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एडिटोरियल

  • 31 Dec, 2022
  • 10 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

मुक्त व्यापार समझौता

यह एडिटोरियल 28/12/2022 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India’s FTA imperative” लेख पर आधारित है। इसमें FTAs की ओर भारत के संरेखण और वैश्विक मूल्य-शृंखला पर इसके प्रभावों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ:

जबकि कोविड-19 महामारी ने विश्व को सुरक्षित एवं विश्वसनीय आपूर्ति शृंखलाओं के महत्त्व का अनुभव कराया है, आर्थिक स्व-हित एवं वैश्विक व्यापार में मंदी के संबंध में चिंताएँ भी प्रकट हुई हैं।

  • महामारी से उबरने का प्रयत्न करते हुए भारत ने ‘निर्यात के लिये विनिर्माण’ (Manufacturing for Export) के लक्ष्य के साथ और स्वयं को वैश्विक आपूर्ति शृंखला केंद्र (Slobal Supply Chain Hub) के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से व्यापार को सुविधाजनक बनाने हेतु कई उपाय (PLIs, गति शक्ति मास्टर प्लान, फेसलेस एंड पेपरलेस कार्गो क्लीयरेंस आदि) किये हैं।
  • हालाँकि मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements- FTAs) के माध्यम से समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी स्थापित कर वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्राप्त करने के लिये अपनी नीतियों को पुनर्संरेखित करना (Realignment) इस उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण है।

मुक्त व्यापार समझौता:

  • FTAs वस्तुओं एवं सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला पर टैरिफ व अन्य व्यापार बाधाओं को कम करने या समाप्त करने के लिये दो या दो से अधिक देशों के बीच संपन्न होने वाले समझौते हैं।
  • भारत ने अपने व्यापार का विस्तार करने और अपने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न देशों के साथ कई FTAs पर हस्ताक्षर किये हैं।

FTAs की ओर पुनर्संरेखण के महत्त्वपूर्ण लाभ:

  • FTAs वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ एक विश्वसनीय आपूर्ति केंद्र के रूप में एकीकरण में सहायता करते हैं, जो कि उत्तर-कोविड विश्व में महत्त्वपूर्ण है जहाँ व्यवसाय सुरक्षित और लागत प्रभावी व्यापारिक मार्गों की तलाश कर रहे हैं।
  •  ये पश्चिम के उपभोक्ता बाज़ारों में भारतीय मूल्यवर्द्धित निर्यात हेतु गहन बाज़ार पहुँच भी प्रदान करते हैं।
  • वे निष्पक्ष एवं पारस्परिक व्यापार शर्तों के साथ वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात के लिये मौजूदा गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करना भी सुनिश्चित करते हैं।
  • इसके साथ ही वे उन क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में बेहतर अवसरों का लाभ उठाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जिन्हें पहले से ही अधिमान्य या तरजीही पहुँच प्राप्त है।

भारत के FTAs से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ:

  • बाज़ार पहुँच:
    • भारत के FTAs से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों में से एक है अन्य देशों में इसके उत्पादों के लिये बाज़ार पहुँच की कमी।
      • कई भारतीय उत्पाद अन्य देशों में प्रवेश के लिये उच्च टैरिफ एवं अन्य बाधाओं का सामना करते हैं, जिससे भारतीय व्यवसायों के लिये उन बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो जाता है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार
    • एक अन्य प्रमुख चुनौती है दूसरे देशों में बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights- IPR) की सुरक्षा।
      • भारत में बड़ी संख्या में लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs) मौजूद हैं जो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये अपने IPR के संरक्षण पर निर्भर हैं लेकिन कई देशों में IPR के लिये और भी मज़बूत सुरक्षा तंत्र मौजूद हैं, जिससे भारतीय व्यवसायों के लिये उन बाज़ारों में अपने उत्पादों को बेचना कठिन हो सकता है।
  • व्यापार घाटा: 
    • भारत अपने कई व्यापारिक साझेदारों के साथ व्यापार घाटे (Trade Deficit) की स्थिति में है, यानी यह उन देशों को निर्यात की तुलना में कहीं अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करता है। यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिये एक चुनौती बन सकती है, क्योंकि भारत अपने विकास को गति देने के लिये निर्यात पर निर्भर है।
      • वित्त वर्ष 2020-21 में भारत आसियान देशों के साथ 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जबकि जापान के साथ 6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार घाटे की स्थिति में था।
  • कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: 
    • कृषि क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है और भारत में किसानों का एक बड़ा भाग अपने जीवनयापन के लिये निर्यात पर निर्भर है।
      • हालाँकि अन्य देशों के साथ भारत के FTAs ने प्रायः कृषि उत्पादों के आयात में वृद्धि का परिदृश्य उत्पन्न किया है, जो भारतीय किसानों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • पारदर्शिता की कमी: 
    • अधिकांश FTAs पर बंद दरवाज़ों के पीछे समझौता वार्ता चलती है और इनसे संलग्न उद्देश्यों एवं प्रक्रियाओं के बारे में अधिक सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती।
      • इसके अलावा FTAs पर हस्ताक्षर किये जाने के दौरान और उसके बाद कार्यकारी के कार्यों की संवीक्षा के लिये कोई संस्थागत तंत्र मौजूद नहीं है।

आगे की राह

  • FTAs की संवीक्षा: FTAs की विधायी संवीक्षा का कार्य वाणिज्य समिति (Committee on Commerce) द्वारा की जानी चाहिये, जहाँ समझौतों एवं वार्ताओं के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाए और एक तरह से विधायिका के  कार्यकारी उत्तरदायित्त्व को बनाए रखा जाए।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना: भारत को इंजीनियरिंग वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, ड्रग्स एवं फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र और कृषि मशीनरी जैसे मूल्यवर्द्धित उत्पादों के क्षेत्र में अपने घरेलू विनिर्माण आधार को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, जिसका उपयोग निर्यात को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है।
  • एक व्यापक FTA रणनीति विकसित करना: भारत को अपनी FTA वार्ताओं के लिये एक व्यापक रणनीति विकसित करनी चाहिये, जिसमें स्पष्ट लक्ष्य एवं उद्देश्य और उन्हें प्राप्त किये जाने के तरीके पर एक सुचिंतित योजना शामिल हो।
    • इसमें व्यवसायों, ट्रेड यूनियनों और नागरिक समाज समूहों जैसे प्रमुख हितधारकों के साथ परामर्श किया जाना भी शामिल होना चाहिये।
  • मौजूदा FTAs की समीक्षा और इन्हें अद्यतन करना: भारत को अपने मौजूदा FTAs की नियमित रूप से समीक्षा करनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे अभी भी देश को और इसके व्यापारिक भागीदारों को लाभ प्रदान कर रहे हैं।
    •  इसमें बदलती आर्थिक स्थितियों या अन्य कारकों को संबोधित करने के लिये समझौतों को अद्यतन करना या इनमें संशोधन करना शामिल हो सकता है।
  • FTAs को भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के साथ संबद्ध करना: भारत को अपने निकटस्थ क्षेत्रों (जैसे दक्षिण एशिया या दक्षिण-पूर्व एशिया) के देशों के साथ क्षेत्रीय FTAs को लेकर वार्ता पर विचार करना चाहिये।
    • यह संपर्क में वृद्धि एवं आर्थिक कूटनीति के साथ इस भूभाग में व्यापार की वृद्धि और आर्थिक विकास के वृहत प्रोत्साहन में योगदान कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये मुक्त व्यापार समझौतों की दिशा में पुनर्संरेखण के कौन-से महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त हो सकते हैं? चर्चा कीजिये।

स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस


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