करतारपुर गलियारा- शांति की नई दिशा
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में करतारपुर गलियारे और भारत-पाक रिश्तों पर उसके प्रभावों की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत और पाकिस्तान के मध्य करतारपुर गलियारे को लेकर समझौता संपन्न हो गया है और अगले महीने से इस सिख धार्मिक स्थल की शुरुआत की जाएगी। गौरतलब है कि श्रद्धालु, गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती से पूर्व ही करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब में अरदास हेतु पहुँच सकेंगे। जानकारों का मानना है कि करतारपुर गलियारे की शुरुआत के साथ ही दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) के मध्य शांति वार्त्ता की नई पहल की भी शुरुआत होगी।
पृष्ठभूमि
- उल्लेखनीय है कि भारतीय सिख तीर्थयात्रियों के लिये करतारपुर साहिब की ओर जाने वाले गलियारे को खोलने की मांग भारत द्वारा कई अवसरों पर उठाई जाती रही है।
- वर्ष 1999 में लाहौर की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की थी।
- वर्ष 2000 में पाकिस्तान के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारा में सिख भक्तों की यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिये एक गलियारे के निर्माण को मज़ूरी दी। हालाँकि वर्ष 2018 तक इस मुद्दे पर कोई विशेष कार्य नहीं हो सका।
- अगस्त 2018 में जब इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुना गया तो उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया और वहाँ से करतारपुर गलियारे का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया।
- इसके पश्चात् नवंबर 2018 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2019 में श्री गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती मनाने का प्रस्ताव पारित किया और साथ ही गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर गलियारे के निर्माण और विकास को मंजूरी दी गई।
- भारत ने पाकिस्तान से भी आग्रह किया वह भारतीय सिखों समुदाय की धार्मिक भावना का आदर करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सीमा से करतारपुर साहिब तक गलियारे का निर्माण करे।
- पाकिस्तान ने भारत की मांग को स्वीकार किया और कहा कि वह भारतीय तीर्थयात्रियों के लिये गलियारा खोलने को तैयार है।
- 26 नवंबर, 2018 को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भारतीय क्षेत्र में प्रस्तावित गलियारे की आधारशिला रखी।
करतारपुर साहिब का महत्त्व
- गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर पाकिस्तान में रावी नदी के तट पर स्थित है और पाकिस्तान में भारत-पाकिस्तान सीमा से लगभग 3-4 किमी. दूर है।
- यह भारत के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक मंदिर से लगभग 4 किमी. दूर है और पाकिस्तान के लाहौर से लगभग 120 किमी. उत्तर-पूर्व में है।
- ध्यातव्य है कि गुरु नानक देव जी ने अपनी मृत्यु (वर्ष 1539) से पूर्व 18 साल यहीं बिताए थे।
- सिख समुदाय के पहले गुरु ने अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण वर्ष यहाँ गुजारे जिसके कारण यह स्थान सिख धर्म के अनुयायियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- वर्ष 1999 में गुरुद्वारे की मरम्मत और बहाली के बाद इसे तीर्थयात्रियों के लिये खोला गया और तब से सिख जत्थे नियमित रूप से यहाँ आते रहे हैं।
- सिख जत्थे करतारपुर साहिब में मुख्यतः 4 अवसरों पर यात्रा करते हैं (1) बैसाखी, (2) गुरु अर्जुन देव जी का शहादत दिवस, (3) महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि और (4) गुरु नानक देव के जन्म दिवस।
करतारपुर गलियारे में यात्रा के नियम
- नियमों के अनुसार, जो भी श्रद्धालु करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब की यात्रा करना चाहते हैं वे अपने साथ अधिकतम 11000 रुपए और 7 किलो. वजन का एक बैग ही ले जा सकते हैं।
- सिख जत्थे में शामिल लोगों को गुरुद्वारा परिसर से बाहर जाने की अनुमति नहीं होगी।
- करतारपुर गलियारे में कोई भी भारतीय यात्रा कर सकता है और उसे वीज़ा की आवश्यकता नहीं होगी।
- गौरतलब है कि यात्रा के लिये वीज़ा की ज़रूरत नहीं है, परंतु यात्रियों के पास वैध पासपोर्ट होना अनिवार्य है।
- इस गलियारे में यात्रा लगभग 1 दिन की होगी अर्थात् जो यात्री सुबह यात्रा की शुरुआत करेंगे उन्हें शाम तक वापस लौटना होगा।
- पाकिस्तान की ओर इस यात्रा के लिये 20 अमेरिकी डॉलर का शुल्क लिया जाएगा। हालाँकि भारत की ओर से लगातार इस शुल्क का विरोध किया जा रहा है।
करतारपुर गलियारा और भारत-पाक संबंध
- करतारपुर कॉरिडोर भारत के सीमावर्ती जिले गुरदासपुर को पाकिस्तान के ऐतिहासिक गुरुद्वारा दरबार साहिब से जोड़ेगा, जो दोनों देशों के मध्य सांस्कृतिक रिश्ते मज़बूत करने का एक नया अवसर होगा।
- यह गलियारा भारत और पाकिस्तान के मध्य एक ऐतिहासिक कड़ी साबित होगा और इससे पर्यटन को भी भी बढ़ावा मिलेगा क्योंकि ज़्यादा-से-ज़्यादा तीर्थयात्री दो देशों के बीच पूरे वर्ष पवित्र तीर्थ यात्रा करेंगे।
- यह गलियारा को दोनों देशों के नागरिकों के मध्य संपर्क को बढ़ाएगा, जिससे दोनों देशों के लोगों को प्रेम, सहानुभूति और आध्यात्मिक विरासत के अदृश्य धागों के माध्यम से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
- दोनों देशों के मध्य तमाम तनावों के बावजूद भी करतारपुर गलियारे को लेकर हो रही बातचीत पर कोई खास असर नहीं पड़ा, जो कि स्पष्ट करता है कि यह दोनों ही मुल्कों के लिये कितना महत्त्वपूर्ण है।
- ध्यातव्य है कि जब जम्मू-कश्मीर को लेकर दोनों देशों में तनाव काफी बढ़ गया था तब भी करतारपुर गलियारे को लेकर बैठकें नियमित रूप से जारी रहीं।
- आतंकवाद से जूझ रहे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति काफी बदतर हो चुकी है और पाकिस्तान को उम्मीद है कि दोनों देशों के मध्य धार्मिक पर्यटन के बढ़ने से आर्थिक रिश्ते भी मज़बूत होंगे और पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार आएगा।
- धार्मिक पर्यटन के मामले में पाकिस्तान की स्थिति भारत की अपेक्षा काफी अलग है। पाकिस्तान में सिख धार्मिक स्थल काफी अधिक संख्या में मौजूद हैं, जबकि पाकिस्तान में आज़ादी के बाद पाकिस्तान में सिखों की संख्या काफी कम हो गई है।
- वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र है परंतु इस्लाम के अधिकांश पवित्र धार्मिक स्थल सउदी अरब, ईरान और इराक में मौजूद हैं।
- ऐसी स्थिति में यदि पाकिस्तान अपने यहाँ धार्मिक पर्यटन को बढ़ाना चाहता है तो उसे अपने देश में मौजूद सिख धार्मिक स्थलों के विकास पर ज़ोर देना होगा।
- विगत 2 वर्षों से भारत और पाकिस्तान के आर्थिक संबंध काफी खराब चल रहे हैं। करतारपुर गलियारे से दोनों देशों के व्यापारियों को उम्मीद है कि इससे दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में कुछ सुधार होगा।
- दोनों देशों में कृषि सहयोग भी बढ़ेगा और पंजाब के आलू तथा कपास उत्पादकों को लाभ मिलेगा।
चुनौतियाँ
- यद्यपि दोनों देशों के मध्य इस संबंध में समझौतों पर हस्ताक्षर हो चुके हैं परंतु फिर भी अभी कुछ चुनौतियाँ बाकि हैं। पाकिस्तान ने इस यात्रा के लिये 20 अमेरिकी डॉलर का शुल्क निर्धारित किया है, परंतु भारत इस शुल्क का विरोध कर रहा है और भारत का कहना है कि यह एक धार्मिक यात्रा है और इससे श्रद्धालुओं पर बोझ पड़ेगा, परंतु पाकिस्तान का कहना है कि उसने इस गलियारे के विकास पर काफी निवेश किया और इसलिये वह प्रति श्रद्धालु 20 अमेरिकी डॉलर का शुल्क वसूल रहा है।
- इसी के साथ यात्रियों की सुरक्षा का मुद्दा भी इस गलियारे के लिये काफी चुनौतीपूर्ण है। पाकिस्तान में आतंकी हमलों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता ऐसे में श्रद्धालुओं की सुरक्षा करतारपुर गलियारे की यात्रा के मध्य एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर सकती है। हालाँकि पाकिस्तान प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतज़ामों का दावा किया है।
- अतीत में कई बार ऐसा देखा गया है कि पाकिस्तान ने खालिस्तान सहानुभूति के लिये गुरुद्वारों का प्रयोग किया है। पाकिस्तान के गुरुद्वारों पर खालिस्तान के झंडे देखे गए हैं और सिख अलगाववादी भारत विरोधी प्रचार फैलाने के लिये इनका इस्तेमाल करते हैं।
- सुरक्षा विशेषज्ञों को आशंका है कि कई भारत विरोधी तत्त्व इस रास्ते का प्रयोग कर भारत में प्रवेश कर सकते हैं।
आगे की राह
- ध्यातव्य है कि सिख धर्म के कुछ पवित्र स्थान भारत में स्थित हैं, वहीं कुछ स्थान पाकिस्तान में स्थित हैं। ऐसे में बौद्ध सर्किट की तरह ही दोनों देशों के सभी पवित्र सिख स्थानों को जोड़ने वाले एक सिख सर्किट का भी निर्माण किया जा सकता है।
निष्कर्ष
करतारपुर गलियारे का न सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व है बल्कि यह राजनैतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। दोनों देशों के मध्य वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस गलियारे की प्रासंगिकता से इनकार नहीं किया जा सकता है। परंतु आवश्यक है कि इस संबंध में भिन्न चिंताओं पर जल्द-से-जल्द ध्यान दिया जाए तथा पाकिस्तान यात्रियों की सुरक्षा और खालिस्तान जैसे मुद्दों पर भारत को विश्वास दिलाए। इसके अतिरिक्त भविष्य में भी ऐसे ही कई अन्य प्रयासों की आवश्यकता है ताकि दोनों देशों के संबंधों को सुगम बनाया जा सके।
प्रश्न: करतारपुर गलियारे से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। स्पष्ट कीजिये।