भारत और परमाणु अप्रसार संधि
यह एडिटोरियल 30/08/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Return of Nuclear Weapons” लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में आयोजित ‘NPT समीक्षा सम्मेलन’ की एक आम सहमति तक पहुँच सकने की विफलता और भारत के परमाणु विकास के संदर्भ में इसके निहितार्थों के संबंध में चर्चा की गई है।
हाल ही में न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty- NPT) की समीक्षा के लिये दसवाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ। हालाँकि सम्मेलन में एक आम सहमति का निर्माण नहीं हो सका जो एक ऐसे समय कुछ अप्रत्याशित ही माना जा सकता है जब विश्व की कई प्रमुख शक्तियाँ परस्पर संघर्षरत हैं।
एक और निराशाजनक परिदृश्य यह रहा कि भारत ने एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र होने के बावजूद NPT समीक्षा में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि समय की आवश्यकता यह है कि भारत नए आयाम ग्रहण कर रहे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु विमर्श पर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दे और अपने स्वयं के असैन्य एवं सैन्य परमाणु कार्यक्रमों पर पुनर्विचार करे।
परमाणु अप्रसार संधि
- परिचय: NPT एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियार और हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है।
- इस पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किया गया था और यह वर्ष 1970 से प्रवर्तित हुआ। वर्तमान में 191 राष्ट्र-राज्य इसके सदस्य हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और इसका सदस्य नहीं है।
- संधि के तहत सदस्य देशों को परमाणु हथियार निर्माण की किसी भी वर्तमान या भविष्य की योजना का त्याग करना होगा और इसके बदले उन्हें परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग हेतु पहुँच प्राप्त होगी।
- यह परमाणु हथियार संपन्न राज्यों (Nuclear-Weapon States- NWS) द्वारा निरस्त्रीकरण के लक्ष्य के लिये एक बहुपक्षीय संधि में एकमात्र बाध्यकारी प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है। NWS में वे देश शामिल हैं जिन्होंने 1 जनवरी, 1967 के पूर्व परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों का निर्माण या परीक्षण किया हो।
- इस पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किया गया था और यह वर्ष 1970 से प्रवर्तित हुआ। वर्तमान में 191 राष्ट्र-राज्य इसके सदस्य हैं।
- NPT समीक्षा सम्मेलन: वर्ष 1970 में लागू हुए परमाणु अप्रसार संधि के पक्षकार देश प्रत्येक पाँच वर्ष पर संधि के कार्यान्वयन की समीक्षा करते हैं।
- इसका दसवाँ समीक्षा सम्मेलन वर्ष 2020 में आयोजित होना था जो कोविड-19 महामारी के कारण विलंबित हो गया और अब संपन्न हुआ है।
भारत में परमाणु विकास
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत का परमाणु कार्यक्रम 1940 के दशक के उत्तरार्द्ध में होमी जे. भाभा के मार्गदर्शन में शुरू किया गया था।
- भारत द्वारा पहला परमाणु परीक्षण मई 1974 में किया गया।
- भारत ने सैन्य उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए मई 1998 में कई परमाणु परीक्षण किये।
- वर्ष 1998 के परीक्षणों के बाद भारत ने परमाणु हथियारों के ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ (NFU) के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जिसे औपचारिक रूप से जनवरी, 2003 में अंगीकृत किया गया।
- इसके तहत कहा गया कि भारतीय क्षेत्र पर अथवा कहीं भी भारतीय सैन्य बलों पर परमाणु हमले के जवाब में ही परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया जाएगा।
- प्रमुख बाधा: शीत युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद अमेरिका ने भारत के परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रमों को बंद कराने का प्रयास किया, जिसने भारत में गंभीर चिंता उत्पन्न की।
- मई 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद, भारत को अमेरिका से आर्थिक प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता: प्रतिबंधों के कुछ वर्ष बाद वर्ष 2005 में ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु पहल ने एक ऐसा ढाँचा तैयार किया जिसने NPT प्रणाली के साथ भारत के विस्तारित संघर्ष को समाप्त कर दिया।
- अमेरिका के साथ इस समझौते के परिणामस्वरूप भारत के असैन्य और सैन्य परमाणु कार्यक्रम अलग-अलग हो गए।
- इस समझौते के कुछ वर्षों बाद भारत को पुनः अपने परमाणु शस्त्रागार को विकसित करने और शेष विश्व के साथ असैन्य परमाणु सहयोग फिर से शुरू करने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई (जो मई 1974 में भारत के पहले परमाणु परीक्षण के बाद से ही नियंत्रित थी)।
- वर्तमान परिदृश्य: वर्ष 2018 में भारत ने अपने परमाणु सिद्धांत में घोषित योजनानुसार अपना अपना ‘परमाणु त्रयी’ या न्यूक्लियर ट्राइएड (Nuclear Triad) पूरा कर लिया।
- परमाणु त्रयी एक तीन-तरफा सैन्य-बल संरचना है जिसमें भूमि-प्रक्षेपित परमाणु मिसाइल, परमाणु-मिसाइल-सज्जित पनडुब्बियाँ और परमाणु बम एवं मिसाइलों से सज्जित सामरिक विमान शामिल हैं।
- हालाँकि, यह भी उल्लेखनीय है कि भारत-अमेरिका परमाणु समझौता संपन्न होने के लगभग डेढ़ दशक बाद भी भारत ने अमेरिका से अब तक एक भी परमाणु रिएक्टर की खरीद नहीं की है।
NPT समीक्षा सम्मेलन की विफलता से संबंधित मुद्दे:
- वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ती खाई: 10वें समीक्षा सम्मेलन की विफलता NPT के प्रमुख प्रायोजकों अमेरिका और रूस के बीच बढ़ती खाई को प्रकट करती है, जबकि उल्लेखनीय है कि शीत युद्ध के चरम पर भी NPT के लिये प्रबल समर्थन ऐसा प्रमुख क्षेत्र था जहाँ अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच सहयोग नज़र आता था।
- सम्मेलन में यूक्रेन के ज़ापोरिज़्ज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Zaporizhzhia nuclear power plant) पर रूस के सैन्य नियंत्रण का संदर्भ लिये जाने पर रूस द्वारा कड़ी आपत्ति जताई गई।
- मध्य-पूर्व की परमाणु समस्याओं (जिससे इज़राइल और ईरान संलग्न हैं) ने भी NPT समीक्षा सम्मेलनों में सफल परिणामों को अवरुद्ध रखा है।
- सामूहिक विनाश के हथियारों से मुक्त मध्य-पूर्व क्षेत्र की स्थापना पर गंभीर मतभेदों के कारण वर्ष 2015 में आयोजित 9वाँ समीक्षा सम्मेलन भी बिना किसी समझौते के समाप्त हो गया था।
- गैर-परमाणु पक्षकार देशों की आशंकाएँ: NPT के निरस्त्रीकरण प्रावधानों को लागू करने में प्रगति की कमी को लेकर ये देश शिकायत रखते हैं। परमाणु शक्ति संपन्न देशों द्वारा हथियारों के नियंत्रण पर किसी भी तरह के संवाद के अभाव ने स्थिति को और बदतर कर दिया है।
- NWS ने परमाणु हथियारों के महत्त्व को कम करने के बजाय उनकी रणनीतिक उपयोगिता पर अधिक बल देना शुरू कर दिया है।
- इसके अलावा, परमाणु संपन्न रूस द्वारा गैर-परमाणु राष्ट्र यूक्रेन पर आक्रमण ने गैर-परमाणु राज्यों के समक्ष आसन्न खतरे को और बढ़ा दिया है।
- उल्लेखनीय है कि रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की भी धमकी दी है।
- चीन का विशेष खतरा: एशियाई देशों के लिये चीन की बढ़ती आक्रामकता एक समान चिंता का विषय है। यह भय वास्तविक है कि चीन द्वारा अपने पड़ोसी देशों के क्षेत्रों को जब्त करने के लिये अपनी परमाणु शक्ति का उपयोग किया जा सकता है।
- चीन AUKUS समूह को समर्थन देने वाले दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की आलोचना करता है और इसे NPT के प्रावधानों के लिये उल्लंघनकारी मानता है
- 10वें समीक्षा सम्मेलन में इंडोनेशिया और मलेशिया ने भी NPT के लिये AUKUS समझौते के निहितार्थों के बारे में चिंता व्यक्त की।
- चीन AUKUS समूह को समर्थन देने वाले दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की आलोचना करता है और इसे NPT के प्रावधानों के लिये उल्लंघनकारी मानता है
वर्तमान वैश्विक परमाणु आख्यान क्या होना चाहिये?
- बढ़ती ऊर्जा मांगों ने परमाणु ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने वाले देशों की संख्या में वृद्धि की है और कई देश एक स्थायी एवं भरोसेमंद घरेलू ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा-स्वतंत्र होने की इच्छा रखते हैं।
- इस परिदृश्य में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को प्रयास करना होगा कि ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने की देशों की इच्छा और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के हस्तक्षेप को कम करने और परमाणु प्रसार की संभावना को कम करने की उनकी इच्छा के बीच एक सामंजस्य लाया जाए।
- यद्यपि गैर-परमाणु हथियार राज्यों (NNWS) ने न्यू स्टार्ट (New START) एवं अन्य पहलों का स्वागत किया है, वे राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों में परमाणु हथियारों की भूमिका को सीमित करने, चेतावनी स्तर को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने पर अधिक ठोस कार्रवाई देखने के इच्छुक हैं।
- विश्व के अधिकाधिक क्षेत्रों को (अधिमानतः NWS को शामिल करते हुए) परमाणु हथियार मुक्त क्षेत्रों की स्थापना की एक व्यवस्था में प्रवेश करना चाहिये।
भारत के लिये फोकस के प्रमुख क्षेत्र क्या होने चाहिये?
- परमाणु शक्ति को बढ़ाना: भारत को वृहत शक्ति सैन्य रणनीति के प्रमुख साधनों के रूप में बदलते वैश्विक परमाणु विमर्श को चिह्नित करने और उसके अनुकूल बनने का प्रयास करना चाहिये। उसे अपने परमाणु हथियारों की क्षमता की जाँच भी करनी चाहिये कि वे प्रतिद्वंद्वियों के बढ़ते परमाणु शस्त्रागार का मुक़ाबला कर सकने में सक्षम हैं या नहीं।
- वर्ष 1998 के बाद से भारत ने ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध’ (credible minimum deterrence) के निर्माण पर अपनी रणनीति को आधारित रखा है।
- इस रणनीति के ‘विश्वसनीय’ पक्ष को प्रतिबिंबित करने और ‘न्यूनतम’ को पुनः परिभाषित करने का यह उपयुक्त समय होगा।
- इसके साथ ही, भारत को सीमा पर अपने बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर और निगरानी एवं चेतावनी क्षमताओं में सुधार कर ‘सक्रिय निरोध’ (active deterrence) की अपनी मुद्रा को धीरे-धीरे ‘अवरोधक निरोध’ (dissuasive deterrence) में रूपांतरित करने की आवश्यकता है।
- वर्ष 1998 के बाद से भारत ने ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध’ (credible minimum deterrence) के निर्माण पर अपनी रणनीति को आधारित रखा है।
- परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि करना: भारत, जिसने 50 वर्ष से भी अधिक समय पहले एशिया का पहला परमाणु ऊर्जा स्टेशन चालू किया था, वर्तमान में महज 7,000 मेगावाट की कुल उत्पादन क्षमता तक अटका हुआ है।
- भारत को अपने असैन्य परमाणु ऊर्जा उत्पादन में वर्तमान गतिहीनता को समाप्त करने के तरीके खोजने चाहिये, विशेष रूप से एक ऐसे समय में जब उसने अपनी ऊर्जा खपत में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी को कम करने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की है।
- असैन्य परमाणु दायित्व अधिनियम पर पुनर्विचार करना: भारत की असैन्य परमाणु पहल का उद्देश्य परमाणु विद्युत शक्ति के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के द्वार खोलना था।
- हालाँकि ‘परमाणु क्षति के लिये असैन्य दायित्व अधिनियम, 2010’ (Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010) ने आंतरिक और बाह्य दोनों ही निजी खिलाड़ियों के लिये कार्यक्रम में योगदान करना असंभव बना दिया है।
- भारत के ऊर्जा मिश्रण में परमाणु ऊर्जा के योगदान को तेज़ी से बढ़ाने के लिये किसी भी भारतीय रणनीति के लिये इस कानून पर पुनर्विचार करना एक तत्काल अनिवार्यता है।
अभ्यास प्रश्न: परमाणु हथियारों के अप्रसार के लिये वर्तमान वैश्विक रुख में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। उन प्रमुख क्षेत्रों की चर्चा करें जहाँ भारत को इस परिवर्तन के अनुकूल होने के लिये ध्यान केंद्रित करना चाहिये।