प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 02 अप्रैल, 2019
जापान में नया शाही युग ‘रीवा’
हाल ही में जापान ने अपने नए शाही युग की घोषणा की है जिसे रीवा (Reiwa) कहा जा रहा है।
- गौरतलब है कि युवराज नारुहितो के राजगद्दी संभालते ही (1 मई, 2019 को) जापान में इस नए शाही युग की शुरुआत होगी।
- ध्यातव्य है कि जापान के वर्तमान सम्राट अकिहितो 30 अप्रैल को अपनी राजगद्दी स्वेच्छा से छोड़ रहे हैं।
- ‘रीवा’ युग की शुरुआत के साथ ही 1989 में शुरू हुए हीसेई युग (Heisei Era) का अंत हो जाएगा।
- जापान में ग्रेगरी कैलेंडर के साथ ही स्वदेशी गेंगो कैलेंडर का प्रयोग भी बड़े पैमाने पर किया जाता है।
- जापान में नए राजा के सत्तासीन होने पर नए शाही युग की शुरुआत की परंपरा रही है।
- जापान के वर्तमान संवैधानिक प्रावधानों के तहत, सम्राट ‘राज्य और अपने लोगों की एकता का प्रतीक’ है।
- सम्राट के पास कोई वास्तविक राजनीतिक शक्ति नहीं होती है लेकिन उन्हें राज्य के प्रमुख और संवैधानिक सम्राट के रूप में माना जाता है।
विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस
दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) मनाया जाता है।
- इस वर्ष विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस की थीम- ‘सहायक प्रौद्योगिकी, सक्रिय भागीदारी’ (Assistive Technologies, Active Participation) है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अप्रैल, 2007 को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस की घोषणा की थी।
- इस दिवस पर ऑटिज़्म से ग्रस्त बच्चों और बड़ों के जीवन में सुधार के लिये कदम उठाने के साथ ही उन्हें सार्थक जीवन बिताने में सहायता दी जाती है।
- भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार प्रति 110 में से एक बच्चा ऑटिज़्म से ग्रस्त होता है और हर 70 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है।
- इस बीमारी की चपेट में आने की बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज़्यादा संभावना होती है।
- इस विकार को पहचानने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन शीघ्र निदान किये जाने की स्थिति में इसमें थोडा-बहुत सुधार लाया जा सकता है।
- यह बीमारी दुनिया भर में पाई जाती है और इसका असर बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज पर पड़ता है।
ऑटिज़्म क्या है?
- ऑटिज़्म (Autism) या आत्मविमोह/स्वलीनता, एक मानसिक रोग या मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला एक गंभीर विकार है। नीले रंग को ऑटिज़्म का प्रतीक माना गया है।
- इस विकार के लक्षण जन्म या बाल्यावस्था (पहले तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है। यह विकार व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है।
- इस विकार से पीड़ित बच्चों का विकास अन्य बच्चों से अलग होता है।
- इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है, जैसे- एक ही काम को बार-बार करना।
फायेंग गाँव
- मणिपुर के इम्फाल ज़िले के एक छोटे से गाँव फायेंग को भारत के पहले कार्बन पॉज़िटिव गाँव के रूप में विकसित किया गया है।
- यदि कोई गाँव ग्रीनहाउस गैसों के संचय को कम करने के लिये वातावरण में उपस्थित कार्बन को कम करता है तो उसे कार्बन-पॉजिटिव टैग दिया जाता है। गौरतलब है कि इन प्रयासों के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम होता है।
- 1970 और 80 के दशक में शुष्क और बदहाल पड़े इस गाँव के कायाकल्प हेतु वित्तपोषित राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि (National Adaptation Fund for Climate Change-NAFCC) के तहत किया गया।
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि (NAFCC) की स्थापना अगस्त 2015 में की गई थी, इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के विपरीत परिणामों के प्रति (विशेष रूप से संवेदनशील राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों हेतु) जलवायु परिवर्तन अनुकूलन लागत को पूरा करना था।
- नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) इसकी राष्ट्रीय कार्यान्वयन इकाई (NIE) है।
ठकुरानी जात्रा महोत्सव
- ओडिशा के बेरहामपुर में द्विवार्षिक ठकुरानी जात्रा उत्सव के जश्न की शुरुआत हो गई है।
- इस त्योहार के दौरान देवी बुद्धी ठकुरानी को ठकुरानी मंदिर स्ट्रीट के मुख्य मंदिर से देसी बेहरा स्ट्रीट में उनके अस्थायी निवास स्थान पर ले जाया जाता है, जहाँ वह उत्सव समाप्त होने तक रहती हैं।
- पहली ठकुरानी यात्रा का आयोजन अप्रैल 1779 में किया गया था। यह त्योहार 32 दिनों तक चलता है।
- देवी बुद्धी ठकुरानी को डेरा समुदाय (जिसने बेरहामपुर को रेशम शहर के रूप में प्रसिद्धि दिलाई) के नेता देसीबेहरा के परिवार का एक सदस्य माना जाता है।