प्रदर्शन (अंकिया नाट, भाओना), संगीत (बोरगीत), साहित्यिक भाषा (ब्रजावली) तथा नृत्य (सत्रिया) के नए रूपों को निर्मित करने का श्रेय दिया जाता है, वे 15वीं और 16वीं शताब्दी के बहुआयामी आध्यात्मिक गुरु थे।


पाक खाड़ी में डुगोंग संरक्षण रिज़र्व

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी में डुगोंग के लिये भारत के पहले संरक्षण रिज़र्व की स्थापना करने का निर्णय लिया है।

  • यह भारत को डुगोंग संरक्षण के संबंध में दक्षिण एशिया उप-क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र के रूप में कार्य करने की सुविधा प्रदान करता है।

डुगोंग

  • परिचय:
    • डुगोंग (Dugong dugon) जिसे 'सी काउ (Sea Cow)' भी कहा जाता है, सिरेनिया (Sirenia) श्रेणी की चार जीवित प्रजातियों में से एक है तथा यह शाकाहारी स्तनपायी की एकमात्र मौजूदा प्रजाति है जो भारत सहित भारत के समुद्र में विशेष रूप से रहती हैं।
    • डुगोंग समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और इनकी आबादी में कमी का प्रभाव खाद्य शृंखला पर पड़ेगा।
  • वितरण और पर्यावास: वे 30 से अधिक देशों में पाए जाते हैं तथा भारत में मन्नार की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी, पाक खाड़ी और अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह में देखे जा सकते हैं।
  • संरक्षण की स्थिति:
  • खतरा:
    • डुगोंग समुद्री घास खाते हैं और दुनिया के कई हिस्सों में समुद्र तल ट्रॉलिंग के कारण समुद्री घास का हो रहा नुकसान डुगोंग आबादी में कमी के पीछे सबसे महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है।
      • ट्रॉलिंग मछली पकड़ने का एक तरीका है, जिसमें एक या एक से अधिक नावों के पीछे पानी के माध्यम से मछली पकड़ने का जाल खींचा जाता है।
      • यह पर्यावरण के लिये हानिकारक है, क्योंकि यह समुद्र तल, प्रवाल भित्तियों और अन्य समुद्री जानवरों को नुकसान पहुँचाता है।
    • मानव गतिविधियाँ जैसे कि आवास स्थान की क्षति, प्रदूषण, व्यापक पैमाने पर अवैध मत्स्य पालन गतिविधियाँ या अवैध शिकार और अनियोजित पर्यटन डुगोंग के लिये मुख्य खतरे हैं।
      • डुगोंग का मांस इस गलत धारणा के तहत सेवन किया जाता है कि यह मानव शरीर के तापमान को कम करता है।
  • संरक्षण हेतु उठाए गए कदम:
    • फरवरी, 2020 में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण’ (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (Conference of the Parties- COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।
      • भारत सरकार वर्ष 1983 से CMS का हस्ताक्षरकर्त्ता देश है। भारत ने साइबेरियन क्रेन (वर्ष 1998), मरीन टर्टल ( वर्ष 2007), डुगोंग (वर्ष 2008) और रैप्टर (वर्ष 2016) के संरक्षण एवं प्रबंधन पर CMS के साथ गैर- बाध्यकारी कानूनी समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत में 'यूएनईपी/सीएमएस डुगोंग एमओयू' के कार्यान्वयन और डगोंग संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर गौर करने हेतु 'डुगोंग के संरक्षण के लिये कार्य बल' का गठन किया।

संरक्षण रिज़र्व:

  • संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व देश के उन संरक्षित क्षेत्रों को दर्शाते हैं जो आमतौर पर स्थापित राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और आरक्षित तथा संरक्षित जंगलों के मध्य बफर ज़ोन या कनेक्टर्स के रूप में कार्य करते हैं।
  • ऐसे क्षेत्रों को संरक्षण क्षेत्रों के रूप में नामित किया जाता है जो निर्जन (Uninhabited) और पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में हैं, लेकिन समुदायों एवं सामुदायिक क्षेत्रों द्वारा निर्वाह के लिये इनका उपयोग किया जाता है यदि भूमि का हिस्सा निजी स्वामित्व में है।
  • इन संरक्षित क्षेत्र श्रेणियों को पहली बार वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 (वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन) में पेश किया गया था।
  • इन श्रेणियों को भूमि और भूमि के उपयोग के निजी स्वामित्व के कारण मौजूदा व प्रस्तावित संरक्षित क्षेत्रों में कम सुरक्षा की वजह से जोड़ा गया था।

स्रोत: डाउन टू अर्थ